Guru Nanak Saakhi : पति-पत्नी के रिश्ते को लेकर सतगुरु क्या उपदेश करते है । जरूर सुने

 

साध संगत जी आज की ये साखी सतगुरु नानक के समय की है जब सतगुरु नानक भाई मरदाना जी के साथ संसार की यात्रा करते हुए एक ऐसे गांव में गए जहां पर एक अमीर सेठ रहता था जिसका सभी गांव वाले बहुत मान आदर करते थे क्योंकि वह बहुत धनी व्यक्ति था लेकिन उसका अपनी पत्नी के साथ रिश्ता इतना अच्छा नहीं था तो जब सतगुरु नानक भाई मरदाना जी के साथ वहां पर गए और वहां जाकर सतगुरु ने आसन लगा लिया तो सतगुरु ने सेठ को क्या उपदेश दिया आइए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।

साध संगत जी जब सतगुरु नानक भाई मरदाना जी के साथ संसार की यात्रा करते हुई ईश्वर का संदेश जगह-जगह तक पहुंचाने के उद्देश्य से जा रहे थे तो सतगुरु अक्सर रास्ते में विश्राम करने के लिए रुक जाते थे उसके बाद अपनी आगे की यात्रा शुरू करते थे तो ऐसे ही जब सतगुरु नानक भाई मरदाना जी के साथ करतार की बंदगी में लीन उसके नाम का कीर्तन करते हुए जा रहे थे तो चलते-चलते भाई मरदाना जी ने सतगुरु नानक को विश्राम करने के लिए कहा और भाई मरदाना जी कहने लगे सतगुरु मैं बहुत थक गया हूं आप भी बहुत थक गए होंगे हमें अब विश्राम करना चाहिए क्योंकि मुझसे और चला नहीं जाता तो जब यह बात भाई मरदाना जी ने सतगुरु नानक से कहीं तो सतगुरु ने कहा हे मरदाने ! जीवन बहुत छोटा है यात्रा बहुत लंबी है अभी बहुत काम पड़े हैं तो भाई मरदाना जी ने सद्गुरु की यह बात सुनकर कहा कि सतगुरु मुझे प्यास भी लगी है और पानी की वजह से मुझसे चला भी नहीं जा रहा तो कृपया हमें थोड़ी देर विश्राम कर लेना चाहिए साध संगत जी जब भी सतगुरु ने किसी का उधार करना होता था तो सतगुरु कभी भाई मरदाना जी की प्यास को और बढ़ा देते थे तो कभी भाई मरदाना जी को भूख लग जाया करती थी तो भाई मरदाना जी सतगुरु नानक से अपनी भूख और प्यास की बात आगे रखते थे और विश्राम करने के लिए कहते थे तो ऐसे ही जब भाई मरदाना जी ने सतगुरु नानक से विश्राम करने के लिए कहा तो सतगुरु नानक और भाई मरदाना जी एक पेड़ के नीचे बैठ गए और सतगुरु नानक ने भाई मरदाना जी को रबाब छेड़ने के लिए कहा और सतगुरु नानक करतार के नाम का कीर्तन करने लग गए तो सतगुरु को कीर्तन करता देख आसपास के सभी गांव वाले सतगुरु के इर्द-गिर्द इकट्ठे हो गए और उनके पास आकर बैठ गए जहां पर सतगुरु नानक और भाई मरदाना जी विराजमान थे वहीं पास में ही एक धनवान सेठ की दुकान थी जो कि अपने काम में बहुत व्यस्त था और उसने बहुत सारे लोग अपनी दुकान पर काम करने के लिए रखे हुए थे सभी व्यस्त दिखाई दे रहे थे तो उसे काम में व्यस्त पड़ा देख भाई मरदाना जी ने सतगुरु नानक से कहा सतगुरु इस सेठ के मन में करतार के प्रति कोई भक्ति भाव नहीं है क्योंकि ये अपने काम में इतना व्यस्त दिखाई दे रहा है जैसे कि इसे ईश्वर से कोई लेना-देना ही ना हो और ना ही इसके मन में संतों के प्रति कोई सेवा भाव दिखाई दे रहा है और ना ही यह आस्तिक दिखाई पड़ता है लेकिन फिर भी यह कितना सुखी है इतना बड़ा इसका कारोबार है इतने सारे लोग इसकी दुकान पर काम कर रहे हैं तो सतगुरु नानक ने भाई मरदाना जी की यह बात सुनकर भाई मरदाना जी को कहा कि हे मरदाने !