Guru Nanak Sakhi : जब कौदे नामक राक्षस ने भाई मरदाना को गर्म तेल में डाला तो क्या हुआ ! जरूर सुने

 

साध संगत जी आज की ये साखी गुरु नानक प्रकाश ग्रंथ के अध्याय 50 में दर्ज है जिसमें सतगुरु नानक की मुलाकात कौदे नामक राक्षस से होती है जब वह भाई मरदाना जी को गरम तेल में डालने लगता है तो आइए बड़े ही प्यार से आज का ये प्रसंग सरवन करते हैं ।

साध संगत जी सतगुरु नानक भाई मरदाना और भाई बालाजी के साथ करतार की कीर्ति करते हुए उसके नाम का कीर्तन करते हुए जंगलों में से होकर जा रहे थे तो चलते चलते सतगुरु ने भाई मरदाना और भाई बालाजी को विश्राम करने के लिए कहा तो सतगुरु नानक एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने के लिए बैठ गए, साध संगत जी जब भी सतगुरु ने किसी का उद्धार करना होता था तो सतगुरु अक्सर भाई मर्दाना को भूख दे देते थे कभी उनकी प्यास बढ़ा देते थे कभी भाई मरदाना जी के मन को भर्मा देते थे कि भाई मरदाना जी घर जाने की हठ करें तो जब भी ऐसा होता था तो भाई मरदाना जी की भूख बहुत बढ़ जाती थी और वह सतगुरु के आगे अपनी भूख मिटाने के लिए भोजन की व्यवस्था करने की आज्ञा मांगते थे और कभी उनकी प्यास बढ़ जाती थी तो सतगुरु से पानी के लिए कहते थे तो जब सतगुरु भाई मर्दाना और भाई बालाजी के साथ विश्राम कर रहे थे तो भाई मरदाना जी कहने लगे सतगुरु मुझे आज्ञा दे मुझे अपने परिवार के पास जाना है मुझे उनकी बहुत याद आ रही है इससे आगे मैं आपके साथ नहीं चल सकता कृपया आप मुझे घर जाने की आज्ञा दें ताकि मैं अपने परिवार से मिल सकूं तो साध संगत जी सतगुरु नानक ने भाई मरदाना को घर जाने के लिए मना किया कि अभी मत जाओ ! रास्ते में बहुत बलाए तुम्हें मिलेगी जिससे कि तुम मुश्किल में पड़ जाओगे तो साध संगत जी भाई मरदाना जी नहीं माने उन्होंने सतगुरु के आगे घर जाने की हठ नहीं छोड़ी, तो कैसे भी करके भाई मरदाना जी ने सतगुरु से घर जाने की आज्ञा ले ली और वह घर जाने की तैयारी करने लगे तो जब भाई मरदाना जी घर जाने लगे तो वह एक घना जंगल था यहां से हो कर भाई मरदाना जी को जाना था और भाई मरदाना जी डर भी रहे थे क्योंकि सतगुरु ने उन्हें कहा था कि रास्ते में तुम्हें बहुत बलाए मिलेंगी तो सतगुरु की इस बात को याद रख कर वह मन ही मन में डर रहे थे कि कहीं कोई मुझे नुकसान ना पहुंचाएं तो साध संगत जी ऐसा ही हुआ जब भाई मरदाना जी सतगुरु की आज्ञा पाकर वहां से जाने लगे तो रास्ते में उन्हें कौदे नामक राक्षस ने पकड़ लिया और वह भाई मरदाना जी को देख बहुत खुश हुआ क्योंकि उसने बहुत दिनों से इंसान का मांस नहीं खाया था और भाई मरदाना जी को अपनी तरफ आता हुआ देख वह अंदर ही अंदर बहुत खुश हुआ कि आज मुझे इंसान का ताजा मांस खाने को मिलेगा तो जब उसने भाई मरदाना जी को पकड़ लिया और पकड़ कर अपने साथ अपनी गुफा में ले गया तो वहां जाकर उसने भाई मरदाना जी को बांध लिया और तेल को गर्म करने लगा ताकि भाई मरदाना जी को उसमें तलकर उन्हें खा सकें तो यह सब देख भाई मरदाना जी बहुत डर गए और कांपने लगे और अंदर ही अंदर सतगुरु नानक को याद करने लगे और वाहेगुरु का सिमरन करने लगे तो भाई मरदाना जी की पुकार सुन सतगुरु नानक ने भाई बालाजी को कहा की हे भाई बाला ! मर्दाना किसी मुसीबत में पड़ गया है चलो हमें उसके पास जाना होगा तो सतगुरु नानक की यह बात सुनकर भाई बालाजी ने कहा सतगुरु आप जी ने तो उसे जाने से मना किया था लेकिन उसी ने आपकी आज्ञा नहीं मानी