Saakhi : एक सत्संगी का घर खुला छोड़ सेवा पर चले जाना । उसके बाद जो हुआ ! संगत सुनकर दंग रह गई ।

 

साध संगत जी,यह साखी 1948 की है जब भारत और पाकिस्तान अलग हो गए थे और इस बात का दुख जितना उस समय संगत को हुआ था वह शब्दों में कहा नहीं जा सकता, क्योंकि बहुत सारी संगत पाकिस्तान से सतगुरु का सत्संग सुनने आया करती थी, सतगुरु के दर्शन करने आया करती थी और उस समय जितनी तकलीफ संगत को हुई थी शायद ही किसी और को हुई हो क्योंकि सतगुरु से बिछड़ कर जो दुख होता है वह सहन नहीं होता ।

तो उस समय कुछ अभ्यासी सज्जन इस बात को लेकर बहुत दुखी थे और अंदर ही अंदर सतगुरु से यह फरियाद कर रहे थे कि यह सब ठीक हो जाए जैसा पहले था वैसा ही हो जाए क्योंकि वह किसी भी कीमत पर अपने सतगुरु से दूर नहीं जाना चाहते थे साध संगत जी उस समय संगत सतगुरु की याद में बहुत रोई थी सतगुरु से बिछड़कर बहुत रोई थी, तो साध संगत जी उस समय में सतगुरु ने सबसे ज्यादा सत्संग पाकिस्तान के कालाबाग में दिए और वहां से बहुत सारी संगत रोहानियत से जुड़ी हुई थी सतगुरु से जुड़ी हुई थी और वहां पर एक चाचा जी रहते थे जिनको सभी प्यार से "सत्संगी चाचा" जी कहकर पुकारते थे क्योंकि जब भी सतगुरु का सत्संग वहां पर होना होता था तो वह तुरंत सभी काम छोड़कर सत्संग सुनने चले जाया करते थे और अगर कभी कोई सेवा का हुक्म हो जाए तो वह सेवा पर भी चले जाते थे उनका सतगुरु से बहुत प्रेम था और उस समय जो अभ्यासी सज्जन थे वह अपने सतगुरु के हुकुम को सर्वश्रेष्ठ मानते थे तो ऐसे ही यह चाचा जी भी थे इन्होंने भी सतगुरु के बहुत सत्संग सुने हुए थे और इनको रूहानियत की गहरी समझ थी और साथ ही इनका फलों का कारोबार था यह उस समय ज्यादातर आम का कारोबार करते थे, पाकिस्तान में इन्होंने बहुत सारे बाग़ खरीद रखे थे लेकिन अगर इन्हें कहीं से पता चल जाता कि सतगुरु उस तारीख को वहां पर सत्संग फरमाने आ रहे हैं तो उसी समय सभी काम छोड़ कर सबसे पहले सतगुरु के दर्शन करने चले जाया करते थे और इनके गांव वाले इनकी इसी बात का फायदा उठाते थे क्योंकि यह अकेले रहते थे तो गांव वाले जब देखते थे कि आज चाचा जी घर पर नहीं है बाहर से ताला लगा हुआ है तो अवश्य ही कहीं गए हुए हैं तो वह उनके बागों में से आम चुराने चले जाया करते वह अपने बच्चों को आम लाने के लिए भेज देते और यह बात चाचा जी को बिल्कुल भी पसंद नहीं थी और वह अक्सर बच्चों को यही सिखाया करते थे कि चोरी करना पाप है लेकिन बच्चे अपने माता-पिता की बात मानकर अक्सर ऐसा ही करते, तो चाचा जी ने गांव वालों को समझा रखा था कि अगर आपने आम लेने ही है तो आप खरीद भी तो सकते हैं और अगर आप बच्चों के लिए लेना चाहते हैं तो आप मुझसे मांग भी तो सकते हैं आप अपने बच्चों को चोरी करना क्यों सिखाते हैं ? इसी बात को लेकर वह गांव वालों से बहुत परेशान थे तो इसी बात को लेकर उन्हें एक मजदूर अपने बागों की रखवाली के लिए रखना पड़ा था, तो जब वह कहीं बाहर जाते थे तो अपने बागों की रखवाली की जिम्मेवारी अपने उस मजदूर को दे दिया करते थे कि जब तक मैं घर वापस ना आऊं तब तक पीछे ध्यान रखना कि कोई चोरी ना कर पाए और अगर कोई बच्चा आम खाने के लिए मांगे तो उसे दे देना, इंकार मत करना, लेकिन साध संगत जी ऐसा ना हो सका, जब भी गांव वालों ने देखा कि आज फिर चाचा जी कहीं बाहर गए हुए हैं तो उन्होंने उस मजदूर को नजरअंदाज करते हुए फिर ऐसा ही किया और वह मजदूर उस दिन बहुत परेशान हुआ क्योंकि उसका पूरा दिन कभी किसी को भगाने में और कभी किसी को भगाने में निकल गया, तो जब चाचा जी घर पर वापस आए तो उस मजदूर ने अपनी सारी बात उनको बताइ, तो वह चिंता में पड़ गए कि अब क्या किया जाए और उन्हें इस बात की भी चिंता थी कि