साध संगत जी आज की ये साखी सतगुरु नानक प्रकाश ग्रंथ के 40 में अध्याय में दर्ज है तो आइए बड़े ही प्यार से आज का ये प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी सतगुरु फरमाते है कि हम सभी को आलस को त्याग कर करतार के नाम का सिमरन करना चाहिए जोकि इस लोक में भी और उस लोक में भी हमारे साथ सहाई होता है और दोनों लोको में हमारे कार्ज स्वार्ता है साध संगत जी सतगुरु नानक सिद्धों के बीच बैठे हुए थे और वहां पर एक सिद्ध अपनी करामाते दिखा रहा था वह मरे हुए जानवरों को जिंदा कर रहा था और सभी लोग उसकी यह करामाते देख रहे थे और हैरान हो रहे थे तो सतगुरु भी वहीं मौजूद थे तो जब सतगुरु ने उसकी इस करामात को देखा तो सतगुरु ने सिद्धों से पूछा कि यह कौन है जो ये सब करामाते दिखा रहा है जोकि सरोवर के ऊपर कपड़ा विछा कर बैठा है और उसे पानी छू तक नहीं पा रहा तो वह सतगुरु को बताते हैं कि यह आपका ही शिष्य है आप करामातों के स्वामी हो तो सतगुरु ने भाई मरदाना को कहकर उसे अपने पास बुलाया और जैसे ही सद्गुरु ने अपनी दृष्टि उस पर डाली उसकी सारी शक्ति को खींच लिया जिससे कि वह खाली का खाली रह गया उसका मन दीन हो गया और वह बहुत पछताने लगा उसे बहुत पछतावा हुआ कि यह मेरे साथ क्या हो गया तो वहां पर बैठे सिद्ध लोग यह सब देख रहे थे तो इतनी ही देर में एक तरखान गुरुजी के पास आया और उसके साथ उसका एक 12 साल का पुत्र भी था तो उसने सतगुरु के चरणों पर माथा टेका और सतगुरु से विनती की कि मेरा यह पुत्र भी आपका ही दिया हुआ है आपकी कृपा से ही यह बचा हुआ है तो सतगुरु नानक ने यह सुनकर उसे कहा कि मेरे कारण कैसे बचा हुआ है तो वह तरखान सतगुरु को बताता है हे प्रभु जी ! मेरे घर में जब भी पुत्र पैदा होता था तो वह मर जाता था तो मैंने बहुत अरदास विनती कि थी और बहुत सिद्ध पीर मनाए हुए थे लेकिन मेरे घर जब भी पुत्र पैदा होता था उसकी मृत्यु हो जाती थी लेकिन जब यह पैदा हुआ तो मैंने अपने हृदय में आपका नाम लिया क्योंकि मैंने आपकी कीर्ति बहुत सुन रखी थी तो मैंने हृदय में आपका नाम लेकर इसको आपके चरणों में अर्पित कर दिया था कि अगर यह जिंदा रहा तो इसको मैं आपके चरणों में अर्पित कर दूंगा तो ये बालक आपकी कृपा से ही बचा हुआ है तो अब यह आपका है इसका अंत काल भी आपके ही साथ है तो उसके ये वचन सुनकर सतगुरु नानक ने उस बालक को कहा कि जाओ जाकर लकड़ियां इकट्ठा करो तो उसने लकड़ियां इकट्ठी करनी शुरू कर दी और लकड़ों का एक ढेर लगा दिया तो यह दृश्य वहां पर मौजूद सभी लोग देख रहे थे तो सतगुरु ने उस बालक को हुक्म दिया कि अब इन लकड़ियों को जलाओ और अग्नि में जाकर प्रवेश करो तो सतगुरु का यह हुकुम सुनकर आसपास के सभी लोग हैरान हो गए कि ये सद्गुरु क्या कह रहे हैं लेकिन कोई भी गुरु जी की महिमा को नहीं जान पाया तो जब सतगुरु ने उस बालक को अग्नि में प्रवेश करने के लिए कहा तो उस बालक ने सतगुरु का हुक्म मान कर दिल में धीरज रख कर अग्नि में प्रवेश किया उसे बिल्कुल भी डर नहीं लगा और वह अग्नि में प्रवेश कर बैठा रहा लेकिन अग्नि उसे जला नहीं पाई तो सभी यह दृश्य देखकर और भी हैरान हुए कि ये क्या चमत्कार हो रहा है तो सतगुरु नानक ने उसे बाहर आने का हुक्म दिया और सतगुरु बहुत प्रसन्न हुए और सतगुरु ने वचन किए की जन्म मरण के चक्कर से मुक्त हो गए हो, जमों के जाल टूट गए हैं अब तुम्हारा आवागमन खत्म हो गया है तो जब सतगुरु ने यह वचन किए तो उसी समय उस बालक को तीनों लोकों की दिव्य दृष्टि हो गई उसे ज्ञान हो गया और वह जन्म मरण के चक्कर से मुक्त हो गया था क्योंकि उसका अंदर पर्दा खुल गया था तो सतगुरु ने उस बालक को कहा की मांगों जो मांगना है मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं तो सतगुरु के यह वचन सुनकर वह बालक कहता है कि जो सिद्ध आपके आसपास बैठे हुए हैं आप इनको इनकी शक्तियां दे दें क्योंकि ये बहुत उदास हुए बैठे हैं और अपनी शक्तियों के खो जाने से बहुत दीन हो गए हैं तो उस बालक की यह बात सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि अभी इनको इनकी शक्तियां देने का उचित समय नहीं आया है लेकिन मैंने तुमसे मांगने के लिए बोला था अब मैं तुम्हारी इस बात से मना भी नहीं कर सकता तो करतार से कहकर इनकी