साध संगत जी आज की साखी है जब कलयुग की मुलाकात सतगुरु नानक से हुई तो सतगुरु नानक ने कलयुग से क्या वचन किए वह आज हमें इस साखी के माध्यम से पता चलेंगे तो साखी को पूरा सुनने कि कृपालता करें जी ।
साध संगत जी जब सतगुरु नानक संसार का भला करते हुए संगरूर की धरती पर पहुंचे जहां पर गुरुद्वारा ननकियानां साहिब बना हुआ है, वहां पर सतगुरु 15 दिन तक रुके थे और 1 दिन सतगुरु वहां पर बैठे हुए थे और वहां पर बहुत तेज हवा चलने लगी बहुत जोर से धूल मिट्टी उड़ने लगी, पेड़ भी हवा के साथ उड़े ही जा रहे थे तो तूफान का ऐसा भयानक रूप देख सद्गुरु का शिष्य भाई मर्दाना डर गया और डर के कारण वह धरती पर लेट गया, तब सतगुरु के शिष्य भाई मरदाना ने कहा कि ऐसे भयानक जंगल में हम आ गए हैं यहां पर कब क्या हो जाए कुछ पता नहीं और यहां आकर हमने बहुत दुख पाया है तो भाई मरदाना की यह बात सुनकर सतगुरु मुस्कुराए और सतगुरु ने भाई मरदाना से कहा, तुम्हें किस चीज का भय लग रहा है क्यों डर रहे हो, तुम्हारे नजदीक कोई नहीं आएगा तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है तो भाई मरदाने ने कहा सतगुरु मुझे बहुत डर लग रहा है क्योंकि मैंने ऐसा तूफान पहले कभी नहीं देखा मुझे लग रहा है कि यह तूफान मेरा जीवन लेकर ही जाएगा और तब एक विराट देत्य वहां पर प्रकट हुआ उसका मुख आकाश को छू रहा था और पैर पताल को लग रहे थे और उसका भयानक रूप देखकर भाई मरदाना और भी डर गया और तब भाई मरदाना ने सतगुरु से कहा कि अब हमें कौन बचाएगा तो सतगुरु ने कहा कि भाई मरदाना क्यों डर रहे हो यह हमारे पास नहीं आएगा, सतगुरु भाई मरदाना से कहने लगे वाहेगुरु का नाम लो और मन में धीरज रखो क्योंकि कलयुग ने अग्नि रूप धारण किया है इसलिए सभी तरफ धूल मिट्टी उड़ रही है, भारी तूफान आया है और तब भाई मरदाना मुंह पर कपड़ा लेकर जमीन पर लेटे रहे और कलयुग ने अपना खूब प्रकोप दिखाया ऐसे भयंकर तूफान के कारण सभी तरफ अंधेरा छा गया था बिजली चमक रही थी सभी लोग डर गए थे लेकिन सद्गुरु वहां पर विराजमान रहे और कलयुग ने उस समय देखा कि यही प्रभु अवतार है तो वह अपने देह रूप में आया और उसने एक हाथ में अपनी जीवा धारण की हुई थी और दूसरे हाथ में लिंग को पकड़ा हुआ था, और गुरु जी के सामने प्रकट हुआ तब सतगुरु ने भाई मरदाना को कहा की उठकर तमाशा देख और सतगुरु ने कहा सावधान होकर धीरज धारण करो डरने की जरूरत नहीं है, कलयुग ने आकर सतगुरु की वंदना की और अपने अपराध को विचार कर बोला कि मैंने जो गलती की है उसके लिए मुझे बख्श दे, मैं आप जी की महिमा को नहीं जान सका और इस समय मेरी सरदारी है और आपने अपनी कृपा मुझ पर की है और अब मैं अपने मर्द वाले रूप में हूं और इसलिए ऐसे लक्षण कर रहा हूं, शुभ गुण मैंने सभी छोड़ दिए हैं और अपनी स्वाद वाली इंद्रियों को मैंने वश किया हुआ है इसी के कारण मनुष्य भोगो में पड़ा रहता है इंद्रियों के सवाद लेता रहता है मनुष्य लिंग स्वाद के वश में हो जाता है माता पिता और गुरु की शरण छोड़कर वह इंद्रियों के स्वादों में पड़ा रहता