अब तो सतगुरु का सत्संग भी आने वाला है मुझे वहां पर भी जाना है तो मेरा तो पूरा का पूरा दिन ही वहां पर निकल जाता है क्योंकि सत्संग के बाद सेवा भी करनी होती है तो उन्होंने सोचा कि अगर मैं फिर से चला गया तो मेरा पीछे से नुकसान हो जाएगा क्योंकि गांव वाले तो मानने से रहे, तो उन्होंने सोचा कि क्यों ना अपने घर का दरवाजा खुला ही छोड़कर चले जाता हूं ताकि गांव वालों को लगेगा कि मैं घर पर ही हूं और फिर वह ऐसा नहीं कर पाएंगे तो उन्होंने ऐसा ही किया उन्होंने अपने घर का दरवाजा खुला छोड़ कर सत्संग सुनने का प्रोग्राम बना लिया और अपने मजदूर को अच्छी तरह से समझा दिया कि अगर मेरे पीछे से आज कोई खरीदी करने वाला आए तो तुम संभाल लेना और अगर कोई बड़ा ऑर्डर आ जाए तो मेरी आज्ञा के बिना उसे स्वीकार मत कर लेना क्योंकि मेरी पहले से ही कुछ बड़े दुकानदारों से बात हो रखी है तो तुम उन्हें सख्त मना कर देना तो यह कह कर वह सत्संग में चले गए और वहां पर उन्होंने सेवा भी की और जब वह शाम को वापस आते हैं तो अपने मजदूर से जो पूरे दिन में हुआ वह हाल सुनते हैं तो उनकी आंखों से आंसू आ जाते है क्योंकि उन्हें इस बात का ज्ञान हो जाता है कि आज मेरे सतगुरु ने मेरी जगह लेकर मेरा नुकसान होने से मुझे बचाया है क्योंकि जब वह अपने उस मजदूर से सुनते हैं की एक सेठ जब उनके बाग में आया और उसने कहा कि मुझे यह सभी आम चाहिए तो उस मजदूर ने कहा की मालिक अभी बाहर गए हुए हैं जब वह आएंगे आप उन्हीं से बात कर लेना, तो वह मजदूर कहता है कि मैंने यह बात कही ही थी कि आप वहां पर आ गए और आपने उन्हें कहा कि मेरी बात पहले से ही दुकानदारों के साथ हो गई है जो फलों का उत्पाद करते हैं तो उस सेठ जी ने कहा कि जिन की बात आप से हुई है उन्होंने पहले से ही कहीं और से खरीदी कर ली है क्योंकि उन्हें वहां से सब अच्छे दाम पर मिल गया है और मैं आपके पास इसलिए आया हूं क्योंकि मुझे पता चला है कि गांव में आपको प्यार से सत्संगी चाचा जी कहते हैं और मैं भी एक सत्संगी हूं और मेरा भी फलों का कारोबार है तो इसीलिए मैं आपके पास आया हूं और वह मजदूर कहता है कि आपने उस सेठ जी को मेरे सामने ही हां बोल दी थी और जैसे ही वह चाचा जी ये बात सुनते हैं वह चुपचाप अपने कमरे में जाकर दहाड़ कर रोने लगते कि देखो सतगुरु को अपने शिष्य की कितनी फिक्र है कि कहीं मेरी संगत का कोई नुकसान ना हो, ऐसा ना हो की संगत मेरे पास आए और उन्हें वापस जाकर यह पता चले कि पीछे से मेरा नुकसान हो गया और वह मुझे ताना मारे, तो आप जी कहते हैं कि इतनी परवाह सतगुरु हमारी करते हैं लेकिन हमें इसकी कोई भी कदर नहीं है और उसके बाद जब आपको भारत में आकर सतगुरु से मिलने का मौका मिला था तो आपने यही विषय सतगुरु के आगे रखा था लेकिन सतगुरु ने इसका कोई जवाब नहीं दिया था बस थोड़ा सा मुस्कुरा दिया था लेकिन सतगुरु की ये मुस्कान ही बताती है कि सतगुरु को अपनी संगत से कितना प्यार है उन्हें अपनी संगत की कितनी प्रवाह है तो साध संगत जी आज की इस साखी से हमें भी यही शिक्षा मिलती है कि जब भी हमें सेवा और सत्संग का मौका मिले तो हमें बिना किसी बात की परवाह किए सतगुरु की सेवा में चले जाना है क्योंकि जब हम सब कुछ अपने सतगुरु पर छोड़कर सेवा करने चले जाते हैं या फिर सत्संग सुनने चले जाते हैं तो हमारे पीछे की जिम्मेवारी सतगुरु की होती है जो कभी भी हमारा कोई नुकसान नहीं होने देते और पीछे हमारी संभाल करते हैं जैसे कि सतगुरु अक्सर फरमाते हैं कि आप मेरा काम करो मैं आपका काम करूंगा ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर करना, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके । 

By Sant Vachan


Post a Comment

0 Comments