Guru Nanak Saakhi : जब काल स्त्री रूप धारण कर सतगुरु नानक के पास आया तो क्या हुआ ! जरूर सुने

 

गुरु प्यारी साध संगत जी आज की साखी में काल रूपी माया का स्त्री रूप धारण कर सतगुरु के पास जाने का प्रसंग श सरवन करेंगे तो आइए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।

साध संगत जी भाई लहना जी सतगुरु नानक की सेवा कर रहे थे भाई लहना जी सतगुरु से अटूट प्रेम करते थे और प्रेम के कारण वह सतगुरु के पास ही रहते थे उनकी सेवा में लीन रहते थे सतगुरु के साथ घर में रहकर उनकी सेवा करते थे, जूठे बर्तन साफ करते थे और अपने आप को सतगुरु की सेवा में लीन हुआ देख बहुत प्रसन्न होते थे और सतगुरु नानक के पहनने वाले कपड़े धोया करते थे और सतगुरु का हर तरह से ख्याल रखते थे और सतगुरु के मुख्य की तरफ देखते रहते थे उनके दर्शन कर उन्हें अंदर ही अंदर बहुत प्रसन्नता होती थी, साध संगत जी प्रेम के कारण ही व्यक्ति परमात्मा से मिलाप कर पाता है रूहानियत के इस मार्ग पर चल पाता है क्योंकि जिन के अंदर गुरु के प्रति सच्ची तड़प नहीं है गुरु से प्रेम नहीं है उनके लिए इस मार्ग पर चलना मुश्किल होता है क्योंकि जिनका गुरु से प्रेम होता है केवल वही परमात्मा से मिलाप कर पाते हैं गुरु से प्रेम होने का अर्थ है कि परमात्मा से प्रेम हो गया इसलिए फरमाया जाता है कि भाई गुरु से प्रेम करो ! गुरु की सेवा करो ! क्योंकि एक गुरु ही है जो आपको उस मालिक से मिला सकता है आपकी सेवा से खुश होकर आप पर कृपा का हाथ रखकर आपको वह रूहानी मंजिलों पर पहुंचा सकता है जहां पर एक साधारण अभ्यासी के लिए पहुंचना बहुत मुश्किल है लेकिन अगर गुरु की कृपा हो तो वह अभ्यासी बहुत आसानी से उन मंजिलों पर पहुंच जाता है जहां पर पहुंचने के लिए उसे कठोर तप करना पड़ता है इसलिए रूहानियत के इस मार्ग पर गुरु की कृपा होना बहुत जरूरी है इसलिए तो सतगुरु जी फरमाते हैं कि बिना गुरु के इस मार्ग पर चला नहीं जा सकता इस मार्ग पर आप का एकमात्र मार्गदर्शन गुरु है, क्योंकि गुरु ने वह मार्ग तय किया होता है गुरु ने उस मार्ग पर चलकर उन रूहानी मंजिलों पर पहुंचकर उन रूहानी मंजिलों को पार कर उस परमात्मा से मिलाप किया होता है इसलिए इस मार्ग पर हमारा एकमात्र मार्गदर्शन एक पूर्ण संत महात्मा ही बन सकता है तो साध संगत जी जब भाई लहना जी सतगुरु की सेवा करते थे तो सतगुरु नानक उन्हें जब भी कोई हुक्म करते थे तो वह बिना कोई सवाल किए सतगुरु का हुक्म मानते थे और उस काम को कर देते थे भाई लहना जी का हृदय सरल था मन साफ था और उनका हृदय हर समय श्रद्धा से भरा रहता था उन्होंने अपने आपको सतगुरु के चरणों में समर्पित किया हुआ था भाई लहना जी की सतगुरु नानक से इतनी प्रीति बढ़ गई थी कि उसकी उपमा नहीं की जा सकती उसको बयान नहीं किया जा सकता अगर उसके लिए कोई उदाहरण भी दी जाए तो वह भी छोटी पड़ेगी इतना उनका सतगुरु नानक से