गुरु प्यारी साध संगत जी आज की साखी सतगुरु नानक देव जी के समय की है जब सतगुरु नानक की मुलाकात दुखी शाह से होती है तो साध संगत जी आयिए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
सतगुरु नानक भाई मरदाना जी के साथ सतघरा नाम के एक गांव में गए और वहां जाकर सतगुरु उस गांव के बाजार में एक दुकान के सामने भाई मरदाना जी के साथ एक वृक्ष के नीचे बैठ गए उस गांव में एक बहुत अमीर शाह रहता था जिसने काम करने के लिए बहुत कामे रखे हुए थे वह बहुत काम करता था और उसका पूरा दिन व्यापार में निकल जाता था और उसका ध्यान मालिक की तरफ बिल्कुल भी नहीं था उसे रोहानियत की कोई खबर नहीं थी और वह अपना हर काम एक मिनान से करता था और हर समय अपने व्यापार की चिंता में पड़ा रहता था और उसके पास धन की कोई कमी नहीं थी तो जब भाई मरदाना जी ने उसको देखा तो भाई मरदाना जी सतगुरु से कहने लगे कि ये व्यक्ति बहुत सुखी लगता है क्योंकि जब से हम यहां पर बैठे हैं इसने हमारी तरफ बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया और इसका पूरा का पूरा ध्यान अपने काम में है, दान करने की इसकी कोई इच्छा नहीं है यह संतो से विमुख लगता है और यह कभी भी किसी की सेवा नहीं करता दिखाई देता, दान पुण्य नहीं करता दिखाई देता लेकिन फिर भी यह बहुत सुखी मालूम दिखाई देता है तो भाई मरदाना जी के यह शब्द सुनने के बाद सतगुरु ने वचन किए पापों की रीति सदा दुख ही देती है इस संसार में जिनको ज्ञान प्राप्त है वही सुखी रहते हैं जैसे कि बिना सूर्य के कभी दिन नहीं हो सकता उसी प्रकार ज्ञान के बिना कभी किसी को सुख नहीं मिल सकता और यह कहने के बाद सतगुरु ने भाई मरदाना जी से कहा की है भाई मर्दाना अगर तुझे वह सुखी दिखाई पड़ता है तो जाओ जाकर उसका हाल पूछ लो तो सतगुरु की यह बात सुनकर भाई मर्दाना उस के पास गए और भाई मरदाना ने उसको कहा कि आप बहुत सुखी दिखाई पड़ते हैं आपने कौन से पुण्य किए हैं जिसके कारण आप इतना सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं और आपको यह सुख प्राप्त हुआ है और हर समय आप इसमें मगन रहते हैं तो उसने भाई मरदाना जी को एक फकीर के वस्त्रों में देखकर उन्हें प्रणाम किया और अपने अधिक दुखों के बारे में बताया कि इस संसार में मेरे जितना दुखी और कोई नहीं है मेरे दुखी होने के कुछ ऐसे कारण है जो बताए नहीं जा सकते तो आपको मैं कैसे बताऊं तो उसकी यह बात सुनकर भाई मरदाना जी ने कहा कि मेरे साथ एक पूर्ण संत है आप उनके साथ अपने दुख सांझा करें वह आपके दुखों को दूर कर देंगे तो भाई मरदाना जी की यह बात सुनकर उसने गुरु जी से मिलने की इच्छा जाहिर की और गुरु जी के पास जाकर उसने सतगुरु के आगे विनती की की हे परम पुरुष आप सुखों के दाते हो कृपया मेरे दुखों का निवारण भी कर दीजिए मेरे भी दुख दूर कर दीजिए मेरे घर में मेरी जो स्त्री है मेरा उसके साथ बहुत प्रेम था, रात दिन उसके साथ सुखविलास करता था और मैंने उसका साथ कभी भी नहीं छोड़ा लेकिन एक दिन वह बीमार हो गई उसकी तबीयत खराब हो गई और वह बहुत कमजोर हो गई और मुझे उसकी चिंता होने लगी तो मौत के डर के कारण मैंने उस समय बहुत दान पुण्य किया तो एक दिन मैं रोता हुआ उसके पास बैठा तो उसने मुझे रोता हुआ देख मुझसे कहा कि आप क्यों रो रहे हो आप मेरी चिंता क्यों कर रहे हो आप अपने आप को धनवान व्यक्ति जाने क्योंकि आपके पास किसी चीज की कमी नहीं है और अगर मैं मर भी गई तो आप किसी दूसरी स्त्री से शादी कर लेना और उसके साथ सुखविलास करना तो जैसे-जैसे समय बीतेगा आप उसके साथ खुश रहने लगोगे तब मुझे भी विसार दोगे और फिर आपको मेरी याद कभी नहीं आएगी तो ये सुनकर उसने कहा की है मेरी प्यारी