एक सत्संगी को यह बात कभी किसी को नहीं बतानी चाहिए कि वह कितनी सेवा करता है और कितनी भजन बंदगी करता है क्योंकि इससे हमारे अंदर अहंकार का जन्म होता है और किसी की सहायता करते समय हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि वह भविष्य में हमारे काम आएगा ।
बस सहायता करके उसे वही भूल जाना चाहिए क्योंकि ये आशा का भाव ही भविष्य में हमारे दुख का कारण बनता है हम जो भी कर रहे हैं वह मालिक देख रहा है उससे कुछ छिपा हुआ नहीं है और दूसरे जो कर रहे है वह भी उससे छिपा हुआ नहीं है वह सब देख रहा है तो हमें ना ही किसी को बताना चाहिए और ना ही उसकी सहायता कर उसे जताना चाहिए, बस इतना विश्वास रखना चाहिए कि जैसे उसकी सहायता के लिए मालिक ने हमें भेजा, तो ऐसे ही जब हमें आवश्यकता होगी वह मालिक हमारी मदद के लिए भी किसी ना किसी को जरूर भेजेगा ।
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