है और मेरी मत इससे उलट है क्योंकि मैंने निर्भय होकर आपसे छल्ल किया है और क्षमा करना ही आपकी बिरद है क्योंकि आप परम पुरष महा दयालु हो , यह सुनकर सतगुरु बोले कि तेरा क्या नाम है और तेरा कौन सा देश है और इस प्रकार यहां पर क्यों आया है और इस तरह का कपट क्यों दिखाया है तो कलयुग ने कहा हे ! गुरु जी मेरा नाम कलयुग है मैं तो आप के दर्शन करने आया हूं आपको नमस्कार करने आया हूं और आप को परखने के लिए मैंने यह कपट दिखाया है तब गुरुजी ने कहा कि अपने लक्षण बताओ और तुम्हारी चतुर सेना कहां पर है और तेरी किस प्रकार की सरदारी है यह सुनकर कलयुग ने कहा कि मेरे झूठ रूपी सूर्मे सबसे आगे हैं, मोह नाम का सूरमा सबका महाराजा है उसके सेनापति का नाम हिंसा है जो बहुत बलवान है काम, क्रोध, लोभ, अहंकार मेरे बड़े योद्धा है जोकि हर समय तैयार रहते हैं उसके साथ चतुर निंदिया आलसी चोरी विषय विकार यह सब मेरी सेना है और हर समय तैयार रहती है यह जो मेरी सेना है यह जिस तरफ भी जाती है उसी तरफ जाकर लोगों पर अपना कहर बरसाती है महाविनाश करती है इनके आगे कोई भी स्थिर नहीं रह सकता, करोड़ों में कोई एक ही इनसे बच सकता है मेरी इस सेना ने पूरे संसार को भर्मा रखा है और ऐसी स्थिति में किसी में भी धीरज ढूंढना बहुत मुश्किल है मेरी इस सेना ने पूरे संसार पर अपना कब्जा बनाया हुआ है और इनके सामने टिक पाना किसी के लिए इतना आसान नहीं है और यही मेरी सरदारी है यह बात सुनकर सतगुरु ने कहा कि अगर तू सरदार है तो हम उस करतार के नौकर हैं जब तेरा हिसाब होगा तब तूं हमारे वश में होगा यह सुनकर कलयुग ने सद्गुरु की वंदना की और दीन होकर बोला इसीलिए मैं आपके पास आया हूं क्योंकि आप प्रभु अवतार हो और आपने करतार का नाम इस संसार में चलाया है और आप खुद उस करतार का रूप हो आप देवताओं के स्वामी हो और मैंने बहुत गुनाह किए हैं तो मेरी तरफ से ये भेट लेकर मुझ पर कृपा करें, सोने के महल यहां पर हीरे और मोतियों के रतन जड़े हुए हैं और वहां पर भिन्न-भिन्न तरह की सुगंधि आ रही है कस्तूरी और चंदन का छिड़काव पल पल हो रहा है और चंदन की लपाई की हुई है वहां बैठते ही मन प्रसन्न हो जाता है इस तरह का सुंदर घर है आप अभी मेरे साथ मेरे उन महलों पर चलें और अगर आप हुक्म दे तो मैं उनको यहां पर ही ले आता हूं, हे गुरु जी मेरी यह भेट स्वीकार करें यह सुनकर सतगुरु ने वाणी का उच्चारण किया " एक ओंकार सतगुरु प्रसाद राग श्री राग मोहल्ला पहला घर पहला "मोती ता मंदर उसरे रत्ने ता होए जड़ाऊ" "कस्तूर पंगु अगर चंदन लीपा आवे चाओ मत देख भूला बिसरे तेरा चित ना आवे नाओ" कि जो सोने के महल चंदन के लेप से लिपटे हुए हैं जो मन के अंदर तीव्र उमंग पैदा करने वाले हैं क्या इनको मैं ले लूं ? नहीं, कहीं ऐसा ना हो कि मैं वाहेगुरु को भूल जाऊं क्योंकि वाहेगुरु के बगैर मेरी आत्मा सूख सड़ जाती है तो उसके बाद कलयुग ने कहा कि अगर आपको मेरी ये भेट स्वीकार नहीं करनी है तो आप मेरी यह सभी अप्सराएं ले ले जिन की बहुत सुंदर शकले हैं और बहुत सुंदर शरीर है और