साध संगत जी आज की साखी आपके दिल को छू जाएगी यह किस्सा उस समय का है जब बड़े सतगुरु हुआ करते थे वह संगत से बातें भी किया करते थे सीधी बात सतगुरु से हो जाती थी तो उस समय बहुत संगत अपनी अपनी समस्या लेकर सतगुरु के पास आती रहती थी और सतगुरु संगत से बातें करते थे और उनका मार्गदर्शन करते थे साध संगत जी वह समय बहुत ही अच्छा था
क्योंकि एक पूर्ण संत महात्मा से बातें करना और उनके साथ समय बिताना किस को अच्छा नहीं लगता, जो रूहानियत के इस मार्ग पर चलते हैं वह तो चाहते हैं कि हम पूरा पूरा दिन सतगुरु को देखते रहे उनके आगे बैठकर केवल उन्हें ही देखते रहे और उनकी बातें सुनते रहे तो साध संगत जी ऐसा होता भी था वह समय ऐसा था कि जैसे आज हम गुरु को देखकर पीछे पीछे भागते हैं कभी उनके कपड़ों को छूते हैं कभी उनको माथा टेकते हैं तब ऐसे नहीं होता था उस समय सतगुरु शाम के समय ज्यादा से ज्यादा समय संगत में व्यतीत किया करते थे और संगत का मार्गदर्शन किया करते थे सतगुरु ने बहुत सारी संगत को नाम के इस मार्ग से जोड़ा और सतगुरु अक्सर तीन-तीन घंटे का सत्संग फरमाया करते थे इतनी अपार कृपा उस समय संगत पर होती थी अपार दया संगत पर बरसती थी और सत्संग करते करते कभी कोई सज्जन सवाल भी सतगुरु के आगे रख दिया करते थे तो सतगुरु उसका भी बहुत अच्छे तरीके से जवाब दिया करते थे तो ऐसी बहुत सारी संगत ने अपने अपने सवाल सतगुरु के आगे रखें अपनी-अपनी जो भी तकलीफ थी वह उनके आगे रखी तो साध संगत जी ऐसे ही एक सत्संगी महिला संगत में बैठी हुई थी और उसे सतगुरु से नाम मिला हुआ था और वह अक्सर सेवा पर भी आया करती थी उसका सतगुरु से बहुत प्रेम था सतगुरु से बहुत लगाव था जब भी सर्दी आती थी तो वह अक्सर सतगुरु के लिए गर्म कपड़े ले आती कभी अपने हाथ से बुना हुआ स्वेटर सतगुरु के लिए ले आती कभी कुछ ले आती और सतगुरु भी संगत का दिया हुआ सम्मान बहुत आदर से ले लेते थे और सतगुरु का संगत से बहुत प्रेम था तो जब भी उसने सतगुरु के पास आना सतगुरु की खूब सेवा करनी उनके हुक्म की पालना करनी और डटकर भजन सिमरन करना और सद्गुरु की कृपा के कारण उसकी सुरत भी ऊपर चढ़ जाती तो वह घंटों ऐसे ही बैठी रहती लेकिन वह सद्गुरु के आगे यही फरियाद करती थी कि उनके जो पति हैं आप उनको भी अपने नाम की दात बक्शे उनको भी अपनी तरफ लगा ले, सेवा की तरफ लगा ले, अपनी संगत से जोड़ ले, तो सतगुरु कह दिया करते थे कि कोई बात नहीं मालिक ने जिसे अपने से जोड़ना होता है तो वह जोड़ ही लेता है और हर चीज का अपना अपना समय होता है तो जब समय आएगा वह भी हो जाएगा तो साध संगत जी वह जब सेवा से घर जाती थी तब उसका पति उस पर चिलाता था उसे बोलता था कि इतने दिन वहां सेवा कर कर आई हो, कोई घर की भी खबर रख लिया करो साध संगत जी उसका पति घर से बहुत दूर किसी गैस एजेंसी में काम करता था तो नौकरी से घर आते आते काफी समय हो जाता था रात हो जाती थी तो वह अक्सर उसकी उडीक किया करती कि कब वह आए क्योंकि उसे इस बात का बहुत दुख होता था कि उसका पति शराब पीकर घर आता था तो उसे चिंता लगी रहती थी कि कहीं रास्ते में कुछ हो ना गया हो, कहीं गिर ना गए हो, तो वह सतगुरु के आगे यही फरियाद किया करती कि हे सतगुरु उनकी संभाल करना, तो उसे चिंता होने लग जाया करती और वह उस समय भजन बंदगी पर बैठ जाया करती थी और सतगुरु के आगे अंदर भी यही फरियाद किया करती थी कि इनकी शराब छूट जाए यह सही सलामत घर आया करें और मेरी भी इस बात को लेकर चिंता खत्म हो, तो वह दरवाजा बंद कर भजन पर