साध संगत जी ये साखी सतगुरु नानक देव जी के समय की है जब सतगुरु नानक भाई मरदाना जी के साथ ऐमनाबाद की धरती पर गए और वहां जाकर सतगुरु ने आने वाले समय का ज़िक्र कुछ ऐसे किया था तो आइए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी जब सतगुरु नानक भाई मरदाना जी के साथ ऐमनाबाद की धरती पर जा पहुंचे तो वहां पर सद्गुरु मालिक के नाम का सिमरन करते हुए जा रहे थे तो उस समय उस नगर का राजा एक पठान था और जिस नगर में सद्गुरु गए थे उस नगर में उस दिन बहुत विवाह शादियां हो रही थी और नगर के सभी लोग बहुत प्रसन्न थे और खुशियां मना रहे थे सभी लोगों ने अपने घरों को सजाया हुआ था और खूब गहने तन पर डाल रखे थे और बड़ा समारोह हो रहा था नाच गाने चल रहे थे और वहां के सभी लोग सांसारिक काम काजो में पूरी तरह व्यस्त थे साध संगत जी जिस तरह आज विवाह शादियों में खूब नाच गाने होते हैं खूब महफिलें लगती है और विवाह शादियों के नाम पर एक बड़े पैमाने पर अहंकार का प्रकटावा किया जाता है और आज ऐसा माहौल बन गया है कि हम जगत के ईश्वर परमपिता परमेश्वर को भूलते जा रहे हैं और संसार की इस माया में गहन डूबते जा रहे हैं तो साध संगत जी उस समय भी मद बुद्धि वाले लोग संत और फकीरों की महिमा नहीं जान सके और उनको देखकर उनका मजाक उड़ाते थे और वह अहंकार के नशे में अंधे होते थे और जगत की इस माया में बुरी तरह फंसे हुए थे, शराब का सेवन कर इधर-उधर घूम रहे थे और दूसरों को नुकसान पहुंचा रहे थे वह जहां पर भी सुंदर स्त्रियों को देखते थे उनके आसपास ही अपने घोड़ों को लेकर मंडराते रहते, तो जगत के साईं सतगुरु नानक वहां पर बैठे यह सारा तमाशा देख रहे थे लेकिन उस नगर में से किसी ने भी सतगुरु की खबर नहीं ली उनकी तरफ ध्यान भी नहीं दिया तो सतगुरु के साथ जो साधु संत आए हुए थे उनका भूख के कारण बुरा हाल हो रहा था तो ऐसे ही पूरा दिन बीत गया लेकिन नगर का कोई भी व्यक्ति सतगुरु की खबर लेने नहीं आया तो वह साधु जो सतगुरु के साथ आए हुए थे वह नगर में गए ताकि कुछ खाने के लिए ले सकें तो भाई मरदाना भी उनके साथ चले गए तो जब भाई मरदाना जाने लगे तो सतगुरु नानक ने भाई मर्दाना को कहा की हे मरदाने ! नगर में जा ही रहे हो तो मेरा एक काम करना, भाई लालो को अपने साथ ले आना तो जब भाई मर्दाना भी उनके साथ चले गए तो वह नगर में जाकर घर घर मांगने लगे तो नगर में उनकी बात किसी ने नहीं सुनी क्योंकि सभी अपने अपने कामों में व्यस्त थे और कुछ लोगों ने वहां पर शराब पी रखी थी और उन्होंने महात्माओं को उल्टा सीधा बोल दिया तो उसके बाद भाई मरदाना और उनके साथ जो संत आए हुए थे वह एक घर में गए और वहां जाकर उन्होंने खाने की मांग की लेकिन उस घर से भी किसी ने जवाब नहीं दिया लेकिन कुछ देर बाद एक शराबी उस घर से बाहर आया और उसने भाई मरदाना जी को धक्का दे दिया और उसने भाई मरदाना जी को धक्का इतनी जोर से दिया कि भाई मर्दाना नीचे गिर पड़े तो जब भाई मर्दाना नीचे गिर पड़े तो उन्हें बहुत तकलीफ हुई तो भाई मरदाना जी तुरंत उस नगर को छोड़कर गुरुजी की तरफ चल पड़े और साथ ही भाई लालो जी को भी साथ ले लिया और वहां पर