साध संगत जी आज की साखी है कि जब एक सत्संगी परिवार का लड़का विदेश चला जाता है और वहां पर जाकर भजन सिमरन करना छोड़ देता है तो उसके बाद उसे भजन सिमरन की कमी कैसे महसूस होती है उसे भजन सिमरन की अहमियत कब समझ में आती है यह उसे तब पता चलता है जब उसके साथ एक ऐसा हादसा हो जाता है और उस हादसे में उसे बहुत गहरी चोट आती है तो साध संगत जी आज की इस साखी में हमें भी बहुत कुछ सीखने को मिलेगा और हमें भी अंदर यही महसूस होगा कि अगर हमारा यहां पर कोई है तो वह केवल और केवल वह मालिक ही है क्योंकि जब जिंदगी में हम पर कोई मुसीबत आती है कोई परेशानी आती है उस समय सभी हमारा साथ छोड़ जाते हैं और उस समय केवल वही हमारी संभाल करता है और वही हमारे साथ होता है तो साध संगत जी आज की इस साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी ।
साध संगत जी, आज की यह साखी एक सत्संगी लड़के की है जिसने पढ़ाई तो बहुत की लेकिन उसे कोई अच्छी जॉब नहीं मिल पाई और घर में पैसों की तंगी के कारण उसे मजबूरन विदेश जाना पड़ा और उसके सिर पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी क्योंकि उसके परिवार में उसकी दो बहने थी और उसकी मां थी और उसके पिता की मृत्यु बहुत वर्ष पहले हो चुकी थी तो घर को चलाने की जिम्मेवारी लड़के की थी और दोनों बहनों की शादी भी करनी थी तो पैसों की तंगी के कारण उसे विदेश जाना पड़ा और उसे नाम की बख्शीश भी हुई थी और वह भजन सिमरन पर भी बैठता था लेकिन जब वह विदेश चला गया तो वहां जाकर उसका ध्यान केवल और केवल पैसे कमाने पर था क्योंकि उस पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी कि उसे अपनी दोनों बहनों की शादी भी करनी है तो वह दिन रात काम करता था और 3 से 4 घंटे ही सो पाता था बाकी का समय उसका काम में निकल जाता था और यह केवल उसने अपने परिवार के लिए किया, उसने वहां पर जी जान से काम किया यहां तक कि उसने भजन सिमरन करना भी छोड़ दिया था क्योंकि वह दो नौकरियां करता था तो उसे भजन सिमरन करने के लिए समय मिल ही नहीं पाता था तो धीरे-धीरे उसने काफी अच्छे पैसे भी बना लिए थे और अपनी दोनों बहनों की शादी भी कर दी थी और वह सबसे छोटा था और जब उसकी दोनों बहनों की शादी हो गई तब जाकर उसे चैन की सांस मिली कि कुछ भार हल्का हुआ, कुछ जिम्मेवारी खत्म हुई, और उसकी बहनों की शादी अच्छे घरों में हो गई थी और घर पर उसकी मां अकेले रहती थी तो जब उसने अपनी बहन को फोन किया कि मां को भी अपने साथ रख लो तो उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया कि मेरे ससुराल वाले नहीं मानेंगे और जब उसने अपनी दूसरी बहन को फोन किया तो उसने भी ऐसा ही कहा तो उसे इस बात का बहुत दुख लगा कि मेरी मां अकेले रहती है और अकेले ही सब कुछ करती है तो उसने अपनी मां को एक आश्रम में भिजवा दिया था जहां पर बुजुर्गों की अच्छी देखभाल की जाती है तो वह हर महीने उस आश्रम में पैसे भेजता था ताकि उसकी मां की संभाल हो सके उसकी मां का ख्याल रखा जा सके और उसने अपनी बहनों को भी बोल रखा था कि मां की खबर लेने जाया करो लेकिन वह कभी भी अपनी मां की खबर लेने नहीं गई थी और एक दिन उसने अपनी मां से फोन पर बात की और पूछा कि मैंने दोनों बहनों को बोला था कि आप की खबर ले जाया करें आपसे मिलने आ जाया करें तो उसकी मां ने कहा कि बेटा खबर की तो बात ही दूर रही उन्होंने तो शादी के बाद मुझे कभी फोन भी नहीं किया तो लड़के को इस बात का बहुत दुख लगा और उसकी दोनों बहने उसे फोन करती थी और अपने भाई से पैसों की मांग करती थी तो वह अपनी दोनों बहनों को पैसे दे देता था और हर महीने ऐसा ही होता था जब भी उसे वहां पर तनख्वाह मिलती थी तो उसकी बहनों का फोन उसे आ जाता था और वह अपने भाई से पैसों की मांग करती तो वह अपनी दोनों बहनों को पैसे दे देता था और एक बार उसने अपनी बड़ी बहन को यह बात कही कि मैं मां के पैसे भी तुम्हें दे देता हूं तुम जाकर मां को वह पैसे दे देना तो जब उसने अपनी मां से इसके बारे में बात की तो उसकी मां ने कहा कि बेटा वह आज तक मुझसे मिलने नहीं आई है और ना ही उसने मुझे कोई पैसे दिए हैं तो उसे इस बात पर बहुत गुस्सा आया लेकिन उसने अपनी बड़ी बहन को कुछ नहीं कहा तो साध संगत जी कुछ दिनों बाद उसका विदेश में