एक संत भिक्षा में मिले अन्न से अपना जीवन चला रहे थे, वे रोज अलग-अलग गांवों में जाकर भिक्षा मांगते थे, एक दिन वे गांव के बड़े सेठ के यहां भिक्षा मांगने पहुंचे, सेठ ने संत को थोड़ा अनाज दिया और बोला कि गुरुजी मैं एक प्रश्न पूछना चाहता हूं, संत ने सेठ से अनाज लिया और कहा कि ठीक है पूछो, सेठ ने कहा कि मैं ये जानना चाहता हूं कि लोग लड़ाई-झगड़ा क्यों करते हैं ? गुस्सा क्यों करते है ?
संत कुछ देर चुप रहे और फिर बोले कि मैं यहां भिक्षा लेने आया हूं, तुम्हारे मूर्खतापूर्ण सवालों के जवाब देने नहीं आया, ये बात सुनते ही सेठ एकदम क्रोधित हो गया, उसने खुद पे नियंत्रण खो दिया और बोला कि तू कैसा संत है, मैंने दान दिया और तू मुझे ऐसा बोल रहा है, सेठ ने गुस्से में संत को खूब बातें सुनाई, संत चुपचाप सुन रहे थे, उन्होंने एक भी बार पलट कर जवाब नहीं दिया, कुछ देर बाद सेठ का गुस्सा शांत हो गया, तब संत ने उससे कहा कि भाई जैसे ही मैंने तुम्हारी पसंद से विपरीत बातें बोलीं, तुम्हें गुस्सा आ गया, गुस्से में तुम मुझ पर चिल्लाने लगे, अगर उसी समय मैं भी क्रोधित हो जाता तो हमारे बीच बड़ा झगड़ा हो जाता, क्रोध ही हर झगड़े का मूल कारण है और शांति हर विवाद को खत्म कर सकती है, अगर हम क्रोध ही नहीं करेंगे तो कभी भी वाद-विवाद नहीं होगा, जीवन में सुख-शांति चाहते हैं तो क्रोध को नियंत्रित करना सीखें, क्रोध को काबू करने के लिए रोज़ाना ध्यान करें ।
शिक्षा : इस प्रसंग का सार यह है कि घर-परिवार हो या कार्यस्थल हमें शांत रहना चाहिए, अगर कोई गुस्सा कर भी रहा है तो हमें उसका जवाब शांति से देना चाहिए, जैसे ही हमने शांति को छोड़ा और क्रोध किया तो छोटी सी बात भी बड़ा नुकसान कर सकती है ।
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By Sant Vachan
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