साध संगत जी, गुरु अर्जुन साहब समझाते है कि परमेश्वर नजर नहीं आता लेकिन गुरु तो नजर आता है और गुरु खुद परमेश्वर का रूप होता है गुरु को देख लिया तो समझ लो कि परमेश्वर को देख लिया, गुरु में हमें परमेश्वर की झलक दिखाई देगी, गुरु से प्रीति होगी तो परमेश्वर भी अपने आप ही प्रिय लगने लगेगा, प्रभु का प्यार जीतने के लिए गुरु के स्वरूप का ध्यान करना जरूरी है क्योंकि गुरु और परमेश्वर में कोई अंतर नहीं है ।
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