साध संगत जी आज की साखी है कि परमात्मा की लाठी दिखती नहीं है और आवाज़ भी नहीं करती लेकिन जब पड़ती है तो दर्द बहुत देती है हमारे कर्म ही हमें उसकी लाठी से बचाते है इसीलिए तो फरमाया जाता है कि भाई कर्म अच्छे करो, साध संगत जी आज की साखी इसी विषय पर आधारित है तो साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी ।
एक महात्मा वर्षा के जल में प्रेम और मस्ती से मालिक के नाम का गुणगान करता हुआ जा रहा था और उसने एक मिठाई की दुकान को देखा जहां एक कढ़ाई में गरम दूध उबाला जा रहा था तो मौसम के हिसाब से दूसरी कढ़ाई में गरमा गरम जलेबियां तैयार हो रही थीं, महात्मा कुछ क्षणों के लिए वहाँ रुक गया, शायद भूख का एहसास हो रहा था या मौसम का असर था, महात्मा हलवाई की भट्ठी को बड़े गौर से देखने लगा वह कुछ खाना चाहता था लेकिन उसकी की जेब ही नहीं थी तो पैसे भला कहां से होते, वह महात्मा कुछ पल भट्ठी से हाथ सेंकनें के बाद चला ही जाना चाहता था कि नेक दिल हलवाई से रहा न गया और एक प्याला गरम दूध और कुछ जलेबियां उसको दे दीं, महात्मा ने गरम जलेबियां गरम दूध के साथ खाई और फिर दोनों हाथों को ऊपर की ओर उठाकर हलवाई के लिए प्रार्थना की, फिर आगे चल दिया और उसका पेट भर चुका था, दुनिया के दु:खों से बेपरवाह, वो फिर एक नए जोश से बारिश के गंदले पानी के छींटे उड़ाता चला जा रहा था, वह इस बात से बेखबर था कि एक युवा नव विवाहिता जोड़ा भी वर्षा के जल से बचता बचाता उसके पीछे चला आ रहा है, मालिक के गुण गाते हुए इस महात्मा ने बारिश के गंदले पानी में जोर से लात मारी, बारिश का पानी उड़ता हुआ सीधा पीछे आने वाली युवती के कपड़ों को भिगो गया उस औरत के कीमती कपड़े कीचड़ से लथपथ हो गये, उसके युवा पति से यह बात बर्दाश्त नहीं हुई, इसलिए वह गुस्से में आकर आगे बढ़ा और महात्मा के कपड़ो को पकड़ कर खींच कर कहने लगा अंधा है ? तुमको नज़र नहीं आता, तेरी हरकत की वजह से मेरी पत्नी के कपड़े गीले हो गऐ हैं और कीचड़ से भर गऐ हैं ? वह महात्मा हक्का-बक्का सा खड़ा था जबकि इस युवा को साधु का चुप रहना नाखुशगवार गुज़र रहा था, महिला ने आगे बढ़कर युवा के हाथों से उस महात्मा को छुड़ाना भी चाहा, लेकिन युवा की आंखों से निकलती नफरत की चिंगारी देख वह भी फिर पीछे खिसकने पर मजबूर हो गई, राह चलते राहगीर भी उदासीनता से यह सब दृश्य देख रहे थे लेकिन युवा के गुस्से को देखकर किसी में इतनी हिम्मत नहीं हुई कि उसे रोक पाते और आख़िर जवानी के नशे मे चूर इस युवक ने, एक जोरदार थप्पड़ महात्मा के चेहरे पर जड़ दिया, बूढ़ा मलंग थप्पड़ की ताब ना झेलता हुआ लड़खड़ाता हुआ कीचड़ में जा गिरा, युवक ने जब महात्मा को नीचे गिरता देखा तो मुस्कुराते हुए वहां से चल दिया, बूढ़े साधु ने आकाश की ओर देखा और उसके होठों से निकला वाह मेरे मालिक कभी गरम दूध जलेबियां और कभी गरम थप्पड़!!! लेकिन जो तू चाहे मुझे भी वही पसंद है, यह कहता हुआ वह एक बार फिर अपने रास्ते पर चल दिया, दूसरी ओर वह युवा