साध संगत जी एक बार एक सत्संगी ने संगत में यह सवाल कर दिया की यह बात तो हम सभी मानते हैं कि सतगुरु अंतर्यामी हैं उन्हें सब मालूम है उनसे कुछ भी छिपा हुआ नहीं है लेकिन हमें इस बात पर कैसे विश्वास हो कि सच में सतगुरु अंतर्यामी है और उनसे कुछ भी छिपा हुआ नहीं है और उस भाई ने यह भी कहा कि हम सब इतनी सेवा करते हैं मन लगाकर गुरु घर की सेवा करते हैं सत्संग सुनते हैं तो क्या सतगुरु सब देख रहे हैं कि हम क्या कर रहे हैं क्या सद्गुरु को यह बात पता है कि कौन कितनी सेवा करता है और कौन कितनी आस्था और प्रेम भावना से सेवा करता है क्या इस बात का कोई प्रमाण हो सकता है की सतगुरु हमारे पल-पल की खबर रखते हैं ? क्या सच में सतगुरु की दृष्टि वह सब देख सकती है ? क्योंकि मैंने ऐसा बहुत सारे सत्संगी भाई बहनों से सुना है कि जो पूरा गुरु होता है उससे कुछ भी छिपा हुआ नहीं होता और मुझे अभी अभी नाम मिला है तो मेरे मन में ऐसे कुछ प्रश्न है जो मुझे परेशान करते रहते हैं तो इसका जवाब मुझे जानना है तो साध संगत जी उनके इस प्रश्न का जवाब एक सत्संगी माई ने एक साखी के माध्यम से बहुत ही अच्छे तरीके से दिया था साध संगत जी जितनी आसानी से एक कहानी के माध्यम से और एक साखी के माध्यम से समझाया जा सकता है उतना किसी और तरीके से समझाया नहीं जा सकता और वह साखी सुनकर उन्हें पूरी तरह से समझ आ गई थी कि सच में सतगुरु अंतर्यामी है उन्हें हमारे पल-पल की खबर है कि हम क्या कर रहे हैं और क्या सोच रहे हैं तो साध संगत जी जो साखी उन्होंने संगत को सुनाई थी वह मैं आपसे सांझा करने जा रहा हूं तो साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी ।
साध संगत जी आप जी कहते है कि एक बार भाई मरदाना की बीबी शिकवा करते हुए कहती है कि मुसलमान औरतें मुझे ताना मारती हैं कि तेरा पति मुसलमान हो कर एक हिंदू के पीछे पीछे रबाब उठा कर दिन रात घूमता रहता है, भाई मरदाना अपनी बीबी को कहते है, तो तुमने उनको क्या जवाब दिया ? तो उनकी पत्नी कहती है, मैं क्या जवाब देती ! ठीक ही तो ताना मारती हैं, मैंने कोई जवाब नहीं दिया, मैं चुप रह गई क्योंकि सच में वो बेदी कुलभूषण है बेदीयों के वंश में पैदा हुए हैं और हम मरासी मुसलमान, तो भाई मरदाना ने कहा, कि नहीं तुम्हे कहना चाहिये था मैं जिसके पीछे रबाब उठा कर घूमता रहता हूं वह न तो हिंदू है न मुसलमान है वो तो सिर्फ अल्लाह और राम का रूप है वो ईश्वर है गुरू है वो किसी समुदाय मे बंधा हुआ नहीं है वो किसी किस्म के दायरे की गिरफ्त में नहीं है, तो ये सुनकर भाई मरदाना की पत्नी यकीन नहीं करती और कहती है अगर एसा है तो वो कभी हमारे घर आए क्यों नहीं और न ही कभी हमारे घर उन्होंने भोजन किया है, अगर आपके कहने के मुताबिक़ सब लोग उनकी निगाह मे एक हैं तो गुरू नानक कभी हमारे घर क्यों नहीं आयें ? हमारा बना हुआ भोजन भी कभी उन्होंने किया है ? भाई मरदाना कहने लगे, चलो फिर आज ऐसा ही सही, तूं आज घर में जो पड़ा है उसी से भोजन बना मैं बाबा जी को लेकर आता हूँ, तो भाई मरदाना की पत्नी यकीन नहीं करती वो कहती है मैं बना तो देती हूँ पर वो आयेगे नहीं, क्योंकि उनकी बड़ी ऊंची कुल है, वो भला हमारे घर क्यों आएंगे, और फिर मेरे हाथ का भोजन वह क्यों करेंगे ? मुझे ऐसा मुमकिन नहीं लगता क्योंकि मैं मुस्लिम औरत और हम मरासी मुसलमान है