अगर तुझे वह सुखी मालूम पड़ता है तो जाओ जाकर उसका हालचाल पूछ कर आओ तो सतगुरु की आज्ञा मानकर जब भाई मरदाना जी उस सेठ के पास गए जो कि अपने काम में व्यस्त था और बाहर से खुश दिखाई पढ़ रहा था लेकिन जब भाई मरदाना जी ने उससे उसका हाल पूछा तो वह रोने लग गया और भाई मरदाना जी को कहने लगा कि आप फकीर के वेश में हो इसलिए मैं आपको अपना हाल बताता हूं मैं इस नगर का सबसे धनवान व्यक्ति हूं यह मेरा कारोबार है मेरे पास किसी चीज की कमी नहीं है जरूरत से ज्यादा धन मेरे पास है लेकिन मैं अपनी पत्नी से बहुत दुखी रहता हूं मैं अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था लेकिन एक दिन उसकी तबीयत खराब हो गई तो मैंने उसका इलाज करवाना शुरू करवाया तो सभी वेद हकीमों ने जवाब दे दिया था कि यह आपकी पत्नी ठीक नहीं हो सकती तो ये सुनकर मेरी पत्नी मुझसे कहने लगी कि आप किसी दूसरी स्त्री से शादी कर लेना क्योंकि मैं अब नहीं बचूंगी आप इस गांव के धनवान व्यक्ति हैं आपको किस चीज की कमी है जब आप दूसरी शादी कर लोगे तब मुझसे भी ज्यादा प्यार करने वाली आपको मिल जाएगी तब आप मुझे भूल जाएंगे तब फिर आपको मेरी याद नहीं आएगी तो ये सुनकर वह सेठ कहता है कि मैं अपनी पत्नी की यह बात सुनकर उसके पास बैठ कर रोने लग गया और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहने लगा कि मैं तुम्हारे होते हुए किसी दूसरी स्त्री से शादी कैसे कर सकता हूं मैंने सच्चे मन से तुम्हें अपना जीवनसाथी माना है और मुझे केवल तुमसे प्रेम है मैं किसी दूसरी स्त्री से शादी नहीं कर सकता तो उसकी यह बात सुनकर उसकी पत्नी कहती है कि मैं आपकी यह बात कैसे मान लूं क्योंकि जब तक मैं जीवित हूं तब तक कि मैं आपको जानती हूं लेकिन जब मैं यहां नहीं रहूंगी तब आप दूसरी शादी कर लेंगे मुझे इस बात पर कैसे विश्वास हो कि आप केवल मुझसे ही प्रेम करते हैं और आप दूसरी शादी नहीं करेंगे तो ये सुनकर वह सेठ का मन बहुत दुखा क्योंकि उसकी पत्नी ने उसे ऐसे शब्द कहे जो उसके दिल को ठेस पहुंचा गए लेकिन उसके बाद उस सेठ की पत्नी ठीक होने लगी उसकी तबीयत में कुछ सुधार आने लगा और समय के साथ वह बिल्कुल ठीक हो गई तो जब वह ठीक हो गई तो उसने गलत काम करने शुरू कर दिए वह पराए मर्दों को अपने घर लेकर आने लगी और उनके साथ भोग विलास करने लगी जिसे देखकर सेठ का मन बहुत दुखी होता वह अंदर ही अंदर बहुत परेशान होता और यह सोचता रहता कि समाज में मेरी इतनी इज्जत बनी हुई है इतना मान सम्मान मुझे मिलता है लेकिन मेरी पत्नी की वजह से मुझे समाज में बेइज्जत होना पड़ता है इतना सब कुछ होते हुए भी मैं सिर उठाकर नहीं चल पाता बस यही बात का मुझे दुख है और मैं अपने दुख में दिन-रात डूबा रहता हूं तो जब यह बातें सेठ ने भाई मरदाना जी को कहीं तो भाई मरदाना