सतगुरु फरमाते थे जो सत्संगी मेरी संगत की सेवा करता है उसको इस बात की फिक्र ही छोड़ देनी चाहिए कि उसे 84 के दौर से गुजरना पड़ेगा और अगर मेरा सत्संगी सेवा के साथ भजन बंदगी को भी पूरा समय देता है तो उसको इस बात की चिंता छोड़ ही देनी चाहिए कि उसका दोबारा जन्म होगा क्योंकि भजन बंदगी के जरिए ही हम यहां से मुक्ति पा सकते हैं इसके अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं है सेवा करने से हम उस मालिक के नजदीक जाने लगते हैं,
सेवा करने से हम भजन बंदगी के लिए त्यार हो रहे होते है माहौल बना रहे होते है लेकिन छुटकारा तो भजन करने से ही होगा सेवा करने से हमारे अंदर प्रेम और नम्रता का वास हो जाता है, जिससे कि हमे भजन बंदगी करने में आसानी होती है और हमारा मन प्रेम करना और निम्रता से रहना सीख जाता है प्रेम और नम्रता एक ऐसी महक हैं, जिसकी खुशबु से वह मालिक भी अपने उस शिष्य की तरफ खींचा चला आता है
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