Ruhani Saakhi । सत्संगी भजन सिमरन भले ही कम करें लेकिन ये काम जरूर करें । जरूर सुने

साध संगत जी एक बार एक सत्संगी अभ्यासी ने संगत में यह सवाल छेड दिया कि अगर हम सचखंड के वासी हैं अगर हमारी आत्मा उस मालिक की अंश है उसी का रूप है तो फिर मालिक ने हमें अपने आप से अलग क्यों किया और अब हम इस संसार में आ गए हैं क्योंकि उसने हमें यहां भेजा है तो हमें भजन सिमरन करने की जरूरत क्यों है ? क्या मालिक अपनी कृपा कर फिर हमें वापस नहीं भुला सकता, क्या भजन सिमरन करना हमारे लिए जरूरी है और अगर हम सभी ने उस मालिक में समाना हो तो क्या हमें भजन सिमरन करना ही पड़ेगा हम भजन सिमरन के बिना उस मालिक में नहीं समा सकते, क्योंकि जैसे कि फरमाया जाता है कि हमारी आत्मा मालिक की अंश है तो फिर हमें भजन सिमरन करने की क्या जरूरत है मालिक खुद क्यों नहीं हमें अपने आप में समा लेता और उसने हमें अपने आप से अलग क्यों किया ? इसका कारण क्या रहा होगा ? तो साध संगत जी ऐसा ही एक वाद विवाद खड़ा हो गया, उस अभ्यासी के यह ऐसे प्रश्न सुनकर वहां पर जो माजूद संगत थी उनके मन में भी ऐसे प्रश्न उठने लगे थे तो उसने यह प्रशन संगत में जब छेड दिए तो साध संगत जी जैसे कि आप जानते हैं की संगत में कोई ना कोई कमाई वाला जीव कोई ना कोई कमाई वाला अभ्यासी तो जरूर होता है जो हमारा मार्गदर्शन करता है जो हमें बताता है क्योंकि मालिक ने संगत में ऐसे ऐसे जीव रखे हुए हैं जो हम जैसों का मार्गदर्शन करते हैं और यह भी मालिक की कृपा ही होती है मालिक खुद ही उन के माध्यम से हमारा मार्गदर्शन करता है तो जब ऐसे प्रेशर उस सत्संगी ने संगत में किए तो उसके मन में बहुत सारे वाद विवाद उठ रहे थे तो उसने सभी प्रशन संगत में कह डाले और संगत से सांझा किए तो वहां पर एक कमाई वाले बुजुर्ग थे जिनको सभी प्यार से मास्टर जी बुलाते थे और सभी उनका बहुत ही मान आदर करते थे क्योंकि सब को यह बात पता थी कि यह बहुत पुराने सत्संगी है इन्होंने तो अब तक बहुत अभ्यास कर लिया होगा और बहुत सफर तय कर लिया होगा तो जब यह बात घूमती घुमाती उनकी तरफ अाई क्योंकि वह भी वही माजूद थे तो सभी संगत की आंखें उनकी तरफ थी कि यह कुछ कहेंगे तो जब यह बात उनके पास पहुंची तो उन्होंने एक साखी संगत को सुनाई जो कि मैं आपसे सांझा करने जा रहा हूं तो साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी ।

साध संगत जी, आप जी साखी की शुरुआत में कहते हैं की एक राजा था और उसका बहुत बड़ा महल था वहां पर किसी चीज की कमी नहीं थी सभी सुख सुविधाएं वहां पर थी वहां पर कोई दुख नहीं था कोई तकलीफ नहीं थी केवल सुख था और आनंद था और राजा का एक बेटा था लेकिन उसका बेटा कुछ बिगड़ गया था और उसे उस महल में मिलने वाली सभी तरह की सुख सुविधाओं की कोई कदर नहीं थी और उसका बेटा दिन-ब-दिन बिगड़ता ही जा रहा था तो ये सब देख कर राजा को बहुत दुख हुआ तो राजा