2.30 घंटे सिमरन करने वाले सत्संगी का दिमाग । The brain of meditationer.

 

साध संगत जी आज का विषय है भजन सिमरन करने वाले सत्संगी का दिमाग एक आम इंसान के दिमाग से कितना अलग होता है जिसके बारे में जत्थेदार जी ने एक साखी के माध्यम से संगत को समझाया था जब वह सेवा कर कर आई संगत को साखी सुना रहे थे तब उन्होंने ढाई घंटे सिमरन करने वाले सत्संगी के बारे में विस्तारपूर्वक समझाया था कि जो सत्संगी रोजाना बिना नागा ढाई घंटे सिमरन करता है

अपने गुरु के उपदेश को आगे रखकर चलता है उस सत्संगी के अंदर बहुत सारी तब्दीलियां देखने को मिलती है सबसे पहली तब्दीली तो उसके अंदर ये आती है कि जब वह नाम की बख्शीश के बाद भजन बंदगी पर बैठना शुरु करता है तो उसके अंदर से जितने भी विकार होते हैं वह धीरे-धीरे उससे दूर होने लगते है जब हम सिमरन करते हैं और हमारी सुरत ऊपर चढ़ती है तो हमारा काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार से छुटकारा होने लगता है और जैसे-जैसे हम भजन बंदगी करते जाते हैं हमारे अंदर और भी बहुत तब्दीलियां होनी शुरू हो जाती है और उन्होंने फरमाया कि हमारे जत्थे में एक बहन जी है जिन्हें अक्सर लोग एक पागल औरत कहकर उसका अपमान करते थे लेकिन उस बहन ने गुरुघर की सेवा नहीं छोड़ी जब भी वह सेवा करती थी तो अपने मुंह में कुछ ना कुछ बोलती रहती जिसके कारण सभी उसको पागल कहने लग गए थे जिसके कारण उसकी शादी भी नहीं हो रही थी तो जब उसने नाम लेने की सोची कि मुझे भी नाम लेना चाहिए तो जब उसने इसकी बात मुझसे की कि मैं भी नाम लेना चाहती हूं तो उसके मुख्य से यह बात सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई क्योंकि मेरा उसके साथ बहुत लगाव था क्योंकि गुरु घर में कोई भी उसके साथ बात करना पसंद नहीं करता था और सभी उसे पागल कहते थे लेकिन मेरे अंदर उसके प्रति बहुत दया थी क्योंकि सभी जीव मालिक के है वह मालिक किसी को बहुत ज्यादा बुद्धि दे देता है और किसी को वह पागल बना देता है लेकिन वाणी में फरमाया गया है "ना कोई मूर्ख ना कोई से सियाना सब ते वरते तेरा भाना" कि यहां पर कोई भी मूर्ख नहीं है और कोई भी ज्यादा बुद्धि वाला नहीं है क्योंकि यह सब उस मालिक के हुक्म के अनुसार ही हो रहा है जिसको वह अधिक बुद्धि देता है वह समझदार कहलाता है जिस पर उसकी यह कृपा नहीं होती वह मूर्ख कहलाता है तो ये सब उसके हुक्म के अंदर हो रहा है तो मेरे अंदर उस बहन के प्रति बहुत दया थी तो जब मैंने इसके बारे में अपनी कमेटी से बात की कि हमारे जत्थे कि यह बहन भी नाम लेना चाहती है तो उन्होंने मना कर दिया कि नहीं इन्हें नाम नहीं मिल सकता क्योंकि इनकी दिमागी हालत ठीक नहीं है तो उन्होंने कहा कि यह बहन गुरुघर आती है इतनी सेवा भी करती है सत्संग भी सुनती है तो इन्हें नाम क्यों नहीं मिल सकता तो उन्होंने कहा कि हम इनका नाम लिस्ट में नहीं लिख सकते तो आप जी कहते हैं कि मैंने किसी भी तरह करके उस बहन को नाम दिला दिया और उसको रोजाना भजन बंदगी करने के लिए कहा कि तुम्हें रोजाना भजन बंदगी पर बैठना है और जो नाम तुम्हें बख्शा गया है उसका उच्चारण करना है तो साध संगत जी आप जी कहते हैं कि उस बहन ने वैसे ही किया जैसे मैंने उसको कहा था उसने बिना नागा भजन बंदगी करनी शुरू की और आप जी यहां पर एक बात कहते हैं कि बुद्धिमान व्यक्ति को अपनी बात समझाना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि बुद्धिमान व्यक्ति किसी भी बात को ऐसे ही नहीं मान लेता पहले उसको अपने तराजू पर तराशता है और अगर किसी की कही गई बात उसके मुताबिक सही हो तब जाकर वे उस बात को मानता है नहीं तो नहीं मानता लेकिन जो कम बुद्धि वाले है उनमें यह गुण है कि अगर उन्हें कोई प्यार से समझाएं तो वे उसकी बात मान लेते है और ज्यादा वाद विवाद भी नहीं करते जैसे उनको बताया जाता है वह वैसा ही करने लगते हैं लेकिन बुद्धिमान व्यक्ति सवाल करते हैं तो आप जी कहते हैं कि उस बहन ने मेरी यह बात मान कर भजन सिमरन