वो हमारे घर क्यों आयेंगे, तो साध संगत जी ये बात सुनकर भाई मरदाना क्या जवाब देते है ? वह कहते है अगर आज बाबा नानक न आये तो यारी टूटी, पर तूं यकीन रख यारी टूटेगी नहीं और फिर उन्होंने कहा अच्छा मैं चलता हूँ और बाबा नानक को लेकर आता हूं लेकिन भाई मर्दाना साथ में ये भी सोचता हुआ चल पडता है कही घर वाली के सामने शर्मिंदा न होना पड़े, बाबा कही जवाब न दे दे, भाई मर्दाना यही सोचते हुए चल रहे थे कि अभी 100 कदम ही चले होंगे, बाबा जी रास्ते में ही मिल गये, भाई मरदाना ने दुआ सलाम की सजदा किया और स्वाभाविक रूप से पूछ लिया, बाबा जी आप कहाँ चले ? तो सतगुरु जी कहने लगे मरदाने आज सुबह से दिल कर रहा था दोपहर का भोजन तुम्हारे घर चल कर करूं, तो मरदाने फिर चलें तुम्हारे घर ? ये सुनकर भाई मरदाना रो पड़ा मुंह से चीख निकल गई और भाई मरदाना कहने लगा एक छोटा सा रत्ती भर शक मन मे आया था पर बाबा जी दूर हो गया सच में आप सांझे हैं, गुरू तो वो है और वास्तविक गुरू वो है जो मन की शंका मिटा दे, जिस का नाम जिस का ज्ञान जिस का एहसास मन की सभी शंकाएँ दूर कर दे, जिस तरह सूरज सांझा होता है, इसी तरह अवतारी महापुरूष और संत सांझे होते हैं, और जो सांझा नहीं उसको संत और अवतार कहने की कोई जरूरत नहीं, वो सूरज नही होगा वो किसी के घर का जलता हुआ दीपक ही हो सकता है और कुछ नहीं ! तो साध संगत जी इस साखी से हमें भी यही सीख मिलती है कि जो पूर्ण संत महात्मा होता है उससे कुछ भी छिपा हुआ नहीं होता उन्हें इस ब्रह्मांड के कण-कण की खबर होती है लेकिन वह कभी जाहिर नहीं करते कि उन्हें सब पता है वह सब जानते हुए भी इस संसार में ऐसे रहते हैं जैसे कि वह उस बात से अनजान हो लेकिन साध संगत जी उनकी नजर हमारे हर कृत्य पर होती है इसलिए तो अक्सर फरमाया जाता है कि भाई हम अपने आप को धोखा दे सकते हैं लेकिन उस कुल मालिक को धोखा नहीं दे सकते हम एक पूर्ण सद्गुरु को धोखा नहीं दे सकते क्योंकि हमें उन्हें कुछ बताने की जरूरत नहीं पड़ती उनकी दृष्टि ही ऐसी होती है कि जब वह हम पर पड़ती है तो हमारे सभी किए हुए कर्म सामने आ जाते हैं और हमारे अंदर जो भी चल रहा होता है वह उनको सब पता चल जाता है हम जो भी सोच रहे होते हैं वह उन्हें पहले ही पता चल जाता है इसलिए तो संत महात्माओं को अंतर्यामी कहा जाता है और साध संगत जी सत्संग में भी यही फरमाया जाता है कि हमें उस मालिक के आगे अपने सद्गुरु के आगे अरदास करने की जरूरत नहीं है क्योंकि उन्हें सब मालूम है और अगर उसे मालूम ना हो तो वह हमारी भक्ति के काबिल नहीं है ये बात सत्संग में बहुत बार फरमाई गई है तो साध संगत जी अगर हमें एक पूरे गुरु की शरण मिली हुई हो तो हमारे मन में कभी भी यह शंका पैदा नहीं होनी चाहिए कि सतगुरु को हमारी खबर नहीं है और हमें अपने सतगुरु पर पूरा भरोसा होना चाहिए विश्वास होना चाहिए तभी हम इस रूहानियत के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं और उस कुल मालिक से मिलाप कर सकते हैं ।
अंत : इस संसार पर विश्वास करने से हमें धोखा मिलता है, लेकिन ए बंदे तूं गुरु पर विश्वाश करकर देख तुझे तेरा मालिक मिल जाएगा ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर करना, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
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