ने अपने बेटे को कहा कि सुधर जा नहीं तो मैं तुम्हें इस राज्य से निकाल दूंगा, तो उस लड़के ने उसी रात वह राजमहल छोड़ दिया और सब कुछ छोड़ कर चला गया तो जब यह बात राजा तक पहुंची तो राजा को बहुत दुख हुआ कि मैंने अपने बेटे को ऐसा क्यों कहा कि मैं तुझे राज्य से निकाल दूंगा, राजा अपने बेटे को मिलने के लिए बहुत तड़प रहा था उसे इस बात की बहुत तकलीफ थी कि मैंने अपने बेटे को ऐसा क्यों कहा, तो उसने अपने बेटे को बहुत ढूंढा लेकिन वह नहीं मिला और उसने अपने वजीर को कहा की सभी सैनिकों को बोलो कि मेरे बेटे को ढूंढें तो ऐसा ही किया गया लेकिन ऐसा करने पर भी वह नहीं मिला वह कहीं दूर जा चुका था तो ऐसे ही बहुत वर्ष बीत चुके थे लेकिन वह नहीं मिला और राजा हर रोज उसकी प्रतीक्षा करता रहा, हर रोज उसे ढूंढने की कोशिश करता, लेकिन उसकी कोई खबर नहीं थी तो जब राजा का बेटा महल छोड़ कर गया था उसके बाद उसने भिखारियों की संगत कर ली, क्योंकि उसके पास खाने पीने के लिए कुछ भी ना था तो फिर दर-दर भटकने लगा, मांगने लगा, जहां भी जाता उसे धक्के ही मिलते, वह यह बात भूल ही गया था कि वह एक राजा का बेटा है एक राजा की संतान है क्योंकि जब उसने राजमहल छोड़ा था तब वह छोटा था और अब वह बड़ा हो गया था तो उसे यह बात भूल ही गई थी कि मैं एक राजा का बेटा हूं तो वह दर-दर भटकने लगा, घर घर जाकर मांगने लगा तो बहुत वर्षों के बाद वह एक दिन ऐसे ही घूमता घूमता अपने उस राज्य में जा पहुंचा और लोगों से भीख मांगता हुआ उस राज महल में जा पहुंचा और उसे तब भी यह एहसास नहीं हुआ कि यह राज मेरा ही है और वहां पर जो राजा बैठा है वह मेरा पिता है तो उसने राजा से भीख मांगी, जब राजा ने अपने बेटे को देखा तो उससे रहा नहीं गया वह अंदर ही अंदर चाहता था कि भागकर उसे गले से लगा लूं क्योंकि उसने अपने बेटे को एक क्षण में पहचान लिया था कि यह मेरा ही बेटा है साध संगत जी बच्चे भले ही अपने बाप को भूल जाए लेकिन बाप कभी अपने बच्चों को नहीं भूलता, वह तो एक क्षण में ही हमें पहचान लेता है कि यह मेरी ही औलाद है मेरी ही संतान है तो जब राजा ने देखा कि ये तो मेरा ही बेटा है और उसने अपने बेटे की हालत देखी कि यह भिखारी बना हुआ है फटे पुराने कपड़े पहने हुए हैं और गंदगी से लथपथ है तो यह सब देखकर राजा को और भी दुख लगा तो यह सब देखकर उसने अपने वजीर से कहा कि क्या मैं इसे बोल दूं कि तूं मेरा ही बेटा है तो वजीर ने राजा को सलाह दी कि अभी यह सब कहना ठीक नहीं क्योंकि अब यह इस हालत में नहीं है कि इसको यह सब बताया जा सके और अगर आप इसे यह सब बता भी दोगे तो ये मानेगा नहीं, तो वजीर ने राजा से कहा कि यह बात आप मुझ पर छोड़ दें और जब इसको यह बात बतानी होगी तब मैं खुद आपको बोलूंगा कि अब आप इसे कह दो कि यह आपका ही बेटा है तो उसके बाद वजीर ने उसको अपने पास बुलाया और उसे राज महल के अंदर ही कुछ काम दे दिया और वजीर