साध संगत जी, अक्सर फरमाया जाता है कि भजन बंदगी करो ! क्योंकि जब मृत्यु का समय नजदीक आता है तब हमें यह एहसास होता है कि अगर भजन बंदगी की होती तो हमारे साथ ऐसा नहीं होना था, क्योंकि उस समय जो तकलीफ व्यक्ति को होती है वह सहन नहीं होती और जैसे-जैसे मृत्यु का समय नजदीक आता जाता है वैसे वैसे ही आत्मा का सिमटाव होना शुरू हो जाता है
आत्मा ऊपर की तरफ सिमटना शुरु कर देती है और उस समय जो तकलीफ होती है वह सहन नहीं हो पाती और व्यक्ति चीखता है चिल्लाता है और ऐसा केवल उनके साथ होता है जिन्होंने जीते जी भजन बंदगी नहीं की होती, जीते जी मर कर नहीं देखा होता क्योंकि जिन्होंने जीते जी मर कर देख लिया होता है उन्हें ऐसी पीड़ा से गुजरना नहीं पड़ता उनकी आत्मा एक पल में सिमटकर ऊपर आ जाती है और उस शरीर को छोड़ देती है तो साध संगत जी मृत्यु के समय एक सत्संगी की आत्मा शरीर को छोड़ने में कितना वक्त लेती है यह इस बात पर निर्भर करता है की आत्मा कहाँ से सिमटना शुरू करती है, अगर आत्मा पहले से ही दोनों आँख के केंद्र पर पहुंच चुकी है तो वह शरीर को छोड़ने में कुछ भी वक्त नहीं लगाती, जो सत्संगी है वो जीते जी मृत्यु का अभ्यास करते रहते हैं, भजन बंदगी करते रहते है, इसी लिए उन्हें मृत्यु के वक्त ज्यादा तकलीफ नहीं होती क्योंकि उनकी आत्मा तुरत ही तीसरे तिल में सिमट सकती है लेकिन जो जीते जी मृत्यु का अभ्यास यानी की मालिक की भजन बंदगी नहीं करते उनकी आत्मा निचे से सिमटना शुरू करती है और आंखों के केंद्र तक आते – २ काफी समय लगता है इसीलिए उन्हें मृत्यु के वक्त काफी तकलीफ होती है क्योंकि कोई भी आत्मा शरीर तभी छोड़ सकती है जब वह दोनों आंखों के कंद्र पर पहुंच जाती है, अगर सत्संगी की आत्मा पहले से ही आंखों के केंद्र पर पहुंच चुकी हो तो वह शरीर को छोड़ने में कुछ भी समय नहीं लगाती, उस की आत्मा मृत्यु के वक्त एक ही पल में शरीर छोड़ सकती है और अगर वो सत्संगी आत्मा का कुछ सफर बाकी रह गया हो तो उसे दुबारा जन्म लेना भी पड़ सकता है और वह दुबारा जन्म लेने में भी ज्यादा वक्त नहीं लगाती उस सत्संगी आत्मा को जन्म भी किसी अच्छे सत्संगी परिवार में ही मिलता है यहां पर मालिक का नाम लिया जा रहा होता है और वहां पर आत्मा और भी अधिक रूहानी तरक्की कर परमात्मा से मिलाप करती है लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि वह आत्मा जन्म ही ना ले और ऊपरी रूहानी मंडलों में रहकर वहां से ही रूहानी तरक्की कर परमात्मा से मिलाप करे, लेकिन साध संगत जी किसी की भी आत्मा एक बार शरीर से निकलने पर उस शरीर में वापिस नहीं आती और उस शरीर का कोई मोल भी नहीं रह जाता हम उसे जलाए या दबा दे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता अब वो आत्मा उस छोडे हुए शरीर में कभी वापिस नहीं आती, साध संगत जी एक ऐसा ही किस्सा बड़े सतगुरु महाराज जी के समय का है जब एक सत्संगी सेवादार जोकि सतगुरु से बहुत ही प्रेम करता था और सेवा के मामले में वह सबसे आगे था उस समय में उसके जितनी सेवा शायद ही किसी सत्संगी भाई ने की हो क्योंकि साध संगत जी उनकी सेवा बहुत थी जब भी कोई सेवा का हुक्म होता था वह सबसे आगे हुआ करता था लेकिन उसकी भजन बंदगी बहुत ही कम थी और सतगुरु अक्सर उसे समझाया करते थे कि भाई तेरी सेवा तो बहुत है लेकिन भजन बंदगी भी कर लिया कर तो वह साधारण ही सतगुरु को कह देता कि सतगुरु भजन बंदगी तो