पहुंच गए जहां पर गुरु जी बैठे हुए थे तो भाई लालो सतगुरु के सामने हाजिर हुए तो भाई लालो अपने साथ कुछ दाने लेकर आए थे तो उन्होंने वह दाने सतगुरु के आगे रख दिए और सतगुरु के चरणों पर माथा टेका और सतगुरु से विनती की कि हे दीनदयाल ! आप जी के दर्शन किए हुए बहुत समय हो गया था तो सतगुरु ने भाई लालो का हालचाल पूछा और उसे अपने साथ बिठा लिया और सतगुरु ने उन महात्माओं को अपनी तरफ आते हुए देखा जो खाली हाथ वापस सतगुरु के पास लौट आए थे तो सतगुरु ने उनसे पूछा कि क्या हुआ ? आप खाली हाथ वापस क्यों आ गए ? तो उसके बाद उन्होंने सतगुरु को सब कुछ बता दिया कि हमारे साथ नगर में क्या-क्या हुआ और भाई मरदाना जी के यहां पर चोट लगी थी वह भी सतगुरु को दिखाई और कहने लगे कि इस नगर में बहुत नीच लोग रहते हैं इनके अंदर संतो के प्रति कोई भी सेवा भावना नहीं है सेवा करने की जो रीति रही है उससे उल्ट चलकर ये लोग संत महात्माओं को दुख देते हैं तो ये सुनकर सतगुरु के मन में रोस पैदा हुआ और भाई लालो भी वहां पर बैठे हुए थे तो सतगुरु ने उनकी तरफ देख कर कहा मद बुद्धि वाले पठानों ने उल्टे सीधे काम किए है ऐसे लोगों को करतार अंतिम समय दुख देता है और सतगुरु ने उस समय शब्द का उच्चारण किया : तिलंग मोहल्ला पहला "जैसी मे आवे खसम की वाणी तेसडा करी ज्ञान वे लालो पाप की यंज ले काबलो ढाया योरी मंगे दान वे लालो" जिसका अर्थ है हे भाई ! लालो जैसे मुझे करतार की बानी आती है वैसे ही मैं उच्चारण करता हूं गुनाहों की सेना लेकर बाबर काबुल से मारो मारो करता हुआ आ रहा है कलयुग में शर्म और धर्म दोनों अलग हो गए हैं और झूठ आगू हुआ पड़ा है, काजी और ब्राह्मणों का काम धंधा खत्म हो गया है अब विवाह शादियों की रस्म शैतान ही पड़ता है मुसलमान औरतें कुरान पड़ती है और दुख में अल्लाह-अल्लाह पुकारती है और हिंदू औरतों का भी यही हाल है खून के सोहेलो का गायन होता है और लहू का केसर छिड़का जाता है और फिर सतगुरु ने भाई लालो की तरफ देख कर कहा कि तू अपने मन में ऐसा मत सोच कि मैंने गुस्से में यह वचन कह कर श्राप दिया है मैंने तो करतार की बात मानी है जिस तरह वाहेगुरु का हुक्म हुआ है वैसे ही कहा है यहां पर लोगों ने जैसे पाप किए हैं उन्होंने काबुल में देह को धारण कर लिया है जो भी पाप किए हैं उसका भुगतान तो करना पड़ेगा, भुगतान किए बिना इन पापों का खात्मा नहीं होगा मुगल काल रूप धारण कर कर आएगा और ताकत के साथ मांगेगा भाव लूटेगा और कलयुग में शर्म और धर्म दोनों की हानि होगी अमीर और वजीर भागे फिरेंगे और कूढ़ का वरतारा होने लगेगा फिर जो काजी और ब्राह्मण होंगे इनकी बात कोई नहीं मानेगा और शैतान आकर निकाह पड़ेगा बाबर के फौजदार सुंदर स्त्रियों को देखकर ललचा जाएंगे और जबरदस्ती उठाकर उनके साथ भोग विलास करेंगे मुसलमान औरतें कुरान पड़ेगी और अल्लाह के नाम का सिमरन करेंगी और उन पर भारी कष्ट आएगा, गरीबों को मारा जाएगा यह पाप जो अब इस नगर में हो रहा है इन लोगों की हालत भी ऐसी होगी और फिर यह कहेंगे कि हे खुदा हम क्या करें ! तो सतगुरु जब यह प्रवचन कर रहे थे तो भाई लालो सतगुरु के सामने बैठा था