प्रेम था साध संगत जी अगर उन्हें सिर देने का भी हुक्म हो जाए तो वह उसके लिए भी तैयार थे उसमें भी वह देरी नहीं लगाते इतनी उनकी प्रीत बढ़ गई थी और एक दिन सतगुरु नानक बिस्तर पर लेटे हुए थे और काल रूपी माया स्त्री का रूप धारण कर सतगुरु के दर्शन करने आई, काल स्त्री रूप में आया था, अधिक सुंदरता झलक रही थी उसकी स्त्री रूपी देह हीरे जवाहरातों से भरी हुई थी और उसने लाल रंग के कपड़े पहने हुए थे तो जब काल रूपी माया सतगुरु के चरणों की तरफ बैठकर उनकी सेवा करने लगी तो उस समय भाई लहना जी सतगुरु को पंखा करने के लिए उनके पास आए और जब उन्होंने वहां पर उस काल रूपी माया को देखा तो वह बहुत हैरान हुए और कुछ समझ ना सके और उसकी सुंदरता देख अचंभित हुए तो जब वह सेवा कर कर चली गई तो भाई लहना जी ने सतगुरु से हाथ जोड़कर पूछा की ये देवी कौन थी जिसने श्रेष्ठ गहने पाए हुए थे और बहुत सुंदर रूप धारण किया हुआ था और बड़े ही प्यार से आपके चरणों में सेवा कर रही थी और आपकी सेवा करकर वह कहां गई है क्योंकि केवल मैंने ही उसे देखा है और किसी ने उसे नहीं देखा उसे देख कर मुझे बहुत हैरानी हुई है तो भाई लहना जी की यह बात सुनकर सतगुरु नानक कहने लगे कि तेरे ऊपर करतार की मेहर है इसलिए तू उसके सुंदर स्वरूप को देख पाया है क्योंकि वह किसी और को नजर नहीं आती उसका भेद नहीं पाया जा सकता इस जगत में जो माया रूपी मनुष्य है उन सभी को उसने भ्रमा रखा है अपने जाल में फंसा रखा है कोई भी इससे बचा नहीं है लेकिन जो करतार का सिमरन करता है वाहेगुरु का सिमरन करता है उसके सामने इसकी माया नहीं चलती इसका प्रभाव नहीं पड़ता यह जहां सेवा करने के लिए आई थी इस तरह गुरु जी ने यह भेद भाई लहना जी को दिया और सतगुरु की यह बात सुनकर भाई लहना जी का हृदय प्रेम से भर गया और सेवा में लीन हो गए, दिल में राई मात्र भी अहंकार नहीं आया और सतगुरु की सेवा करते रहे, तो 1 दिन सतगुरु विश्राम कर रहे थे और भाई लहना जी उन्हें पंखा कर हवा दे रहे थे तो भाई लहना जी ने देखा कि सतगुरु के पाव अपने आप ही हिल रहे हैं तो उनके अंदर इसे जानने की इच्छा हुई कि यह क्यों हिल रहे हैं तो जैसे ही सतगुरु ने आंखें खोली तो भाई लहना जी ने पूछा कि सतगुरु मैं कब से देख रहा हूं कि आपके चरण चंचल होकर अपने आप ही हिल रहे हैं इसका क्या कारण है क्योंकि मैं कब से खड़ा देख रहा हूं कि आपके चरण अपने आप हिल रहे हैं लेकिन यहां पर कोई तीसरा व्यक्ति प्रतीत नहीं होता तो फिर इनके हिलने का क्या कारण है तो साध संगत जी सतगुरु ने कहा की हे भाई लहना ! तू मेरा परम प्यारा है तुझे मैं सभी भेद बता देता हूं सभी देवता चरणों को छू कर जा रहे हैं वह कभी-कभी साथ मिलकर आते हैं गुप्त रूप में आते हैं इसलिए मनुष्य उन्हें देख नहीं सकते तो सतगुरु नानक की यह बात सुनकर भाई लहना जी ने कहा की हे गुरु जी ! यह सब सच है और यह कहकर उन्होंने सतगुरु