सिमरन छूट गया तो समझो गुरु रूठ गया और जिसका गुरु रूठ जाये उसका क्या हाल होता है यह तो सांई बुल्लेशाह जी से पूछो जिन्होंने अपने गुरु को मनाने के लिए कबीले वालों के पास जाकर नाचना गाना सीखा, पता चला कि गुरु इधर आ रहे है,
तो वहां जाकर भेष बदल कर नाचना शुरू कर दिया, इतना नाचे कि थक कर गिरने लगे और गुरु ने हाथ पकड़ कर संभाल लिया और पूछा कि तुम बूल्ला हो, तो उन्होंने कहा कि नहीं साई मैं बुल्ला नहीं••• मैं तो भुल्ला हूँ•••• तो ये सुनकर गुरु ने उसी समय गले से लगा लिया तो साध संगत जी एक दिन का भी सिमरन में नागा हमें एक महीना पीछे कर देता है, इसलिए हमें हमेशा अपना ध्यान सिमरन और भजन में रखना चाहिए और रोजाना बिना नागा उसके हुक्म के अनुसार बैठक करनी चाहिए ताकि हमारा गुरु हमसे रूठे ना और ये ना कहें कि हमने भजन बंदगी नहीं की ।
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