जी सोचने लगे कि सतगुरु ठीक कहते है कि इस संसार में सुख नहीं है क्योंकि ये हमारा सच्चा लोग नहीं है यहां पर जो कोई भी सुखी दिखाई पड़ता है जब उससे उसका हाल पूछा जाता है तो उसके अंदर से फुट फुटकर दुख निकलते है तो भाई मरदाना जी ने सेठ से कहा कि मेरे साथ एक संत आए हैं वह आपकी इस मुश्किल का हल कर देंगे वह सभी की मुश्किलों को दूर करते हैं वह कृपा निधान दया के सागर गुरुजी हैं जिन्होंने अनेकों लोगों का उद्धार किया है राजे महाराजे उनके आगे नतमस्तक होते हैं आप मेरे साथ चलिए वह आपकी इस मुश्किल को दूर कर देंगे तो जब भाई मरदाना जी सेठ को लेकर सतगुरु नानक के पास गए सतगुरु नानक करतार के ध्यान में लीन थे तो जब सेठ ने सतगुरु नानक को प्रणाम किया तो सतगुरु ने अपनी आंखें खोली और उससे उसका हाल-चाल पूछा साध संगत जी सतगुरु तो जानी जान होते हैं उनसे कुछ कहना नहीं पड़ता लेकिन फिर भी वह हमसे हमारा हाल जानने के लिए हमारा हाल चाल पूछ लेते हैं नहीं तो उन्हें कुछ बताने की जरूरत नहीं पड़ती कि हम किस स्थिति में है कितने दुख में हैं तो जब सेठ ने दुखी मन से अपना हाल सतगुरु को बताया और सतगुरु को अपने साथ घर ले जाने की बात कही तो सतगुरु ने भाई मरदाना जी को सेठ के घर चलने के लिए कहा तो जब सतगुरु नानक और भाई मरदाना जी उस सेठ के घर पहुंच गए तो सेठ ने सतगुरु को सुंदर पलंग पर बिठाया उनके चरणों को धोया और चरण कमलों पर वंदना की, आसपास के लोग भी सेठ के घर इकट्ठे हो गए तो सेठ ने अपनी पत्नी को सतगुरु नानक के चरणों पर वंदना करने के लिए कहा तो अपने पति की बात मानकर जब उसने सतगुरु के चरणों पर प्रणाम किया तो सतगुरु ने सेठ की पत्नी को उपदेश दिया की स्त्री को अपने पति की आज्ञा में रहकर जीवन व्यतीत करना चाहिए और सतगुरु ने कहा पति भले ही दुबला, पिंगला या फिर कोहडी ही क्यों ना हो लेकिन पत्नी उसको ईश्वर समान ही जानती है सभी प्रकार से उसकी सेवा करती है किसी दूसरे मनुष्य के लिए रत्ती भर भी वह अंदर प्यार नहीं रखती और जो स्त्री अपने पति को छोड़ देती है दूसरों के साथ भोग विलास करती है तो जब उसका अंतिम समय आता है तो यमदूत उसे पकड़ कर ले जाते हैं और उसे तरह-तरह की सजा देते हैं उसकी फिर कौन पुकार सुनता है समाज में निंदिया होती है और आगे जाकर भी कष्ट मिलते हैं लेकिन पतिव्रता नारी जग में जस पाती है और आगे जाकर दरगाह में भी सुख पाती है तो सतगुरु के उपदेश को सुनकर, यमो के डर से सेठ की पत्नी ने सतगुरु से कहा हे संत जी ! मुझे बक्श दे मैंने पीछे बहुत पाप किए हैं कृपया मुझे अपनी शरण बख़्शे, तो ये सुनकर सतगुरु ने कहा कि तुम्हारे पिछले सभी पाप बख्श दिए गए हैं लेकिन अब से कोई गलत काम ना करो, पति की आज्ञा के अनुसार रहो और सुख देने वाले सच्चे नाम का सिमरन करो, इस तरह सद्गुरु सेठ की पत्नी को उपदेश देकर संसार का भला करने के लिए आगे चल पड़े ।

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By Sant Vachan


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