साध संगत जी आज की यह कहानी एक सच्ची आप बीती है जो कि एक सत्संगी लड़के की है और उन्होंने अपनी इस कहानी को इस वेबसाइट के माध्यम से सांझा करने के लिए बोला है ताकि हमें भी उनकी इस कहानी से प्रेरणा मिल सके और हमारा रूहानियत के इस मार्ग पर मार्गदर्शन हो सके, तो साध संगत जी अगर आप भी अपनी सच्ची आपबीती संगत से सांझा करना चाहते हैं तो आप अपनी वह सच्ची आप बीती santvachanofficial@gmail.com पर मेल कर सकते हैं और आप हमें फेसबुक और इंस्टाग्राम पर फॉलो कर अपनी वह कहानी हमसे सांझा कर सकते हैं और हमारे उन एकाउंट्स की डिटेल नीचे दी गई है साध संगत जी इस वेबसाइट के माध्यम से केवल वही बातें सांझा की जाती हैं जो कि सत्संगीयों की सच्ची आप बीतीयां होती है जो भी उनके साथ हुआ होता है जो भी उनके अनुभव रहे होते हैं केवल वही इस चैनल के माध्यम से सांझा किए जाते हैं कोई मनगढ़ंत बातें सांझा नहीं की जाती, साध संगत जी आज की ये साखी एक सत्संगी लड़के की है जिन्हें कुछ वर्ष पहले नाम मिला और फिर उनके साथ जो जो भी हुआ वह आपने संगत से सांझा करने के लिए बोला है तो साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी ।
साध संगत जी आप जी ने कहां हैं कि मुझे कुछ वर्ष पहले नाम की बख्शीश हुई थी और मुझे पहली बार में ही नाम मिल गया और मेरी शुरू से ही रूहानियत की तरफ लगन थी क्योंकि मैं बचपन से ही रोहानियत से जुड़ा हुआ था मेरे माता-पिता को भी नाम की बख्शीश हुई थी वह भी गुरु घर जाया करते थे तो इसलिए मैं भी उनके साथ चला जाता था और उनके साथ सेवा पर भी चला जाता था जिसके कारण शुरू से ही उस मालिक की मेरे ऊपर बड़ी कृपा रही है मालिक ने पल पल मेरी संभाल की है मुझे गलत रास्ते पर जाने से रोका है क्योंकि मेरे सामने ऐसे बहुत सारे अवसर आए है बहुत सारी ऐसी चीजें हुई है की अगर मैं उन रास्तों पर चल पड़ता तो मेरी क्या हालत होनी थी यह केवल वह कुल मालिक ही जानता है लेकिन मालिक ने शुरू से ही मुझे अपने से जोड़ रखा है अपनी शरण बक्शी हुई है और आपकहते है कि भजन सिमरन करना गुरु घर की सेवा करना हमारे बस की बात नहीं है यह तो अगर वह कुल मालिक चाहे तभी हम से करवा सकता है नहीं तो हम नहीं कर सकते हम में से कुछ भाई बहनों में इस बात का अहंकार भी होता है कि हमें नाम की बख्शीश हुई है हम मालिक से जुड़े हुए हैं हम एक पूरे गुरु से जुड़े हुए हैं लेकिन हमें इस बात का अहंकार कभी भी नहीं करना चाहिए क्योंकि हम नहीं जुड़े हुए होते वह तो उस मालिक ने हमें अपने से जोड़ रखा होता है क्योंकि हम में इतनी क्षमता नहीं है कि हम यह सब निभा पाएंगे वह तो उसने हमें अपने आप से जोड़ रखा है अपनी बाजू हमें पकड़ा रखी है नहीं तो हमारी इस संसार में क्या हालत होनी थी उसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता और आप जी कहते हैं कि मेरे माता-पिता को तो नाम की बख्शीश हुई थी लेकिन मेरे जो दादा और दादी थे उन्हें नाम नहीं मिला हुआ था और हमारे घर में एक जगह थी जिसकी मेरे दादा दादी