साध संगत जी आज की ये साखी सतगुरु नानक देव जी के समय की है जब सतगुरु भाई मरदाना जी के साथ एक ऐसे गांव में जा पहुंचे जहां पर ना तो अन होता था और ना ही आग थी, सदियों से वहां पर एक परंपरा चली आ रही थी कि वहां के लोग भेड़ के मांस को सूर्य की गर्मी में पका कर खाते थे तो आइए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी सतगुरु नानक भाई मरदाना जी के साथ एक ऐसे नगर में जा पहुंचे जहां पर अन की पैदावार नहीं होती थी और ना ही वहां पर आग थी तो वहां पर सदियों से यह परंपरा चली आ रही थी कि वहां के लोग मांस का सेवन करते थे वह भेड़ के मांस को सूर्य की गर्मी में पका कर खाते थे और अपने अतिथि को भी वह वही खिलाते थे तो जब सतगुरु नानक उस नगर में गए तो सतगुरु एक वृक्ष के नीचे मालिक की याद में बैठ गए और मालिक के नाम का सिमरन करने लगे तो सतगुरु को वहां पर बैठा देख एक व्यक्ति उनके पास आया और उसने देखा कि एक संत वृक्ष के नीचे बैठे हुए हैं और ईश्वर की भक्ति में लीन है तो उसने सतगुरु के पास आकर उनको प्रणाम किया और वह सतगुरु से कहने लगा हे महात्मा जी ! आप हमारे इस नगर में आए हैं और आप भूखे होंगे तो मैं आपके लिए खाने का इंतजाम करता हूं तो ये सुनकर सतगुरु ने कहा कि जैसी तुम्हारी इच्छा हो वैसा ही करो तो उसने भेड़ को मारा और मांस को पत्थर पर रखकर और उसे सूर्य की गर्मी से पकाने लगा और सूर्य की पूजा करने लगा ताकि मांस जल्दी पक जाए तो कुछ देर बाद वह मांस पक गया और वह व्यक्ति गुरुजी के पास जाकर बोला हे महात्मा जी ! भोजन पक गया है आइए भोजन ग्रहण करें तो सतगुरु बोले इस भेड़ की खाल और हड्डियों को इकट्ठा करो, तो उस आदमी ने वैसा ही किया, वह भेड़ की खाल और हड्डियों को इकट्ठा करने लगा और इकट्ठा कर कर रख दिया तो गुरु जी ने भेड़ की खाल और हड्डियों को देखते हुए कहा हे जीव ! घास का सेवन करो, तो हड्डियों के समूह और मास ने वापस मिल कर उस भेड़ को पुनर्जीवित कर दिया और वह भेड़ घास खाने लगी तो ये देख कर वह व्यक्ति हैरान हो गया और अचंभित हो उठा कि ऐसा कैसे हो गया तो उसके बाद सतगुरु ने उसे कहा हे मित्र ! तुम नगर में जाओ और अपने नगर में जाकर किसी एक बड़े व्यक्ति को जाकर लेकर आओ और उसे कहो कि हम उसे बुला रहे हैं और कहो वह तुम्हें परमात्मा से अन और अग्नि दिलवाएंगे तो उस आदमी ने वैसा ही किया जैसे सतगुरु ने उसे कहा था वह नगर में गया और वहां जाकर अपने नगर के मुखी से कहने लगा, स्वामी आज तो गजब हो गया हमारे नगर में एक बहुत बड़े संत आए हैं और उन्होंने मरी हुई भेड़ को जिंदा कर दिया और यह सारा दृश्य मैंने अपनी आंखों से देखा है तो यह सुनने के बाद वह व्यक्ति उसे कहने लगा कि तुम क्या कह रहे हो ऐसा नहीं हो सकता, कोई मरकर भी कभी जीवित होता है, नहीं में नहीं मानता कि ऐसा हुआ होगा, तो वह व्यक्ति कहता है कि ऐसा ही हुआ है आप मेरे साथ चलिए वह आपको बुला रहे हैं और उन्होंने कहा है कि वह हम नगर वासियों को अन और अग्नि दिलवा सकते हैं तो वह धनी व्यक्ति सतगुरु के पास जाता है तो सतगुरु उसको देख कर कहते हैं हे प्यारे ! जाओ जाकर कुछ अनाज ले आओ तो वह व्यक्ति सतगुरु की यह बात सुनकर कहने लगता है की हे संत जी ! हमारे इस नगर में अनाज नहीं होता और ना ही जहां पर अग्नि है तो मैं आपके लिए अनाज कहां से लेकर आ सकता हूं लेकिन अगर आप कहते हैं तो मैं राजा के पास जाकर