साध संगत जी एक सत्संगी द्वारा यह प्रश्न पूछा गया है कि क्या शादी परमात्मा से हमें दूर करती है या नहीं ? तो इस प्रश्न का जवाब आज हम इस साखी के माध्यम से जानने की कोशिश करते हैं तो आइए बड़े ही प्यार से आज का ये प्रसंग सरवन करते हैं ।

साध संगत जी जब सतगुरु नानक इस धरती पर पधारे तो मालिक से मिलने के बहुत सारे रास्ते थे जो कि उस समय बहुत प्रचलित थे कोई घोर तपस्या करता था कोई जप करता था कोई तप करता था कोई खाली पेट रहकर व्रत रखा करता और कई तो बचपन से ही बाल ब्रह्मचारी थे ताकि उन्हें ईश्वर की प्राप्ति हो सके और कोई अलौकिक शक्तियों को पाकर उस मालिक तक पहुंचना चाहता था और कुछ लोगों ने तो उस समय जातियों के आधार पर यह निर्णय किया हुआ था कि इस जाति को परमात्मा नहीं मिल सकते और इस जाति को परमात्मा बहुत आसानी से मिल सकते हैं इन्हें ईश्वर की प्राप्ति आसानी से हो सकती है तो उस समय सतगुरु नानक ने इस धरती पर जन्म लेकर समस्त जीवो को यह उपदेश दिया की अगर हम सोचते है कि विवाह करने से हमारी परमात्मा से दूरी बन जाती है और हम विवाह नहीं करते, जंगलों पहाड़ों पर चले जाते हैं वहां जाकर तपस्या करने लगते हैं गृहस्थ जीवन को त्याग कर अगर हम उस मालिक की खोज करने उसकी भक्ति करने निकल पड़ते हैं तो वहां जाकर भी हमारा मन सांसारिक मोह माया में फसा रहेगा तो ऐसी अवस्था हमें कभी उस मालिक उस ईश्वर से नहीं मिला सकती और अगर हम सोचते हैं कि हम ईश्वर से मिलाप करने के लिए भूखे रहकर वर्त करते हैं तो भी हमारा ध्यान सारा दिन केवल खाने पीने की चीजों में ही होता है तो ऐसा व्रत किस काम का जिसमें हमारा ध्यान उसकी तरफ गया ही नहीं साध संगत जी सतगुरु कहते है जिसको हमने त्यागा हम उसी के बारे में सोचते रहे तो क्या फायदा हुआ ! साध संगत जी संत महात्मा अक्सर हमें समझाते हैं कि उस मालिक को ना तो कुछ त्यागने से पाया जा सकता है और ना ही किसी चीज का भोग करकर उसे पाया जा सकता है उसे पाने के लिए हमारा जाग जाना बहुत जरूरी है जब हमारी अवस्था जागृत अवस्था हो जाएगी तब हम कहीं भी हो हमें कोई अंतर नहीं पड़ेगा कि हम ग्रस्त जीवन में हैं या फिर कहीं जंगलों पहाड़ों पर बैठकर उसके नाम का सिमरन कर रहे है इसीलिए अक्सर फरमाया जाता है कि भाई हमें कुछ छोड़ना नहीं है इस संसार में रहते हुए अपने परिवार के बीच रहते हुए ग्रस्त जीवन में रहकर उस मालिक की भक्ति करनी है और अक्सर फरमाया गया है कि हमें कहीं जंगलों पहाड़ों पर जाने की जरूरत नहीं घरबार छोड़ने की जरूरत नहीं हमें तो अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए सभी कार्य करते हुए गृहस्थ जीवन में रहकर उस मालिक की भक्ति करनी है जैसे कि सतगुरु अक्सर फरमाते हैं " घर बैठेयां युगत कमाइए सतगुरु का उपदेश " जिसका अर्थ है कि अपने परिवार के बीच रहकर संसार में रहकर युक्ति के साथ उस मालिक की भक्ति करनी है यही सतगुरु का उपदेश है और संत महात्मा अक्सर गृहस्थ जीवन को ही श्रेष्ठ जीवन कहते हैं और जो अभ्यासी अपनी सभी जिम्मेदारियों को निभाते हुए गृहस्थ जीवन में रहते हुए उस मालिक की भक्ति करता है उसकी भक्ति को भी संत महात्मा श्रेष्ठ भक्ति कहते हैं साध संगत जी सतगुरु नानक हमें समझाते हैं कि ना तो उसे व्रत करने से पाया जा सकता है और ना ही अन्य बाहरी तौर तरीकों से उसे पाया जा सकता है इस बात का उदाहरण सतगुरु ने खुद सिरसा में दिया जब सतगुरु