उनके साथ जैसा चाहो वैसा व्यवहार करें और वहां पर सुंदर लाल पलंग बिछी हुई है और आप जितना मर्जी समय वहां पर रहे, हे गुणों की खान हे गुरु जी यह मेरी भेट स्वीकार करें यह सुनकर सतगुरु नानक देव जी ने वचन किए "धरती ता हीरे लाल जड़ती पलंग लाल जड़ाओ" मोहनी मुख मनी सो है करें रंग पसाओ, मत देख भूला बिसरे तेरा चित ना आवे नाओ" जिसका अर्थ है की फर्श हीरे और जवाहरातों से जड़ा हुआ और अपनी तरफ आकर्षित करने वाली हूर परी मुझे अपनी तरफ आकर्षित करें , कहीं ऐसा ना हो, कि उनको देखकर मैं रास्ता भूल जाऊं और प्रभु को बिसर जाऊं और उसके नाम से बिसर जाऊं यह सुनकर कलयुग बोला कि अगर आपको मेरी ये भेट भी स्वीकार नहीं करनी है तो आप 9 निधियां और 18 सिद्धियां ले लो आप जहां चाहो वहां घूमो आपको कोई तकलीफ नहीं होगी और कोई भी आपको रोकेगा नहीं सभी लोग आपसे डरेंगे और चित लगाकर आपके चरणों की पूजा करेंगे तो हे गुरु जी मेरी तरफ से ये भेट स्वीकार करें यह सुनकर सतगुरु ने अपने मुख से वचन किए "सिद्ध होवा सिद्ध लाई रिद्ध आखा आओ, गुप्त प्रगटू होए वैसा लोक राखे भाओ, मत देख भूला बिसरे तेरा चित ना आवे नाओ" कि अगर मैं सिद्ध बन जाऊं और धन को अपने वश में करूं और अपनी मर्जी से परगट हूं और अलोप हो जाऊं, और लोग मेरा मान आदर करें तो कहीं ऐसा ना हो जाए कि मैं वाहेगुरु को भूल जाऊं और उसके नाम का सिमरन ना करूं यह सुनकर कलयुग ने फिर कहा कि आप जगत की बादशाही ले ले आप अपने हुकम से सब कुछ करें और अपने चरण सिंहासन पर रखें जब आप सिंहासन पर बैठेंगे तो पूरा जगत आपकी ईन मानेगा और आप अनंत सेना लेकर अपना महान प्रताप बनाए तो हे गुरू जी मेरी ये भेट अभी लेकर मेरे ऊपर किरपा करे तब सतगुरु ने कलयुग से शब्द की अगली पौड़ी कहीं श्री मुख वाक, "सुलतान होवा मेल लस्कर, तख्त राखा पाओ, हुक्म हासिल करी बैठा नानका सब वाओ, मत देख भूला बिसरे तेरा चित ना आवे नाओ" जिसका अर्थ है अगर मैं बड़ा राजा बन जाऊं बड़ी सेना इकट्ठी कर लूं और राज सिंहासन पर अपना पैर टिका दूं और तख्त पर बैठकर हुक्म यारी करू, हे नानक यह सब एक हवा के झरोखे जैसा निकल जाने वाला है और कहीं ऐसा ना हो कि मैं प्रभु को भूल जाऊं और उसे बिछड़ जाऊं और उसके नाम का सिमरन छोड़ दूं तो ये सुनने के बाद कलयुग दीन होकर बोला हे गुरु जी आप निपुण हो और आपने मेरे समय में अवतार लिया है और मनुष्यता का भला आप कर रहे हो, मनुष्यता की भलाई के लिए आपने मनुष्य जन्म लिया है और मैं आप जी के चरणों में आकर आप जी से मिला हूं, कहीं ये मेल विफल न हो, हे गुरुजी कोई भेट तो मुझसे ले लो क्योंकि मेरी मंसा आपने पूर्ण नहीं की अगर आप मेरी भेंट स्वीकार करोगे तो मै समझ जाऊंगा कि आपकी बड़ी कृपा हुई है नहीं तो मेरा मन बहुत दुखी होगा क्यों की मेरा मन आपकी किरपा में आता है तो कलयुग के यह आदर बोल सुनकर गुरु जी ने कृपा धारण कर कहा कि अगर तुम्हारी भेंट देने की चाह है तो इस प्रकार की भेट दो कि जो मेरे हितकारी शिष्य है उन पर तुम्हारी यह सेना चढ़ाई नहीं करेगी जो नाम से जुड़े हुए है तेरी छाया