और भाई लालो ने सतगुरु से कहा कि हे गुरु जी आप विस्तार पूर्वक हमें समझाएं कि आगे क्या होगा मुगलों का राज अब और कितनी देर तक रहेगा वह कितनी देर तक ऐसे ही हमें सजा देते रहेंगे और यहां पर जितने भी पठान है जो हर समय नशे में खोए रहते हैं क्या इनको भी सजा मिलेगी तो भाई लालो जी के यह वचन सुनकर सतगुरु ने सख्त लफ्जो में फरमाया कि यहां पर जितने भी अमीर पठान है सभी का सफाया होगा बाबर की सेना सभी का सफाया कर देगी और सतगुरु ने शब्द उच्चारण किया श्री मुख वाक "साहिब के गुण नानक गावे, मास्पुरी विच आख मसोला, जिन उपाई रंग रवाई, बैठा वेखे वक इकेला, सच्चा सो साहिब सच तपावस, सचडा नाओ करे म्सोला, कायां कपड़ टुक टुक होसी, हिंदुस्तान स्मालसी बोला, आवन अठत्रे जान स्तानवे, होर भी उठसी मर्द का चेला, सच की बानी नानक आखे, सच सुनाए सी सच की वेला" जिसका अर्थ है की उस नगर में नानक प्रभु के गुण गा रहे हैं जिसने जीव को बनाया है और उसे भोग विलासों में लगाया है वह करतार अपनी इस सृष्टि को अकेला बैठ कर देख रहा है वह स्वामी सच्चा है उसका फैसला सच्चा है वह सच्ची इंसाफ वाला हुक्म जारी करता है और सतगुरु कहते है शरीर के कपड़े लीरो लीर कर दिए जाएंगे तब हिंदुस्तान मेरे वचनों को याद करेगा, बाबर 1578 को विक्रमी में आएगा और 1797 में विक्रमी में मुगलों का राज खत्म हो जाएगा और सतगुरु ने कहा नानक सच के वचनों का उच्चारण करता है और ठीक समय पर सच सुनाता है सतगुरु नानक पूरन पुर्ख स्वामी के गुण गाते हैं और कहते है इन जालिम पठानों पर भारी कष्ट आएंगे इनकी आत्मा और इनकी देह दोनों अलग-अलग हो जाएंगी भाव ये मर जाएंगे यहां पर मास ही मास बिखर जाएगा और सतगुरु नानक फरमाते हैं कि जिस स्वामी ने इस पूरे जगत की रचना की है यह पठान उसको भूल कर विषय विकारों में पड़ गए हैं और उसे भूल गए हैं यह इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि वह प्रभु न्यारा होकर अपने इस खेल का तमाशा देख रहा है वह सच्चा साहिब है और उसका इंसाफ भी सच्चा है वह सच्चा साहिब धर्म के अनुसार ही सब कुछ कर रहा है इस शरीर पर पहने कपड़े लीरो-लीर हो जाएंगे जिस तरह का पाप किसी ने किया है वह उसी तरह का दुख भोगेगा, धरती पर लहू बिखर जाएगा हिंदुस्तान पर आकर वह राज संभाल लेगा वह 1578 को हिंदुस्तान में आएगा और 1797 में उसका सफाया हो जाएगा वह 219 साल तक राज करेगा और उसके साथ कई मुगल बादशाह भी राज करेंगे और सतगुरु नानक ने कहा जब हम फिर से मनुष्य जामे में अवतार धारण करेंगे तो खालसा हमारा चेला होएगा और जब धीरे-धीरे मुगलों को लूट लिया जाएगा तो तुरकों की ताकत कमजोर हो जाएगी अगर कलयुग में लोग आपस में मिलकर रहेंगे तो तरक्की करेंगे और सुखी रहेंगे अगर लड़ाई करेंगे तो दुख मिलेगा अब यह सारे नगर का विनाश हो जाएगा यहां पर बंदूक किरपने चलेंगी और फिर इस नगर का सफाया कर दिया जाएगा तो सतगुरु ने ऐसे सारा प्रसंग उनको सुनाया तो वहां पर एक विद्वान ब्राह्मण भी सतगुरु की बातें सुन रहा था उसने देखा यह जो प्रवचन कर रहे हैं यह अवश्य ही कोई महान संत हैं जिन्होंने गजब का शब्द उच्चारण किया है तो वह अपने घर