गुरु प्यारी साध संगत जी आज की साखी सतगुरु नानक देव जी की है जो कि गुरु नानक प्रकाश ग्रंथ के अध्याय स्तारवे में दर्ज है आज की साखी में आज हम हवस व्यलायत का प्रसंग सरवन करेंगे तो आइए बड़े ही प्यार से आज का ये प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी सतगुरु नानक भाई मरदाना जी के साथ संसार का भला करते हुए जब हवस व्यलायत देश में जा पहुंचे वहां का राजा बहुत दुष्ट व्यक्ति था अगर कोई भी हिंदू धर्म का कोई व्यक्ति उसके राज में जाता था तो वह उसे मृत्यु दंड दे देता था तो इसी कारण से सभी जगह उस राजा की बातें होने लगी कि जो भी हिंदू धर्म का व्यक्ति उसके राज में जाता है वह उसे मृत्युदंड दे देता है इस तरह से आसपास के सभी राज्यों में उस राजा की चर्चा होने लगी कि वह हिंदुओं को मृत्यु देता है तो जब सतगुरु नानक उसके राज में कुकर्म कर रहे लोगों को धर्म का राह दिखाने के लिए गए तो उस समय आकाश में से एक चोला सतगुरु के चरणों पर आकर घिर पड़ा उसका रंग जाना नहीं जा सकता वह चोला अचरज था उसके ऊपर सभी प्रकार की भाषाएं लिखी हुई थी : हिंदवी, पारसी, अरबी और जो तुर्की अक्षर थे वह भी उस पर लिखे हुए थे और संस्कृत के अक्षर भी उसके ऊपर लिखे हुए थे वह चोला लेकर सतगुरु ने अपने गले में डाल लिया उसका रंग कुदरती बहुत लुभायेमान था तो जिस नगर में राजा रहता था सतगुरु उसी नगर में जाकर बैठ गए सतगुरु नानक और भाई मरदाना को देख वहां के लोग बहुत हैरान हुए जब लोगों को पता चलने लगा तो सभी लोग भाग भागकर सतगुरु को देखने आ रहे थे तो उनमें से कुछ लोगों ने सारी खबर राजा तक भी पहुंचा दी और वहां के नगरवासी राजा को जाकर कहने लगे कि हमारे नगर में एक दरवेश आया है ऐसा दरवेश हमने ना कभी पहले देखा है और ना ही इस धरती पर होगा जो कुरान के 30 सुपारें हैं वह चोले पर लिखे हुए हैं और जो पांच प्रकार के अक्षर हैं वह भी बहुत सुंदर तरीके से लिखे हुए हैं तो जब राजा ने ये सब बातें नगर वासियों से सुनी तो उसने अपने सभी वजीरों को बुला लिया और उन्हें हुकुम दिया कि बाहर एक दरवेश आया है जाओ जाकर उसका पोशाक लेकर आओ तो राजा की आज्ञा मानकर उसके वजीर जब सतगुरु नानक के पास गए और पास जाकर खड़े हो गए और सतगुरु को कहने लगे हे दरवेश ! यह जो चोला तूने डाल रखा है इसे हमें दे दो हमें आपके पास बादशाह ने भेजा है उसका हुक्म ना मोड़ो, नहीं तो वह आपको बहुत कष्ट देगा तो यह सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि अगर आपसे यह चोला उतरता है तो इसे उतार लो तो ये सुनकर वजीरों ने बहुत जोर लगाया लेकिन वह चोला उनसे नहीं उतरा तो ये देखकर वह सभी बहुत हैरान हुए और वापस राजा के पास चले गए और राजा को कहने लगे कि हमने बहुत कोशिश की लेकिन वह चोला उसके गले से नहीं उतरा तो ये सुनकर राजा बहुत गुस्से में आ गया और उसने अपने वजीरों को कहा कि उसमें हिंदुओं के लक्षण हैं अब जाओ जाकर उसे पानी में डूबा दो तो राजा का हुकुम पाकर वजीर बहुत गुस्से में सतगुरु नानक के पास आए और सतगुरु नानक को पकड़कर नदी में फेंक दिया तो जब उन्होंने