मौलाना रूम एक उच्च कोटि के संत हुए हैं वह लिखते हैं मालिक के जितने पास में गया उतना मुझे साफ दिखाई देने लगा कि मेरी दूरी उस मालिक से कितनी है, कहने का भाव है जैसे जैसे हम भजन सिमरन कर के मालिक के पास पहुंचने की कोशिश करते हैं
वैसे वैसे हमें हमारी कमियों का हमारे विकारों का एहसास होने लगता है, धीरे-धीरे ही सही लेकिन हमारी विवेक की ताकत जागृत होने लगती है और हमें एहसास होता है कि अभी तो हम मालिक से बहुत दूर है और ये दूरी क्या है, दूरी है हमारे विकारों की, लेकिन मालिक को क्या पसंद है पवित्रता और स्वच्छता लेकिन अभी तो हमारा मन बहुत गंदा है इसके ऊपर विकार हावी हैं, इस बात को हम सरलता से यूं भी समझ सकते हैं की मौलाना रूम हमें यहां यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि जैसे-जैसे हम भजन सिमरन कर के मालिक के पास पहुंचने की कोशिश करेंगे वैसे वैसे हमें एहसास होगा, की जो दूरी है वह सिर्फ शारीरिक दूरी है अंतर में तो मालिक हमेशा ही हमारे साथ हैं यहां गौर करने वाली एक और बात है मौलाना रूम फरमाते हैं HOW FAR I AM यानी कि जो दूरी है वह हमारी तरफ से है मालिक तो बैठा हैं हमें अपनाने के लिए, लेकिन ये दूरी हमने बनाई है, अब यह दूरी, कैसे दूर होगी यह होगी सिर्फ और सिर्फ हमारे भजन और सिमरन से, क्योंकि भजन सिमरन हमारे अंदर पड़ी जन्मों जन्मों की उस गंदगी को निकालता है जो हमें मालिक से दूर करती है तो अगर हमारे अंदर उस मालिक से मिलने की सच्ची तड़प है, अंदर प्यार है, तो हमें रोजाना भजन और सिमरन को समय देना है ताकि मालिक से जो दूरी हमारी जन्मों जन्मों से बनी हुई है वह दूर हो सके ।
अंत - दूरी मालिक नहीं बनाता, ये दूरी हमारे कर्मों के कारण बनी है और इसे खत्म भी हमें ही करना होगा ।
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