आप की बात नहीं मानी उसके साथ तो ऐसा होना ही चाहिए, तो सतगुरु नानक ने कहा कि हे भाई बाला वह मेरा साथी है वह मेरा सहयोगी है मुझे उससे बहुत काम है चलो हमें उसके पास जाना है तो सतगुरु नानक और भाई बालाजी उस तरफ चल पड़े यहां पर कौदे नामक राक्षस ने भाई मरदाना जी को बंदी बना रखा था चलते चलते भाई बालाजी सतगुरु नानक से कहने लगे गुरुजी हमें जाते-जाते देर हो जाएगी इससे पहले कहीं कोई भाई मरदाना को कोई नुकसान ना पहुंचा दे इसलिए हमे जल्दी जना होगा तो सतगुरु नानक ने भाई बालाजी की यह बात सुनकर उनका हाथ पकड़ा और भाई बालाजी को आंखें बंद करने के लिए कहा तो जैसे ही भाई बालाजी ने आंखें बंद की सतगुरु नानक और भाई बालाजी वहां से अलौप हो गए और वहां पहुंच गए यहां पर उस कौदे राक्षस ने भाई मरदाना जी को बंदी बना रखा था जब सतगुरु वहां पर पहुंचे तो सतगुरु शब्द स्वरूप में थे और भाई बालाजी भी उनके साथ ही थे केवल भाई मरदाना जी ही उन्हें देख सकते थे और कोई उन्हें नहीं देख सकता था तो जैसे ही भाई मरदाना जी ने सतगुरु नानक को अपने समीप पाया तो उनका सभी डर खत्म हो गया और सतगुरु को देख उन्हें बहुत खुशी हुई और शर्मिंदा भी हुए कि उन्होंने सतगुरु की बात नहीं मानी थी साध संगत जी गुरु अक्सर अपने शिष्य की संभाल करने के लिए हाजिर हो जाता है वह कभी देर नहीं लगाता जब भी कोई सच्चे मन से गुरु को पुकारता है उसके नाम का सिमरन करता है तो गुरु उसकी संभाल करने के लिए वहां पहुंच जाता है लेकिन वह हमें दिखाई नहीं देते क्योंकि उनका वह स्वरूप देह स्वरूप नहीं होता वह शब्द स्वरूप होते हैं और शब्द स्वरूप में आकर हमारे कार्य सवार जाते हैं और हमें पता भी नहीं चलता कि यह कैसे हो गया ऐसे सद्गुरु अंग संग होकर हमारी संभाल करते हैं तो साध संगत जी जब सतगुरु भाई मरदाना जी के पास पहुंच गए तो भाई मरदाना जी का सभी डर खत्म हो गया था और जब वह राक्षस भाई मरदाना जी को देखने आया और उसने देखा कि अब तेल गर्म हो गया है अब मैं इसे उठाकर तेल में डाल देता हूं तो भाई बालाजी सतगुरु नानक को कहते हैं कि गुरु जी अब तो हम यहां पर आ गए हैं हमें भाई मरदाना जी को यहां से छुड़ाना चाहिए तो सतगुरु नानक भाई बालाजी की यह बात सुनकर कहते हैं कि नहीं अभी नहीं भाई बाला ! करतार के रचे हुए इस तमाशे को देखो वह प्रभु क्या-क्या खेल रचता है तो जब वह भाई मरदाना जी को पकड़कर तेल में डालने लगता है तो भाई मरदाना जी मन में सतगुरु का सिमरन कर रहे होते हैं वाहेगुरु का सिमरन कर रहे होते हैं और उन्हें यह तसल्ली हो जाती है कि सतगुरु उनके पास है उन्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है तो जब वह राक्षस भाई मरदाना जी को गर्म तेल में डालने लगता है और देखता है कि जिसे मैं गरम तेल में डाल रहा हूं इसके अंदर किसी तरह का कोई डर नहीं है जबकि आज तक मैंने जितने भी मनुष्य को मारा है जितनों को भी खाया है वह मुझे देखकर डरने लगते हैं और मृत्यु से पहले कांपते रहे हैं और मुझसे जीवन की भीख मांगते रहे है लेकिन यह कुछ अजीब लगता है इसके अंदर कोई भी डर नहीं है तो जब वह भाई मरदाना जी को गर्म तेल में डालने लगता है और जब तेल भाई मरदाना जी की पीठ पर लगता है तो भाई मरदाना जी को तेल गर्म नहीं लगता बल्कि ठंडा लगता है और जब राक्षस देखता है कि इसे कोई भी तकलीफ नहीं हुई तो वह तेल में हाथ डालकर देखता है तो जब वह तेल में हाथ डालता है तो वह पाता है कि तेल तो ठंडा हुआ पड़ा है