साध संगत जी आज की साखी है कि जब हमें नाम की बख्शीश होती है तब सतगुरु कैसे हमारे कर्म अपने ऊपर ले लेते हैं हमारा बोझ अपने ऊपर ले लेते हैं और हमें नाम की बख्शीश कर देते हैं और हमने कैसे-कैसे कर्म पीछे किए होते हैं यह हमें भी नहीं पता होता लेकिन जब सतगुरु की दृष्टि हम पर पड़ती है तो हमारे सभी किए हुए कर्म उनके सामने आ जाते हैं और जिसे उन्होंने नाम की बख्शीश करनी होती है वह उस अभिलाषी के कर्मों को अपने ऊपर ले लेते हैं और अपने उस अभ्यासी को नाम की बख्शीश कर देते हैं ऐसी अपार कृपा वह हम पर करते यह ऐसी बातें हैं
जिसका हमें बिल्कुल भी पता नहीं होता हम तो बड़ी ही आसानी से नाम दान लेने के लिए चले जाते हैं कि हमें नाम मिल जाएगा लेकिन हमें यह नहीं पता होता कि जो दांत सतगुरु ने हमारी झोली में डालनी है उसको लेने के लिए हमारी झोली भी साफ होनी चाहिए पवित्र होनी चाहिए और वह होती नहीं है क्योंकि पता नहीं हमने जन्मों-जन्मों की कितनी मेल इकट्ठी की हुई है कैसे कैसे भारी कर्म हमने किए हुए हैं यह हमें नहीं पता होता लेकिन फिर भी बड़ी ही आसानी से हम नामदान लेने के लिए पेश हो जाते हैं और शुक्र है उस मालिक का, शुक्र है सतगुरु का, जो अपनी अपार कृपा कर हमारे कर्मों को जानते हुए भी उसका बोझ अपने ऊपर ले लेते हैं और हमें नाम की बख्शीश कर देते हैं हमारी झोली में वह अनमोल दांत डाल देते हैं जिसे पाने के लिए राजा महाराजाओं को भी धक्के खाने पड़ते थे गुरु की तलाश के लिए निकलना पड़ता था और साध संगत जी जब हमारे कर्म इतने भारी हो कि हमारे उन कर्मों की तकलीफ सद्गुरु को झेलनी पड़े तो तब हमें कैसा लगेगा तो ऐसा ही एक किस्सा सद्गुरु बड़े महाराज जी के समय का है कि एक बार सतगुरु महाराज अंबाला शहर में तश्रीफ ले रहे थे और वहां पर मोती राम दर्जी सतगुरु महाराज जी का बहुत ही प्यारा सत्संगी प्रेमी था और उन्होंने सतगुरु महाराज जी से सत्संग के लिए अर्ज की, की सद्गुरु अपने सत्संग से संगत को निहाल करें संगत आप की वाणी सुनने के लिए तरस रही है तो सतगुरु महाराज जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब का शब्द सत्संग में लिया क्योंकि उपदेश बड़ा उच्चा था इसलिए जब उन्होंने शब्द की व्याख्या की तो वहां पर जो संगत मौजूद थी वह सतगुरु के उस सत्संग से बहुत ही प्रभावित हुई और वहां पर हुकम सिंह नाम का एक अकाउंटेंट रहता था और उसने मोतीराम के पास जाकर यह कहा कि मुझे भी इनसे नाम लेना है और उसने मोतीराम के पास नाम लेने की ख्वाहिश जाहर की, तो मोतीराम ने सोचा कि यह एक धनी और माननीय व्यक्ति है अगर ये इस तरफ लग जाए तो सत्संग की रौनक बढ़ जाएगी, तो मोतीराम ने सतगुरु से अर्जी की और उस आदमी को पेश किया तब सतगुरु ने कहा मोतीराम इस आदमी को नाम ना दिलाओ इसके बड़े ही भारी करम है तो मोतीराम ने कहा सतगुरु अगर आपके पास आकर भी कर्म बाकी रहे तो फिर दुनिया में और कौन सी जगह है तो सतगुरु का विचार वहां पर एक महीना सत्संग करने का था लेकिन मोती राम की ये बात सुनकर सतगुरु ने फरमाया कि अच्छा ठीक है ! मैं नाम दे देता हूं लेकिन जब मैं इसे नाम दे दूंगा तब मैं यहां नहीं रहूंगा तब मुझे यहां से वापस जाना होगा तो मोतीराम ने हठ धर्मी की और उसने कहा कि अच्छा महाराज जी ! कोई बात नहीं आप जहां भी जाओगे मैं वहां आ जाऊंगा लेकिन आप इसे नाम की बख्शीश कर दे आप इसे नाम जरूर बख्श दे तो सतगुरु ने तांगा मंगवा लिया और बिस्तर बांध कर उसमें रख दिया और जैसे ही सतगुरु ने उसे नाम की बख्शीश की और उसी समय सतगुरु तांगे पर सवार