को पूरा समय देना शुरू किया तो उसके बाद आप जी ने कहा कि ऐसे ही 4 महीने बीत गए और इस समय के दौरान उस बहन में सुधार आना शुरू हुआ जैसा वह पहले करती थी जैसा व्यवहार वह पहले करती थी अब उसके व्यवहार में कुछ तब्दीली दिखाई देने लगी ऐसे लग रहा था कि उसकी हालत अब ठीक हो रही है जैसे वह पहले मुंह में कुछ ना कुछ बोलती रहती थी अब ऐसा नहीं था एकदम शांत सी हो गई थी और आप जी कहते हैं कि आज हम में से उस बहन के जितना समझदार और कोई नहीं होगा क्योंकि अब उसे जितना ज्ञान हो चुका है उतना ज्ञान अब हमें भी नहीं है जितना सफर उसने तय कर लिया है हम तो उसके आसपास भी नहीं है और यह बातें मैं ऐसे ही नहीं बोल रहा इस लिए बोल रहा हूं क्योंकि उसने यह बातें मुझे खुद बताई है जब वह मुझे बताने लगी तभी मैं समझ गया था कि इस बहन की बात बन गई है और अक्सर ऐसा होता भी है जो सीधे-साधे लोग होते हैं उनकी बात जल्दी बन जाती है और जो ज्यादा बुद्धि वाले होते है वह अपनी बुद्धि पर ही अटके रहते है उससे ऊपर उठ ही नहीं पाते तो आप जी कहते है कि अब उसकी दिमागी हालत भी ठीक हो गई है बल्कि वह हमसे भी ज्यादा समझदार हो चुकी है और वह बीबी कहीं और नहीं इस जत्थे में ही बैठी है और मेरे यह वचन सुन रही है लेकिन उन्होंने उस बीवी का नाम नहीं बताया और यह कहते हुए आप जी कहते हैं कि जो सत्संगी भजन सिमरन को पूरा समय देता है उसकी दिमागी हालत तो ठीक होती ही है बलिक उसका दिमाग दिन-ब-दिन तेज होता जाता है वह व्यक्ति समझदार बनता जाता है और गहराई में जाना शुरु करता है और उस व्यक्ति के अंदर नाम धुन हर पल गूंजती रहती है जिससे कि उसके अंदर शांति बनी रहती है भले ही बाहर कितना भी शोर हो रहा हो कितनी आवाजें क्यों ना आ रही हो लेकिन उस व्यक्ति को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उसका दिमाग एक ऐसी स्थिति में चला जाता है जहां पर शांति ही शांति बनी रहती है और नाम धुन गूंजती रहती है और उस व्यक्ति के दिमाग के अंदर ज्यादा विचार भी नहीं आते और यह बात तो अब विज्ञान ने भी सिद्ध कर दी है कि जो व्यक्ति ध्यान करता है उस व्यक्ति का दिमाग एक आम आदमी से अलग होता है क्योंकि एक आम आदमी के दिमाग के अंदर दिन में लाखों-करोड़ों विचार आते हैं लेकिन जो ध्यान करने वाले व्यक्ति है जिन्होंने ध्यान की गहराई को जाना है उनमें विचारों की मात्रा इतनी कम हो जाती है कि विचार ना मात्र रह जाते है और उनकी देखने सुनने और सूघने की क्षमता दूसरों से बहुत ज्यादा होती है तो भजन सिमरन हमें कितना फायदा देता है यह हम भी नहीं जानते अगर हमें भजन सिमरन के फायदे पता चलने शुरू हो जाए तो हम सारा दिन भजन सिमरन पर ही बैठे रहे इसीलिए तो अक्सर फरमाए जाता है कि भाई भजन सिमरन करो आपको जो भी मिलेगा भजन बंदगी के जरिए मिलेगा आपको जो भी हासिल होगा अंदर ही हासिल होगा और आप जी कहते है कि भजन सिमरन करने से हमारी आत्मा को तो ताकत मिलती ही है उसके साथ हमारी देह भी ऊर्जावान होती है जागरूक होती है और हम हर कार्य में जल्दी ही निपुण हो जाते है क्योंकि ध्यान एक ऐसी अवस्था है जहां पर व्यक्ति अपने आप को एक जगह पर केंद्रित कर लेता है और जो ध्यान करते है उनका मन उनके वश में रहता है वह अपने मन के पीछे नहीं लगते बल्कि अपने मन को अपने पीछे लगाकर रखते है जैसे कि हम लोग हैं अगर हमारा मन करता है तो काम कर लेते हैं और अगर नहीं करता तो नहीं करते लेकिन उनका हिसाब ऐसे नहीं होता वह अपने मन के पीछे लग कर किसी काम को छोड़ते नहीं है वह जिस काम को पकड़ लेते हैं उसको पूरा कर कर ही छोड़ते है और पूरा ध्यान उस काम में लगा देते हैं और सतगुरु अक्सर अपने सत्संग में फरमाया करते थे कि हमें ग्रस्त जीवन में रहते हुए भजन बंदगी करनी है परिवार को भी देखना है काम भी करना है लेकिन इस संसार में रहते हुए माया से रहित रहना है और सुरमें बनकर रहना है ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके । 

By Sant Vachan


Post a Comment

0 Comments