Saakhi । एक लड़के की सच्ची कहानी । नामदान लेकर ऐसी गलती करने वाले सत्संगी को कभी माफ़ नहीं किया जाता

 

साध संगत जी आज की कहानी पुर्तगाल में रह रहे एक सत्संगी लड़के की है जो कि उन्होंने संगत से सांझा की है वह मैं आपसे सांझा करने जा रहा हूं और उनका अपनी इस कहानी को संगत से सांझा करने का केवल यही मकसद है कि उनके साथ जो हुआ है उससे हमें प्रेरणा मिल सके ताकि जो गलती उन्होंने की है वह और कोई गुरु का प्यारा सत्संगी ना करें तो इसी उद्देश्य से उन्होंने अपनी यह कहानी सांझा की है जो कि आज आपसे सांझा करने जा रहा हूं तो उनकी इस कहानी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी ता कि हमें भी इस कहानी से सीख मिल सके हमें भी वह प्रेरणा मिल सके ।

साध संगत जी शुरुआत में आप जी ने कहां है कि मैं अपनी दसवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करके विदेश चला गया था क्योंकि वहां पर मेरे कुछ रिश्तेदार थे जिन्होंने मेरा विदेश का काम बनवा दिया था और मैं उनके पास पुर्तगाल चला गया और मैं शुरू से ही गुरुघर की सेवा करता आया हूं सत्संग सुनता आया हूं और मेरी मां की अच्छी शिक्षा के कारण मैंने कभी भी अपनी जिंदगी में कोई गलत काम नहीं किया क्योंकि मेरी मां मुझे हमेशा समझाती थी कि बेटा हमें ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहिए जिससे की यह समाज और इस समाज में रहने वाले लोग हमारी तरफ उंगली करें और तब तो ऐसा गलत काम बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए जब हमें एक पूरे गुरु की शरण मिली हो एक सच्चे सतगुरु से नाम की बख्शीश हुई हो तब तो हमें बिल्कुल भी ऐसा कोई भी गलत काम नहीं करना चाहिए जिससे कि यह समाज हमारी तरफ उंगली उठाए क्योंकि जब भी हम कोई गलत काम करते हैं तो वह उंगली सिर्फ हमारी तरफ ही नहीं उठती वह हमारे गुरु की और भी जाती है और लोग यही कहते हैं कि क्या तुम अपने गुरु से यही सीखते हो क्या तुमने सत्संग में यही सीखा है तो ऐसी ऐसी बातें लोग कहते हैं और फिर हमारे पास कोई जवाब नहीं होता तो इसमें हमारा तो घटाव होता ही है और साथ ही साथ हम सतगुरु को भी इसका जिम्मेदार बना देते हैं जो कि बिल्कुल भी अच्छा नहीं है तो हमें कभी भी ऐसा काम नहीं करना है कि लोग हमारे गुरु की तरफ उंगली करें तो मेरी मां मुझे हमेशा से ही रूहानियत से जोड़ती आई है और मेरी मां की कमाई भी बहुत है मुझे याद है कि जब मैं स्कूल जाता था और जब स्कूल से घर आता था तो मेरी मां भजन सिमरन पर बैठी होती थी तो मैं अपनी मां को कुछ नहीं कहता था जो भी खाना होता था खुद जाकर सब कुछ कर लेता था लेकिन अपनी मां को मैंने कभी परेशान नहीं किया उनकी भजन बंदगी में मैं कभी रुकावट नहीं बना वह केवल इसलिए क्योंकि मेरी मां की शिक्षा ही मुझे यहां तक ले आई है और फिर उसके बाद मैं विदेश चला गया और जब मैंने विदेश जाना था तो उससे पहले मेरी मां ने बहुत कुछ मुझे समझाया कि बेटा वहां पर रहकर उस माहौल में हमें गंदा नहीं होना हमें तो समाज में ऐसे रहना है जैसे एक मुर्गाभी पानी में रहती है और फिर सूखे पंखों के साथ उड़ जाती है ऐसे हमें इस समाज में रहना है जैसे एक कमल कीचड़ में खिला होता है लेकिन कीचड़ में गंदा नहीं होता तो हमें इस समाज में रहते हुए किसी तरह की गंदगी से हमें गंदा नहीं होना हमें तो मालिक की भजन बंदगी करते हुए सभी कार्य करने हैं अगर हम भजन बंदगी करते हैं तो हम चाहे कहीं भी रहे तो मालिक हमारे साथ होता है तो आप कहते है ऐसे ही मेरी मां ने मुझे बहुत समझाया और फिर मैं विदेश चला गया लेकिन वहां जाकर मैं मन के पीछे लगकर वहां के माहौल में पड़ना शुरू हो गया था और मेरी मां मुझे रोज फोन किया करती थी मेरा हालचाल पूछा करती थी और मुझे पूछती थी कि भजन सिमरन पर बैठता है या नहीं ? तो कुछ देर तक तो मैं बैठता रहा लेकिन जैसे-जैसे वहां पर समय बीतता गया मेरी भजन बंदगी मुझसे छूट गई और मुझे वहां का माहौल इतना अच्छा लगा कि मैं उसी में डूब गया वहां पर मेरे कुछ नए दोस्त बने और जैसे कि आप सभी जानते हैं कि विदेशों में ज्यादातर लोग मांसाहार होते हैं मांस आदि का सेवन करते हैं और वहां पर शाकाहारी खाना बहुत ही कम मिलता है और अगर मिलता भी है तो उसका दाम मांसाहार भोजन से ज्यादा होता है तो मैंने भी अपने दोस्तों के साथ मांस खाना शुरू कर दिया था क्योंकि वहां पर मुझे भारी काम करना पड़ता था इसलिए मैंने मांस आदि का सेवन करना शुरू कर दिया और मेरी मां रोज मुझे फोन करती थी और पूछती थी की भजन पर बैठता है या नहीं, तो मैं ऐसे ही उन्हें झूठ बोल दिया करता था कि हां मां मैं बैठता हूं तो ऐसे ही समय बीतता गया तो वहां पर जिस कंपनी में मैं काम करता था वहां पर मशीन में खराबी होने के कारण एक बहुत बड़ा ब्लास्ट हुआ और उस ब्लास्ट में हम 3 लोग घायल हुए जिसमें मैं सबसे आगे था क्योंकि मेरी ड्यूटी उस मशीन के पास ही होती थी तो उस ब्लास्ट में मैं पूरा जल गया था मैंने अपनी आंखों से देखा है कि जब वह ब्लास्ट हुआ तब मेरे दोनों हाथों से मास पिघल कर नीचे गिर रहा था मेरी दोनों बाजुओं से मेरा मास पिघल कर नीचे गिर रहा था और मैं बहुत तकलीफ में था तो मुझे जल्द से जल्द हॉस्पिटल ले जाया गया और वहां पर मैं कुछ दिनों तक रहा और हॉस्पिटल में बैठे-बैठे मुझे इस बात का एहसास हुआ कि जब मुझे नाम की बख्शीश होनी थी जब मैं नाम दान के लिए पेश हुआ था तो मुझसे उन्होंने यही सवाल किया था की मास और शराब आदि का सेवन तो नहीं करते ? तो मैंने उन्हें कहा था कि नहीं ! तो उन्होंने मुझसे कहा था कि करना भी मत, तो उसके बाद उन्होंने मुझे नाम की पर्ची दे दी थी तो मुझे यह बात याद कर बहुत रोना आया कि मैंने अपने सद्गुरु की बात नहीं मानी और आज मेरे साथ जो हुआ है वह बिल्कुल ठीक हुआ है मुझे किसी बात का दुख नहीं है क्योंकि मैंने अपने गुरु के हुक्म की उलगना की है, और जितना भी मांस मैंने खाया है, शायद वो ही जल कर नीचे गिरा है, तो मै बहुत रोया और जो मेरे साथ वाले थे उनके तो ज्यादा चोट नहीं आई उन्हें थोड़ी सी ही चोट लगी लेकिन इसमें ज्यादा नुकसान मेरा ही हुआ लेकिन मुझे इसका कोई गम नहीं था क्योंकि मुझे पता था कि मैंने गलती की है और इस गलती का जिम्मेदार भी मैं ही हूं क्योंकी