Saakhi : जो सत्संगी लोग कहते है कि हमारे बनते हुए काम बिगड़ जाते है वह ये साखी जरूर सुने

 

साध संगत जी हजूर के समय एक अभ्यासी सतगुरु से अर्ज करता है कि हे सच्चे पातशाह ! मुझे नाम मिले हुए 20 वर्ष हो गए हैं मैंने गुरु घर की सेवा भी बहुत की है और मैं एक व्यापारी हूं मेरी और मेरे परिवार की जिंदगी बड़े अच्छे तरीके से कट रही थी लेकिन उसके बाद मुझे व्यापार में एक बहुत बड़ा नुकसान हो गया जिसके कारण मेरा इकट्ठा किया हुआ धन सभी उस नुकसान की भरपाई करने में लग गया ।

तो अभी मैं बहुत परेशान रहता हूं मेरे ऊपर बहुत टेंशन रहती है और मुझसे भजन बंदगी भी नहीं होती मैं बहुत कोशिश करता हूं लेकिन बात नहीं बनती मुझसे बैठा नहीं जाता और अगर बैठ भी जाता हूं तो दिमाग में दुनिया की बातें चलती रहती है जब भी मैं भजन बंदगी पर बैठता हूं तो थोड़ी ही देर सिमरन कर पाता हूं उसके बाद मेरा दिमाग दुनिया की बातों में उलझ पड़ता है और मेरे दिमाग में व्यापार को लेकर बातें चलती ही रहती है जिस दिन से मेरा नुकसान हुआ है उस दिन से मेरी हालत बहुत खराब रहती है और मुझे अपने परिवार की चिंता भी रहती है क्योंकि जितना धन मैंने इकठ्ठा किया था सभी लग चुका है और अभी तो बड़ी बेटी की शादी भी करनी तो मुझे उसकी चिंता भी सताती रहती है इतना पैसा कहां से लाऊंगा बेटी की शादी कैसे होगी ? हे सच्चे पातशाह मुझे राह दिखाएं मुझे बताएं कि मैं क्या करूं तो उसकी यह फरियाद सुनकर सतगुरु बड़े ही प्यारे तरीके से उसे समझाते हैं सद्गुरु फरमाते हैं कि उतार-चढ़ाव तो जिंदगी में आते ही रहते हैं कभी जिंदगी में दुख आ जाता है और कभी सुख आ जाता है और यह दोनों जिंदगी का हिस्सा है इस संसार में कभी भी कोई निरंतर सुखी नहीं रह सकता उसे दुख आना ही आना है अगर हम निरंतर सुख चाहते हैं आनंद चाहते हैं तो वह हमें हमारे लोग में ही मिलेगा जिसे सचखंड कहा जाता है इस संसार में हमें कभी भी वह आनंद प्राप्त नहीं हो सकता क्योंकि यह संसार दुखों का घर है जब से आत्मा अपने मालिक से बिछड़ी है तब से इसने दुख ही दुख पाया है दुख के इलावा इसने और कुछ इकट्ठा नहीं किया और दुख आना अच्छी बात है क्योंकि अगर दुख नहीं होता तो हमें परमात्मा की याद भी नहीं आनी थी हमने परमात्मा को याद भी नहीं करना था, मालिक दुख देता ही इसलिए है ताकि हमें उसकी खबर हो सके हमें अपने असल धाम की खबर हो सके कि हमारा सच्चा धाम कौन सा है और अगर बात करें कामकाज की उसमें भी उतार-चढ़ाव चलते ही रहते हैं कभी नुकसान हो जाता है तो कभी मुनाफा हो जाता है क्योंकि यह दोनों ही एक सिक्के के पहलू हैं व्यापार में कभी नुकसान हो जाता है कभी फायदा मिल जाता है तो अगर नुकसान हो गया है तो उसमें भी हमें चिंता नहीं करनी चाहिए बल्कि उस मालिक पर भरोसा रखना चाहिए क्योंकि वह जो भी करता है अच्छा ही करता है ठीक ही करता है और जो भी हो रहा है उसके हुक्म के अंदर हो रहा है उसके भाने के अंदर ही हो रहा है हमें उसके हुक्म को कबूल करना चाहिए ना कि उसके आगे यह सवाल करने चाहिए कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ ! क्योंकि अभी हम इतने योग्य नहीं बन पाए हैं कि हम उसकी रजा को समझ सके उसके भाने को समझ सके वह तो केवल वही समझ सकता है जिस पर वह अपनी कृपा करता है जिसे वह अपना भेद देता है और ऐसे महापुरुषों को संत महात्मा कहा जाता है कि वह संत महात्मा ही उसके हुकुम को समझ पाते हैं उसके भाने को समझ पाते हैं कि वह जो भी करता है हमारे लिए अच्छा ही करता है तो यहां पर सतगुरु एक बहुत ही प्यारी साखी फरमाते हैं साखी की शुरुआत में आप फरमाते हैं कि एक राजा था और उसका एक वजीर था तो महल में जब भी कोई बात होती थी जब भी कोई नुकसान होता था तो राजा का जो वजीर था वह हर बार एक ही बात कहा करता था कि जो भी हुआ अच्छा ! ही हुआ मालिक ने जो भी किया अच्छा ही किया,  तो राज दरबार के कुछ लोग वजीर से चिढ़ते थे तो और वह सोचते थे कि हर बार ही ऐसा कह देता है कि जो हुआ अच्छा हुआ तो ऐसे ही उस दरबार में कुछ लोग वजीर से परेशान हो गए थे और वह उसे उस राजमहल से निकालना चाहते थे लेकिन वह राजा का प्रिय वजीर था इसलिए उसे निकालने की किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही थी तो एक दिन राजा शिकार करने के लिए अपने वजीर के साथ जंगल में जाता है और शिकार करते करते वह थक जाता है और एक वृक्ष के नीचे जाकर बैठ जाता है और जब वह वहां बैठ कर आराम कर रहा होता है तो उसके हाथ की उंगली पर एक जहरीला कीड़ा डंक मार देता है जिसकी वजह से राजा को तुरंत अपनी उंगली काटनी पड़ती ताकि जहर शरीर के भीतर ना जा सके और उसकी जान बच जाए, तो ये सब देख कर वजीर उस समय फिर कहता है कि जो हुआ अच्छा हुआ जो हुआ मालिक की मर्जी से हुआ तो वजीर की यह बात सुनकर राजा को गुस्सा आ जाता है कि एक तो मुझे अपनी उंगली काटनी पड़ी और ये बोल रहा है कि जो हुआ अच्छा हुआ ! तो गुस्से में आकर वह वजीर को भला बुरा सुना देता है और उसे तुरंत लौट जाने के लिए कहता है तो उसके कुछ क्षणों बाद उस जंगल में जो कबीले के लोग रहते होते हैं तो राजा को देखकर उसे गिरफ्तार कर लेते है सभी उसके इर्द-गिर्द इकट्ठे हो जाते हैं ताकि वह राजा का शिकार कर सके और वह उसे पकड़कर अपने सरदार के पास ले जाते हैं ताकि उसकी बलि दी जा सके और सरदार को खुश किया जा सके जब वह उसे पकड़ कर अपने सरदार के पास ले जा रहे होते हैं तो वह राजा चिल्लाता है और कहता है कि मैं इस नगर का राजा हूं तुम मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते लेकिन वह राजा की एक नहीं सुनते और उसे ले जाकर अपने सरदार के सामने पेश कर देते हैं और उन कबीले वासियों का सरदार तुरंत ही उसकी बलि देने का हुक्म उन्हें दे देता है तो जब वह उसकी बलि देने लगते तो उन कबीले वासियों का जो सरदार होता है वह राजा के सभी अंग ध्यान से देखता है तो जब उसकी दृष्टि राजा की उंगली पर पड़ती है तो वह देखता है कि राजा की उंगली कटी हुई है और यह देख कर अपने लोगों को उसकी बलि देने से इंकार कर देता है क्योंकि जिस इंसान की बलि दी जाती है उसके सभी अंग पूरे होने चाहिए और अगर ऐसा ना हो तो बलि देने वाले को श्राप लगता है तो जब वह देखता