साध संगत जी यह साखी सतगुरु नानक देव जी के समय की है जब सतगुरु नानक संसार का भला करते हुए एक वृक्ष की छाया में नदी के तट के किनारे जाकर बैठ गए जहां पर एक मशेरा मछलियां पकड़ रहा था अपना जाल नदी में फैला कर मछलियों को अपने जाल में फसा रहा था तो ये सारा दृश्य सतगुरु नानक वहां पर बैठे देख रहे थे और वहां पर एक राजा जंगल में से होता हुआ अपनी भूख मिटाने के लिए एक हिरण को मारकर उसके मांस को पकाने लगता है और ये सारे दृश्य को देखकर सतगुरु नानक ने हम संसारी लोगों को उपदेश दिया हैं आइए बड़े ही प्यार से आज का ये प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी जब सतगुरु नानक संसार का भला करते हुए एक वृक्ष की छाया में एक नदी के तट पर जाकर बैठ गए जहां पर एक मशेरा मछलियां पकड़ रहा था और सतगुरु उसे देख रहे थे तो जब सद्गुरु ने देखा कि वह अपना जाल बिछा कर नदी में से मछलियां पकड़ रहा है तो उसके जाल में जो मछलियां फस रही थी उनकी तड़पती हुई हालत को देखते हुए सतगुरु नानक हम संसार वासियों को उपदेश करते है जो कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब में अंग 439 में दर्ज है जिसमें सद्गुरु हम संसार वासियों को समझाते हैं की जीव अपने लिए और अपने घर परिवार के लिए कितनी कड़ी मेहनत करता है धन एकत्रित करता है अपनी पत्नी और अपने अन्य सगे संबंधियों को प्यार करता है दिन रात काम करता है और कोशिश करता है कि वह धनी और स्वस्थ बना रहे और यह मानने लगता है कि वह अमर है यानी कि वह कभी नहीं मरेगा, सतगुरु कहते हैं यह केवल मोह माया के कारण ही होता है तो सतगुरु फसी हुई मछलियों को देखकर हम संसार वासियों को उपदेश करते हैं ओ मेरे मन मेरी प्यारी जीवात्मा तू क्यों मोह माया के जाल में फसी पड़ी है अगर तूं सदा ही रहने वाले वह मालिक जो जगत का ईश्वर है जो स्थिर है वह तेरे मन में बसता तो तुम क्यों काल के विशाए हुए जाल में फंसती और सतगुरु कहते हैं हे मेरी प्यारी जीवात्मा जब तू काल के बिछाए हुए इस जाल में चारे के लालच में फंस जाती है और उस सागर रूप उस ईश्वर से बिछड़ जाती है तू तुम बहुत रोती हो जैसे कि एक मछली पानी से बाहर आकर तड़पती है आंखें भरकर रोती है ओ मेरे मन जैसे मछली को चारा डाला गया था वैसे ही तुझे संसार का यह मोह रूपी चारा मीठा लगता है परंतु जब तू काल के बिशाए हुए जाल में फंस जाती है तब तुझे यह एहसास होता है कि जिस मोह में तू पढ़ी हुई थी वह झूठा था ओ मेरी प्यारी जीवात्मा तू करतार के चरणों में अपना शीश झुका दे उसका सिमरन कर तभी तेरा कल्याण हो सकता है तो साध संगत जी उसके बाद सतगुरु नानक करतार के नाम की कीर्ति करते हुए और संसार में उसका ज्ञान फैलाते हुए उसके नाम का प्रचार करते हुए कुरुक्षेत्र पहुंचे और जब सतगुरु नानक कुरुक्षेत्र पहुंचे तो वहां पर एक धार्मिक मेला चल रहा था क्योंकि जब ग्रहण शुरू होता है तो लोग पवित्र स्नान करते हैं और गरीबों में दान बांटते हैं तो जब सतगुरु वहां पर पहुंचे तो सतगुरु करतार के नाम में लीन थे और भाई मर्दाना अपना दिव्य संगीत बजा रहे थे तो वहां से हांसी प्रदेश के राजा अपने कुछ सैनिकों के साथ जा रहे थे और उनके साथ उनकी मां भी थी क्योंकि राजा के दुश्मनों ने राजा का राज पाठ लूट लिया था और वह जंगल में भूखे प्यासे चल रहे थे तो अपनी भूख मिटाने के लिए राजा ने एक हिरण का शिकार किया लेकिन राजा ये नहीं जानता था कि आज सूर्य ग्रहण है तो वहीं पर राजा ने सतगुरु नानक और भाई मर्दाना को देखा और जैसे ही राजा सतगुरु की तरफ आगे बढ़ा तो सतगुरु के चेहरे का नूर देखकर सतगुरु के चरणों पर प्रणाम किया और उसके बाद राजमाता भी अपनी पालकी से उतरी और उसने भी सतगुरु को प्रणाम किया तो अपनी भूख