साध संगत जी आज की साखी सतगुरु नानक देव जी के समय की है जब सतगुरु नानक संगला दीप देश में गए यहां पर शिवनाभ नाम के राजा का राज्य था तो जब सतगुरु वहां पर गए तो उसने सतगुरु नानक की परख करने के लिए सुंदर स्त्रियों को भेजा तो उसके बाद क्या हुआ आइए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी जब संगला दीप के राजा शिव नाम के अंदर रूहानियत की तड़प पैदा हुई तो वह पूरे गुरु की तलाश करने लगा जो उसका मार्गदर्शन कर सके उसे रास्ता दिखा सके और उसने उस समय सतगुरु नानक की प्रसिद्धि के बारे में बहुत सुना हुआ था कि कलयुग में एक संत है जिनका नाम नानक है जो अपने उपदेशों से भटके हुए जीवो को रास्ता दिखाते हैं उनका मार्गदर्शन करते हैं वह पूर्ण समरथ कृपा निधान देह रूप में परमात्मा है तो साध संगत जी जब संगला दीप के राजे ने सतगुरु नानक की प्रसिद्धि के बारे में सुना तो उसके अंदर सतगुरु नानक के दर्शनों की चाह पैदा हुई उनकी शरण में जाने की इच्छा उसके अंदर पैदा हो गई कि मेरा भी उनसे मिलाप हो जाए ताकि मैं भी अपना जन्म सफल कर जाऊं तो जब उस राज्य के कुछ फकीरों को यह बात पता चली कि राजा एक पूरे गुरु की तलाश में है तो उन्होंने उस राज्य में अपने आप को एक पूर्ण संत साबित करने के लिए बहुत प्रयास किए लेकिन वह राजा की परख के कारण उसकी परीक्षाओं में पास नहीं हो पाए तो कुछ फकीरों ने देखा कि इस समय सतगुरु नानक की प्रसिद्धि बहुत है तो उन्होंने अपना नाम नानक रख कर नगर में प्रसिद्धि हासिल करने की कोशिश की कि वही एक पूर्ण संत सतगुरु है तो जब कुछ फकीरों ने अपना नाम नानक रख लिया और वह राजा के दरबार में पेश हुए और खुद को नानक कहलवाया तो राजा ने उनकी परीक्षा ली लेकिन वह भी राजा की उन परखों में खरे नहीं उतरे क्योंकि वह जब भी पूर्ण महात्मा होने का दावा करते थे तो राजा उनकी परख करने के लिए कुछ ना कुछ करता रहता था कभी उनके लिए धन दौलत भिजवा देता तो कभी उनका ध्यान खींचने के लिए सुंदर स्त्रियां को उनके पास भेज देता ताकि उनकी परख की जा सके कि वह एक पूर्ण संत महात्मा है भी या नहीं, तो राजा ने अपने उस नगर में सुंदर स्त्रियां इसी काम के लिए रखी हुई थी ताकि वह उनकी सहायता से एक पूर्ण संत की पहचान कर सकें तो जब भी कोई महात्मा होने का दावा करता था तो राजा अपनी उन सुंदर स्त्रियों को उनके पास भेज देता था वह स्त्रियां उसका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करती थी अपनी आंखों से और अपनी अदाओं से उन्हें अपने साथ भोग विलास करने के लिए मजबूर कर देती थी उनकी सुंदरता ऐसी थी की देवी देवता भी उनको देखने के लिए पृथ्वी पर आ जाते तो वहां पर कलयुगी मनुष्य बेचारा क्या करे तो राजा ने अपने नगर में ऐसी व्यवस्था कर रखी थी जिससे कि उसे तुरंत पता चल जाता था कि कौन एक पूर्ण संत है और कौन अधूरा संत है क्योंकि जब से राजा ने गुरु धारणा करने का सोच रखा था तो बहुत से फकीर राजा के पास आने लगे थे तो इसी के कारण राजा उनकी परख करने लग जाता था तो जब उसे सतगुरु नानक की प्रसिद्धि के बारे में पता चला उसने सतगुरु की महिमा सुनी तो सिंहासन पर बैठे-बैठे ही उसकी आंखों से सतगुरु की याद में आंसू आ गए तो सतगुरु को इस बात की खबर होती है कि कोई मालिक का प्यारा उन्हें याद कर रहा है तो सतगुरु भाई मरदाना और भाई बालाजी को कहते हैं चलो ! चलने की तैयारी करते हैं कोई हमें याद कर रहा है और वैराग्य से भरा हुआ है साध संगत जी उस समय जो भी सतगुरु को सच्चे दिल