Ruhani Sakhi : जो लोग कहते है नामदान लिए बहुत वर्ष हो गए लेकिन अंदर कुछ दिखाई नहीं दिया । जरूर सुने


गुरु प्यारी साध संगत जी यह साखी एक सत्संगी द्वारा फरमाई गई एक सच्ची घटना है जब उनसे पूछा गया कि कुछ सत्संगीयों की शिकायत रहती है कि उन्हें नाम सिमरन में अंदर कुछ दिखाई नहीं देता जिसकी वजह से वह चिंता में पड़ जाते हैं ऐसा क्यों होता है ? जिसका बहुत ही सुंदर जवाब आप जी ने दिया तो साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी

साध संगत जी हम में भी ऐसे बहुत सारे ऐसे जीव हैं जिन्हें नाम दान मिले को बहुत समय हो गया है और उनकी अक्सर शिकायत रहती है कि उन्हें अंदर कुछ दिखाई नहीं दिया उन्हें नामदान लिए इतना समय हो गया है वह रोजाना भजन सिमरन भी करते हैं भजन सिमरन को पूरा समय भी देते हैं लेकिन फिर भी उनकी बात नहीं बनती उन्हें अंदर कुछ दिखाई नहीं दिया जिसको लेकर वह परेशान रहते हैं और ऐसी स्थिति में वह दूसरे सत्संगी जीवन से बात करते हैं और उनसे पूछते हैं कि आपको कुछ दिखाई दिया अक्सर ऐसी बातें होती रहती हैं लेकिन उनसे भी उन्हें यही सुनने को मिलता है कि हमें भी अंदर कुछ दिखाई नहीं दिया तो जब एक कमाई वाले सत्संगी से यह प्रश्न पूछा गया की कुछ सत्संगियों की शिकायत रहती है कि उन्हें भजन सिमरन में अंदर कुछ दिखाई क्यों नहीं पड़ता, तो उन्होंने एक बहुत ही सुंदर साखी सुनाई जो मैं आपसे सांझा करता साध संगत जी उन्होंने फरमाया कि एक सज्जन अभ्यासी था जिसको नामदान मिला हुआ था जो कि अपने सतगुरु की सेवा में लीन रहता था वह अपने सतगुरु की सेवा में कोई भी कमी नहीं छोड़ता था वह भी चाहता था कि मुझे भी उस कुल मालिक को देखना है मुझे भी अंदर देखना है कि अंदर क्या है यही बात उसने बहुत बार अपने गुरु से पूछी थी कि मुझे जानना है कि अंदर क्या है वह रोजाना जितना समय बताया जाता है उतना समय भजन सिमरन को देता था लेकिन उसकी भी यही शिकायत थी कि उसे अंदर कुछ दिखाई नहीं दिया था और नामदान लिए को बहुत समय हो गया था तो एक दिन वह अपने गुरु से कहता है कि आप कहते है कि अंदर बहुत ही आनंद है सुख है महा आनंद है इसलिए मेरी रूचि और भी बढ़ गई है कि मैं देखूं अंदर क्या है लेकिन मैं जितनी बार भी कोशिश करता हूं नाम सिमरन करता हूं कोई बात नहीं बनती मन टिकता नहीं है जब भी नाम सिमरन करने लगता हूं तरह तरह के ख्याल मन में आने लगते हैं मन भटकता रहता है, बैठा मैं नाम सिमरन कर रहा होता हूं लेकिन मन मेरा कहीं और होता है ध्यान लगता नहीं इसी बात को लेकर मैं बहुत परेशान रहता हूं और इसलिए मुझे जानना है कि अंदर क्या है आप क्यों इस चीज पर जोर देते हैं कि अंदर जाओ, जो भी है अंदर ही है उसने कहा मुझे तो बहुत देर हो गई नाम लिए हुए लेकिन आज तक मुझे अंदर कुछ दिखाई नहीं दिया यह बातें वह अपने गुरु से करता लेकिन हर बार उसे उसका जवाब नहीं मिलता क्योंकि साध संगत जी जो भी अंदर है जो भी नाम सिमरन का रस है वह बातों में बताया नहीं जा सकता उसको शब्दों में कहा नहीं जा सकता लेकिन फिर भी जिसने अंदर जाकर देखा होता है वह कहने की कोशिश करते है लेकिन फिर भी वह बात नहीं बनती, उसे शब्दों में कहा नहीं जाता, तो ऐसे ही गुरु के लिए भी यह कहना मुश्किल होता है इसलिए तो वह कहते