साध संगत जी आज की ये साखी एक सत्संगी बुजुर्गों द्वारा संगत को सुनाई गई है और साखी की शुरुआत में आप जी फरमाते हैं कि जो सत्संगी लोग अपने घरवालों को सेवा पर जाने से रोकते हैं उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जब वह किसी को सेवा पर जाने से रोकते हैं
तो उन्हें उनका भार भी उठाना पड़ता है क्योंकि गुरु घर से तो सेवा का हुक्म हो गया था मालिक ने तो अपनी तरफ से हमें सेवा करने का हुक्म दे दिया था लेकिन अगर हम उसे ठुकरा देते हैं तो इसमें कमी हमारी तरफ से है गुरु की तरफ से कोई कमी नहीं है मालिक की तरफ से कोई कमी नहीं है और अगर हम खुद भी सेवा पर नहीं जाते और अपने घर वालों में से भी किसी को सेवा पर जाने से रोकते हैं और उन्हें भी नहीं जाने देते तो उसका मूल्य भी हमें चुकाना पड़ता है क्योंकि गुरु घर की सेवा ऐसे ही किसी को नहीं मिल जाती जिनके बहुत अच्छे कर्म होते हैं जिन्होंने कुछ ना कुछ कमाई की होती है वह सतगुरु वह मालिक उसी अभ्यासी को सेवा करने का हुक्म देता है सेवा का निमंत्रण उसके पास भेजता है नहीं तो हम देख सकते हैं कि कुछ संगत ऐसी है जिनको चाह कर भी सेवा नहीं मिल पाती वह सेवा करने का अवसर ढूंढते हैं लेकिन किसी कारण वश उन्हें सेवा नहीं मिल पाती क्योंकि गुरु घर की सेवा जिनके बहुत अच्छे भाग होते हैं उन्हीं को मिलती है और यह बात बानी में भी फरमाई गई है कि बिना कर्मों के सत्संग नहीं मिलता बिना कर्मों के सेवा नहीं मिलती जिस पर उस मालिक की दया होती है जिसे वह अपने साथ मिलाना चाहता है उसी को सेवा करने का अवसर देता है और उसी को वह साध संगत करने की सोबत देता है तो साध संगत जी आप जी कहते हैं की एक सत्संगी परिवार जिनको मैं अच्छी तरह से जानता हूं जो कि गाजियाबाद में रहते हैं और वहां पर उनका कपड़े का कारोबार है और उनका बहुत अच्छा कारोबार वहां पर चल रहा है लेकिन कुछ वर्ष पहले उनका कारोबार ठीक ठाक था और ना ही इतना बड़ा था लेकिन फिर भी उस समय उन्हें किसी चीज की कमी नहीं हुई थी उनका कारोबार अच्छा चलता था और वह उस समय सेवा का कोई अवसर भी नहीं छोड़ते थे एक हफ्ते में वह गुरु घर की एक सेवा जरूर लगाते थे और उनका सेवा की तरफ ध्यान था और उस समय उन्हें नाम की बख्शीश भी नई-नई हुई थी उसके बाद उन्होंने रोहानियत की तरफ ध्यान देना शुरू कर दिया था वह सेवा पर जाने लगे थे तो ऐसे ही धीरे-धीरे उनका काम अच्छा चलने लगा पहले उनकी वहां पर एक दुकान थी और उसके बाद उन्होंने अपनी दूसरी दुकान भी वहां पर खड़ी कर ली और ऐसे ही धीरे धीरे उनकी वहां पर चार दुकानें हो गई मालिक की उन पर बहुत कृपा हो गई तो साध संगत जी आप जी कहते हैं कि जब इस दुनिया में हमारे पास हमारी जरूरत से ज्यादा चीजें हमें मिल जाती हैं हमारी जरूरत से ज्यादा धन हमें मिल जाता है तो हमारा ध्यान अपने आप ही रूहानियत से हट जाता है और हम इस संसार की मोह माया में पड़ जाते हैं उसी में