मिटाने के लिए राजा ने मारे हुए हिरण को पकाना शुरू किया और वह सतगुरु के आगे अरदास करने लगा कि हे गुरु जी ! आप भी हमारे साथ भोजन कीजिए तो सतगुरु नानक ने उससे पूछा कि तुम कौन हो ? तो उसने कहा कि सतगुरु मैं हांसी प्रदेश का राजा हूं मेरे दुश्मनों ने मेरे से मेरा राज्य छीन लिया है, आप मेरे ऊपर ऐसी कृपा करें कि मैं अपना राज्य वापस ले सकूं तो ये सुनकर सतगुरु नानक ने वचन किए कि राज पाठ तब तक दुख का कारण होता है जब तक राजा उसे यह सोचकर चलाए कि वह उसके सुख और भोग विलास के लिए है लेकिन जब राजा राज्य को चलाने के लिए अपने उस राज्य के लोगों की सेवा करेगा उनकी मदद करेगा और ईश्वर को साक्षी मानकर सभी कार्य करेगा तो उसे किसी तरह का दुख नहीं होगा और ना ही उससे कोई उसका राज्य छीनेगा और सतगुरु ने कहा हे राजन ! यदि तुम लोगों की भलाई करते हुए अपने राजपाठ को चलाओगे तो तुमसे तुम्हारा राज्य कोई नहीं छीनेगा और तुम्हारा छीना हुआ राज्य तुम्हें वापस मिल जाएगा तो साध संगत जी दूसरी तरफ हिरण का मांस पक रहा था और उसकी गंध आस पास फैल रही थी तो मांस की गंध का पीछा करते हुए गांव के लोग वहीं पर आ गए जहां पर मास पक रहा था और उनके बीच कुछ ब्राह्मण भी थे जिन्होंने मांस को पकते हुए देखा और कहा कि घोर अनर्थ हो रहा है आज सूर्य ग्रहण है और यह मांस का सेवन कर रहे हैं मांस को पका रहे है यह हिंदू धर्म के नहीं लगते इनसे पूछा जाए कि इनका कौन सा धर्म है ? तो साध संगत जी यह सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि भोजन इसलिए पकाया जा रहा है ताकि इनकी भूख मिट सके तो सतगुरु के वचन सुनकर वह ब्राह्मण सतगुरु को मारने के लिए आगे बढ़ा तो सतगुरु ने कहा कि आपके धर्म के अनुसार अगर सूर्य ग्रहण में हिरण को मारना पाप है तो एक मनुष्य को मारना और भी बड़ा पाप है अगर आप चाहे तो इस पर विचार विमर्श कर सकते हैं तो यह सुनकर वह ब्राह्मण कहने लगे कि हम अभी अपने गांव के महान आचार्य को लेकर आते हैं आप उन्हीं से विचार विमर्श करें तो जब गांव वाले जाकर अपने अचार्य को लेकर आते हैं जिनका नाम भी आचार्य नानक होता है तो वह क्रोधित हुए सतगुरु नानक के पास आते हैं और वह आचार्य सतगुरु से कहते हैं की आदि काल से ही सूर्य ग्रहण में भोजन पकाना मना है लेकिन आप तो यहां मास पका रहे हैं यह तो घोर पाप है तो साध संगत जी उस आचार्य को जवाब देते हुए सतगुरु नानक ने जिन शब्दों का प्रयोग किया वह शब्द श्री गुरु ग्रंथ साहिब में अंग 1289 और 1290 में दर्ज है और वह शब्द भाई बालाजी भी अपनी कुरुक्षेत्र की साखी में लिखते है जिसका अभिप्राय है कि सबसे पहले पिता के शुक्राणुओं से जीव का आरंभ होता है फिर मां के मांस रूपी गर्व में उसका प्रवेश होता है जब पुतले में जान पड़ती है तभी जीव रूपी मास मुंह में मिलता है इस शरीर की घड़त यानी कि हड्डी चमड़ी और अन्य कोशिकाएं सभी मांस से ही बनती है और जब जीव मां के पेट से बाहर आ जाता है तब भी वह स्तनों से आ रहे दूध का सेवन करता है जिसमें मास की ही मात्रा होती है तो जीव का मुख भी मास का ही होता है और जीभा भी मांस की ही होती है और मास से ही सांस लेता है और जब वह जवान हो जाता है उसका विवाह हो जाता है तो स्त्री रूप में वह मास को ही घर लेकर आता है और फिर मास से ही मांस पैदा होता है तो उसके बाद सतगुरु कहते है की मांस खाने या ना खाने के निर्णय की जगह अगर जीव को एक पूर्ण संत महात्मा की शरण मिल जाए तो उसका इस संसार में आना सफल हो जाएगा, नहीं तो जीव का जन्म से मृत्यु तक मास से इतना गहरा वास्ता पड़ता है जिससे कि उसकी मुक्ति नहीं हो सकती और सतगुरु कहते है हे नानक ! इस की चर्चा से सिर्फ हानि ही होती है और सतगुरु नानक उस पंडित से कहते