के चरणों पर वंदना की और भाई लहना जी का ह्रदय प्रेम से भर उठा, नाम का रंग चढ़ गया और हर पल वाहेगुरु के सिमरन में लीन रहने लगे साध संगत जी भाई लहना जी अक्सर सतगुरु की सेवा में लीन रहते थे उनके पांव में पढ़ कर उनकी सेवा करते थे तो जब एक दिन उन्होंने सतगुरु नानक के चरणों को देखा और यह पाया कि सतगुरु के पाव पर चोट लगी हुई है तो ये देख कर भाई लहना जी ने सतगुरु से पूछा की हे मुक्तिदाता आप जी तो कहीं भी नहीं गए तो आपको ये चोट कैसे लग गई है तो सतगुरु फरमाते हैं कि एक आजड़ी बकरियों को चार रहा है और श्रद्धा से करतार के नाम का सिमरन कर रहा है वह जहां पर बकरियों को चार रहा है वहां पर कांटे ही कांटे हैं लेकिन वह करतार के सिमरन में ऐसा लीन है कि उसे इसकी कोई खबर नहीं वह उसके प्रेम में डूबा हुआ उसके नाम में डूबा हुआ बकरियों को चार रहा है और मैं उसके साथ मौजूद हूं उसकी संभाल कर रहा हूं हे भाई लहना यह चोट मुझे वहां पर लगी है और सद्गुरु ने फरमाया जो भी करतार के नाम का सिमरन करता है मैं उसके अंग संग होता हूं उसकी संभाल करता हूं और यह कहकर सतगुरु ने हुक्म दिया कि जाओ वहां पर जो आजड़ी बकरियों को चार रहा है जाओ जाकर उसको मेरे पास लेकर आओ तो सतगुरु का हुक्म मान कर एक सिख उसके पास गया और वहां जाकर उसने प्रेम से कहा कि आपको गुणों की खान सतगुरु बुला रहे हैं तो वह आजड़ी सतगुरु का हुक्म सुन कर उनके पास आया, सतगुरु ने कृपा की दृष्टि से उसे देखा और यह वचन कहे कि जो नाम तुमने कंठ किया है इसको ऐसे ही जपते रहो क्योंकि इसे जपने से विकार निकल जाएंगे करतार से प्रीत बढ़ेगी, हृदय नाम के रंग में रंगा जाएगा तो सतगुरु की यह बात सुनकर आजड़ी ने कहा की जैसी आपकी आज्ञा मैं अब से ऐसा ही करूंगा आप जी का हुक्म पाकर मैं आप जी के इस नाम से जुड़ा रहूंगा और अपने मन को आपके चरणों में लगाए रखूंगा और सतगुरु की किरपा पाकर वह वहां से चला गया तो उसके बाद सतगुरु ने भाई लहना को घर जाने का हुक्म किया, अपने परिवार की खबर लेने के लिए सतगुरु नानक ने भाई लहना जी को घर जाने के लिए कहा तो सतगुरु का हुक्म मान कर भाई लहना जी अपने परिवार के पास गए क्योंकि वह सतगुरु के हुकम को मोड़ नहीं सकते थे और उनका मन सतगुरु के प्रेम में रंगा हुआ था वह सतगुरु से एक पल का भी विछोडा सहन नहीं करते थे तो सतगुरु का हुक्म पाकर जब वह घर गए तो वहां जाकर भी उनका मन सतगुरु की सेवा में समर्पित था वहां जाकर भी उन्हें सतगुरु से विछोडा पाकर संतुष्टि नहीं हो रही थी क्योंकि उन्होंने अपने मन को सतगुरु के चरणों से जोड़ रखा था केवल उनका शरीर ही घर आया था तो साध संगत जी भाई लहना जी कुछ दिन अपने घर पर रहे और उसके बाद फिर वह सतगुरु के पास उनकी सेवा में चले गए ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके । 

By Sant Vachan


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