व्यस्त रहते हैं तब हमारे पास मालिक के लिए समय नहीं निकल पाता और हमारा ध्यान उस तरफ से हट जाता है तो ऐसा ही उनके साथ भी हुआ और यह बात मैं आपसे इसलिए साझा कर रहा हूं कि उन्होंने अपनी यह बातें मुझे खुद बताई हैं क्योंकि मेरे उनसे बहुत अच्छे संबंध हैं तो जब उनका कारोबार अच्छा चलने लगा तो जहां पर वह 1 हफ्ते में एक सेवा लगाते थे तो अब वह महीने में एक बार जाने लगे थे जैसे जैसे उनका कारोबार बढ़ता गया उनका ध्यान रूहानियत की तरफ से कम होता गया तो एक समय ऐसा भी आया जब उन्होंने सेवा पर जाना ही बंद कर दिया और जब मैंने उनसे पूछा कि आप सेवा पर क्यों नहीं आते तो उन्होंने मुझे उस समय यही जवाब दिया कि अब कारोबार से ही फुर्सत नहीं मिलती काम ही इतना होता है की चाह कर भी मैं सेवा के लिए समय नहीं निकाल पाता तो जब उन्होंने सेवा पर जाना बंद कर दिया तो उनके घर कुछ सत्संगी सेवादार सेवा के लिए कहने गए कि हमारे सत्संग घर से सेवा जा रही है आपके परिवार से भी किसी ना किसी को हमारे साथ चलना पड़ेगा क्योंकि सेवादारों की कमी हो गई है तो आपको भी अपना नाम सेवा की सूची में लिखाना होगा लेकिन उन्होंने उस समय भी जवाब दे दिया जबकि उस परिवार में से उस सत्संगी की पत्नी कहती है कि मैं सेवा पर चली जाती हूं बहुत दिन हो गए हैं मैं सेवा पर नहीं गई मेरा सेवा पर जाने का बहुत मन कर रहा है लेकिन उस सत्संगी ने अपनी पत्नी को भी सेवा पर जाने से मना कर दिया क्योंकि उन्हें अब अपनी दुकानों को भी देखना पड़ता था क्योंकि बहुत सारी दुकानें उनकी वहां पर हो गई थी तो कभी घर से उनकी पत्नी दुकान पर बैठ जाती कभी वह बैठ जाते तो किसी ना किसी को दुकान पर बैठना पड़ता था दुकानों की देखरेख करनी पड़ती थी जैसे कि घर में सभी की ड्यूटी लगी हो इतने से इतने बजे तक आपको दुकान पर बैठना है काम करना है तो इसी के कारण उसने अपनी पत्नी को सेवा पर जाने से रोका और काम पर ध्यान देने के लिए कहा तो जब वह अपने पति के कहने पर सेवा पर नहीं गई तो उसे बहुत दुख लगा कि पहले मैं सेवा पर जाया करती थी संगत के साथ सेवा किया करती थी और कितना आनंद आता था लेकिन जब से इस काम में पड़ी हूं तब से मुझे ना तो अपने लिए समय मिल पा रहा है और ना ही सेवा के लिए मैं जा पा रही तो उसके अंदर एक रोस पैदा हो गया और वह अंदर ही अंदर सतगुरु से अरदास कर रही थी कि मुझ पर भी कृपा करें मुझे भी अपनी सेवा में शामिल करें तो साध संगत जी वह अपने पति से नाराज भी थी क्योंकि उसने उसको सेवा पर नहीं जाने दिया था तो उसके कुछ दिनों बाद उन्हें एक बड़ा ऑर्डर मिलता है और वह बहुत खुश होते हैं क्योंकि उसमें उनका बहुत मुनाफा होता है लेकिन ऐसा नहीं हो पाता क्योंकि जिन्होंने उन्हें वे आर्डर दिया होता है वह उसको कैंसिल कर देते हैं और किसी दूसरे डीलर को वह ऑर्डर दे देते है और जब वह इसकी बात उनसे करते हैं तो वह इसकी कोई खास वजह नहीं बताते और ऑर्डर कैंसिल कर