Saakhi । जब 2.30 घंटे भजन सिमरन करने वाली लड़की के ससुराल वाले उसे मारने की कोशिश करते है ।

साध संगत जी ये साखी बिहार के एक छोटे से गांव में रह रहे एक सत्संगी परिवार की लड़की की है जिसकी 2 साल पहले शादी हुई थी और उसके बाद उनके साथ क्या-क्या हुआ वह उन्होंने संगत से सांझा करने के लिए बोला है ताकि उनकी जो सच्ची आप बीती है उससे हमें भी प्रेरणा मिल सके कि सतगुरु हमारी कैसे रक्षा करते हैं कैसे वह हमारे अंग संग सहाई होते हैं हमारे सुख-दुख में वह कैसे हमारी मदद करते हैं तो साध जी जो भी उनके साथ हुआ है और कैसे उनकी संभाल सतगुरु ने की है उन्होंने सब बताया है और यह उनकी सच्ची आपबीती है तो साध संगत जी इस साखी को ध्यान से सुनने की कृपालता करें जी ताकि उनकी इस कहानी से हमें भी सतगुरु की अहमियत के बारे में पता चल सके और हमें यह एहसास हो सके कि वास्तव में सतगुरु हमारे लिए क्या है और वह हमें क्या देते है कैसे वह शब्द रूप में एक शक्ति के रूप में हमारे अंग संग रहते हैं वह आज हमें इस साखी में पता चलेगा ।

तो साध संगत जी आप जी कहती हैं कि मैं बिहार की रहने वाली हूं और मेरी आज से 2 साल पहले शादी हुई थी और मुझे याद है कि जब हमारी शादी तय हुई थी तो मेरे ससुराल वालों ने मेरे माता-पिता से बहुत कुछ मांगा था और मेरे माता पिता को मजबूरी के कारण देना पड़ा था क्योंकि अगर वह नहीं देते तो हमारी शादी टूट जानी थी जो कि मेरे पिताजी नहीं चाहते थे तो इसलिए मेरे पिताजी ने इधर उधर से पैसे इकट्ठे कर कर मेरी शादी की और मेरे ससुराल वालों की मांगे उन्होंने पूरी की और मैं एक सत्संगी परिवार की रहने वाली हूं क्योंकि मेरे माता पिता ने बहुत पहले सतगुरु से नाम ले लिया था और उस समय मेरी उम्र 4 साल की रही होगी जब उन्हें नाम की बख्शीश हो गई थी तो इसलिए मैं भी बचपन से ही रूहानियत से जुड़ी हुई हूं क्योंकि मेरे माता पिता अक्सर गुरु घर में सेवा करने जाया करते थे तो मैं भी उनके साथ चली जाती थी तो इसी की वजह से मेरे अंदर भी रूहानियत की तड़प पैदा होती थी और मैं भी सेवा पर चली जाती थी जब भी मेरे पास समय होता था तो मैं सेवा पर चली जाती थी और मुझे नाम की बख्शीश भी शादी से पहले ही हो गई थी और मेरा शुरू से ही सतगुरु पर पूरा विश्वास रहा है और मैं उनके कहे अनुसार रोजाना भजन बंदगी करती आ रही हूं जितना समय बताया जाता है उतना समय सतगुरु की कृपा से भजन बंदगी को देती आ रही हूं क्योंकि मुझे सतगुरु से बहुत प्यार है मैं इसलिए नहीं बैठती कि मुझे अंदर कुछ देखना है मुझे परमात्मा से मिलना है मेरे मन में यह सब बातें नहीं है, मैं तो इसलिए बैठती हूं क्योंकि मुझे अपने सतगुरु पर पूरा भरोसा है अपने सतगुरु से प्यार है मैं तो अपने प्यार के खातिर अपने सतगुरु के हुकम के खातिर भजन बंदगी करती आ रही हूं क्योंकि हमने कभी परमात्मा को नहीं देखा लेकिन जो हमारे सामने हमारा सतगुरु बैठा है हमारे लिए तो वहीं परमात्मा है तो जैसे-जैसे बताया जाता है वैसा ही सतगुरु की कृपा से करती आ रही हूं और उसके बाद मेरी शादी हो गई और शादी से पहले मैंने मालिक के आगे बहुत अरदास विनती की थी कि जहां पर मेरी शादी हो वह भी एक सत्संगी परिवार हो, मालिक को मानने वाला हो लेकिन मालिक की मौज मालिक ही जानता है लेकिन जहां पर मेरी शादी हुई वह कोई सत्संगी परिवार नहीं था और वह शादी मेरे पिताजी के दोस्त ने करवाई थी क्योंकि वही हमारे घर वह रिश्ता लेकर आए थे और वह कोई सत्संगी परिवार नहीं था तो मेरे पिताजी को वह रिश्ता अच्छा लगा तो उन्होंने मेरी शादी वहां पर कर दी और जब मेरी वहां पर शादी हो गई तो मैं गुरु घर जाने के लिए तड़पती थी संगत से मिलने के लिए तड़पती थी क्योंकि वह माहौल मुझे वहां पर नहीं मिल पा रहा था जो मुझे अपने घर पर मिलता था जो मुझे संगत