एक्सीडेंट हो जाता है उसे बहुत गहरी चोट आ जाती है तो उसे हॉस्पिटल में दाखिल करवाया जाता है और जब वह उस हॉस्पिटल में दाखिल हो जाता है तो वहां पर बहुत खर्चा आता है तो जितना खर्चा वहां पर बन जाता है उतने पैसे लड़के के पास नहीं होते तो वह अपनी बड़ी बहन को फोन करता है कि मेरा यहां पर एक्सीडेंट हो गया है और मुझे बहुत गहरी चोट लगी है और मैं हॉस्पिटल में हूं और मेरा यहां पर बहुत खर्चा हो गया है और अभी मुझे कुछ पैसों की जरूरत है तो उसकी बहन कहती हैं कि अपने ससुराल वालों से पूछ कर मैं तुम्हें बताती हूं और शाम को फोन करती हूं तो वह अपनी बहन के फोन का इंतजार करता है लेकिन उसकी बहन का फोन नहीं आता, शाम से रात हो जाती है और उसके बाद वह खुद ही अपनी बहन को फोन करता है लेकिन उसकी बहन उसका फोन नहीं उठाती और उस समय वह अपने आप को असहाय पाता है क्योंकि विदेश में और कोई उसकी मदद करने वाला नहीं होता और उसे इस बात का बहुत दुख लगता है कि जिनके लिए मैंने इतनी कुर्बानी दे दी अपना सब कुछ छोड़ दिया जिनके लिए मैं दिन-रात काम करता रहा और जिनके लिए मैंने भजन सिमरन तक करना छोड़ दिया केवल काम पर ध्यान दिया और आज वही मेरी मदद करने के लिए तैयार नहीं है जिन बहनों पर मैंने अपना सब कुछ लुटा दिया आज वह मेरा फोन ही नहीं उठा रही तो वहां पर लड़के को बहुत गहरी चोट लगती है और उसे सतगुरु की याद आ जाती है सतगुरु द्वारा फरमाए गए वचन जो अक्सर सतगुरु सत्संग में फरमाते हैं वह याद आ जाते है कि जहां पर हमारे जितने भी रिश्ते हैं सब गर्जों के रिश्ते हैं गर्ज खत्म हो जाती है तो रिश्ता भी खत्म हो जाता है अगर हमारा साथ देने वाला कोई है तो वह केवल और केवल मालिक ही है जो हर समय हमारी संभाल करता है क्योंकि यहां पर लोग तो मौसम की तरह अपना रंग बदलते हैं इन पर ऐतबार नहीं किया जा सकता अगर हमारा साथ देने वाला कोई है तो वह केवल और केवल मालिक ही है तो उस समय उसे बहुत गहरी चोट लगती है कि मैंने तो अपने परिवार के लिए अपनी कुर्बानी तक दे दी थी अपने बारे में ना सोच कर सबसे पहले अपनी बहनों के बारे में सोचा उनकी शादी की और आज मुझे यह देखने को मिल रहा है आज सच में मुझे यह पता चल गया है कि यहां पर कोई भी किसी का नहीं है सबको अपनी-अपनी पड़ी हुई है यहां पर कोई किसी का भाई नहीं है कोई किसी की बहन नहीं है और उसे सत्संग की ये बातें याद आ जाती है जब सतगुरु सत्संग में फरमाते है कि सतगुरु नानक ने अपनी वाणी में यहां तक फरमा दिया था कि कूड़ है माता, कूड़ है पिता, कूड़ है सब संसार, जिसका अर्थ है कि यहां पर जो भी है सब कुछ नाशवान है अगर सत्य है तो वह केवल और केवल मालिक है परमात्मा है उसके बिना यहां पर जो भी है सब कूड है और जब ऐसी बातें उसके मन में चलने शुरू हो जाती है वह हॉस्पिटल में बैठा बैठा रोने लगता है तब जाकर उसे यह एहसास होता है की भजन सिमरन क्या है और उसकी अहमियत क्या है क्योंकि भजन सिमरन के बिना हमारी जिंदगी ही व्यर्थ है सतगुरु ऐसे ही नहीं फरमाते की भजन सिमरन हमारी ताकत है यह हमें तब जाकर पता चलता है जब हम पर कोई मुसीबत आती है कोई परेशानी आती है और सभी हमारा साथ छोड़ देते है तब वह मालिक हमें अंदर से ताकत देता है तब वह परमात्मा हमें अंदर से उस मुश्किल से लड़ने की ताकत देता है अगर हम भजन सिमरन करते हैं, इसलिए तो अक्सर सत्संग में भी फरमाया जाता है कि भाई भजन सिमरन हमने अपनी लोड के लिए करना है क्योंकि इसमें हमारी ही भलाई है क्योंकि जिंदगी में हमें बहुत उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं और कई बार तो हम डोल भी जाते लेकिन जो सत्संगी रोजाना भजन को समय देते हैं वह जिंदगी की हर मुश्किल का हंसकर सामना करते हैं क्योंकि मालिक अंदर से उन्हें वह ताकत देता है वह शक्ति देता है जिससे हमारा मन कभी नहीं डोलता और हम हर मुश्किल का सामना करते जाते हैं और हमारे अंदर यह विश्वास बना रहता है की मालिक हमारे साथ है हमारे अंग संग है, और जिस दिन ऐसा विश्वास हमारे अंदर भी बन जाएगा तब हमें मृत्यु से भी कोई भय नहीं रहेगा ।साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर करना, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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