किसी दूसरे डीलर को दे देते हैं तो अपने साथ ऐसा हुआ देख वह दुखी होते हैं कि इतना बड़ा ऑर्डर मिला था और फिर कैंसिल हो गया ऐसे कैसे हो सकता है क्योंकि हमारे साथ तो ऐसा कभी नहीं हुआ, लोग हम पर विश्वास करते हैं और विश्वास कर कर ही हमको आर्डर देते हैं और आज तक कभी भी कोई आर्डर कैंसिल नहीं हुआ यह तो हमारे साथ पहली बार हुआ है कितना बड़ा बॉर्डर हमें मिला और उसके अगले ही दिन वह ऑर्डर कैंसिल कर दिया गया तो साध संगत जी वह सत्संगी जिसकी दुकानें होती है वह थोड़ा परेशान हो जाता है और दुखी होकर घर लौटता है तो जब उसकी पत्नी उसे परेशान देखती है तो वह अपने पति के पास जाकर बैठ जाती है और उनके परेशान होने का कारण पूछती है तो वह कहता है कि मुझे एक बड़ा ऑर्डर मिला और फिर वह कैंसिल कर दिया गया और इसी बात की मुझे हैरानी हो रही है और दूसरी बात यह है कि वह आर्डर कैंसिल कर कर मेरे साथ इस शहर में जो दूसरी दुकाने है उनको दे दिया गया है तो साध संगत जी उनकी पत्नी को सतगुरु का यह इशारा समझ में आ जाता है कि हमारे साथ ऐसा क्यों हुआ है और वह यह बात समझ जाती है कि कुछ दिन पहले मुझे सेवा का हुक्म आया था और उन्होंने मुझे सेवा पर जाने से मना कर दिया लेकिन मेरे अंदर सेवा पर जाने की तड़प थी सेवा पर जाने की चाहत थी तो शायद इसीलिए सतगुरु हमें इशारा दे रहे हैं कि भाई दुनिया के काम काजो में इतने भी मस्त ना हो जाओ कि रूहानियत को ही भूल जाओ, ठीक है कि हमें दुनिया के कार विहार भी करने हैं काम धंधे भी करने हैं लेकिन हमें इतना भी व्यस्त नहीं होना है कि हम गुरु कर के लिए समय ना निकाल पाए अपने सतगुरु के लिए समय ना निकाल पाए और इसीलिए सतगुरु ने हमें यह इशारा दिया है और वह अपने पति से कहती हैं कि आप पहले हफ्ते में एक सेवा लगाते थे और उसके बाद आपने सेवा पर जाना बिल्कुल ही बंद कर दिया जबकि आप जब पहले सेवा पर जाते थे तब भी हमारा कारोबार अच्छा चलता था हमें कभी भी किसी चीज की कमी नहीं हुई थी सतगुरु ने कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी, लोग हमारे घर आकर हमें ऑर्डर दे जाया करते थे लेकिन जब आपने सेवा पर जाना बिल्कुल ही बंद कर दिया वह भी इसलिए क्योंकि आप पर बहुत काम पढ़ने लगा और आप काम में व्यस्त रहने लगे तो जब आपके साथ ऐसा हुआ और फिर सतगुरु ने हमारे घर सेवादारों के रूप में आकर हमें सेवा पर आने का निमंत्रण दिया तो हमने वह भी ठुकरा दिया तो इसीलिए हमारे साथ ही ये हुआ है सतगुरु हमें यह समझाना चाहते हैं कि हमें धन दौलत से इतना प्यार नहीं पाना चाहिए जो हमसे हमारी सेवा ही छीन ले जो हमसे हमारा सत्संग ही छीन ले और जब ऐसा होने लग जाए तो हमें सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि यह हमारा मन ही है जो हमारे साथ खेल खेल रहा होता है हमें दुनिया में उलझाने की कोशिश करता है इसीलिए तो अक्सर सतगुरु फरमाते हैं कि भाई रोज भजन बंदगी में बैठो ताकि आपको