रूहानी साखी । रात को सोने से पहले भजन सिमरन करने वाले सत्संगी के साथ होता है ये चमत्कार ! जरूर सुने

 

साध संगत जी यह बातें एक सत्संगी बजुरग की है जब उनसे एक सज्जन वार्तालाप करते हुए कहते हैं कि मुझे नामदान लिए 25 वर्ष हो गए हैं और मैंने अपनी जवानी में नाम लिया था और उस समय भजन बंदगी मैंने इसलिए नहीं की क्योंकि वह समय मेरा दुनियावी मेहनत का था क्योंकि मुझे अपने परिवार को भी देखना था कारोबार भी करना था तो उस समय में केवल सत्संग सुना करता था और सेवा किया करता था लेकिन भजन बंदगी के लिए समय मुझे नहीं मिल पाता था और उस समय मेरा यह विचार था की मालिक की भजन बंदगी मैं अपने बुढ़ापे में जाकर करूंगा 

क्योंकि उस समय मुझ पर कारोबार का इतना बोझ था कि समय निकालना बहुत मुश्किल था तो इसीलिए मैंने भजन बंदगी की तरफ इतना ध्यान नहीं दिया था और आज 25 वर्ष हो गए हैं और जैसे-जैसे मेरा अंतिम समय नजदीक आता मुझे दिखाई दे रहा है वैसे ही मेरे अंदर रूहानियत की तड़प पैदा हो रही है अब मुझे लग रहा है कि मुझे केवल भजन बंदगी पर ध्यान देना चाहिए और मैं बहुत कोशिश करता हूं की भजन पर बैठूं लेकिन मुझसे नहीं हो पाता क्योंकि मेरा शरीर अब इसकी इजाजत नहीं देता जब भी बैठने की कोशिश करता हूं तो कहीं ना कहीं दर्द होने लगता है तो मुझे इस बात का एहसास हुआ कि अगर मैंने पहले से ही थोड़ा समय भी अगर भजन बंदगी को दिया होता तो आज मुझे इतनी तकलीफ नहीं होनी थी मुझे बैठक करने में इतनी परेशानी नहीं होनी थी क्योंकि जिनको इस चीज का अभ्यास हो जाता है जो जवानी से ही इस मार्ग पर चल पड़ते हैं तो बुढ़ापे तक आते-आते उनका अभ्यास इतना पक जाता है कि उन्हें कोई परेशानी नहीं होती वह एक पल में ऊपर और दूसरे पल में इस दुनिया में आते जाते रहते हैं तो मुझे भी लगा कि मुझे भी अपनी जवानी के समय अपने सतगुरु का हुक्म मान लेना चाहिए था लेकिन मैंने अपने मन के पीछे लग कर उस समय दुनिया के पदार्थ इकट्ठे किए, धन दौलत इकट्ठे की और जिसका पछतावा मुझे आज हो रहा है तो अब मुझसे बैठा नहीं जाता बहुत तकलीफ होती है और आंखें बंद करता हूं तो अंदर अंधेरा ही अंधेरा दिखाई पड़ता है और बैठे बैठे मुझे नींद भी आ जाती है तो कृपया मेरा मार्गदर्शन करें मुझे बताएं कि अब मैं क्या करूं ? कोई ऐसा तरीका मुझे बताएं कोई ऐसी युक्ति मुझे बताएं जिससे कि मेरी बात बन जाए, तो साध संगत जी वह बुजुर्ग सतगुरु महाराज जी के समय के थे तो उन्होंने बहुत ही अच्छे तरीके से उन्हें समझाया और उन्होंने वही बातें उनको कहीं जो किसी समय सतगुरु ने अपने सत्संग में फरमाई थी आप जी कहते हैं कि एक बार ऐसा ही सवाल जब मुझे नाम मिला था तो उस समय एक सत्संगी ने किया था था कि सतगुरु भजन के अलावा कोई ऐसा आसान तरीका बताएं जिससे कि हमारा मालिक से मिलाप हो सके हमें अंदर मालिक के दर्शन हो सके तो उस समय सद्गुरु ने भी बहुत अच्छा जवाब दिया था और मैं भी वहां पर मौजूद था