विनती करता हूं और उनसे अनाज की मांग करता हूं तो वह व्यक्ति राजा के दरबार में चला जाता है और वहां जाकर राजा से विनती करता है कि महाराज हमारे नगर में एक संत आए हैं और वह हमें अनाज और अग्नि दिलवाने की बात कह रहे हैं तो यह सुनकर वह राजा भी हैरान हो जाता है और वह भी उस व्यक्ति के साथ सतगुरु के पास चला आता है तो राजा को देखकर सतगुरु उसे कहते हैं कि हे राजन ! अगर तुम ईश्वर की भक्ति सच्चे मन से करो तो वह ईश्वर तुम्हें और तुम्हारी प्रजा को सब कुछ देगा और गुरु जी ने राजा को कहा कि किसी भी तरह अन का प्रबंध करो तो गुरु जी की आज्ञा मानकर राजा ने अन का प्रबंध कर दिया और उसने वह अन सतगुरु के हाथों में दे दिया तो सतगुरु ने उसे वहां पर बो दिया और कुछ समय बाद वहां पर हरी-भरी खेती हो गई और वहां पर अनाज हो गया तो ये दृश्य देखकर सभी नगरवासी बहुत हैरान हुए और सतगुरु ने उन्हें उपदेश दिया कि इसी तरह जगत के ईश्वर का नाम जप कर खेती करो वह करतार तुम सभी का भला करेगा और सतगुरु ने कहा जब जीव पाप कर्मो को अंजाम देता रहता है और जगत के ईश्वर को भूल जाता है तो जीव को सबक देने के लिए ईश्वर ऐसा करता है तो वहां के सभी नगर वासी सतगुरु के सेवक बन गए और वह सतगुरु की सेवा में लीन रहने लगे वह सतगुरु के लिए प्रतिदिन कोई ना कोई वस्तु जरूर ले आते लेकिन सतगुरु उसे लेने से मना कर देते और सतगुरु ने उन्हें उपदेश दिया कि इसी प्रकार जगत के ईश्वर का नाम जपो और गरीबों की सेवा करो और अतिथि का आदर करो तभी तुम्हारा कल्याण होगा, इस प्रकार सतगुरु ने उस भेड़ को जीवनदान देकर उस नगर वासियों को समझाया और उनके रहने खाने और जीने का तरीका ही बदल दिया और वहां पर सतगुरु कुछ समय तक रहे और उसके बाद संसार का भला करते हुए सतगुरु आगे चले गए तो साध संगत जी इस साखी से हमें भी यही प्रेरणा मिलती है कि हमें भी मांस का सेवन नहीं करना है क्योंकि हमारे संत महात्माओं ने शुरू से ही हमें मांस आदि वस्तुओं का सेवन करने से मना किया है और संतो की कहीं गई हर बात में राज होता है अगर वह हमें किसी वस्तु से दूर रहने के लिए कहते है तो उसमें भी हमारी ही भलाई होती है और सतगुरु नानक अपनी वाणी में फरमाते हुए कहते हैं कि जो लोग इस बात पर बहस करते रहते हैं कि हमें मांस खाना चाहिए या नहीं खाना चाहिए अगर खाना चाहिए तो क्यों खाना चाहिए अगर नहीं खाना चाहिए तो क्यों नहीं खाना चाहिए तो इसी बहस को देखते हुए सतगुरु नानक ने अपनी वाणी में फरमाया था "मास मास कर मूरख झगड़े ज्ञान ध्यान नहीं जाने कोण मांस कोण साध कहावे किसने पाप समाने" कि मांस को लेकर बहस करने वाले और मांस पर चर्चा करने वाले मूर्ख हैं वह अपने समय को व्यर्थ गंवा रहे हैं और वे इसी चक्कर में अपना जीवन व्यर्थ गंवा देते हैं वह जीवन में ध्यान की गहराई को नहीं समझ पाते, ज्ञान की गहराई को नहीं समझ पाते और ईश्वर के नाम से विमुख होकर अपना जीवन जाया कर चले जाते है ।
शिक्षा : मांस का सेवन करने से हमारे हृदय में ईश्वर का नाम नहीं आ सकता हमारी सुरत ऊपर नहीं चढ़ सकती केवल मास ही नहीं संसार में और जितनी भी वस्तु है जो नाम मार्ग में बाधा बनती है सूरत को ऊपर जाने से रोकती है वह भी हमारे लिए अच्छी नहीं उनसे भी हमें दूरी बनाए रखनी है ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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