जोड़ा अपनी मस्ती को समर्पित अपनी मंजिल की ओर अग्रसर हो गया, थोड़ी ही दूर चलने के बाद वे एक मकान के सामने पहुंचकर रुके, वह अपने घर पहुंच गए थे, वो युवा अपनी जेब से चाबी निकाल कर अपनी पत्नी से हंसी मजाक करते हुए ऊपर घर की सीढ़िया चढ़ कर जा रहा था, बारिश के कारण सीढ़ियों पर फिसलन हो गई थी, अचानक युवा का पैर फिसल गया और वह सीढ़ियों से नीचे गिरने लगा, महिला बहुत जोर से शोर मचा कर लोगों का ध्यान अपने पति की ओर आकर्षित करने लगी जिसकी वजह से काफी लोग तुरंत सहायता के लिये युवा की और आ गए, लेकिन देर हो चुकी थी, युवक का सिर फट गया था और कुछ ही देर में ज्यादा खून बह जाने के कारण इस नौजवान युवक की मौत हो चुकी थी, कुछ लोगों ने दूर से आते उस महात्मा को देखा तो आपस में कानाफूसी होने लगी कि निश्चित रूप से इस साधु बाबा ने थप्पड़ खाकर युवा को श्राप दिया है अन्यथा ऐसे नौजवान युवक का केवल सीढ़ियों से गिर कर मर जाना बड़े अचम्भे की बात लगती है, कुछ मनचले युवकों ने यह बात सुनकर उस महात्मा को घेर लिया, एक युवा कहने लगा कि आप कैसे परमात्मा के भक्त हैं जो केवल एक थप्पड़ के कारण युवा को श्राप दे बैठे, मालिक के भक्त में रोष व गुस्सा हरगिज़ नहीं होता, आप तो जरा सी असुविधा पर भी धैर्य न कर सकें, वह महात्मा कहने लगा, मालिक की क़सम ! मैंने इस युवा को श्राप नहीं दिया, तो उस लड़के ने कहा अगर आप ने श्राप नहीं दिया तो ऐसा नौजवान युवा सीढ़ियों से गिरकर कैसे मर गया ? तब उस महात्मा ने लोगों से एक अनोखा सवाल किया कि आप में से कोई इस सब घटना का चश्मदीद गवाह मौजूद है ? एक युवक ने आगे बढ़कर कहा हाँ ! मैं इस सब घटना का चश्मदीद गवाह हूँ, महात्मा ने अगला सवाल किया, मेरे क़दमों से जो कीचड़ उछला था क्या उसने युवा के कपड़ों को दागी किया था ? युवा बोला- "नहीं, लेकिन महिला के कपड़े जरूर खराब हुए थे, महात्मा ने युवक की बाँहों को थामते हुए पूछा- "फिर युवक ने मुझे क्यों मारा ? युवा कहने लगा- "क्योंकि वह युवा इस महिला का प्रेमी था और यह बर्दाश्त नहीं कर सका कि कोई उसके प्रेमी के कपड़ों को गंदा करे, इसलिए उस युवक ने आपको मारा, युवा की बात सुनकर वह महत्मा ने एक जोरदार ठहाका बुलंद किया और कहा कि मैंने आज तक किसी को श्राप नहीं दिया लेकिन कोई है जो मुझसे प्रेम रखता है, अगर उसका यार सहन नहीं कर सका तो मेरे यार को कैसे बर्दाश्त होगा कि कोई मुझे मारे ? और वो मेरा यार इतना शक्तिशाली है कि दुनिया का बड़े से बड़ा राजा भी उसकी लाठी से डरता है, साध संगत जी इस साखी से हमें भी यही सीख मिलती है कि सच में उस परमात्मा की लाठी दिखती नहीं है और आवाज भी नहीं करती है लेकिन जब पड़ती है तो बहुत दर्द देती है, हमारे कर्म ही हमें उसकी लाठी से बचा सकते है बस हमारे कर्म अच्छे होने चाहियें ।साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर करना, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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