तो मुझे भी सतगुरु के अनमोल वचन सुनने को मिले सतगुरु ने कहा था कि मालिक की भजन बंदगी के लिए सबसे अच्छा समय अमृत वेला है क्योंकि उस समय किसी तरह का कोई शोर नहीं होता, सभी सोए हुए होते हैं प्रकृति भी शांत होती है तो मालिक की धुन अमृत वेले में हमें आसानी से सुनाई पड़ जाती है और अमृत वेले में उठने के लिए रात्रि सोने का रूटीन भी ठीक करने की जरुरत है, सतगुरु ने नींद के विषय में फ़रमाया था “गुरुमुखों के लिए 4 घंटे की नींद काफी होती है, 6 घंटे वो सोये जो भारी भरकम काम करता हो, तो सतगुरु के इन वचनों के हिसाब से 6 घंटे आखिरी सीमा है, बाकी अपने शरीर, परिश्रम और उम्र के हिसाब से हम अपने लिए ठीक समय निर्धारित कर सकते हैं औसतन 5 घंटे की नींद पर्याप्त होती है, इससे ज्यादा सोना समय की बर्बादी है, लेकिन नींद का समय हमें धीरे-धीरे अडजस्ट करना है,  5 घंटे के हिसाब से रात्रि 11 बजे सोकर भी 4 बजे उठा जा सकता है, रात्रि सोने से पहले सतगुरु के चरणों में ये प्रार्थना करके सोयें कि “हे सच्चे पातशाह ! हमें अमृत वेले की दात बख्शना” और 10-15 मिनट का सिमरन करके सोना चाहिए यह उनके लिए बहुत जरूरी है जो भजन बंदगी को पूरा समय नहीं दे पाते तो वह सोने से पहले सतगुरु का दिया हुआ सिमरन जरूर करें ताकि नींद आने तक स्वांसों में नाम चलता रहे, इससे एक बहुत बड़ा फायदा ये होता है कि सारी रात सिमरन चलता ही रहता है, नींद में करवट लेने पर पर भी सिमरन का पता चलता है, यह अपने आप में एक महान उपलब्धि है, क्योंकि नींद मौत की तरह होती है अगर नींद में सिमरन चल सकता है, तो इस बात की अच्छी सम्भावना है कि आखिरी नींद अर्थात मौत के समय भी सिमरन चलता रहेगा, ये सब केवल और केवल सतगुरु की अनंत कृपा और दया से ही संभव होता है और नींद आने तक ध्यान दोनों आंखों के बीच में लगा कर लेटे लेटे सिमरन करते रहें, इससे सिमरन हमारे अवचेतन में उतर जाता है और निरंतर हमारे अंदर चलता रहता है और इसका फायदा हमें यह होता है कि हमें अपनी तरफ से सिमरन करने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि सिमरन अवचेतन मन में उतर जाता है इसलिए वह पीछे अपने आप ही चलता रहता है और जब हम भजन पर बैठते हैं तब हमें पता चलता है कि सिमरन पीछे अपने आप चल रहा है और हमारी बात भी बन जाती है साध संगत जी यह वचन आप जी ने उस वार्तालाप में सांझा किए तो हमें भी इससे यही सीख मिलती है कि भले ही हम मालिक की भजन बंदगी कम करते हो लेकिन हम रात को सोने से पहले अगर 15 से 20 मिनट सिमरन का रूटीन बना लेते हैं तो हमारी वह कमी भी पूरी हो जाती है और हमारे मन में सिमरन अपने आप ही चलने लगता है जिससे कि हमारे अंदर शांति बनी रहती है संतोष बना रहता है ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर करना, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके । 

By Sant Vachan


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