जो सत्संगी शुक्र शुक्र करकर अपना जीवन व्यतीत करता है सतगुरु उस सत्संगी की झोलियां खुशियों से भर देते है क्योंकि सतगुरु फरमाया करते थे जो सत्संगी यहां पर रूखी सूखी खाकर अपना गुज़ारा करता है, थोड़ी खाता है, रूखी-सूखी खाता है, भजन करता है, सुमिरन करता है, ये सारा राज उसका है, ये सारी कायनात उसकी है क्योंकि उसकी ऐसी भक्ति से प्रसन्न होकर वह मालिक उसके अंग संग रहने लग जाता है ।
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