सतगुरु महाराज फरमाते थे, आत्मा को उपर ले जाना कोई मुश्किल काम नहीं है लेकिन उचित अभ्यास के बिना उपर ले जाने से उस आत्मा का ही नुकसान होता है ! जैसे एक रेशमी कपड़ा, जो काटेदार पौधे पर फैला हुआ है अगर एका एक खींचा जाये तो वह फट कर टुकड़े टुकड़े हो जायेगा, उसी तरह आत्मा जो कर्म के काटो में फसी हुई है गुरु के प्रेम से धीरे धीरे निर्मल होकर जब भजन सिमरन करती है तो उसकी बात बन जाती है ।
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