रोज उस मालिक की याद आए और आपके अंदर उसकी याद बनी रहे ताकि आप उसे भूल ना सके इसीलिए रोजाना भजन बंदगी करने के लिए बोला जाता है और जो लोग नाम की कमाई करते है उन्हें वह मालिक इस संसार में किसी चीज की कमी नहीं आने देता फिर चाहे वह काम करें या ना करें लेकिन मालिक उनके कार्य अपने आप सवार देता है जैसे कि अक्सर फरमाया जाता है कि अगर हम नाम की कमाई करेंगे तो वह मालिक हमारा परमार्थ भी बना देगा और हमारा स्वार्थ भी बना देगा साध संगत जी ऐसी ही एक साखी संत हरनाम सिंह जी की है जिनकी कपड़े की दुकान थी, परन्तु सन्तों की सेवा में इतना समय लग जाता कि दुकान दिन में कभी दो-चार घण्टे ही खुलती और कभी बिल्कुल बंद रहती, यह कथन बिल्कुल सत्य है कि जो सदगुरु का जिक्र करते है, सदगुरु स्वयं उनकी फिक्र करते है, ऐसा ही संत हरनाम सिंह जी के साथ होता रहा, आप चाहे दुकान थोड़े समय के लिए खोलते रहे, परन्तु उसी समय में दिन भर की कमाई हो जाती थी, एक दिन तो आपकी दुकान के आस पड़ोस वाले दुकानदार इखट्ठे होकर आपके पास आए और कहने लगे, "हरनाम जी,एक बात हमें बताईये कि क्या आप ग्राहकों को टाईम देकर आते हो, आप जिस समय दुकान खोलते हो, ग्राहकों की लाइनें लग जाती है और दूसरी तरफ़ हम सुबह से धूप-बत्ती जलाकर ग्राहकों के इंतज़ार में बैठते है, निगाहें सड़क की ओर रहती है कि कौन सा ग्राहक दुकान के अंदर आएगा, परंतु आप तो दुकान का ताला खोलते ही हो कि ग्राहकों का तांता लग जाता है और आप दो घण्टे में ही दिन-भर की कमाई करके सुरखरु हो जाते हो, तो संत हरनाम सिंह जी ने नम्रता से जवाब दिया कि "भाई साहब, न मैं ग्राहकों को बता कर आता हूँ और न ही मेरे ग्राहक पक्के है, केवल इतना है कि जिस मालिक (सदगुरु) की मैं नौकरी करता हूँ, वह मेरा बहुत ध्यान रखता है, मेरा मालिक इन ग्राहकों को स्वयं ही उसी समय भेजता है जब मैं दुकान पर होता हूँ और मुझे
अपनी सेवा के लिए समय दे देता है, तो साध संगत जी इस साखी से हमें यही प्रेरणा मिलती है कि जब हम मालिक की भजन बंदगी करने लग जाते है और उसकी सेवा को अहमियत देने लग जाते है तो फिर वह सतगुरु वह मालिक हमारी फिक्र करने लग जाता है तो साध संगत जी जब भी हमें लगे कि हम दुनिया के काम काजो में ज्यादा व्यस्त रहने लग गए है और रूहानियत से दूर होते जा रहे हैं तो हमें सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि हम जो दुनिया में करते हैं वह हमारे लेखे में नहीं लिखा जाएगा लेकिन जो हमने रूहानियत के इस मार्ग पर चलकर किया होगा और जो भी हम करेंगे वह हमारे हिसाब में लिखा जाएगा और अंतिम समय वही सहाई होगा और दुनिया की कोई भी चीज उस समय हमारे साथ नहीं जा सकती और ना ही हम उसे ले जा सकते है अगर जाएगा तो वह केवल गुरु का नाम जाएगा गुरुघर की, की हुई सेवा जाएगी ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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