में जाकर सकून मिलता था वह वहां पर नहीं मिल पा रहा था लेकिन मैंने अपना भजन सिमरन नहीं छोड़ा मैं रोजाना भजन को समय देती थी लेकिन मेरे ससुराल वाले मेरी भजन बंदगी को पसंद नहीं करते थे खासतौर पर मेरी जो सासू मां थी वह तो बिल्कुल ही इस चीज के खिलाफ थी कि हमारे धर्म में यह सब नहीं होता हमारे धर्म में तो केवल पूजा पाठ किया जाता है और उन्हें ऐसा लगने लगा था कि शायद मैं उनके धर्म के खिलाफ जाकर यह सब कर रही हूं तो इसलिए उन्हें मेरा भजन सिमरन पर बैठना अच्छा नहीं लगता था तो वह अक्सर मुझे रोकती थी कि यह सब करना बंद करो और तुम्हें हमारे हिसाब से चलना पड़ेगा जैसा हम कहेंगे वैसा ही करना पड़ेगा तो उन्होंने बहुत सारी बातें मुझे सुनाई लेकिन मेरे ऊपर उन बातों का कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि मुझे मेरे सतगुरु पर पूरा विश्वास था भले ही में संगत से दूर जा चुकी थी संगत में नहीं जा सकती थी गुरु घर नहीं जा सकती थी लेकिन भजन बंदगी के जरिए मुझे यह एहसास होता था कि मैंने अपने सतगुरु की बाजू पकड़ रखी है और वह हर पल मेरे साथ है मेरे अंग संग है क्योंकि सत्संग में अक्सर फरमाया जाता है की भजन सिमरन सतगुरु की बाजू है ये मालिक की बाजू है जिसे हम जितनी देर तक पकड़ कर रखेंगे तब तक हमारा कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता और जिस दिन वह हाथ छूट जाता है यानी कि भजन बंदगी हमसे छूट जाती है उस दिन से हम इस माया की नगरी में उलझते चले जाते हैं हमें पता ही नहीं चलता कि हम कहां से कहां आ गए हैं इसलिए तो अक्सर फरमाया जाता है कि अगर हम उस मालिक से जुड़े रहेंगे अगर हम भजन सिमरन करते रहेंगे तो वह मालिक हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा हमारी संभाल करता रहेगा और हम इस माया की नगरी से बचे रहेंगे और जिस दिन मालिक का वह हाथ हमसे छूट गया उस दिन हम उलझनों में पढ़ते जाएंगे और एक प्रकार से इस माया की नगरी में गुम ही हो जाएंगे और हमें हमारी असलियत का कोई पता नहीं रहेगा तो साध संगत जी आप जी कहती है कि मैंने भजन बंदगी करनी नहीं छोड़ी मैंने ज्यादा से ज्यादा समय भजन बंदगी को दिया और मेरे ससुराल वाले एक बाबा को मानते थे और वह अक्सर उनके पास जाते थे, जब भी वह उनके पास जाते थे तो वह उनको माथा डेकते थे लेकिन जब मै पहली बार उनके साथ गई तो मैंने ऐसा नहीं किया, और मेरी सासू मां ने मुझे इशारा किया की माथा डेको लेकिन मैंने उनको कहा की मैंने अपना तन, मन, धन अपने सतगुरु को से दिया है, अब मै चाहकर भी किसी और के आगे झुक नहीं सकती, तो आप जी कहती है इसी बात को देखकर मेरे ससुराल वाले मेरे खिलाफ हो गए थे और जो मेरे पति हैं वह नेवी में नौकरी करते हैं तो वह ज्यादातर बाहर ही रहते थे वह कुछ महीनों के बाद घर पर आते थे तो आप कहती है कि मेरे ससुराल वालों ने खासतौर पर मेरी सासु मां ने मुझे बहुत परेशान किया क्योंकि उन्हें ऐसा लगने लगा था कि मैं उनकी बात नहीं मान रही और मैं उनके खिलाफ काम कर रही हूं और उन्होंने मेरे माता-पिता से और दहेज मांगने की बात कही थी तो जब यह बात हुई तो मैंने अपने माता-पिता को मना कर दिया था तो इसी बात को लेकर मेरी सासू मां मेरे खिलाफ हो गई थी और वह रोजाना मुझे परेशान करती थी मुझे एक पल भी बैठने नहीं देती थी और उन्होंने तो मुझे मारने का मन बना लिया था लेकिन उन्होंने ऐसा इसलिए नहीं किया क्योंकि उन्हें समाज का डर था कि अगर हमने ऐसा किया तो पता नहीं क्या होगा तो वह मेरे पति की दूसरी शादी करवाने के बारे में सोच रहे थे तो मेरी सासू मां ने मेरे ऊपर बहुत कुछ करवाने की कोशिश की कि किसी तरह इसे इसके मायके भेजा जाए ताकि इसे पागल बताकर इसके मायके भेजा जाए, तो वह अक्सर पीर बाबाओं के पास भी जाती थी क्योंकि मैंने एक बार खुद उनको