है कि राजा की एक उंगली नहीं है तो वह उसे तुरंत नीचे उतारने का हुक्म देता है और राजा को छोड़ देता है तो वह अपनी जान बचाकर अपने राजमहल में पहुंच जाता है तब वह सारी बात अपने राज दरबार में अपने मंत्रियों से साझा करता है और अपने वजीर से भी सांझा करता है तो उसकी यह बात सुनकर वजीर उसी समय रो पड़ता है और राजा के पांव पकड़ लेता है कि आज आपने मेरी जान बचाई तो ये देखकर राजा उस समय बहुत हैरान होता है कि मैंने तुम्हारी जान कैसे बचाई जबकि मैंने तो अपनी जान बचाई है तुम तो वापस आ गए थे तो उसके बाद वजीर विस्तार से राजा को समझाता है कि जब आपकी उंगली पर एक जहरीले कीड़े ने डंक मारा तो तुरंत आपने अपनी उंगली काट दी ताकि जहर ना फैल सके और उस समय मैंने जो वचन किए वह आपको अच्छे नहीं लगे और आप मुझसे नाराज हो गए और गुस्से में आपने मुझे वापस जाने का आदेश दे दिया तो मैं वापस आ गया लेकिन सोचिए अगर ऐसा ना हुआ होता तो मैं भी आपके साथ उन कबीले वासियों की गिरफ्त में होता वह मुझे भी आपके साथ पकड़ कर ले जाते और मेरी बलि चढ़ा देते क्योंकि आपकी कटी उंगली देखकर वह आपको छोड़ देते लेकिन अगर मैं आपके साथ होता तो उन्होंने मेरी बलि चढ़ा देनी थी तो इसलिए मालिक जो भी करता है अच्छा ही करता है उसके किए गए हर कार्य में कोई ना कोई राज जरूर छिपा होता है जिसमें हमारी ही भलाई होती है जो हमें तब तो समझ में नहीं आता लेकिन जैसे जैसे समय बीतता है तो धीरे-धीरे हमें उसकी समझ आने लगती है तो हमें कभी भी उसके आगे किसी बात की शिकायत नहीं करनी चाहिए कि यह क्यों हुआ ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि वह जानीजान है वह सब जानता है वह अंतर्यामी हमें उसे बताने की जरूरत नहीं है कि उसने ऐसा क्यों किया क्योंकि वह जो भी करता है वह अच्छा ही करता है तो सतगुरु की यह साखी सुनकर उस व्यापारी को भी समझ आ जाती कि मालिक हमारे लिए जो भी करता है अच्छा ही करता है और वह समझ जाता है कि सतगुरु ने मुझे यह साखी क्यों सुनाई है क्योंकि अगर मेरा नुकसान हुआ है तो उसमें भी मेरी ही कोई भलाई छिपी होगी मेरा ही कोई फायदा होगा जो मुझे अब तो समझ में नहीं आ रहा लेकिन जैसे-जैसे समय बीतेगा वैसे ही धीरे-धीरे समझ में आने लगेगा कि मुझे वह नुकसान क्यों हुआ था और वह कहता है कि मालिक जो भी करता है अच्छा ही करता है तो साध संगत जी इस साखी से हमें भी यही प्रेरणा मिलनी चाहिए कि हमें कभी भी मालिक की तरफ उंगली नहीं उठानी चाहिए कभी भी उससे कोई शिकायत नहीं करनी चाहिए क्योंकि वह जो भी करता है वह उसके हुकुम से होता है उसकी मर्जी से होता है और जो उसके हुक्म से होता है वह कभी गलत नहीं हो सकता क्योंकि उसका किया हुआ केवल हमारे लिए ही नहीं इस पूरी सृष्टि के लिए बहुत बड़ी बात है इसलिए मालिक जो भी करता है अच्छा ही करता है वह कभी भी किसी का बुरा नहीं करता ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर करना, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके । 

By Sant Vachan


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