शक्तियां इन्हें वापस दिलवा देते हैं और यह पहले जैसे हो जाएंगे तो जैसे ही सतगुरु ने ये वचन कहे उसी समय उन सभी सिद्धों की सभी शक्तियां वापिस आ गई और वह बहुत प्रसन्न हुए और कहने लगे कि यह बालक बहुत परोपकारी है इसकी इतनी छोटी उम्र है लेकिन इसकी महिमा बहुत बड़ी है जिसने इतना बड़ा कार्य किया है उन सभी सिद्धों ने सतगुरु नानक को प्रणाम किया और कहने लगे कि धन्य आप हो और धन्य आपके सिख है जो परोपकार कर कर लोगों के दुख दूर करते हैं तो ऐसे सभी सिद्धों का अहंकार टूट गया और उनके अंदर से अहंकार का नाश हो गया और सतगुरु ने उन सभी का जीवन बदल दिया तो उसके बाद वह सद्गुरु को कहने लगे कि आपके जैसा कोई महात्मा हमने पहले कभी नहीं देखा आप सबसे अलग हो कृपया हमें बताएं कि आप में कितनी शक्ति है तो यह सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि सतनाम की बड़आई है एक ओंकार प्रभु कृपा निधान है जितना बड़ा साहिब है उतनी बड़ी उसकी दाते हैं उसका जोत स्वरूप कृपालु है वह पूर्ण सम्रथ शक्ति स्वरूप स्वामी है वही सच्चा साहिब है वह जिसको भी कृपा की दृष्टि से देखता है उसको नाम की बख्शीश हो जाती है वह जीव सभी तरफ से सुखी हो जाता है और उसके अंदर से मान अपमान दूर हो जाता है तो सतगुरु के ये वचन सुनकर सभी सिद्धों ने सद्गुरु के चरणों पर वंदना की और अरदास विनती कि लेकिन भंगर नाथ ने ऐसा नहीं किया और वह कहने लगा पश्चिम की तरफ कभी भी गंगा नहीं चली है पूर्व में कभी भी सूरज नहीं डूबा है और पर्वत कभी पंख लगा कर नहीं उड़े हैं और हम सिद्ध होकर एक गृहस्ती को कैसे प्रणाम कर सकते हैं और इतना कहकर वह आकाश में उड़ गया जैसे पक्षी अपने पंखों के बल से उड़ान भरते हैं तो वह भी ऐसे ही उड़ने लगा तो जैसे ही वह उड़ा तो सतगुरु की खड़ाओ आकाश में जाकर उसके सिर पर जोर से लगती है और वह नीचे गिर पड़ता है और उसका सारा अहंकार टूट जाता है और वह बहुत ही शर्मिंदा होकर गुरुजी के पास आता है और कहने लगता है कि करतार ने खुद देह धारण कर अपने नाम की कीर्ति करनी शुरू की है उसके जैसा कोई नहीं है आप सभी इनके चरणों पर वंदना करो ताकि हमारा भला हो सके और फिर उसने सतगुरु से कहा कृपया हमें बताएं कि कलयुग में कैसा वरतारा होगा, कलयुग में क्या-क्या होगा, तो ये सुनने के बाद सतगुरु नानक ने वचन किए श्लोक मोहल्ला पहला "सच काल कूड वर्त्या, कल कालख वेताल, वीयों बीज पत ले गए अभ क्यों उग्वे डाल" जिसका अर्थ है कि सच्चाई का काल पड़ जाएगा और झूठ पर्चलित हो जाएगा और कलयुग की काल्ख ने लोगों को अपने जैसा बना लिया है जिन्होंने नाम का बीज बोया होगा केवल वही इज्जत के साथ करतार के दरबार में प्रवेश करेंगे कलयुग एक छुरी है बादशाह इसके कसाई है और सच लोगों के अंदर से खत्म हो जाएगा,कलयुग में झूठ का प्रचार होने लगेगा सच छिप जाएगा और अहंकार के अंधेरे में व्यक्ति अंधा हो जाएगा और विर्लाप करेगा और दानी लोग पापों से कमाई हुई धन दौलत को दान में देंगे और जैसे जैसे कलयुग आगे बढ़ेगा वैसे ही प्रेम खत्म होता जाएगा, स्त्री मनुष्य को पैसे के कारण प्यार करेगी नहीं तो वह परवाह नहीं करेगी कि उसका पति कहां से आया है और कहां जा रहा है कोई भी किसी की नहीं सुनेगा सभी अपने आप को ही मानने लगेंगे और अहंकार के अंधेरे में खो जाएंगे और भटक जाएंगे और कलयुग की यही निशानी है की सभी कहने लगेंगे कि मुझे सब ज्ञात है मुझे सब मालूम है तो सतगुरु के ये वचन सुनकर वहां पर मौजूद सिद्धों ने सतगुरु के चरण कमलों पर वंदना की और सतगुरु की उस्तत की और सभी गुरुजी को प्रणाम कर कर वहां से चले गए और सतगुरु ने वहां पर मौजूद उस बालक के सर पर हाथ रखा और उसे सतनाम का जाप करने के लिए कहा ग्रस्त जीवन में करतार की भक्ति करने के लिए कहा और उसे अपने माता-पिता की सेवा करने के लिए कहा और उसके बाद सद्गुरु करतारपुर चले गए वहां जाकर सतगुरु ने करतार की कीर्ति करनी शुरू की और उसके नाम का पर्चार करना शुरू किया । साध संग जी इसी के साथ गुरु नानक प्रकाश ग्रंथ के 40 अध्याय की समाप्ति होती है जी, प्रसंग सुनाते हुई अनेक भूलों की क्षमा बक्शे जी ।
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By Sant Vachan
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