देखा था तो उस दिन से मुझे पता चल गया था कि यह मेरे खिलाफ बहुत बुरा कर रही है लेकिन उनकी किसी भी करनी का मेरे ऊपर कोई असर नहीं हुआ और आप जी कहती है कि जिसको अपने सतगुरु पर पूरा विश्वास है और जो अपने सतगुरु के भाने में रहता है अपने सतगुरु के हुक्म में रहता है तो सतगुरु उसका बाल भी बांका नहीं होने देते हर पल उसकी संभाल करते हैं बात केवल विश्वास की है जिसे विश्वास आ जाता है उसे तो पत्थर में भी वह मालिक दिखाई देने लगता है तो आप जी कहती है कि मुझे अपने सतगुरु पर पूरा विश्वास था और जब उन्होंने सब कर कर देख लिया लेकिन मेरे ऊपर किसी भी चीज का कोई असर नहीं हुआ तो मेरी सासू मां को यह बात हजम नहीं हुई और एक दिन तो वह मुझे अपने साथ ले कर चली गई और जब वह मुझे एक बाबा के पास लेकर गई मुझे याद है जब उस बाबा ने मुझे देखा तो मेरी सासू मां से उसने पहला सवाल यही किया कि इसके साथ कौन है तो उस समय मेरी सासू मां ने कहा कि इसके साथ तो कोई भी नहीं है मैं तो केवल इसे ही लेकर आई हूं तो उस बाबा ने कहा कि नहीं इसके साथ भी कोई है जो मुझे दिखाई पड़ रहा है और वह एक रूहानी शक्ति है जो इसकी संभाल कर रही है इसी लिए अब तक हमारा कोई भी किया हुआ कार्य सफल नहीं हुआ, तो आप जी कहती है कि जब मैं उस बाबा के पास जा रही थी तो वह मुझसे दूर दूर भाग रहा था और कह रहा था कि मेरे पास मत आओ तो यह सब मेरी सासू मां ने भी देखा और इसके बाद हम घर आ गए और उसके बाद मेरी सासू मां की तबीयत कुछ खराब रहने लगी उन्हें बहुत तेज बुखार हो गया और उसके बाद वे ठीक नहीं हुई और उस समय मैंने उनकी बहुत सेवा की और मेरी उस सेवा को देखकर मेरी सासू मां की आंखों में आंसू आ गए कि मैं तो इसका बुरा करना चाहती थी, पता नहीं मेरे मन में इसके खिलाफ क्या-क्या चल रहा था लेकिन यह कितनी निष्ठा भावना से मेरी सेवा कर रही है जबकि यह चाहती तो मुझे ऐसी हालत में छोड़ सकती थी लेकिन उसने ऐसा नहीं किया और आप जी कहती है कि मेरी सेवा के कारण मेरी सासू मां के मन में मेरे प्रति प्यार आ गया और उन्होंने मुझे गले से लगा लिया, तो साध संगत जी आप जी ने कहा कि मैंने तो केवल वही किया जो सतगुरु अक्सर फरमाते हैं कि हमारा चाहे कोई कितना ही बुरा क्यों ना करें हमें उसका बुरा नहीं करना है हमें तो अपनी अच्छाई से उसकी बुराई को खत्म करना है और जब उसकी बुराई खत्म हो जाएगी तब उसे एहसास होगा कि मैं इसका बुरा करना चाहता था लेकिन इसने मेरे साथ ऐसा नहीं किया और तब जाकर उन्हें यह एहसास होगा कि जो मालिक से जुड़े हैं वह कभी भी किसी का बुरा नहीं करते और अगर उनका कोई बुरा करता भी है वह फिर भी उसका भला ही मांगते रहते हैं और जो नाम की कमाई करने वाले हैं मालिक तो पल पल उनके साथ रहता है हर पल उनकी संभाल होती रहती है साध संगत जी ऐसी और भी बहुत साखियां है जिसमें सतगुरु के शब्द रूप में सत्संगियों के साथ होने का जिक्र किया गया है उन सखियों का लिंक नीचे डिस्क्रिप्शन में दिया हुआ है आप वहां जाकर वह साखियां सुन सकते है तो साध संगत जी आज की इस साखी से हमें यही प्रेरणा मिलती है कि हमें किसी चीज से डरने की जरूरत नहीं है अगर हम उस मालिक से जुड़े हैं और उसके भाने में है क्योंकि अगर मालिक ने हमारा हाथ पकड़ा है और हम बिना नागा उसकी भजन बंदगी करते हैं तो वह हर पल हमारे साथ होता है और हमारी संभाल करता है साध संगत जी अगर इन बातों पर फिर भी यकीन ना हो तो आप बिना नागा उस मालिक की भजन बंदगी कर कर देखें आपको यह एहसास हो जाएगा की मालिक अपने प्यारों की हर पल संभाल करता है उनके अंग संग होता है ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर करना, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।

By Sant Vachan


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