एक बार एक शिष्य अपने गुरु से सवाल करता है कि गुरु जी आप अक्सर फरमाते हैं कि हमें सब कुछ उस मालिक पर छोड़ देना चाहिए हमें किसी बात की भी चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि करने वाला वह मालिक है सब कुछ उसके हुक्म के अंदर हो रहा है
हम तो उसकी कठपुतलियां हैं लेकिन अगर हम कुछ करेंगे नहीं तो हम रोटी कहां से खाएंगे और यह बात मेरे मन में अक्सर घूमती रहती है कि किसी दिन घर बैठ कर देखता हूं काम पर नहीं जाता हूं और फिर देखता हूं कि वह मालिक मुझे कैसे रोटी देता है कैसे वह मेरा और मेरे परिवार वालों का पेट भरता है तो उसकी यह बात सुनकर गुरु जी कहते है कि करने वाला तो वह मालिक ही है हम तो उसकी कठपुतलियां हैं क्योंकि इस संसार में जो भी होता है उसके हुक्म के अंदर ही होता है उसके हुक्म के बाहर कुछ भी नहीं है एक पत्ता भी उसकी मर्जी के बिना नहीं हिल सकता और वह एक बहुत ही प्यारी कहानी अपने उस शिष्य को सुनाते हैं और सुनाने से पहले थोड़ा सा मुस्कुराते हैं और फिर कहते हैं कि एक बाजीगर था जो अक्सर दूसरों के घरों में जाकर मांगता था ताकि वह भी अपने परिवार का पेट भर सके तो एक दिन उसे एक फकीर मिले और उस फकीर ने उससे कुछ मालिक की बातें की उसे मालिक की महिमा के बारे में समझाया तो वह उस फकीर की बातें सुनकर बहुत प्रभावित हुआ तो उसके बाद उसने घर घर जाकर मांगना बंद कर दिया और उसने यह मन बना लिया कि आज घर बैठकर ही देखता हूं कि वह मालिक मुझे कैसे रोटी देता है और आज यह भी पक्का हो जाएगा कि उस को हमारी फिक्र है भी या नहीं ! तो वह घर बैठ जाता है और रात होने तक का इंतजार करता है और देखता रहता है कि आज मुझे रोटी कैसे मिलेगी कैसे वह खुदा वह मालिक मेरे घर आकर मेरा और मेरे परिवार वालों का पेट भरता है तो जब रात होने लगती है सूर्य छिपने लगता है वह छत पर चढ़कर टहल रहा होता है कि कहीं कोई मेरे घर की तरफ खाना लेकर आ रहा होगा, टहलते टहलते वह छत से गिर पड़ता है और जब वह गिर पड़ता है तो उसे बहुत ही गहरी चोट आती है तो आसपास के लोग उसके घर इकट्ठे हो जाते हैं तो जब लोग उसके घर इकट्ठे हो जाते हैं और देखते हैं कि आज तो यह कहीं मांगने भी नहीं गया इसके बच्चे भूखे बैठे हैं तो कोई अपने घर से खीर ले आता है कोई अपने घर से पूरियां उसके लिए ले आता है तो ऐसे ही आसपास के लोग उसके लिए कुछ ना कुछ उसके परिवार वालों के लिए ले आते हैं और यह सब देख कर उस बाजीगर की आंखों से खुशी के आंसू आ जाते हैं और वह मालिक की उस लीला को समझ लेता है की मालिक ने मुझे शत्त से क्यों गिराया क्योंकि वह मुझे समझाना चाहता था कि घर बैठने से तुम्हारा पेट नहीं भरेगा घर बैठकर तुम अपने परिवार का पालन पोषण नहीं कर सकते तुम्हें मेहनत करनी होगी और अगर घर बैठे बैठे ही खाना है तो ऐसी ही चोटें हर रोज खानी पड़ेगी क्योंकि इस संसार में मुफ्त तो कुछ भी नहीं मिलता कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ता ही है तो गुरु जी की ये साखी सुनकर वह शिष्य खिलखिला कर हंस पड़ता है और उसे गुरु जी का संदेश भी समझ में आ जाता और वह प्रणाम कर घर लौट जाता है ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर करना, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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