नाम देकर सतगुरु ने तो हमारी जिमेवारी ले ली लेकिन अगर हम नाम लेकर भजन बंदगी भी नहीं करते और उनके हुक्म की पालना भी नहीं करते, जिन चीज़ों से हमें दूर रहने के लिए बोला जाता है, अगर हम वह भी नहीं रहते तो हमारे लिए अफसोस वाली बात है और मेरी मां कहती थी की बेटा हुज़ूर फरमाते थे कि भजन सिमरन भले ही कम करो, लेकिन जिन चीज़ों से दूर रहने के लिए बोला जाता है उनसे दूर रहो क्योंकी वह चीजें तो परमार्थ की जड़ ही काट देती है, तो मेरे साथ जो भी हुआ मैंने अपनी मां को सब सच बता दिया था कि मैंने यहां पर क्या-क्या किया है और जो मेरे साथ हुआ मैंने सब अपनी मां को बता दिया और उसके बाद मेरी मां ने मुझे यही कहा कि बेटा अब जो हो गया उसको तो हम बदल नहीं सकते, लेकिन अपनी इस गलती को सुधार जरूर सकते हैं तो तू आज मुझसे यह वादा कर कि आज से तू कभी भी ऐसा कोई भी काम नहीं करेगा और सतगुरु के हुक्म में रहकर भजन बंदगी करेगा और मेरा कहा मानेगा तो मैंने अपनी मां से यह वादा किया कि मैं आज से आपकी हर बात मानूंगा और सतगुरु के हुक्म में रहकर रोजाना भजन को समय दूंगा और ऐसा कोई भी काम नहीं करूंगा जिससे सतगुरु को दुख लगे और आपको भी तकलीफ हो, तो जो मेरे साथ हुआ इससे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला क्योंकि जिंदगी में कभी ना कभी ऐसा समय जरूर आता है जब मन हम पर भारी हो जाता है और हमें गलत कार्य करने के लिए कहता है लेकिन उस समय हमें मन के पीछे नहीं लगना होता क्योंकि मन तो हजारों अफसर ढूंढता है कि किसी ना किसी तरह मैं इसका काम खराब कर सकूं क्योंकि वह नहीं चाहता कि हम रूहानियत के इस मार्ग पर आगे बढ़े तो ऐसे ही मैंने भी बहुत लोग ऐसे देखे हैं जो ये बात कहते हैं कि अभी जितने मजे करने हैं कर लो, जो भी खाना पीना है खा लो, कल किसने देखा है अगला जन्म किसने देखा है और वह गलत काम करते जाते हैं मांस आदि खाते रहते हैं लेकिन जब मैंने अपनी मां से यह बात कही थी तब मेरी मां ने मुझे डांटा था और साथ ही इस प्रश्न का उत्तर भी दिया था कि बेटा तुम कहते हो कि अगला जन्म किसने देखा है मैं तुमसे कहती हूं कि रोजाना भजन बंदगी पर बैठ कर देख तुझे तेरा किया हुआ सब दिख जाएगा कि तेरा पिछला जन्म कहां हुआ था कहां-कहां से होकर तुम आए हो, कहां कहां से भटक कर तुम यहां आए हो वह सब तुम्हें दिखाई पड़ेगा और मैं यह बात दावे से कहती हूं जब तुम यह सब देख लोगे तब तुम यह बात कभी नहीं कहोगे कि अगला जन्म किसने देखा है, तो साध संगत जी आज की इस कहानी से हमें भी यही प्रेरणा मिलती है कि जो हमें नाम की बख्शीश के समय समझाया जाता है वह केवल बोलने के लिए ही बोला नहीं जाता उस पर हमें अमल भी करना होता है और जो सत्संगी अमल नहीं करता उसे मालिक फिर अपने तरीके से समझाता है और जब वह समझाता है तो उसका समझाया हुआ इंसान कभी भूलता नहीं है जैसे कि इस लड़के के साथ हुआ है ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर करना, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।

By Sant Vachan


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