साध संगत जी आज का यह प्रसंग बड़े सतगुरु महापुरुष दीनदयाल जी के समय का है आज की यह साखी हमें यह बताएगी कि गुरु अपने शिष्य से कितना प्यार करता है क्योंकि हर बार संगत से यही सुनने में आता है की संगत गुरु से बहुत प्यार करती है लेकिन अगर हमें इस बात की खबर हो जाए कि गुरु हमसे कितना प्यार करता है तो हमारा प्यार गुरु के प्यार के आगे फीका पड़ जाएगा क्योंकि जितना प्यार एक गुरु अपने शिष्य से करता है शायद ही कोई शिष्य इतना प्यार अपने गुरु से करता हो लेकिन कहने के लिए तो हम बहुत कुछ कह देते हैं कि हमें अपने गुरु से बहुत प्यार है लेकिन जब बात करनी की आती है तब पता चलता है कि हमारे अंदर गुरु के प्रति कितना प्यार है गुरु के प्रति कितनी तड़प है तो आइए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी बात उस समय की है जब सतगुरु दीनदयाल संगत से सेवा ले रहे थे और उस समय भी संगत खूब बढ़-चढ़कर सेवा करती थी जगह-जगह से सेवा आती थी और सभी विनम्र होकर गुरु घर की सेवा करते थे तो ऐसे ही सेवा जानी थी तो जैसे कि आजकल हम जब भी सेवा पर जाते हैं तो अपने साथ किसी ना किसी को तैयार कर ही लेते हैं ताकि हमारा अच्छा साथ बन जाए तो हम अपने साथ सेवा पर जाने के लिए अपने साथी को ढूंढते हैं और उसे अपने साथ चलने के लिए कहते है तो ऐसे ही उस समय एक सत्संगी सज्जन पुरुष थे जिन्होंने कभी भी गुरु घर की सेवा नहीं छोड़ी थी तो जब उनके पास सेवा का हुक्म आया तो उन्होंने सेवा पर जाने के लिए हां बोल दी लेकिन उनके साथ उनके गांव से कोई जाने वाला नहीं था उन्होंने अकेले ही जाना था तो वह अपना साथी ढूंढ रहे थी कि कोई मेरे साथ सेवा पर चलने के लिए तैयार हो जाए तो मुझे साथ मिल जाएगा और अच्छा समय व्यतीत हो जाएगा तो उन्होंने अपने गांव में से अपने एक पड़ोस के मित्र को सेवा पर जाने के लिए तैयार कर लिया और जब वह सेवा की बात उसके आगे करते हैं तो वह पहले तो जाने के लिए मना कर देता है लेकिन उनके जोर डालने पर वे उनके साथ चलने के लिए तैयार हो जाता है क्योंकि वह उसे कहते हैं कि तू किसी बात की चिंता मत कर तेरे पीछे के काम मेरा गुरु संभाल लेगा और तेरी संभाल भी वह कर लेगा तू मेरे साथ सेवा पर चल अगर वहां जाकर तुझे सेवा करनी होगी तो कर लेना नहीं तो वहां जाकर लंगर खाना और आराम करना वह तुम्हारी मर्जी होगी लेकिन तू मेरे साथ सेवा पर चल क्योंकि मेरे साथ यहां से कोई जाने वाला नहीं है तो मेरे लिए अकेले जाना थोड़ा मुश्किल होगा इसलिए मैं तुझे बोल रहा हूं कि तूं मेरे साथ चल और पीछे की चिंता मत कर, मेरा गुरु बहुत बड़ा है तू सब कुछ उस पर छोड़ दें और फिर देख क्या होता है तो उनकी यह बातें सुनकर वह व्यक्ति उनके साथ सेवा पर जाने के लिए तैयार हो जाता है और वह दोनों सेवा पर चले जाते हैं तो वहां जाकर वह व्यक्ति भी बहुत सेवा करता है क्योंकि जब वह वहां पर जाकर देखता है कि सभी लोग काम कर रहे हैं तो उसके अंदर भी सेवा करने की प्रेरणा जाग उठती है और दूसरे लोगों को सेवा करता हुआ देख वह भी जोरो से वहां पर सेवा करने लग जाता है तो वह सेवा कुछ ही दिन की होती है तो वह दोनों अपनी सेवा लगाकर जब वापस अपने घर आ जाते हैं तब कुछ दिनों के बाद वह व्यक्ति अपने उस मित्र से कहता है कि कल रात मेरे सपने में तुम्हारे गुरु जी आए थे और मुझे ले जाने की बात कह रहे थे और मुझे कह कर गए हैं कि तैयार रहना मैं तुम्हें लेने आऊंगा सिर्फ इतना कह कर चले गए और मुझे उनकी यह बात समझ आ गई थी कि वह ऐसा क्यों कह रहे हैं क्योंकि अब मेरी उम्र भी हो गई है और मेरा अंतिम समय नजदीक ही है तो उसकी यह बात सुनकर