बिना कुछ खाए पिए 40 दिन तक एक झोपड़ी में रहे थे तो जो दूसरे साधू थे वह तो 40 दिन के बाद बहुत कमजोर हो गए थे लेकिन सद्गुरु के चेहरे का तेज दिन प्रतिदिन और बढ़ता जा रहा था तो ये देखकर सिद्धों ने सतगुरु नानक से पूछा कि हमने भी 40 दिन तक कुछ नहीं खाया और आपने भी हमारे साथ कुछ नहीं खाया लेकिन हम इतने कमजोर हो गए हैं लेकिन आपको किसी तरह की कमजोरी नहीं हुई ऐसा क्यों ? तो सतगुरु ने उन्हें समझाया कि जब तुम 40 दिन तक व्रत कर रहे थे तो तुम्हारा ध्यान ईश्वर की तरफ ना होते हुए इस संसार के पदार्थों में था जबकि मेरे पेट की भूख तो उसके नाम से पूरी हो गई इसलिए सतगुरु नानक ने ईश्वर को पाने का एक आसान तरीका बताया उन्होंने शादी को ईश्वर के मार्ग पर अड़चन ना बताते हुए यह बताया कि पति और पत्नी तो दो जिस्म और एक जान है इसलिए यह कहना की शादी परमात्मा को पाने के मार्ग में अड़चन है ये बिल्कुल गलत है और सद्गुरु उन्हें कहते हैं कि आप सभी धर्मों के संतों और भगवानों का उदाहरण ले कर देख लीजिए यहां पर हर नर नारी के बिना अधूरा है और नारी नर के बिना अधूरी है साध संगत जी सतगुरु नानक की उदासियां माता सुलखनी जी की कुर्बानियों के बिना पूरी नहीं होती और सिखों के 10 गुरुओं में से 9 गुरु घर गृहस्ती वाले थे उदाहरण के तौर पर अगर देखा जाए तो हिंदू धर्म में माता सीता के बिना श्री राम अधूरे हैं माता पार्वती के बिना भगवान शिव और माता लक्ष्मी के बिना भगवान विष्णु इसलिए सतगुरु नानक के बताए तीन उपाय कर्म करो, कीरत करो और मानव सेवा करो, वंड शको और अंतिम नाम जपो ! साध संगत जी सतगुरु नानक ने केवल हम संसारियों के लिए इतनी इतनी यात्रा कि इतने इतने दिन सतगुरु भूखे रहकर यात्रा करते रहे कभी-कभी तो कई कई दिन तक सतगुरु अन जल तक ग्रहण नहीं करते थे और यात्रा करते रहते थे और भाई मरदाना जी उनके साथ होते थे भाई मरदाना जी से भूख और प्यास सहन नहीं होती थी तो वह सद्गुरु से कह दिया करते थे लेकिन सतगुरु ने इसकी परवाह ना करते हुए केवल हमारे बारे में सोचा जगह-जगह जाकर सतगुरु ने हम लोगों को उपदेश दिया उस मालिक का सच्चा राह दिखाया उसकी भक्ति करने का आसान तरीका बताया और जो पाखंड उस समय होते थे सतगुरु ने उन्हें खत्म किया सभी तरह के अंधविश्वासों को सतगुरु ने इस समाज से दूर किया सतगुरु खेती बाड़ी का काम किया करते थे जब भी सतगुरु को हुक्म होता तो सतगुरु सब काम छोड़ कर उदासी के लिए निकल पड़ते थे एक बार सतगुरु ने भाई मरदाना जी को कहा था कि मरदाने मैं वही बोलता हूं जो वह करतार मुझसे बुलवाता है मैं अपनी मर्जी से कुछ भी नहीं करता जब भी उसका हुक्म हो जाता है तो मुझे अपनी यात्रा पर निकलना पड़ता है साध संगत जी इतना सब कुछ सतगुरु नानक ने केवल हमारे लिए किया हमारे हर एक प्रश्न का जवाब सतगुरु ने अपनी वाणी में दिया है जिसे हमें समझने की जरूरत है लेकिन आजकल हम अपने कामों में इतने व्यस्त हैं कि हमारे पास हमारे संत महात्माओं का जो उपदेश है उसे समझने का भी हमारे पास समय नहीं है उसे पढ़ने का भी हमारे पास समय नहीं है लेकिन सतगुरु इस संसार के सभी कामों को व्यर्थ कहकर बयान करते हैं सतगुरु ने इस मानव जीवन का एक उद्देश्य केवल उस ईश्वर की प्राप्ति को ही बताया है ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके । 

By Sant Vachan

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