सतगुरु कहते है कि हम कई जन्मों से , बन्दर की तरह
काल रूपी मदारी की ताल पर , इधर उधर कर्मों का नृत्य करते चले आ रहे हैं, स्थान-स्थान पर भटकने से हमें कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है, मालिक हमारे अंदर है और हम सतगुरु की शरण लेकर ही अपने अंतर में उसकी खोज कर सकते है और गुरु की शरण के बिना, कोई भी, कभी भी, संसार के इस खेल को समझ नहीं सकता ।
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