जब वह सत्संगी दोबारा सतगुरु के पास जाता है तो वह उनको जाकर यह सारी बात बताता है और कहता है की हे सच्चे पातशाह ! हम इतने सालों से आपके साथ जुड़े हुए हैं इतनी सेवा की है और आपके हर वचन को माना है लेकिन आज तक आपने हम पर तो ऐसी कृपा नहीं की लेकिन जिसको मैं अपने साथ सेवा पर लेकर गया था उस पर आपने इतनी जल्दी इतनी कृपा कर दी आज तक आप हमारे सपने में नहीं आए लेकिन उसने सिर्फ एक सेवा लगाई और आप उसके सपने में आकर उसे दर्शन दे गए और यह बात कह कर वह सत्संगी सतगुरु महाराज जी से रूठ जाता है और दूसरी तरफ मुंह करकर खड़ा हो जाता है तो उसे रुठा हुआ देख सतगुरु उसे मनाने की कोशिश करते हैं और सतगुरु बड़े ही प्यार से उसे मनाने लगते हैं और कहते है की भाई इसमें मैंने क्या किया है मैंने तो वही किया है जो तुमने उसको कहा था मैंने अपनी तरफ से तो कुछ भी नहीं किया, याद करो ! जब तुमने सेवा पर आना था और तुम्हारे साथ आने के लिए कोई तैयार नहीं था तो तुमने उसको अपने साथ जाने के लिए तैयार किया और फिर उससे जो बातें तुमने कही थी मैं तो उसी को निभा रहा हूं याद करो ! तुमने उससे कहा था कि मेरा गुरु बहुत बड़ा है वह तेरी संभाल करेगा तो भाई मैं तो वही कर रहा हूं जो तुमने उसको बोला था तो जैसे ही वह सतगुरु के यह वचन सुनता है वह जोर जोर से रोने लग जाता है उसका रोना देख आसपास की संगत भी उस समय इकट्ठी हो जाती और वह सद्गुरु के पांव को पकड़कर रोता ही रहता है और केवल यही बात कहता है कि मुझे बक्श ले ! मुझे बक्श ले ! और उसे यह समझ आ जाती है कि इतना प्यार गुरु अपने शिष्य से करता है कि उसके हर एक वचन को पूरा करता है तो साध संगत जी सोचिए अगर सतगुरु ने हमें नाम की बख्शीश की है और आगे जो हमारे साथ जुड़े हुए हैं जो हमारे रिश्तेदार हैं अगर हमारा सतगुरु उनकी संभाल तक कर रहा है तो वह हमारे लिए कितना करता होगा जिसकी खबर शायद ही हममें से किसी को हो, क्योंकि अपने गुरु की लीला को वही जान पाता है जो रोजाना भजन बंदगी करता है अपने गुरु के हुक्म को मानता है वही इसे समझ पाता है लेकिन हममें से कुछ ऐसे भी हैं जो इस तरफ कम ध्यान देते हैं लेकिन हमारा सतगुरु उनकी संभाल भी वैसे ही करता है जैसे वह नाम की कमाई करने वालों की करता है लेकिन हमें इसकी कोई खबर नहीं होती कि गुरु का हाथ हमारे ऊपर है और साध संगत जी ऐसा गुरु मिल पाना जो हमारे संगी साथियों की, हमारे रिश्तेदारों की संभाल तक करता हो वह भी केवल इसलिए क्योंकि हम उनसे जुड़े हैं और अगर हम खुश होकर उनको कुछ कह देते हैं तो हमारा सतगुरु उसे पूरा करता है जिसको ऐसे गुरु की शरण मिली हुई है वह कितने भागो वाले जीव होंगे जिनको इतना बड़ा सतगुरु मिला हुआ है जिसकी कृपा का कोई अंत नहीं जिसकी महिमा का कोई अंत नहीं तो साध संगत जी इस साखी से हमें यही प्रेरणा मिलती है कि जिसको एक पूर्ण संत महात्मा की शरण मिल जाती है फिर उस सत्संगी को सभी चिंताएं छोड़ देनी चाहिए क्योंकि नाम की बख्शीश के समय ही उसकी 84 कट जाती है उसका आवागमन का खेल खत्म हो जाता है और उस पर सचखंड जाने की मोहर लग जाती है और फिर उस सत्संगी अभ्यासी के साथ जो लोग जुड़ते हैं जिनके साथ उसका प्रेम पड़ जाता है अगर वह खुश हो कर उनको कुछ कह दे तो सतगुरु उसकी भी संभाल करते हैं उसका भी आवागमन के इस खेल से छुटकारा करवा देते हैं तो इतनी कृपा सतगुरु हम पर करते हैं तो आइए हमें भी अपने सतगुरु से प्रेम करते हुए उनके उपदेश को मुख्य रखकर रोजाना भजन बंदगी करनी है नाम की कमाई करनी है शब्द की कमाई करनी है ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box.