होकर स्टेशन पहुंचे और वापस चले गए, इत्तेफाक से रास्ते में लुधियाना स्टेशन पर सतगुरु बड़े महाराज जी को मिले और उन्होंने अर्ज की हजूर मेरा गांव महिमा सिंह वाला नजदीक ही है दर्शन देते आओ और आप कहने लगे मैं इस वक्त नहीं उतरूंगा, तुम भी इस इतवार को डेरे ना आना और उधर महाराज जी का नियम था कि वह जब भी छुट्टी पर आते तो हर इतवार को सत्संग के लिए आ जाते और सतगुरु आम तौर पर उन्हें कहा करते थे कि तुम घर का कामकाज नहीं करते डेरे चले आते हो उन्होंने समझा शायद इसीलिए यह हुक्म दिया है जब बड़े सतगुरु डेरे पहुंचे तो उन्हें इतना तेज बुखार हो गया कि नीचे का सांस नीचे और ऊपर का सांस ऊपर ही रहा और उन्हें बहुत तकलीफ हो रही थी तो वहां पर सतगुरु के पास बीबी रुको थी जो हमेशा सतगुरु की सेवा में रहती थी तो सतगुरु की ऐसी हालत देखकर संगत को चिंता होने लगी तो बहुत से सत्संगियों ने दवा खाने के लिए अर्ज की, लेकिन आपने फरमाया कि अभी 12 दिन में कोई दवा नहीं खाऊंगा, तो वहां पर कुछ संगत रोने लग पड़ी थी और बीबी रुको भी रोने लग पड़ी और उसके बाद आप जी ने फरमाया बीबी मैं अभी नहीं जा रहा हूं, तू फिकर ना कर, 12 दिन के बाद बुखार कुछ कम हो जाएगा और मैं ठीक हो जाऊंगा तो जब सतगुरु बड़े महाराज जी अगले इतवार हुकम सिंह को नाम देने के 15 दिन बाद डेरे पहुंचे और हालत का पता चला तो अर्ज कि, कि महाराज जी आपने मुझे आने से क्यों रोक दिया था अगर मैं आता तो आपकी कुछ सेवा करता तब सतगुरु ने फरमाया कि तुमसे बर्दाश्त नहीं होता और मुमकिन है कि अभाव आ जाता इसलिए मैंने टाल दिया तो उन्होंने कहा कि सतगुरु आपकी तकलीफ का असली कारण क्या था तब सतगुरु ने फरमाया नहीं रहने दो तुम्हें हजम नहीं होगा, तो उन्होंने इकरार किया कि वे उनके जीते जी यह बात किसी को नहीं बताएंगे तो इस पर सतगुरु ने फरमाया कि पक्का इकरार करो, तो महाराज जी ने जवाब दिया जी हां ! मेरा पक्का इकरार है कि मैं आपके जीते जी यह बात किसी को भी नहीं बताऊंगा तो सतगुरु ने फरमाया कि हुकुम सिंह को काल ने 7 जन्म दुख ही दुख देने थे उसको अपने जाल में फंसाए रखना था क्योंकि उसके कर्म बहुत भारी थे और काल ने उसे गर्म तवे पर तपाना था तो उसके कर्म मुझे अपने ऊपर उठाने पड़े तो इसीलिए यह सब हुआ है तो साध संगत जी यह साखी सुनकर संगत की आंखों में आंसू आ गए थे कि सतगुरु कैसे हमारे कर्म अपने ऊपर ले लेते हैं हमारी तकलीफ अपने ऊपर ले लेते, संतो को शिष्यों की खातिर कितना कष्ट उठाना पड़ता है नाम देकर सारे पिछले कर्मों का बोझ अपने ऊपर ले लेते हैं लेकिन जरा भी जाहिर नहीं करते, तो ऐसी कृपा सतगुरु हम पर करते हैं और ऐसा बहुत बार देखा गया है की सतगुरु की तबीयत खराब हो गई साध संगत जी उनकी तबीयत इसलिए खराब नहीं हुई कि वे उनका कोई शारीरिक रोग होगा, नहीं ! ऐसा बिल्कुल भी नहीं है जब भी सतगुरु पर कोई ऐसी बात आती है तब संगत अपने आप ही समझ जाती है कि जरूर सतगुरु ने किसी के कर्म उठा लिए हैं और ऐसा अक्सर होता आया है कि गुरु अपने शिष्य के कर्मों को अपने ऊपर ले लेता है और उसकी झोली में नाम की दात डाल देता है और अपने शिष्य को उस मालिक से मिलाने के लिए अपने आप को तकलीफ में सतगुरु डाल देते हैं जो की असहनीय है तो साध संगत जी ऐसे गुरु का मिलना बहुत ही मुश्किल है जो अपने शिष्य की खातिर सभी कष्ट अपने ऊपर ले लेते हैं ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर करना, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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