गया और पकवान बनाकर ले आया और सतगुरु के आगे रखकर कहता है और अरदास करता है कि ये पकवान आप इन संतो को दे दीजिए ताकि इनकी भूख मिट सके और कहां कि आप एक महान संत हो आपने जो वचन कहे हैं कि ये नगर लूट लिया जाएगा इस नगर का सफाया हो जाएगा पठानों का अंत हो जाएगा कृपया अपने इस वचनों को वापस ले ले आप हम पर कृपा की दृष्टि डालें तो सतगुरु ने कहा की हे ब्राह्मण ! करतार के वचन हाथी के दांत की तरह होते हैं एक बार मुख से निकल जाते है तो वापस अंदर नहीं समा सकते अब सभी पठानों का अंत हो जाएगा और कोई नहीं बचेगा और सतगुरु ने कृपा धारण कर कहा की हे भाई लालो आप इन सभी को लेकर और अपने परिवार को लेकर इस नगर को छोड़ दो और यहां से 4 कोस दूर जाओ वहां पर आप एक सूखा हुआ तलाव देखेंगे वहां जाकर डेरा लगाओ लेकिन जितनी जल्दी हो सके इस नगर को छोड़ दो क्योंकि सुबह होते ही मुगलों की सेना जहां पर आ जाएगी और यहां पर लूटमार करनी शुरू कर देगी सभी पठानों को वह मार देंगे और स्त्रियों को अपने साथ ले जाएंगे तो सतगुरु के वचन सुनकर भाई लालो ने सतगुरु के वचनों को सत्य जाना और सतगुरु का आशीर्वाद लेकर वहां से चले गए जहां पर गुरु जी ने उनको जाने के लिए कहा था वहां पर पहुंच गए बाबर ने वहां से 50 कोस दूर डेरा लगा रखा था और उसके साथ उसकी सेना का एक बड़ा दल था और तुर्क भी बहुत बलवान थे और उनके साथ भी बहुत घोड़ों की सेना थी वह बहुत दूर से चलकर आ रहे थे तो उस समय बाबर के मन में आया कि सबसे पहले ऐमनाबाद नगर को जाता हूं और वहां पर लूटमार करता हूं और पठानों को मार देता हूं तो बाबर का हुकुम मानकर सेना ने अपनी बंदूकें तान ली घोड़ों पर सवार होकर वह उस नगर में पहुंच गए तो जब सुबह हुई तो उस नगर में घमासान युद्ध लग गया सभी तरफ लूटमार होने लगी बाबर की सेना उस नगर पर कहर ढा रही थी तो सतगुरु ने जो कहा था वह अब सच हो गया था तो मुगलों ने पठानों का एक बार में ही सफाया कर दिया और फिर नगर में जाकर लूटमार करनी शुरू कर दी उनके घरों से धन को लूटा जा रहा था और उन्होंने पठानों की सुंदर स्त्रियों को पकड़ लिया जिन्होंने तन पर सुंदर गहने डाल रखे थे तो सभी पठानों को मार कर नगर को लूट लिया गया तो सतगुरु ने जिन शब्दों का उच्चारण किया था उस अनुसार पठानों को बहुत मार पड़ी तो बाबर की सेना ने लूट मार कर वहां से 2 कोस दूर जाकर डेरा जमा लिया और बाबर ये लड़ाई जीतकर बहुत खुश हुआ और उस नगर में बाबर का प्रचार होने लगा साध संगत जी जैसा उस समय हुआ था वैसा ही माहौल आज भी बना हुआ है आज भी लोग ईश्वर को भूल चुके हैं और माया से ग्रस्त है इसलिए कभी महामारी आ जाती है और कहीं आग लग जाती है और कभी लड़ाई का डर लगने लग जाता है इस समय भी संसार पर भारी कष्ट पड़ा हुआ है जिसके पीछे केवल एक ही कारण है कि आज हम लोग जगत के ईश्वर परमात्मा को भूल चुके हैं साध संगत जी अब गुरु नानक प्रकाश ग्रंथ के 27 अध्याए की समाप्ति होती है प्रसंग सुनाते हुई अनेक भूलों की क्षमा बक्शे जी ।
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By Sant Vachan
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