बैठ जाती और यह सोच कर बैठती कि जब भी वह आएंगे तब दरवाजा खट खटाएंगे और मैं जाकर दरवाजा खोल दूंगी लेकिन ऐसा नहीं होता था क्योंकि वह भजन में इतनी मग्न हो जाती थी कि उसका ध्यान लग जाता था तो उसे बाहर जो भी हो रहा होता था उसकी कोई खबर नहीं रहती थी तो ऐसा बहुत बार हुआ तो इसी बात से तंग आकर उसके पति ने कहा कि मैं तुमसे बहुत परेशान हो गया हूं जब भी मैं आता हूं दरवाजा बंद होता है और मैं जोर-जोर से आवाजें भी देता हूं लेकिन तुम अंदर बैठी होती हो तो मुझे पड़ोस की दीवार से छलांग मार कर अंदर आना पड़ता है तो मैं तुम्हारे भजन सिमरन से बहुत तंग हो गया हूं तो साध संगत जी उसके बाद जब वह सतगुरु के पास सेवा पर गई तो उसने यही बात सतगुरु के आगे रख दी कि सतगुरु जब यह नौकरी से वापस आते हैं तो उस समय मेरे पास कुछ समय होता है तो मैं सोचती हूं कि क्यों ना इसको भजन सिमरन में लगा दूं तो उस समय मैं भजन बंदगी पर बैठ जाती हैं और ध्यान में इतनी मगन हो जाती हूं कि दुनिया को भूल जाती हूं और जब यह घर आते हैं तो मुझे इस बात का पता ही नहीं चलता कि यह घर आ गए हैं और बाहर दरवाजा खटखटा रहे है और इसकी शिकायत पड़ोस वालों ने भी मुझे की है कि तेरा पति बाहर खड़ा रहता है और तुम अंदर पता नहीं क्या करती रहती हो तो सतगुरु आप मेरा भजन बंद कर दो तो जब यह बात सतगुरु सुनते हैं तो सुन कर सतगुरु हस पड़ते हैं और कहते हैं कि मैं तुम्हारा भजन सिमरन बंद तो नहीं कर सकता लेकिन एक काम कर सकता हूं कि जब तुम्हारा पति घर पर आया करेगा तो मैं दरवाजा खोल दिया करूंगा साध संगत ये बात सुनकर उसकी आंखों में आंसू आ जाते हैं और वह सतगुरु के चरणों पर गिर पड़ती है साध संगत जी गुरु हमारे लिए क्या क्या नहीं करता, ऐसे ऐसे काम भी गुरु हमारे लिए करता है हमारे जीवन में भी ऐसी बहुत सारी बातें रही होंगी कि जब हमें लगा होगा कि यह तो सतगुरु ने कर दिया ये तो अवश्य ही उनका चमत्कार है लेकिन वह हमें इस बात का एहसास नहीं होने देते कि वह उन्होंने किया है लेकिन किया उन्होंने ही होता है क्योंकि ऐसी बहुत सारी बातें संगत में से सुनने को मिलती है कि मुझे लग रहा था कि मेरा यह काम नहीं बनेगा लेकिन फिर भी सतगुरु ने कर दिया तो साध संगत जी ऐसे सतगुरु अपनी संगत के कार्य करते हैं अपनी संगत की अंदर भी संभाल करते है और बाहर भी उनकी संभाल करते है और जो नाम की कमाई करते हैं सतगुरु के हुक्म में रहकर भजन करते हैं सद्गुरु उनके कार्य खुद करते हैं उनकी संभाल खुद करते हैं जैसे की वाणी में भी आया है "जो जन तुमरी भगत करे तिन के कारज स्वर्ता" जिसका अर्थ है कि जो जीव उस मालिक की भजन बंदगी करता है नाम की कमाई करता है तो वह मालिक उसके कार्य खुद करता है और ऐसा सत्संग में भी बहुत बार फरमाया जाता है कि सतगुरु कहते हैं कि तुम मेरा काम करो और मैं आपका काम करूंगा तो साध संगत जी हमें किस बात की चिंता है हमें तो केवल सतगुरु ने एक ही काम दिया है और वह है मालिक की भजन बंदगी और उसके बदले में सतगुरु हमें सब कुछ देने के लिए तैयार खड़े हैं जो जीव मालिक की भजन बंदगी करता है उसके सभी काम सद्गुरु खुद करते हैं और जिसका फल उस अभ्यासी जीव को मिलता है और जो कार्य एक पूरा गुरु करता है वह कभी भी असफल नहीं होता क्योंकि पूरी कायनात उस कार्य को सफल बनाने के लिए लग जाती है इतनी शक्ति संत महात्माओं में होती है ।
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By Sant Vachan
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