का उन पर प्रभाव नहीं होना चाहिए जिन्हें मेरे ऊपर विश्वास है उन पर तेरा कोई असर नहीं होगा, अगर तू भेट देनी ही चाहता है तो यह भेट दे और मेरी संगत को दुखी ना कर, यह सुनकर कलयुग दोनों हाथ जोड़कर सतगुरु से कहने लगा हे गुरु जी मैं आपके दोनों चरणों को पूज कर यह कहता हूं कि आपकी आज्ञा मेरे लिए सर्वश्रेष्ठ है हे एक ओंकार आप जो भी मुझे आज्ञा दोगे मैं वही मान लूंगा मेरे समय में लोग चोरी, चुगली, निंदा झूठ मैं बुरी तरह से लिप्त है, लुटेरे जो अपने आप को बड़े सूरमे कहते हैं चुगलखोर जो बहुत ही आदर पाते हैं और जो बहुत बोलते हैं वह अपने आप को बहुत गुणी कहते हैं जो सच कहते हैं उनको मूर्ख कहा जाता है, जो गुणवान है उनका निरादर होता है और जो राजाओं के पास बैठते हैं वह मूर्ख है मेरे समय में लोग पापों का घर बन गए हैं और जो कंजूस है वह दान भी नहीं करते और धर्म से उलट होकर जो मूर्ख लोग हैं वह मुझसे कष्ट पाते हैं और क्या क्या बताऊं मेरे समय में ये जो भी हो रहा है मैं इसको एक पल में खत्म कर सकता हूं तो जिस प्रकार आपकी आज्ञा है वैसे ही होगा, हे गुरु जी अब आप जैसे भी बचन करोगे मैं उनको ही मानूंगा और मैं आप जी की आज्ञा के अनुसार रहूंगा तभी आप मुझसे भेट स्वीकार करोगे सोने के महल और धन मुझसे स्वीकार करोगे और तब जाकर मैं प्रसन्न होऊंगा तो गुरु जी यह सुनकर थोड़ा सा मुस्कुराए और प्रसन्न होकर गुरु जी ने यह वचन कहे की सब युगों से बड़ा तेरा तेज होगा ये मेरे वचन पूरे होंगे तेरे समय में करतार की कीर्ति होगी और उसकी महिमा अपार बढ़ जाएगी जो मनुष्य सतयुग में 100000 साल जीवित रहता था वही मनुष्य त्रेता युग में 10000 साल रहता था और द्वापर में जो मनुष्य हजार साल जीते थे वही कलयुग में थोड़े समय में मनुष्य सभी सुख हासिल कर लेगा जो करतार से जुड़ेगा उसके नाम से जुड़ेगा वह इस भवसागर से पार हो जाएगा और सतगुरु ने कलयुग से कहा कि अगर तुम मुझे सोने से बने हुए मंदिर देना चाहता है तो जब मैं चौथे जामें मै आयुंगा तब मैं माया सेहत वह सोने से बना हुआ मंदिर ले लूंगा यह सुनकर कलयुग बहुत खुश हुआ और सतगुरु की वंदना कर कर बोला कि मैं आप की संगत के नजदीक नहीं जाऊंगा जो आपके हुक्म की पालना करेगा और आपके वचनों पर चलेगा नाम की कमाई करेगा उस पर मेरा प्रकोप नहीं रहेगा उसके बाद कलयुग भेंट देकर सद्गुरु से वर लेकर और सतगुरु के चरणों की वंदना कर वहां से चला गया, तो साध संगत जी, आज की इस साखी से हमें यही प्रेरणा मिलती है कि जो नाम की कमाई करेगा शब्द की कमाई करेगा उस पर कलयुग का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ेगा और उसे मालिक हर खुशी देगा, तो आज की ये साखी यही समाप्त होती है साखी सुनाते समय अनेक प्रकार की हुई भूलों की शमा बक्शे जी ।साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर करना, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते 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By Sant Vachan
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