से याद करता था सद्गुरु तुरंत उसे दर्शन देने के लिए चले जाते थे और अगर आज भी कोई सच्चे मन से सतगुरु नानक को याद करें तो सतगुरु अपने उस शिष्य को दर्शन देने आ जाते हैं उसका मार्गदर्शन करने के लिए सतगुरु हाजिर हो जाते हैं तो साध संगत जी जब राजा ने सतगुरु को याद किया तो सतगुरु तुरंत भाई मरदाना और भाई बालाजी के साथ संगला दीप देश में पहुंच गए तो वहां जाकर सतगुरु एक बगीचे में बैठ गए जो कि सुखा हुआ था और उस बगीचे के फूल मुरझाए हुए थे तो जब सतगुरु नानक उस बगीचे में जाकर भाई मरदाना और भाई बालाजी के साथ मालिक की याद में बैठ गए और उसका कीर्तन करने लगे तो वह बगीचा हरा भरा हो गया, फूल खिल उठे तो ये अलौकिक चमत्कार देख नगरवासी हैरान हो गए और उन्होंने उस बगीचे के मालिक को खबर की कि जिस बगीचे की तू देखभाल करता है उस बगीचे में कोई संत आकर बैठे हैं और जैसे ही वह वहां आकर बैठे तेरा बगीचा हरा भरा हो गया है तो नगरवासियों की ये बात सुनकर वह भागा हुआ अपने उस बगीचे में आता है और अपने बगीचे को हरा भरा पाता है तो सतगुरु की अपार कृपा देख वह राजा के पास जाता है और कहता है की महाराज ! हमारे नगर में एक पूर्ण समरथ गुरु पधारे हैं कृपया आप चलकर उनके दर्शन करें तो राजा अपने मंत्री को उनकी परख करने के लिए भेज देता है तो जब मंत्री राजा के हुकम अनुसार सतगुरु नानक के पास बहुत सारे उपहार लेकर जाता है बहुत सारे खाने पीने के पदार्थ लेकर जाता है कपड़े लेकर जाता है तो सतगुरु उसे देखकर कहते हैं ऐ रस कस स्वाद विर्था समझो, नाम रस को ही उत्तम रस मानो जो संसार के रसो में ग्रस्त हो जाते है वह विकार ग्रस्त हो जाते है और जो नाम का रस लेते है वह विकारों से रहित हो जाते है काया आदि कपड़े सभ झूठ है इनको देखकर मूर्ख करतार को भूल जाते है हमारे ये किसी काम नहीं है ये लिजा कर अपने राजा को दे दें और सतगुरु मंत्री की इस भेंट को स्वीकार नहीं करते उसे वापस राजा के पास ले जाने के लिए कह देते हैं और कहते हैं कि यह हमारे किसी काम नहीं आप इसे राजा को वापस कर दे सतगुरु नानक के मुख्य से यह वचन सुनकर वह मंत्री राजा के पास जाता है और पूरी वार्तालाप राजा को बताता है और कहता है की महाराज जिनके पास आपने मुझे भेजा है उनके दर्शन कर मैं निहाल हो गया हूं उनका दिव्य स्वरुप देखकर मेरे अंदर शांति बनी हुई है और उनके मधुर वचन सुनकर मैं निहाल हो गया हूं आप मेरी बात मानो यही पूर्ण समरथ सतगुरु है जो आपका मार्गदर्शन कर सकते हैं लेकिन राजा मंत्री की बात को नहीं मानता वह सतगुरु की और परख करने के लिए विचार करता है और सोचता है कि क्यों ना सुंदर-सुंदर स्त्रियों को उनके इर्द-गिर्द भेजूं उनका ध्यान भटकाने की कोशिश करूं जिससे कि मुझे यह पता चल सके कि यह पूर्ण सम्रथर गुरु है भी या नहीं तो वह ऐसा ही करता है वह सुंदर स्त्रियों को सतगुरु नानक के इर्द-गिर्द भेज देता है ताकि सतगुरु का ध्यान भटकाया जा सके लेकिन साध संगत जी जिसे नाम की खुमारी चढ़ी हो जिसके रोम रोम में नाम की गूंज हो सतनाम की गूंज हो उसे भला कोई कैसे भटका सकता है उसकी स्थिरता को कोई कैसे भंग कर सकता है तो जब सुंदर स्त्रियां सतगुरु नानक के इर्द-गिर्द घूमने लगी और तरह-तरह के नाच दिखाने लगी तो उन्होंने पाया कि सतगुरु ने बिल्कुल भी उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया सतगुरु नाम धुन में मस्त उस मालिक की याद में बैठे रहे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा तो वह