साध संगत जी यह बात उस समय की है जब सतगुरु महाराज हुआ करते थे और एक महिला बहुत ही धार्मिक थी उसने कभी भी सेवा और सत्संग का मौका अपने हाथ से नहीं जाने दिया, उसे जब भी समय मिल पाता वह गुरु घर सेवा पर चली जाती और ज्यादा से ज्यादा समय वहां पर रहकर व्यतीत करती और उसने नाम दान भी लिया हुआ था और ज्यादा से ज्यादा समय भजन सिमरन में व्यतीत करती थी और सेवा भी करती थी और किसी को कभी गलत न बोलना, सब से प्रेम से मिलकर रहना उस की आदत बन चुकी थी, क्योंकि साध संगत जी जब हम इस मार्ग पर चलने लगते हैं सेवा करने लगते हैं ।
सत्संग सुनने लगते हैं और नाम की कमाई करने लगते हैं तो दूसरों के प्रति अपने आप ही प्रेम भाव पैदा हो जाता है और हमें हर जीव में मालिक दिखाई देने लगता है और हमारे अंदर से इर्खा और नफरत जैसे अवगुण चले जाते है साध संगत जी जैसे गुरु गोविंद सिंह महाराज जी के समय की बात है जब भाई कन्हैया जी हुआ करते थे और एक बार किसी ने सतगुरु से यह शिकायत कर दी कि गुरु साहिब आपका शिष्य भाई कन्हैया वह तो दुश्मनों को भी पानी पिला रहा है तो जब यह बात सतगुरु गोविंद सिंह जी महाराज जी के पास पहुंची तो सतगुरु ने उसे अपने पास बुलाया और भाई कन्हैया से पूछा कि आप उनको पानी क्यों पिलाते हो तो भाई कन्हैया ने उस समय सतगुरु से कहा था की हे महाराज ! मुझे तो सभी तरफ आप ही दिखाई पड़ते हैं दूसरा कोई दिखाई नहीं पड़ता, इसलिए जिस तरफ से भी मुझे पानी की आवाज आती है कोई मुझे पुकारता है तो मैं उसे देखता हूं तो उसके अंदर आप को ही देखता हूं और सभी तरफ मुझे आप ही दिखाई पड़ते हैं तो भाई कन्हैया की यह बात सुनकर सतगुरु मुस्कुरा पड़े थे और भाई कन्हैया को अपने गले से लगा लिया था साध संगत जी एक सच्चे अभ्यासी की पहचान ऐसी ही होती है जब वह अपने गुरु के हुकुम को मानकर इस मार्ग पर चलता है तो उसके अंदर से जितने भी अवगुण होते हैं वह अपने आप ही चले जाते हैं और उसे हर जगह मालिक ही मालिक दिखाई देने लगता है वह जिस तरफ भी देखता है उसी तरफ उसे मालिक दिखाई पड़ता है तो इस सत्संगी महिला की हालत भी कुछ ऐसी ही थी उसे हर तरफ सतगुरु महाराज ही दिखाई पड़ते थे और वह सब से प्रेम करती थी और उसने कई बार संगत को अपनी अंदर की बातें बता देनी क्योंकि उनके साथ जो भी होता था वह संगत से सांझा कर दिया करती थी लेकिन वो सिर्फ एक चीज़ से दुखी थी की उस का पत्ती, रोज़ किसी न किसी बात पर उससे लड़ाई झगड़ा करता और उसे मारता पीटता था उस आदमी ने उसे इतना मारा की उस की हडी भी टूट गई थी, उस आदमी का रोज़ का काम था, झगडा करना और उसकी मारपीट करना और वह इन सब चीजों से बहुत तंग आ गई थी, उस महिला ने सतगुरु महाराज जी से अरज की हे सच्चे पातशाह ! मुझसे कोन सी भूल हो गई है, मुझसे ऐसा कौन सा गुनाह हो गया है, मै सत्संग भी जाती हूँ सेवा भी करती हूँ, भजन सिमरन भी आप के हुक्म के अनुसार करती हूँ, लेकिन मेरा आदमी मुझे रोज़ मारता है, मै क्या करूँ ? तो उसकी सारी बात सुनकर सतगुरु महाराज जी ने कहा क्या वो तुझे रोटी देता है ? तो महिला ने कहा हाँ जी देता है, गुरु महाराज जी ने कहा फिर ठीक है, कोई बात नहीं, यह कहकर सतगुरु चुप हो गए और उन्होंने कुछ नहीं कहा तो उस महिला ने सोचा अब शायद गुरु की कोई दया मेहर हो जाए और वो उस को मारना पीटना छोड़ दे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, उसके पत्ती की तो आदत बन गई थी की वह रोज़ अपनी घरवाली की पिटाई करता था, तो ऐसे ही कुछ साल और निकल गए उस ने फिर महाराज जी से कहा की मेरा आदमी मुझे रोज़ पीटता है, मेरा कसूर क्या है, गुरु महाराज जी ने फिर कहा क्या वो तुम्हे रोटी देता है ? उस महिला ने कहा हांजी देता है, तो महाराज जी ने कहा फिर ठीक है, तुम अपने घर जाओ, महिला बहुत निराश हुई की महाराज जी ने फिर यही कह