सुनो ! तुम्हारे बगैर मुझे और कोई नहीं चाहिए अगर तुम जीवित रही तो तुम्हारे साथ सुखविलास करूंगा नहीं तो जीवन की आस छोड़ दूंगा क्योंकि तुम मुझे मेरे प्राणों के समान प्यारी हो और तुम्हारे बगैर मैं कैसे दूसरी स्त्री को प्यार कर सकता हूं और उसे अपने जीवन में जगह दे सकता हूं तो ये सुनकर स्त्री ने कहा की है पतिदेव अगर मैं जीवित रही तो आपकी यह बातों को सच मानूं और अगर मैं मर गई तो आपकी यह बातें मैं कैसे स्वीकार करूं क्योंकि अभी मैं जीवित हूं इसलिए आप मेरे साथ ऐसी बातें कर रहे हो लेकिन आपके मन के अंदर कुछ और चल रहा है तो उसने कहा कि मैंने अपनी स्त्री की ये दलील सुनकर अपने अंदर बहुत दुख माना और मैं उसकी यह बातें सेहन नहीं कर पाया तो उसके कुछ समय बाद मेरी स्त्री तंदुरुस्त हो गई और जब वह ठीक हो गई तो वह पराए मर्दों के साथ दुष्कर्म करने लग गई वह जिसको चाहती है उसको ही बुला लेती है और उसने तो लोग समाज की लाज भी छोड़ दी है और वह बहुत मर्दो के साथ दुष्कर्म करती है और मैं उसके ऐसे कर्म अपनी इन आंखों से रोजाना देखता हूं और ऐसा देखकर मैं अंदर ही अंदर बहुत दुखी होता हूं और हर समय चिंता में पड़ा रहता हूं और इसलिए मैं कहता हूं कि इस संसार में मेरे जैसा दुखी और कोई नहीं है क्योंकि मेरे पास मेरे इस दुख का उपाय कोई नहीं है इसलिए मैं इस समाज में लज्जित होकर रहता हूं तो ये सुनकर सतगुरु ने वचन किए कि पिछले जन्म में जैसे कर्म करके आए हो उसी के आधार पर इस जन्म में सुख और दुख भोग रहे हो जो पिछले जन्मों में किया है उसी का फल मिल रहा है दान पुण्य करने से सुख मिलता है पाप करने से दुख मिलता है ब्रह्मा आद से लेकर मच्छर तक जितने भी जीव हैं जैसे भी वह कर्म करते हैं वैसा ही फल पाते हैं जिसने जैसे भी कर्म किए हैं उनको भुगतने के बगैर छुटकारा नहीं मिल सकता इस बात को अच्छी तरह समझ लो कि जगत में जितने भी ज्ञानी पुरुष हुए हैं वह यह बात जानते हैं कि शरीर ने हमारे साथ सदा नहीं रहना, दुख सुख विनाश होते हैं इस संसार में आनंद और सुख दिखाई नहीं पड़ता जो ज्ञानी पुरुष है वह सदा ही आनंद में रहते हैं वह सुख और दुख को एक नजर से देखते हैं क्योंकि उन्हें इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता और वह सदा ही प्रभु की भक्ति में लीन रहते हैं और वह इस बात को मानकर चलते हैं कि सुख दुख करतार की मर्जी से आते हैं और वह करतार कभी भी किसी के साथ बुरा नहीं करता तो इसलिए जब भी हमारे ऊपर कोई संकट आए तो उसमें भी हमें करतार की मर्जी समझनी चाहिए उसे भी हमें हमारा भला हुआ होता ही समझना चाहिए तो जैसे भी पाप किए होंगे वह दूर हो जाएंगे मन में ऐसा मानकर चलें क्योंकि जब वेद दवाई पीसकर रोगी को देता है वह बहुत खुश होकर खाता है क्योंकि वह जानता है कि वह दवाई खाकर बिल्कुल ठीक हो जाएगा तो ऐसे ही जो प्रभु की भक्ति में लगे हुए हैं वह इस बात को मानकर चलते हैं कि दुख आने से पाप खत्म होते हैं और सुख आने से किए हुए पुण्य खत्म होते हैं पिछले जन्म में हमने जैसे भी कर्म किए हैं वह हमें भोगने पड़ते हैं क्योंकि बिना भोगे वह मिट नहीं सकते, सत्संगी इस तरह विचार करते हैं और दुख सुख में एकरस होकर चलते हैं क्योंकि वह समझते हैं कि करतार हमारा मित्र है वह जो भी करता है ठीक ही करता है और जगत में जो अज्ञानी पुरुष है वे दुख के समय मन में बहुत ममता मानते हैं और दुख को भोगते हैं क्योंकि भोगे बिना यहां से छुटकारा नहीं हो सकता एक तो वह शरीर पर दुख भोगते हैं और अंदर ही अंदर और दुखी होते रहते हैं तो कृपा निधान सतगुरु ने मुख्य से यह वचन कहे : शलोक मोहल्ला पहला "सेहसर दान दें इन्द्र रुआया, परस राम रोवे घर आया, अजेय