स्त्रियां राजा के पास जाकर कहती हैं कि आपने हमें जो हुक्म दिया था हमने वैसा ही किया है लेकिन यह जो संत हैं यह दूसरों से अलग है अभी तक हमने जितनों की भी परख की है यह उन से भिन्न है क्योंकि इन्होंने बिल्कुल भी हमारी तरफ ध्यान नहीं दिया और वह अपनी मौज में बैठे रहे तो जब राजा वह सुंदर स्त्रियों से यह वचन सुनता है तो उसके अंदर सतगुरु के प्रति विश्वास और बढ़ जाता है लेकिन उसके मन को फिर भी विश्वास नहीं होता और वह सतगुरु की एक परख और करने के लिए कहता है राजा शिवनाम अपने राज्य की सबसे सुंदर स्त्री को रात के समय सतगुरु के पास भेजता है ताकि उनकी आखिरी परख की जा सके तो जब वह सुंदरी स्त्री रात के समय सतगुरु के पास जाती है और कहती है हे संत जी मै आपके दर्शन करने आई हूं आप शंका को छोडें और मेरी तरफ देखें मैं स्त्रियों में जो पद्मिनी याती होती है वह मुझमें पूर्ण रूप में मौजूद है मेरा सुंदर स्वरूप अनुपम और अलौकिक है इसके साथ आप मन चाहे कलोल करें हे किरपा के सागर विशाल किरपा कर मेरी श्रद्धा पूर्ण कर मुझे निहाल करें तो साध संगत जी जब पद्मिनी ने ऐसे वचन सतगुरु से किए तो गुणों की खान सतगुरु बोले सतनाम का सिमरन करो उससे भारी सुख प्राप्त होता है ये मनुष्य जन्म जो आपको मिला है इसको सफल करो विशे विकारों में पड़कर अपना जीवन व्यर्थ मत गवाओ हरि का नाम जप कर मुक्ति प्राप्त करो लेकिन पद्मिनी ने सतगुरु की इन बातों पर विचार नहीं किया और कहने लगी की आप पूर्ण समरथ हो मेरी कामना पूरी करें तो ये सुनकर सतगुरु ने मुख से शब्द उच्चारण किया "मन मोती ये गहना होवे पौण होवे सूत धारी खिमा श्रृंगार कामन तन पहरे रावे लाल तयारी" तो शब्द उच्चारण कर सद्गुरु कहने लगे की है मेरी बेटी यह देह तो गट्टे और मिट्टी का बना हुआ फुल है और सुंदरता पाप कर्मों की तरफ ले जाती है तू सतनाम का जाप कर, जगत के ईश्वर जो की पूर्ण पुरख स्वामी है उसकी सेवा कर और नाम की महिमा को जान क्योंकि उसके बिना जीवन व्यर्थ है इस संसार के सभी रस उसके आगे विफल हो जाते हैं नाम का रस ही सच्चा रस है तूं जहां से चली जा और जाकर नाम की कमाई में लग कर अपने जीवन को सफल कर फिर तेरे अंदर यह काम रूपी अग्नि मिट जाएगी और तेरा जीवन सफल हो जाएगा तो साध संगत जी गुरु जी के मधुर वचन सुनकर उसके ऊपर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा वह दीन होकर सतगुरु के चरणों पर गिर पड़ी और रोने लग पड़ी उसने सतगुरु के चरणों पर वंदना की और वहां से चली गई और फिर जब सुबह हुई तो राजा ने उस सुंदर स्त्री को अपने पास बुलाया और कहने लगा कि मुझे बताओ कि तुमने रात के समय में गुरु जी को क्या पहचाना तो वह स्त्री बोलती है राजन सुनो ! अब तक जितने भी फकीर लोग मुझे देखते थे वह जप तप करना भूल जाते थे और मेरी तरफ आकर्षित होकर भटक जाते थे लेकिन यह जो संत हैं यह उनसे भिन्न है इनकी महिमा बहुत ऊंची है इन्होने मेरा जीवन सफल कर दिया है मेरे ऊपर नाम का रंग चढ़ा दिया है हे राजन ! देर ना करो जल्दी जाओ और उनकी शरण ग्रहण करो तो साध संगत जी जैसे ही राजा पद्मिनी की ये बात सुनता है वह भागकर सतगुरु नानक के पास जाता है और उनके चरणों पर घिरकर वंदना करता है उन्हें प्रणाम करता है ऐसे सतगुरु नानक राजाशिव नाम का उद्धार कर देते हैं उसका मार्गदर्शन कर उसके मनुष्य जन्म को सफल कर देते हैं ।
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By Sant Vachan
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