ने उससे कहा कि राजा तुमसे बहुत प्रसन्न हुए हैं इसलिए उन्होंने तुम्हें इस राज महल में काम दे दिया है तो वह उस राज महल में काम करने लगा जो भी उसे बोला जाता वह वैसे ही करता, वह राज महल में झाड़ू पोचा सब करता था ऐसे ही कुछ दिन बीत गए और वजीर ने उसके फटे पुराने कपड़े उतरवाए और उसे अच्छे कपड़े पहना दिए और एक अच्छा व्यक्ति उसे बना दिया और ऐसे ही दिन-ब-दिन उसकी हालत सुधरती ही जा रही थी वह जो चमक पहले उसके पास थी जब वह छोटा था जब वह राज महल में रहता था वह धीरे-धीरे वापस आ रही थी वजीर ने इस पर बहुत काम किया और फिर उसे राजा की सेवा में समर्पित कर दिया और अब वह राजा के पास ही रहने लग गया था और फिर एक दिन वजीर ने राजा से कहा कि अब आप इसे कह दो कि तूं मेरा ही बेटा है तो वह घड़ी आ गई थी जब वह एक राजकुमार बन गया था वजीर ने उसको भिखारी से एक राजकुमार बना दिया तो जब वह राजा के सामने पेश हुआ तो वजीर ने राजा को कहा कि अब आप इसे कह सकते हो कि तूं मेरा ही बेटा है, क्योंकि अब ये पूरी तरह त्यार है तो तब राजा ने उसे अपने गले से लगाया और उसे कहा कि तू मेरा ही बेटा है और तब जाकर उसे यह एहसास हुआ कि मैं तो व्यर्थ ही गंदगी में भटकता रहा दर-दर जाकर मांगता रहा मुझे इस बात का बिल्कुल भी एहसास ना हुआ कि मैं एक राजा हूं तो साध संगत जी ऐसे ही सतगुरु भी हमें कहते है कि तुम भी उस परमात्मा की संतान हो लेकिन हम मानते कहां है और ऐसी ही हालत हमारी भी है हम भी उस भिखारी की तरह दर-दर मांग रहे हैं दर-दर भटक रहे हैं हमें धक्के भी पढ़ते हैं लेकिन फिर भी हमें समझ नहीं आती वह राजा और कोई नहीं है वह हमारा परमपिता परमात्मा ही है जिससे हम बिछड़े हुए हैं और भिखारियों की तरह यहां भटक रहे हैं और वह वजीर कोई और नहीं वह उस नाम रूपी समुद्र की लहर परम पुरुष सतगुरु है जो हमारी हालत को सुधारते हैं जो हमारी गंदगी को साफ करते हैं जो हमें नाम की बख्शीश कर हमें भजन बंदगी करने के लिए कहते हैं ताकि हमारे अंदर जो पढ़ी हुई गंदगी है वह दूर हो सके और हमारी वह चमक वापस आ सके और हमारा उस मालिक से मिलाप हो सके, इसलिए तो सतगुरु हमसे सेवा करवाते है क्योंकि सेवा से हमारी जन्मों जन्मों की मेल दूर होती है और भले ही हममें से कुछ सत्संगी भजन सिमरन नहीं करते लेकिन सद्गुरु ऐसे जीवो को सेवा करने के लिए कहते हैं सेवा करने के लिए प्रेरित करते है जिनका ध्यान भजन सिमरन में कम लगता है ताकि हमारी हालत बेहतर बन सके और हम उस कुल मालिक में वापस जाकर उस नाम रूपी समुंदर में समा सके और हम अपने निज नाम सचखंड वापस जा सके और हमारा इस जन्म मरण के खेल से छुटकारा हो सके इस नाटक से हमारी मुक्ति हो सके ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर करना, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।

By Sant Vachan


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