उस समय में देश के मशहूर व्यापारियों में से वह एक था और वह जब भी सद्गुरु के दर्शन करने आता था तो अपनी तरफ से जितना भी हो पाता उतना धन वह सेवा में डाल देता था उसने गुरु घर की बहुत सेवा की, तन मन और धन से गुरुवर की सेवा की और उसे नाम भी मिला हुआ था नामदान की बख्शीश उसे हुई थी तो वह सतगुरु के बताए गए मार्ग अनुसार अपना जीवन व्यतीत करता था जब से उसे नामदान की बख्शीश हुई थी उस दिन से वह रोजाना भजन बंदगी करता था और उसने मालिक की भजन बंदगी में कभी भी नागा नहीं डाला था क्योंकि उसने सतगुरु के बहुत सत्संग सुन लिए थे और उसने यह बात भी समझ ली थी कि सतगुरु सत्संग में बार-बार ऐसा क्यों कहते हैं कि हमें मालिक की भजन बंदगी में कभी भी नागा नहीं डालना है चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन रोजाना भजन बंदगी करनी है नाम की कमाई करनी है तो ये बात बात एक गहन तरीके से उसके अंदर जा चुकी थी तो उसने जिंदगी में कभी भी कोई नागा नहीं डाला था और अपने सतगुरु की युक्ति के अनुसार अपने सद्गुरु के बताए गए तरीके के अनुसार वह भजन बंदगी करता था और एक दिन वह अपने अंदर की बात सद्गुरु के सामने रखता है और कहता है की ही सच्चे पातशाह ! मैं त्रिकुटी से आगे जा चुका हूं और अब मुझे काल परेशान कर रहा है वह बार-बार मेरे सामने दुनिया के पदार्थ लाकर रख देता है वह हर बार मेरे सामने दुनिया की धन दौलत को पेश कर देता है और मुझसे पूछता है कि तुम मुझे बताओ कि तुम्हें क्या चाहिए ? तुम्हें किस चीज की कमी है ? वह मैं तुम्हें दूंगा, बार-बार भेष बदलकर मेरे सामने आता है और मुझे परेशान करता है और जब भी मेरे साथ ऐसा होता है तब मैं आप का दिया हुआ सिमरन जोर जोर से करने लग जाता हूं और ऐसा करने से वह चला जाता है और हर बार वह ऐसे ही करता है और बार बार वह मुझे परेशान करता रहता है कृपया मुझे इसके बारे में कुछ बताएं कि मैं क्या करूं क्योंकि जब भी उसने मेरे सामने यह दुनिया की धन दौलत पेश की है जब भी वह मुझ से पूछता है कि तुम्हें क्या चाहिए तो उस समय एक क्षण को मेरा मन उसके जाल में फंस जाता है मेरे अंदर लोभ पैदा हो जाता है लेकिन दूसरे ही क्षण मेरी अंतरात्मा ऐसा करने से मना कर देती है और मुझे आपकी याद आ जाती है तो आपके ही कारण मैं काल के इस जाल से बचता आ रहा हूं तो कृपया मुझे बताएं कि मैं क्या करूं तो उसकी यह बात सुनकर सतगुरु फरमाते हैं कि हमें केवल सिमरन पर ध्यान देना है इस मार्ग में बहुत कुछ आने वाला है लेकिन हमें किसी भी चीज की तरफ ध्यान नहीं देना हमें तो केवल मालिक से मिलाप करना है तो इसलिए मार्ग में जो भी दिखाई पड़े उसकी तरफ आकर्षित नहीं होना बल्कि आगे बढ़ना है और यही हमारी परीक्षा है कि हम कहीं भटक तो नहीं जाते, इस मार्ग पर जगह-जगह हमारी परीक्षा होती है हमारा इम्तिहान होता है और जो सत्संगी केवल मालिक की चाह को आगे रखकर भजन बंदगी करता है उसको ऐसी चीजें परेशान करना बंद कर देती है तो हमें केवल और केवल मालिक की तरफ ध्यान देना है हमारे अंदर केवल मालिक से मिलने की तड़प होनी चाहिए और दूसरी कोई लालसा नहीं होनी चाहिए क्योंकि अगर हमारे अंदर कोई दूसरी लालसा बच गई तो हम मार्ग से भटक सकते हैं क्योंकि हमारा मन हमारी कमजोरी को अच्छे से जान लेता है और वही चीज हमारे सामने लाकर रख देता है जो हमें चाहिए होती है वह हमें भटकाने के लिए ऐसा करता है लेकिन हमें इसके जाल में नहीं फंसना है हमारे अंदर तो केवल मालिक से मिलने की तड़प होनी चाहिए मालिक से प्यार होना चाहिए तभी हम इस यात्रा में सफल हो सकते है और आप जी कहते हैं कि जब हमें कुछ ऐसी चीजें परेशान करने लगे तो इनसे भी हमें डरना नहीं है मायूस नहीं होना है क्योंकि इनके साथ भी हमारा कुछ हिसाब किताब होता है और जब वह पूरा हो जाता है तब