Ruhani Saakhi । श्राद्ध पूजा करने वालों को सतगुरु का उपदेश । जो सत्संगी श्राद्ध पूजते है । जरूर सुने

 


साध संगत जी, आज की ये साखी सतगुरु नानक और सेठ दुनीचंद की है जब दुनीचंद की मुलाकात सतगुरु नानक से हुई थी तब सतगुरु ने उसे क्या उपदेश दिया था वह आज हमें इस साखी के माध्यम से पता चलेगा तो साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी ।

साध संगत जी, सतगुरु नानक सच्चे पातशाह मालिक की याद में रावी नदी के किनारे बैठे हुए थे और वहा पर सेठ दुनीचंद आया और उसका सतगुरु नानक जी के दर्शन करके मन मोहित हो गया, तो उसने भाई मरदाना जी से पूछा की ये कौन हैं तो भाई मर्दाना जी बोले ये जगत गुरू गुरू नानक देव जी हैं, सेठ दुनीचंद बोला आप मेरे घर भोजन करने आ सकते है ? आज मेरे पिता का श्राद्ध है, सतगुरु नानक बोले ठीक है आप अपना पता बता दो, हम आ जाएंगे, तो ये सब देख भाई मर्दाना जी बड़े हैरान हुए, कि सतगुरु तो किसी का भोजन इतनी जल्दी नहीं मानते, आज कैसे मान लिया, तो सेठ दुनीचंद ने कहा महाराज मेरा पता आप किसी से भी पूछ लीजिए, यहां सबसे अमीर मैं ही हूं, मुझसे ज्यादा अमीर यहां पर कोई नहीं है, तो साध संगत जी सतगुरु को ये बात पता थी कि इसे अपने आप पर बहुत अहंकार है तो सतगुरु सच्चे पातशाह ने तो उसे तारना था, सतगुरु ने भाई मर्दाना जी से कहा चल भाई मरदाना आज इसी का नम्बर लगाते हैं, आज इसको तारने चलते हैं, सतगुरु नानक सच्चे पातशाह सेठ के घर आए, और वहां पर सतगुरु ने देखा की यहां पंगते लगी हुई हैं, नगर के वासी लंगर भोजन कर रहे है, 100 ब्राह्मण भी एक तरफ बैठे भोजन कर रहे है, तो सतगुरु नानक सच्चे पातशाह भी जाकर बैठ गए, तो जब सेठ दुनीचंद  देखा कि सतगुरु नानक आए है तो उसने कहा आप भी यहां बैठ जाओ, तो सतगुरु नानक सच्चे पातशाह ने कहा पहले सबको खिला दो, तो ये सुनकर सेठ कहने लगा आप तो बड़े संतोषी हो, सबर वाले हो, नहीं तो यहां लंगर बटना शुरू होता है तो लोग एक दूसरे पर टूट पड़ते हैं, तो सतगुरु ने पूछा सेठ ये लंगर किस लिए लगाया है, सेठ कहने लगा महाराज जी ये अपने पिता पितरों के कल्याण के लिए लगाया है, आज मेरे पिता जी की बरसी है, तो सतगुरु ने पूछा कि पिता जी का कल्याण हो गया ? तो सेठ ने कहा हां महाराज, 100 ब्राह्मण खा चले गए, सुबह से पता नहीं कितने लोग लंगर करके चले गए और अभी भी लंगर चल रहा है, सबने यही कहा तेरे पिता का कल्याण हो गया, सतगुरु नानक कहने लगे अभी तेरे पिता का कल्याण नहीं हुआ है, वो तो बाघ की जूनी में जंगल की झाड़ी में 3 दिनों से भूखा बैठा है, ये बात सुनने के बाद वह सेठ हैरान हो गया, तो सतगुरु सच्चे पातशाह ने कहा ये जो तूने मेरे लिए थाली लगाई है, इसे ले जा, वहां नदी के दूसरी तरफ झाड़ में तेरा पिता बाघ बनकर बैठा है, हमने नदर कर दी है, इस थाल में अब ये प्रसाद बन गया है, साध संगत जी सतगुरु के पास दो तरीके से भोग लगता है, एक प्रसाद हम जो पदार्थ खाते हैं, एक गुरू लंगर जिस पर गुरू की नदर पड़ जाती है, तो ये सब सुनकर सेठ को विश्वास नहीं हुआ और वह सोचने लगा कि इतने सालो से श्राद्ध कर रहे हैं किसी ने कुछ नहीं कहा और आज इन्होंने तो नई बात कह दी, लेकिन सतगुरु नानक जी की ये बात सुनकर वह सेठ कांप गया और कहने लगा महाराज वो तो बाघ है, कहीं मेरे ऊपर हमला ना कर दे, तो सतगुरू नानक ने कहा कि नहीं करेगा, वो जब तेरा दर्शन करेगा निहाल हो जाएगा, वो तेरा पिता है ये उसे ज्ञान हो जाएगा और सतगुरु ने कहा अब तू जा दुनीचंद जब तक तू लौट के नहीं आयेगा, हम तेरे इंतज़ार में यही बैठे रहेंगे, तो सतगुरु की बात मानकर वह सेठ चल पड़ा, कभी दो कदम आगे कभी दो कदम पीछे, मन कभी मानता, कभी नहीं मानता, पर नाव में बैठ के नदी के दूसरी तरफ गया यहां सतगुरु नानक ने कहा था, कि झाड़ियों के पीछे वह बैठा होगा, वो तेरा बाप है तू उसका पुत्र है, तो जब वह झाड़ियों के पीछे गया तो वहा उसे वही बाघ मिला और जब झाड़ खड़कने की आवाज हुई तो बाघ ने मुंह ऊपर किया, तो सेठ दुनीचंद को लगा मेरा बाप भी मेरे ऊपर ऐसे ही देखता था, उसकी आंख भी ऐसी ही लगती थी, तो उसने सतगुरु का दिया हुआ प्रसाद का थाल उसके आगे रखा और कहा आप कई दिनों से भूखे है तो इसलिए गुरू नानक जी ने आपके लिए प्रसाद भेजा है और जैसे ही उसने वह प्रसाद खाया तो उसने बाघ का रूप त्याग कर जीवात्मा रूप धारण कर लिया और कहने लगा दुनीचंद जल्दी जा तेरे घर परमात्मा रूप नारायण आए हैं, उनकी कृपा से मेरा कल्याण हुआ है तू अभी जा और जाकर उनके चरण पकड़ कही वो चले ना जाए, और उसने कहा कि तुम जानना चाहते हो कि मैं इस जूनी में क्यू आया ? क्योंकि मेरा अंतिम समय जब आया तो पड़ोस में मांस बन रहा था और मांस की बू मेरे पास आई और मेरे अंतिम समय मुझे लगा कि अगर थोड़ा मुझे भी मिल जाय तो मैं भी खा लु, तो यही वासना मेरे मन में रह गई इसलिए निरंकार ने मुझे बाघ की जूनी दे दी कि अब जितना मर्जी मांस खा, क्योंकि अंतिम समय जैसा मन में ख्याल आ जाए, परमात्मा उसी तरफ भेज देता है, अगर अंतिम समय मालिक याद आ जाए तो वह खुद लेने आ जाए, तो साध संगत जी सेठ जब घर आया तो गुरू नानक जी के चरणों में गिर पड़ा और कहने लगा सतगुरु आपने सच कहा आज मेरे पिता का कल्याण हुआ है, और वहां पर सतगुरु ने उसे एक और उपदेश दिया सतगुरु ने एक सुई उसके हाथ पर रखी और उसे कहा कि इसे संभाल कर रखना हम यह सुई तुमसे परलोक में ले लेंगे तो उसने वही सुई अपनी पत्नी को जाकर दे दी और कहा कि यह सुई मुझे गुरु जी ने दी है इसे संभाल कर रखना क्योंकि उन्होंने मुझसे यह सुई परलोक में लेनी है तो ये बात सुनने के बाद उसकी पत्नी ने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है जबकि ये जो हमारा शरीर है यह भी यही रह जाएगा तो आप सुई कैसे वहां पर ले जा सकते हैं तो ये सुनने के बाद उसे एक और झटका लगा और उसने यही बात सतगुरु को जा कर कह दी कि सतगुरु मैं आपको यह सुई परलोक में कैसे दे सकता हूं जबकि वहां पर तो मेरा शरीर भी नहीं जाएगा तो सतगुरु ने उसे वहां पर उपदेश