सो रोवे भिख्या खाए, ऐसी दर्गह मिले सजाए" भग के हजार निशानों की सजा मिलने के कारण इन्द्र ने विर्लाप किया परसराम रोता हुआ अपने घर को आया अजय को जब दान किया हुआ गोहा खाना पड़ा तो उसने विर्लाप किया जब श्री रामचंद्र को देश निकाला मिला और जब सीता और लक्ष्मण जी उनसे बिछड़ गए तो वह भी रोए और जब दस सिरो वाला रावण सीता को लेकर गया था वह भी अपना सब कुछ गवा कर रोया, राजा जन्मेजा कुराहे पड़ जाने पर रोया क्योंकि वह एक जुर्म की खातिर गुनहगार बन गया था शेख अंतर्यामी और पीर भी विर्लाप करते हैं कि कहीं उन्हें अंतिम समय कष्ट ना झेलना पड़े अपने कानों को पड़वा कर राजे भी रोते हैं और घर-घर जाकर खैर मांगते हैं और जब कंजूस की एकत्र की हुई दौलत खुस जाती है तो वह भी रोता है जब किसी पंडित की विद्या निष्फल हो जाती है तो वह भी रोता है हे नानक ! सारा संसार ही दुखी है जो प्रभु के नाम पर भरोसा करता है वह इस संसार में सुख पाता है और कोई भी अमल किसी भी हिसाब में नहीं है तो भाई मरदाना जी ने यह सुनकर गुरु जी से कहा कि अब आप हमें इस सारे शब्द का अर्थ भी समझा दे तो उसके बाद सतगुरु नानक ने बड़े ही प्यारे तरीके से उन्हें अर्थ समझाएं और उन्हें दृष्टांत दिया कि किस तरह मनुष्य कितने यतनो के बाद धन कमाते हैं धन को इकट्ठा करते हैं और फिर वे धन जब खुस जाता है तो वह रोते हैं दुखी होते है जैसे खसम मरने पर नारी रोती है और उसके गुणों का उच्चारण करती है तो उसके बाद सतगुरु ने भाई मरदाना जी को कहा कि हे भाई मर्दाना इस सारे संसार को दुखी ही समझो क्योंकि जो कोई भी इस माया में पड़ा हुआ है वह इस भवसागर से पार नहीं जा सकता और दूसरी तरफ जो प्रभु के नाम का सिमरन करते हैं उसकी बंदगी करते हैं वह माया के इस संसार से मुक्ति पाते है धर्मराज भी उनके लेखे का कागज फाड़ देता है तो इस तरह के वचन सुनकर शाह ने सतगुरु के चरणों में अपना सिर रख दिया और कहा कि आप के वचन साबुन जैसे हैं जो मन की मैल को धो देते हैं अब आप मेरे साथ मेरे घर चलें और अपने चरण मेरे घर पर डालकर मुझ पर कृपा करें तो उसकी ये विनती सुनकर सतगुरु उसके साथ उसके घर चले गए तो उसने सतगुरु की बहुत सेवा की गुरु जी को एक अच्छे पलंग पर बिठाया और उसने अपनी स्त्री को गुरु जी के चरणों पर सिर रखने को कहा तो जब उसकी स्त्री ने सतगुरु को प्रणाम किया तो उसके मन को शांति देने के लिए सतगुरु ने उसको वचन किए कि पति चाहे दुबला पिंगला या फिर कोहडी भी क्यों ना हो, स्त्री उसको परमेश्वर समान ही जानती है और उसकी सेवा करती है और वह दूसरे पुरुषों के लिए अपने अंदर मोह भाव नहीं रखती वह नारी जो अपने पति को छोड़कर दूसरे पुरुषों की तरफ आकर्षित होती है उनके साथ भोग विलास करती है उसको यमदूत अंतिम समय खींच कर ले जाते हैं और उसे बहुत सजा देते हैं उस समय उसकी कोई भी पुकार नहीं सुनता उसकी जग में भी निंदिया होती है और आगे जाकर भी उसे दुख मिलता है पतिव्रता नारी जग में जस्स हासिल करती है और आगे जाकर दरगाह में भी उसे सुख मिलता है तो ये सुनकर यमों के डर के कारण उस स्त्री ने सतगुरु के चरणों पर माथा टेका और कहा कि हे संत जी मैंने बहुत पाप किए है कृपया मुझे बक्श ले तो कृपा निधान सतगुरु कहते हैं कि तुम्हारे पिछले किए गए सभी पाप क्षमा कर दिए गए है और अब से कोई भी ऐसा कर्म ना करो, पति की आज्ञा के अनुसार रहो और सुख देने वाले उस सच्चे नाम का सिमरन करो इस तरह सतगुरु ने उन्हें उपदेश देकर वहां पर रात व्यतीत की और उसके बाद सतगुरु संसार का भला करते हुए आगे चले गए ।
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By Sant Vachan
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