यह चीजें हमें परेशान नहीं करती और इसमें भी हमारी ही भलाई छुपी होती है मालिक की दया मेहर छुपी होती है और आप जी एक बहुत ही अच्छी साखी संगत के आगे रखते हैं कि एक बार एक शख्स सुबह सवेरे उठकर साफ कपड़े पहनकर सत्संग घर की तरफ चला गया ताकि सत्संग का आनंद प्राप्त कर सके, तो वह अभी रास्ते में जा ही रहा था कि चलते चलते रास्ते में ठोकर खाकर गिर पड़ा, कपड़े कीचड़ से भर गए और वह वापस घर आया, कपड़े बदल कर वापस सत्संग की तरफ रवाना हुआ फिर ठीक उसी जगह ठोकर खाकर गिर पड़ा और वापस घर आकर कपड़े बदले फिर सत्संग की तरफ रवाना हो गया, जब तीसरी बार उस जगह पर पहुंचा तो क्या देखता है कि एक शख्स चिराग हाथ में लिए खड़ा है और उसे अपने पीछे चलने के लिए कह रहा है, इस तरह वह शख्स उसे सत्संग घर के दरवाजे तक ले आया और उस सत्संगी ने उससे कहा कि आप भी अंदर आकर सत्संग सुन लें, लेकिन वह शख्स चिराग हाथ में थामे खड़ा रहा लेकिन सत्संग घर में दाखिल नहीं हुआ, दो तीन बार इनकार करने पर उसने पूछा आप अंदर क्यों नहीं आ रहे हैं...? तो उसने जवाब दिया "इसलिए क्योंकि मैं काल हूं" यह सुनकर उस शख्स की हैरत का ठिकाना न रहा, काल ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा मैं ही था जिसने आप को जमीन पर गिराया था, जब आपने घर जाकर कपड़े बदले और दोबारा सत्संग घर की तरफ रवाना हुए तो आपके गुरु ने आपके सारे पाप कर्म क्षमा कर दिए, जब मैंने आपको दूसरी बार गिराया और आपने घर जाकर फिर कपड़े बदले और फिर दोबारा जाने लगे तो आपके गुरु ने आपके पूरे परिवार के गुनाह क्षमा कर दिए और ये देखकर मैं डर गया कि अगर अबकी बार मैंने आपको गिराया और आप फिर कपड़े बदल कर चले गए तो कहीं ऐसा ना हो कि आपके सारे गांव के लोगों के पाप क्षमा कर दिए जाए इसलिए मैं यहां तक आपको खुद पहुंचाने आया हूं, साध संगत जी अब हम देखें कि उस शख्स ने दो बार गिरने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और तीसरी बार फिर पहुंच गया और एक हम हैं यदि हमारे घर पर कोई मेहमान आ जाए या हमें कोई काम आ जाए तो उसके लिए हम सत्संग छोड़ देते हैं, भजन बंदगी छोड़ देते है, भजन जाप छोड़ देते हैं क्योंकि हम जीव अपने गुरु से ज्यादा अपने मालिक से ज्यादा दुनिया की चीज़ और रिश्तेदारों से ज्यादा प्यार करते हैं, हमारा उनसे ज्यादा मोह पड़ा हुआ है इसके विपरीत वह शख्स दो बार कीचड़ में गिरने के बाद भी तीसरी बार फिर घर जाकर कपड़े बदलकर सत्संग घर चला गया, क्यों...? क्योंकि उसके दिल में अपने गुरु के लिए बहुत प्यार था मालिक के लिए बहुत प्यार था वह किसी कीमत पर भी अपनी भजन बंदगी का नियम टूटने नहीं देना चाहता था इसलिए काल ने स्वयं उस शख्स को मंजिल तक पहुंचाया जिसने उसे दो बार कीचड़ में गिराया और उसकी भजन बंदगी में रुकावटें डाल रहा था उसके मार्ग में मुश्किलें खड़ी कर रहा था इसी तरह हम जीव भी जब हम भजन सिमरन पर बैठे तब हमारे मार्ग में कितनी ही रुकावटें क्यों ना आए हमारा मन चाहे कितनी ही चालाकियां क्यों ना करे, कितना ही बाधित क्यों ना करें लेकिन हमें हार नहीं माननी चाहिए और मन का डटकर मुकाबला करना चाहिए, एक दिन हमारा मन स्वयं हमें उठाएगा और भजन बंदगी में भी रस लेगा, बस हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, और ना ही किसी काम के लिए भजन सिमरन में ढील देनी चाहिए, जो शख्स अंदर या बाहर आने वाली मुश्किलों का सामना करते हुए भी भजन बंदगी में डटा रहता है तो वह मालिक आप ही उसके काम सिद्ध और सफल करता है इसीलिए हमें भी मन से हार नहीं माननी चाहिए और निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए ।
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By Sant Vachan
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