दिया कि फिर जो तूने यह धन इकट्ठा किया हुआ है जो तुमने झूठ बोलकर छल करके जो धन इकट्ठा किया हुआ है ये तुम्हारे साथ कैसे जा सकता है ? इसको इकठ्ठा करने में तेरी पूरी उम्र निकल जाएगी और मौत आ जाएगी तो इसने तेरा क्या साथ देना है, क्योंकि जो पाप किए हैं उसका फल तो भुगतना ही पड़ेगा, तो ये सुनने के बाद सेठ दुनीचंद ने सतगुरु से कहा कि सतगुरु फिर आप ही बताएं आप ही अपना उपदेश मुझे समझाए, तो सतगुरु ने सेठ दुनीचंद से कहा कि इस प्राणी के 3 मित्र हैं धन, परिवार और कर्म तो जब तक प्राण शरीर में रहते हैं तब तक धन हमारा मित्र है उसके बाद नहीं, बाद में हमारे लिए इसका कोई अर्थ नहीं रह जाता जो भी ज्यादा धन इकट्ठा किया हुआ है वह हमारे जाने के बाद किसी दूसरे के पास चला जाएगा जिसे हमने पाप करके इकट्ठा किया था और परिवार वाले भी शरीर को अग्नि देने तक ही मित्र होते हैं उसके बाद वह तिनका तोड़कर घर आ जाते हैं और हमारे साथ आगे कोई भी संगी साथी नहीं जाता कोई भी परिवार वाला नहीं जाता जिनके साथ हमने पूरी उम्र बिताई होती है जिनकी खुशियों के लिए हमने क्या-क्या नहीं किया होता तीसरे है कर्म, कर्म मनुष्य के संगी है क्योंकि वह मनुष्य के साथ आगे भी जाते हैं क्योंकि जिस तरह भी कोई बुरा भला करता है उसी तरह का उसे फल मिलता है और यह हमारे साथ मृत्यु के बाद भी जाते हैं इसलिए धन को अच्छे कार्यों में लगाएं क्योंकि किए हुए अच्छे कर्म आपका आगे जाकर साथ देंगे और सतगुरु ने कहा कि हर समय सतनाम का जाप करो ! तो सतगुरु का ये उपदेश सुनने के बाद सेठ दुनीचंद के ऊपर इसका बहुत प्रभाव पड़ा वह सतगुरु के उपदेश से निहाल हो गया था और उसने अपना सारा धन संगत की सेवा में लगा दिया, अच्छे कार्यों में लगा दिया और उसने सभी बुरे काम छोड़ दिए थे और वह केवल सतनाम का जाप करने लगा था तो साध संगत जी ऐसे सतगुरु ने सेठ दुनीचंद को अपने उपदेश से उसे निहाल किया था साध संगत जी इस साखी से हमें भी यही शिक्षा मिलती है कि देने वाला तो वह मालिक है वही सबको देता है तो हमें किस बात का अहंकार आ जाता है, हमें कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए क्योंकि अहंकार सदा के लिए नहीं होता और हम चाहे जितना भी धन इकट्ठा कर ले जितनी भी मान प्रतिष्ठा इकट्ठी कर ले लेकिन जब मृत्यु आती है तो सब खत्म कर देती है तो इसीलिए सतगुरु हमें उपदेश देते हैं कि इस संसार में हम कुछ देर के मेहमान हैं और हम इस बात को जितनी जल्दी समझ सके हमारे लिए उतना ही अच्छा है और जितनी जल्दी हमारी समझ में यह बात आ जाती है हम उतना ही मालिक की तरफ ध्यान देने की कोशिश करते हैं मालिक की भजन बंदगी करने की कोशिश करते हैं ताकि हमारा मिलाप उस कुल मालिक से हो सके और हम अपने सच्चे धाम सचखंड वापस जा सके ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर करना, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके । 

By Sant Vachan


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