मुझसे होती नहीं अब आप ही अपनी कृपा कर मुझसे भजन बंदगी करवा लीजिए तो साध संगत जी ऐसे ही बहुत समय बीत गया और उसकी मृत्यु का समय नजदीक आने लगा तो सतगुरु उसे समझाते थे कि भाई अब तेरा अंतिम समय नजदीक है तो तू भजन बंदगी कर लिया कर मालिक की याद में बैठ जाया कर क्योंकि साध संगत जी सद्गुरु को यह बात पहले ही पता चल गई थी कि अब इसका अंतिम समय नजदीक है तो सतगुरु अक्सर उसे समझाने आ जाया करते लेकिन उसका जोर सेवा पर ही था उसने खूब सेवा की और जिस दिन उसकी मृत्यु हुई उस दिन एक सेवादार भागकर सतगुरु के पास गया और उनके आगे फरियाद की, की है सच्चे पातशाह ! आपका प्यारा सेवक बहुत ही तकलीफ में है तो सतगुरु ने कहा की जाओ उसे कहो कि नाम सिमरन का जाप करें तो वह भाग कर उसके पास आया तो जैसा सतगुरु ने कहा था तो उसने वैसा ही उसको कहा कि सतगुरु कह रहे हैं कि नाम सिमरन का जाप करो तो उसने कहा कि तुम फिर जाओ सतगुरु को यहां मेरे पास लेकर आओ अब मुझसे यह तकलीफ सहन नहीं होती मुझे बहुत पीड़ा हो रही है तो वह फिर सतगुरु के पास गया सद्गुरु अपने ध्यान में बैठे थे तो उसने सतगुरु को कहा कि सतगुरु अब उससे और नहीं रहा जाता वह बहुत तकलीफ में है और वह केवल आपको ही पुकार रहा है तो सतगुरु ने कहा कि अब मैं क्या करूं ! क्या मैं उसे काल के मुंह में जाने दूं जब मैंने कहा था की भाई भजन बंदगी भी कर लिया कर क्योंकि जब मृत्यु के समय आत्मा पैरों से सिमटकर दोनों आंखों के बीच आती है तो जिन्होंने नाम की कमाई नहीं की होती भजन बंदगी नहीं की होती उनको बहुत तकलीफ होती है बहुत दर्द होता है तो वह तकलीफ सहन नहीं की जा सकती इसलिए व्यक्ति मृत्यु के समय इतना तड़पता है लेकिन जिन्होंने जीते जी मर कर देख लिया होता है जिन्होंने जीते जी मालिक की भजन बंदगी की होती है उनके साथ ऐसा नहीं होता उनकी आत्मा बहुत ही कम समय में सिमटकर ऊपर आ जाती है और उन्हें कोई भी तकलीफ नहीं होती क्योंकि उन्होंने इस चीज का अभ्यास किया होता है इसलिए उन्हें कोई तकलीफ नहीं होती और वह आराम से शरीर छोड़ जाते हैं तो इसीलिए तो मैं कहता हूं कि भाई भजन बंदगी कर लो ताकि आगे जाकर कोई तकलीफ ना हो बाकी जो सतगुरु ने जिम्मेवारी ली है वह तो सतगुरु ने पूरी करनी ही है सतगुरु ने अपने शिष्य को सचखंड लेकर जाने का वादा जो किया है वह तो सतगुरु पूरा करते ही हैं लेकिन फिर भी आपको तकलीफ ना हो इसलिए सतगुरु भजन बंदगी करने के लिए कहते हैं नाम की कमाई करने के लिए कहते हैं तो जब सतगुरु उसके पास गए और सतगुरु ने उसके सर पर हाथ रखा तो उसी पल उसके प्राण छूट गए, तो साध संगत जी ऐसे सतगुरु अपने भक्तों और प्यारों की संभाल करते हैं बेशक उसने भजन बंदगी तो नहीं की थी लेकिन गुरु घर की सेवा बहुत की थी तो जैसा कि सद्गुरु कहते हैं कि जो प्रेम और प्यार से गुरु घर का एक पत्ता भी उठा लेता है मैं उसको भी सचखंड लेकर जाऊंगा तो साध संगत जी इतनी अपार कृपा सतगुरु हम पर कर रहे हैं तो हमें और क्या चाहिए सतगुरु की तरफ से कोई कमी नहीं है कमी तो हमारी तरफ से ही है क्योंकि ना तो हमारे पास भजन बंदगी के लिए समय है और ना ही गुरु घर की सेवा के लिए और अगर हमने गुरुघर की सेवा भी नहीं की भजन बंदगी भी नहीं की तो हमारी क्या हालत होगी यह हमें खुद सोचना होगा ।
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By Sant Vachan
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