हैं कि खुद जाओ, खुद देखो खुद अनुभव करो तभी हम समझ पाएंगे कि वह रस क्या है क्योंकि जब तक हम खुद उस नाम के रस को चखेगे नहीं, तब तक उस रस का स्वाद हमें पता नहीं चलेगा उदाहरण के तौर पर कह दिया जाए कि यह मिठाई दुनिया की सबसे उत्तम मिठाई है इससे ऊपर और कोई नहीं है लेकिन जब तक हम उसे चखेगें नहीं तब तक हमें कैसे पता चलेगा कि यह सबसे उत्तम है पता तो तब ही चलेगा जब हम उसे चखेगे, उसके रस को महसूस करेंगे, इसलिए जो पूर्ण संत महात्मा होते हैं वह जीवो को खुद प्रेरित करते हैं कि नाम सिमरन करो अंदर जाओ खुद देखो खुद चखो, साध संगत जी उसके बार-बार पूछने पर उसे उसके प्रश्न का जवाब नहीं मिलता तो एक दिन उसने ठान लिया कि उसे सतगुरु से पूछना ही है कि अंदर क्या है तो उस दिन उसने फिर वही प्रशन सतगुरु के आगे रख दिया और उस दिन वह हठ करने लगा कि आज मुझे जानना ही है सतगुरु भी अपनी मौज में थे तो सतगुरु ने पहले थोड़ा सा मुस्कुराया और उसके बाद उसने कहा कि तुझे मालिक से प्रेम है अगर है तो इस बात की हठ क्यों कर रहा है कि तुझे अंदर जाकर देखना है तू बस अपना कर्तव्य करता जा नाम सिमरन करता जा तू ऐसी जिद क्यों कर रहा है कि तुझे अंदर देखना है यह भी एक इच्छा ही है यह भी एक विचार है जो हमारी भजन बंदगी में बाधा बनता है जब हम भजन बंदगी करते हैं नाम सिमरन करते हैं तब हमारे मन में कोई विचार नहीं होना चाहिए कुछ भी नहीं होना चाहिए ना कोई इच्छा होनी चाहिए ना कोई विचार, सिर्फ उसका नाम होना चाहिए लेकिन जब हम इच्छाओं को लेकर उसके नाम का जाप करते हैं भजन बंदगी करते हैं तब हमारी बात नहीं बनती क्योंकि यह इच्छाएं हमारी भजन बंदगी में बाधा बनती है जब हमारा मन पूरी तरह से खाली हो जाता है शून्य हो जाता है तो उस समय उस कुल मालिक की कृपा होती है लेकिन जब तक हम इच्छाओं को लेकर बैठेंगे तब तक बात नहीं बनेगी जिस दिन इच्छाएं खत्म हो जाएंगी विचार खत्म हो जाएंगे उसी दिन उस कुल मालिक की कृपा हो जाएगी उसी दिन आत्मज्ञान प्राप्त हो जाएगा हमें मालिक से प्रेम होना चाहिए उसके नाम से प्रेम होना चाहिए हमारे अंदर इच्छाएं नहीं होनी चाहिए यह भी एक इच्छा ही है कि हमें अंदर देखना है तो यह हमारी भजन बंदगी में बाधा बनती है जिस दिन हम सच्चे मन से उसके नाम का जाप करेंगे उसके नाम का सिमरन करेंगे उसकी याद में बैठेंगे उसके प्रेम में आकर हम उसका नाम सिमरन करेंगे उस दिन उसकी कृपा होगी साध संगत जी इस तरह आप जी ने एक साखी के माध्यम से इस प्रश्न का बहुत ही सुंदर तरीके से जवाब दिया जो कि सभी को समझ आ गया, साध संगत जी हमें भी चाहिए कि हमारे मन में भी कोई भी इच्छा नहीं होनी चाहिए कोई भी विचार नहीं होना चाहिए और हमारा मन भजन सिमरन के समय केवल नाम पर केंद्रित हो केवल उसके नाम का जाप करें और किसी तरह की इच्छा मन में ना हो जब हमारा प्रेम उस कुल मालिक के प्रति सच्चा होगा उस दिन उसकी कृपा हो ही जाती है । साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ,अगर आप साखियां, सत्संग और सवाल जवाब पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखियां, सत्संग और सवाल जवाब की Notification आप तक पहुंच सके ।

By Sant Vachan

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