पूजा किया करते थे और मेरी दादी रोजाना सुबह और शाम वहां पर बैठती थी अगरबत्ती करती थी तो जब मैं छोटा था तो मैं भी उनके साथ बैठ जाया करता था और उनके साथ ही अगरबत्ती करने लग जाया करता था क्योंकि मुझे वह सब अच्छा लगता था और उस समय मैं छोटा था तो मुझे इतनी समझ नहीं थी तो मैं अक्सर उनके साथ बैठ जाया करता था तो उसके बाद जैसे-जैसे समय बीतता गया मुझे याद है कि जब मैं 19 साल का था तब मेरी दादी की मृत्यु हो गई थी और तब मैं बहुत रोया था क्योंकि मेरा दादी से बहुत प्यार था उनके साथ बहुत लगाव था तो जब उनकी मृत्यु हो गई तो वह जो हमारे घर में जगह थी जहां पर मेरी दादी बैठकर पूजा करती थी दीया जलाती थी अगरबत्ती करती थी तो उनके जाने के बाद भी मैं वह सब करता रहा क्योंकि मैं बचपन से ही उनके साथ बैठता आ रहा था तो में भी सुबह शाम वहां पर जाकर पूजा किया करता था अगरबत्ती किया करता था और जब मेरी आयु 24 वर्ष की हुई तब मुझे नाम की बख्शीश हुई और उसके बाद मैं अपनी आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चला गया और मैं वहां पर भी अपनी दादी के कहे अनुसार वैसे ही पूजा करता था जैसे घर पर करता था क्योंकि मेरी दादी कहती थी कि हमारे जो पूर्वज हैं वह इन्हीं को मानते आए हैं तो हमें भी इनकी ही पूजा करनी चाहिए तो इसलिए मैं अपनी दादी के कहे अनुसार उनकी पूजा करता था लेकिन कभी-कभी मुझसे यह सब नहीं हो पाता था क्योंकि विदेश मैं रहना और इतनी सारी चीजों को एक साथ देखना व्यक्ति के लिए मुश्किल हो जाता है और हम वहां पर अकेले होते हैं और हमें अकेले ही सब कुछ करना होता है तो वहां पर व्यक्ति व्यस्त रहता है और उसे अपने लिए भी समय नहीं मिल पाता, तो व्यक्ति वहां पर बहुत कुछ भूल जाता है तो मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ मुझे सुबह उठकर जल्दी नौकरी पर जाना होता था तो कभी-कभी मैं पूजा करना भूल जाता था और जिस दिन मुझसे पूजा नहीं होती थी वह दिन मेरा अच्छा नहीं जाता था उस दिन कुछ ना कुछ ऐसा हो ही जाता था जिससे कि मेरा नुकसान होता था, और मेरे अंदर उस दिन चिड़चिड़ापन रहता था यह बात मैंने बहुत बार देखी और धीरे-धीरे मुझे यह समझ आनी शुरू हो गई थी कि मेरे साथ यह सब इसलिए होता है क्योंकि मैं जल्दी-जल्दी में जो शुरू से पूजा करता आया हूं वह भूल जाता हूं और इसलिए मेरे साथ यह सब होता है तो मेरे अंदर एक डर सा बैठ गया था कि अगर किसी दिन मैंने पूजा नहीं की तो पता नहीं मेरे साथ क्या होगा तो मैं डर की वजह से यह सब करने लग गया था क्योंकि मेरे अंदर एक डर बैठ गया था और फिर एक दिन मैंने यह बात अपने एक अंकल से की जो कि बहुत ही कमाई वाले हैं तो उनसे मैंने अपनी यह बात सांझा कि की मेरे साथ ऐसा हो रहा है तो जब उनको मैंने अपनी कहानी बताई तो उन्होंने पहले तो मेरी सारी बात सुनी और उसके बाद उन्होंने मुझे बस इतना ही कहा कि जिस दिन तुम्हें लगे कि तुम्हारे अंदर चिड़चिड़ापन पैदा हो रहा है और तुम्हें ऐसा लगे कि आज मेरा दिन अच्छा नहीं