दिया कि ठीक है और उसके बाद वो अपने घर आ गई लेकिन उसके पत्ती का स्वभाव वैसे का वैसा ही रहा, रोज़ उस ने किसी ना किसी बात को लेकर उससे लड़ाई झगडा करना और उसे दुख देना, वो महिला बहुत तंग आ गई थी, कुछ समय गुज़रा वह फिर गुरु महाराज जी के पास गई की वो मुझे अभी भी मारता है, मेरी हाथ की हड्डी भी टूट गई है, मेरा कसूर क्या है, मै सेवा भी करती हूँ, सिमरन भी करती हूँ फिर भी मुझे जिंदगी में सुख क्यों नहीं मिल रहा, और मैंने आज तक किसी को कुछ गलत नहीं कहा किसी का दिल नहीं दुखाया और सब से प्रेम पूर्ण व्यवहार करती हूं और फिर भी मेरे साथ ऐसा होता है तो ये सुनकर गुरु महाराज जी ने फिर कहा कि वो तुझे रोटी देता है, उसने कहा हांजी देता है, महाराज जी ने कहा फिर ठीक है और सतगुरु उससे ये पूछकर फिर चुप हो गए लेकिन इस बार वो महिला जोर जोर से रोने लगी और बोली की महाराज जी मुझे मेरा कसूर तो बता दो मैंने कभी किसी के साथ बुरा नहीं किया फिर मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है, सतगुरु महाराज कुछ देर शांत हुए और फिर बोले बेटी आज घर जाकर भजन पर बैठना तुम्हें सब दिखाई पड़ेगा तो साध संगत जी उसने ऐसा ही किया क्योंकि अबकी बार उसे यह उम्मीद थी कि मुझे मेरे प्रश्न का जवाब मिल जाएगा तो जब वह घर गई और घर जाकर भजन पर बैठ गई तो कुछ देर बाद सतगुरु की कृपा हुई उसे उसके प्रश्न का जवाब मिला जो वह सतगुरु से पूछती आई थी जब उसने अपना पिछला जन्म देखा तो उसे पता चला कि मेरा पति पिछले जन्म में मेरा बेटा था और मैं उसकी सौतेली मां थी और मैं उसे रोज सुबह शाम किसी ना किसी बात पर मारती रहती थी उसकी पिटाई करती रहती थी और उसको कई कई दिन तक भूखा रखती थी और भूख के कारण उसे इतनी कमजोरी आ गई थी कि उससे चला भी नहीं जाता था उसके शरीर की हड्डियां दिखाई देने लगी थी तो ये सब देख कर उस महिला के आंसू निकल गए और उसे इस बात का पता चला कि जो कर्म हमने किए हैं उसका भुगतान तो हमें अवश्य करना ही पड़ेगा फिर चाहे वह कर्म हमने इस जन्म में किए हो या फिर अपने पिछले जन्म में किए हो लेकिन उसका भुगतान तो हमें करना ही पड़ता है उसका हिसाब किताब तो हमें देना ही पड़ता है और जिन्हें एक पूरे गुरु से नाम की बख्शीश हो जाती है उन्हें किए गए कर्मों का हिसाब सबसे पहले देना पड़ता है क्योंकि गुरु ने जिम्मेवारी ली होती है कि वह अपने शिष्य को सचखंड लेकर जाएगा तो गुरु जितनी जल्दी हो सके अपने शिष्य के कर्मों का भुगतान करवाता है ताकि उसे माया की इस नगरी से मुक्ति मिल सके और यहां से उसका छुटकारा हो सके इसलिए साध संगत जी अक्सर जिन्हें नाम की बख्शीश हो जाती है उन्हें इतने दुख आते हैं तकलीफें आती है क्योंकि सतगुरु हमारा भुगतान करवा रहे होते और हमारा बोझ हल्का करवा रहे होते है लेकिन हमें इस बात की कोई खबर नहीं होती और हम गुरु को ताना मारने लगते है लेकिन ये बात तो केवल सतगुरु ही जानता है कि उसने अपने शिष्य का उद्धार कैसे करना है उसके कर्मों का सफाया कैसे करना है तो साध संगत जी जब उस महिला को सब ज्ञात हो गया कि मैंने पीछे यह सब किया है तो वह सतगुरु महाराज जी के चरणों पर जाकर रोने लग पड़ी और सतगुरु ने उसे यही कहा बेटा तूं शुक्र मना की वह तुझे रोटी तो दे रहा है उसके बाद उसने कभी भी सतगुरु से यह सवाल नहीं किया क्योंकि उसे उसके प्रश्न का जवाब अंदर मिल चुका था, साध संगत जी इसलिए हमे भी कभी किसी का बुरा नहीं करना चाहिए सब से प्रेम प्यार के साथ रहना चाहिए, हमारी जिन्दगी में जो कुछ भी हो रहा है सब हमारे कर्मो का लेखा जोखा है, जिस का हिसाब किताब हमें पत्ती बनकर, पत्तनी बनकर या फिर मां बाप बनकर देना पड़ता है ।
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By Sant Vachan
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