हैं कि हे पंडित तूं मास मास कह कर इसकी चर्चा करता है लेकिन ना तो तुम्हें अध्यात्म की समझ है और ना ही ध्यान की कोई समझ है तो सतगुरु नानक की यह बात सुनकर वह पंडित सतगुरु से कहने लगता है कि हमारे धर्म ग्रंथों में तो यही लिखा है की मांस का सेवन करना पाप है तो सतगुरु उसे कहते हैं कि इसकी चर्चा करना ही बेकार है अगर इसकी चर्चा के बजाय हमें यह समझ में आ जाए कि वह ईश्वर क्या है ध्यान क्या है तो हम इसकी चर्चा ही नहीं करेंगे और इसकी चर्चा करने वाले को मूर्ख कहेंगे और फिर समाज में जो होता है वह तो इससे भी बड़ा पाप है सतगुरु नानक उस समय की हालत को बयान कर रहे हैं जब छूत-छात का भेदभाव इंसानों में होता था और यह भेदभाव इतना था की छोटी जाति के लोगों को मौत की सजा तक सुना दी जाती थी और फिर सती प्रथा थी जिसमें स्त्री को जिंदा जला दिया जाता था और आज भी समाज में बहुत सारी ऐसी ही बुराइयां हो रही है और सतगुरु नानक कहते हैं कि जो लोग मास आदि ना खाकर और दूसरी तरह की बुराइयों को अंजाम देते हैं और मांस को देखकर नाक मुंह सिकुड़ने लगते हैं तो वह केवल दिखावा करते हैं और पाखंड का पात्र बनते हैं और सतगुरु कहते हैं कि हे नानक ! अंधे मनुष्य को समझाने का कोई लाभ नहीं है क्योंकि अगर उन्हें समझाया जाए तो वह फिर भी नहीं समझेगा अगर कहो तो अंधा कौन है अंधा वही है जो अंधों वाले काम करता है जिसमें समझ नहीं है सतगुरु कहते है सोचने वाली बात है कि जो जीव मास से पैदा हुआ है और वह मास से ही परहेज कर रहा है उसके बारे में चर्चा कर रहा है जब रात में स्त्री पुरुष इकट्ठे होते हैं तब भी वह मास से ही भाव बुक करते हैं हम सभी मास के पुतले हैं हमारा आरंभ मास से हुआ है परंतु ज्ञानी पंडित मास की चर्चा करते हैं और अपने आप को समझदार साबित करने की कोशिश करते हैं और सतगुरु कहते हैं कि हे पंडित तुम बहुत चतुर हो क्योंकि तुम्हें मास से संबंधित किसी तरह की समझ नहीं है और तुम इस विषय पर चर्चा कर कर दूसरों को समझाते हो और ज्ञानी होने का दावा करते हो तो सतगुरु कहते हैं कि पानी से ही सारा संसार बना है पानी से ही अनाज पैदा होता है और पानी कहता है कि मेरे द्वारा ही हर चीज का जन्म होता है तो सतगुरु कहते हैं कि अगर तू सच्चा त्यागी है तो वह सब छोड़ दे जो पानी से पैदा हुआ है तो सद्गुरु के यह वचन सुनकर वह पंडित भावुक हो जाता है और कहता है कि मैंने जितने भी धार्मिक शास्त्रों की शिक्षा ली और अपने अभ्यास से मैंने यह जान लिया था कि 1 दिन मानव रूप में नानक नाम से मेरे पास एक संत आएंगे यह बात सोच कर मैंने अपना नाम नानक रख लिया था और आज मुझे मेरे नानक मिल गए हैं आप ही देह रूप में ईश्वर हो तो साध संगत जी इसके बाद वह जो कढ़ाई में मांस बन रहा होता है वह सद्गुरु की कृपा से वह खीर बन जाती है और सतगुरु उसे सभी में बांटने का हुक्म देते है तो साध संगत जी ये सब संत महात्माओं की लीला होती है उनके समझाने का तरीका होता है ताकि जीव किसी दुविधा में ना पड़ा रहे कि अगर वह मांस नहीं खाता तो वह बहुत आस्तिक है इसीलिए सतगुरु हमें समझाते है कि भाई जीवन में गुरु का होना जरूरी है क्योंकि अगर जीवन में गुरु की शरण हमें मिली होगी तो हम ऐसे विशों पर विचार ही नहीं करेंगे क्योंकि गुरु हमें वह समझ प्रदान कर देता है जिसकी मदद से हम इन सब वादों और विवादों से ऊपर उठ जाते है ।
शिक्षा : सतगुरु नानक कहते हैं कि अगर मांस खाने या ना खाने के निर्णय की जगह हमें एक पूर्ण संत सतगुरु की शरण मिल जाए तो हमारी सभी दुविधाएं खत्म हो जाएंगी और हमारा इस धरती पर जन्म लेना सफल हो जाएगा ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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