यह कैसे हो गया क्योंकि वह तो इतनी देर से उसे गर्म कर रहा था तो वह समझ जाता है कि अवश्य ही इसकी कोई संभाल कर रहा है कोई इसकी रक्षा कर रहा है तो वह राक्षस भाई मरदाना जी को कहता है जिसे भी याद करना हो कर ले क्योंकि मुझसे आज तक ना ही कोई बचा है और ना ही कोई बच सकता है तो उसकी यह बात सुनकर भाई मरदाना जी मुख्य से वाहेगुरु वाहेगुरु शब्द का उच्चारण करने लग जाते हैं और सतगुरु नानक को याद करने लग जाते हैं तो भाई मरदाना जी के शब्द उच्चारण के तुरंत बाद सतगुरु वहां पर प्रकट हो जाते हैं और सतगुरु को वहां पर देख वह राक्षस अचंभित हो जाता है और उसे यह मालूम हो जाता है ये कोई साधारण मनुष्य नहीं है और जब वह गुफा में टांगे हुए अपने उस शीशे की तरफ देखता है तो उस शीशे में सतगुरु नानक को देखता है और वह समझ जाता है कि यही गुरु नानक है जिन्होंने मेरा उद्धार करना है तो सतगुरु के दर्शन कर वह उनके चरणों में गिर पड़ता है और जंगल में जाकर फल लेकर आता है और सतगुरु को भेट करता है सतगुरु नानक वह फल भाई मर्दाना और भाई बालाजी को दे देते हैं और उस पर कृपा की दृष्टि कर उसका उद्धार कर देते हैं तो जब सतगुरु की दृष्टि कौदे राक्षस पर पड़ती है तो वह मानव देह में आ जाता है और अपनी सारी कहानी सद्गुरु को बताता है कि वह पहले एक पंडित हुआ करता था जोकि अपने गुरु से शिक्षा पा रहा था लेकिन शिक्षा पाकर वह जब अपने घर चला गया तो एक दिन उसके गुरुजी उसके घर आए लेकिन उसने उनका सम्मान नहीं किया वह अपने अहंकार में आकर अपने काम में लगा रहा और कहने लगा कि मुझे उस समय मान और प्रतिष्ठा बहुत मिल चुकी थी क्योंकि खुद राजा भी मुझसे सलाह लेने आते थे तो इसी के कारण मेरा अहंकार बहुत बढ़ गया था और मैंने अपने गुरु जी का निरादर किया और उन्हें अपने घर से जाने के लिए कहा तो जब मेरे गुरु ने अपना निरादर हुआ देखा तो उन्होंने मुझे श्राप दे दिया कि जिस ज्ञान पर तू इतना अहंकार कर रहा है जो कि मेरा ही दिया हुआ है तेरा यही ज्ञान नष्ट हो जाएगा और तू राक्षस बनकर घूमेगा तो वह कहता है कि अपने गुरु जी का यह श्राप सुनकर मैं अंदर से डर गया और कांपने लगा कि मुझे श्राप दे दिया गया है और वह भागकर अपने गुरु जी के चरणों पर गिर पड़ा और शमा मांगने लगा कि मुझसे गलती हो गई है कृपया आप ने जो श्राप मुझे दिया है उसे वापस ले लें, तो वह कहने लगा कि उसको चरणों पर गिरा हुआ देख उसके गुरु ने कहा कि भविष्य में नानक नाम के संत आएंगे वही तेरा उद्धार करेंगे तो उसने कहा कि वह उन को कैसे पहचानेगा तो उसके गुरु जी ने उसे एक शीशा दिया जिस शीशे में केवल सतगुरु नानक ही दिखाई दे सकते थे कोई साधारण मनुष्य उसमें दिखाई नहीं देता था और उसे वह शीशा देकर कहा कि इसके माध्यम से तुम उनकी पहचान कर पाओगे वह जब भी तुम्हारे पास आएंगे वह इस शीशे में दिखाई पड़ेंगे तो तुम समझ जाना कि यही गुरु नानक है तो साध संगत जी ऐसे सतगुरु नानक ने कौदे नामक राक्षस का उद्धार किया था और उसे अपनी शरण बख़्शी थी, साध संगत जी इस साखी से हमें भी यही प्रेरणा मिलती है कि संत महात्मा इस संसार में केवल हमारा उद्धार करने ही आए होते हैं वह चुन-चुन कर जीवो का उद्धार करते हैं उनका और कोई मकसद नहीं होता वह तो केवल अपना उपदेश इस संसार में फैला कर हमारा मार्गदर्शन करने आए होते हैं ।

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By Sant Vachan


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