जाएगा तो उसी समय जो सतगुरु हमें प्रसाद देते हैं उनको याद कर कर वह खा लेना बस तुम्हें इतना ही करना है कि जब भी तुम्हें ऐसा लगे कि मेरे साथ गलत होने वाला है तो तुम्हें वह सतगुरु का दिया हुआ प्रसाद खा लेना है तो आप जी ने कहा कि मैंने वैसा ही किया मैं सतगुरु का दिया हुआ प्रसाद अपनी जेब में रखता था और जब भी मुझे ऐसा लगता था कि मेरे साथ गलत होने वाला है तो मैं सतगुरु को याद कर कर सतगुरु का दिया हुआ प्रसाद खा लेता था और ऐसा करने से मेरे अंदर जितनी भी नेगेटिविटी होती थी जो भी विचार चल रहे होते थे वह सब मुझसे दूर हो जाते थे और ऐसा करने से मेरे साथ कुछ भी गलत नहीं होता था तो जब भी मुझे लगता कि मेरे साथ गलत होने वाला है तो मैं सतगुरु का दिया हुआ प्रसाद खा लेता था और सब ठीक हो जाता था तो ऐसे ही धीरे-धीरे मेरे अंदर जो डर बैठ गया था वह दूर होता गया और फिर एक दिन ऐसा ही हुआ कि जल्दी जल्दी में मैं अपनी पूजा करना भूल गया और उस दिन भी मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे साथ आज कुछ गलत होगा और जब मेरे साथ ऐसा होने लगा तो मैंने अपनी जेब से प्रसाद निकाला और सतगुरु को याद करते हुए उसे मुंह में रख लिया तो धीरे-धीरे वह जो नेगेटिविटी थी वह दूर होती गई और मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ तो मैंने दोबारा से अपने अंकल से बात की, की आपने जैसा बोला था मैंने वैसा ही किया है और अब मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं होता मैं बिल्कुल ठीक हूं और मैंने अपने अंकल से पूछा कि ऐसा मेरे साथ क्यों होता है तो जो उन्होंने बात कही वह बहुत गहरी थी उन्होंने कहा कि हमें इस बात का शुक्र करना चाहिए कि हमें पूरे गुरु की शरण मिली हुई है और यहकेवल तुम्हारे साथ ही नहीं होता ऐसा बहुत लोगों के साथ होता है कि जब वह पूजा करना भूल जाते हैं जिनको वह मानते है जब वह उनकी पूजा करना भूल जाते हैं तब उनके साथ ऐसा होता है क्योंकि वह ताकत हमें यह एहसास दिलाती है कि आज हमने उनकी पूजा नहीं की तो इसीलिए हमारे साथ ऐसा होता है लेकिन अगर हम दूसरी तरफ देखें तो हमारे सतगुरु कितने दयालु हैं कितने दयावान हैं कि हम भजन सिमरन करें या ना करें फिर भी वह हमें कुछ नहीं कहते बल्कि अगर हम भजन सिमरन नहीं भी करते तब भी हमारी संभाल करते हैं और हमारे अंग संग रहते हैं तो हमें और क्या चाहिए और किस चीज की कमी हमें रह गई है तो साध संगत जी आप जी ने अंत में यही कहा कि पूरे गुरु जैसा कोई भी नहीं है जिनको एक पूरा गुरु मिला हुआ है उन्हें तो पल-पल उस मालिक का शुक्र करना चाहिए की हे मालिक तूने ही हमें ऐसे गुरु से मिला दिया जो हमारी बाजू तेरे हाथ में दे सकें तो ऐसे गुरु के हमें बलिहारी है जो हर पल हमें यही समझाता है कि भाई भजन बंदगी करो नाम की कमाई करो ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर करना, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
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