सतगुरु नानक को नदी में फेंक दिया तो सतगुरु नानक ने जो चोला गले में डाला हुआ था वह रत्ती भर भी गिला नहीं हुआ उसको पानी छू भी नहीं पाया तो सतगुरु नानक नदी से बाहर आकर नदी के किनारे बैठ गए तो वहां पर मौजूद लोगों ने यह सारा दृश्य देखा तो वह बहुत हैरान हुए और उन्होंने जाकर राजा को खबर कर दी कि आपने जिसे पानी में डुबाने का हुक्म दिया था उन्हें डुबाने की कोशिश की गई है लेकिन कुछ नहीं हुआ वह बाहर आ गए तो ये सुनकर राजा और भी गुस्से में आ गया तो उसने अपनी वजीरो को हुक्म दिया कि जाओ जाकर उन्हें आग में जलाओ तो फिर से राजा का हुकुम पाकर राजा के वजीरों ने लकड़ियां इकट्ठी की और लकड़ियों को इकट्ठा कर उसमें सतगुरु नानक को बिठा दिया और चारों तरफ से आग लगा दी लेकिन वह आग सद्गुरु को छू भी नहीं पाई और आग ठंडी पड़ गई वहां पर लकड़ियों की भसम हो गई थी और सद्गुरु उनके बीच बैठे शोभ रहे थे तो जब यह दृश्य उन वजीरों ने देखा वह और भी हैरान हुए और भागकर राजा के पास गए और सारी बात राजा को बताई तो यह सुनकर राजा हैरान भी हुआ और वह और भी गुस्से में आ गया और कहने लगा यह फकीर करामाती जाप्ता है इसको मेरे सामने हाजिर करो उसके बाद इसे मृत्यु दो तो जब राजा सतगुरु नानक के सामने आया तो उसने अपने वजीरों को फिर से हुक्म दिया कि इन पर भारी पत्थर डाल दो जिसकी वजह से इनकी मृत्यु हो जाएगी तो राजा का हुकुम पाकर वजीरो ने ऐसा ही किया उन्होंने भारी पत्थर सतगुरु के ऊपर रख दिए और रखकर सभी अपने-अपने काम चले गए तो जब सुबह हुई तो वजीरों ने देखा कि सतगुरु पत्थरों के ऊपर विराजमान है इनको तो कुछ भी नहीं हुआ यह दृश्य देखकर सभी बहुत हैरान हुए और कहने लगे कि इस फकीर की गत जानी नहीं जा सकती और बादशाह को जाकर सारी खबर बताई तो जब राजा ने सारी बात सुनी तो राजा बहुत हैरान हुआ और कहने लगा हे खुदा यह क्या भेद है तो जब राजा ने अपने समझदार मंत्रियों से इसके बारे में चर्चा की तो उन्होंने राजा को कहा कि वह खुदा का रूप है आप उनके चरणों में पड़कर उनकी पूजा करें क्योंकि इतनी करामातें किसी में नहीं हो सकती और वह सभी राजा को कहने लगे कि आपने सभी तरीकों से उन्हें मारने की कोशिश की है लेकिन आप उनका कुछ भी बिगाड़ नहीं सके तो इसलिए अब आप दीन होकर उनके चरण पकड़ लें और अपनी भूल की क्षमा मांगे तो करामात देख और अपने मंत्रियों के इस तरह के वचन सुनकर बादशाह डर के कारण कांप उठा और कहने लगा कि मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी है मैंने खुदा के रूप को कष्ट दिया है अब मेरा सारा देश गर्क हो जाएगा और यह सोचकर राजा बहुत सारे उपहार लेकर सतगुरु नानक के पास गया जिस बादशाह का मन बहुत दुष्ट था भय के कारण उसका मन दीन हो गया और सतगुरु के चरणों पर जा गिरा और कहने लगा कि मैंने बहुत बड़ी भूल कर दी है कृपया आप मुझे बख्श दे आप पीरों के पीर हो आप ही खुदा हो, गुप्त हो ! आप की महिमा जानी नहीं जा सकती मैं आप जी की रजा को अंदर धारण करूंगा और आज से कोई भी गलत काम नहीं करूंगा मैं अनजाने में यह सब कर बैठा हूं कृपया मुझे बख्श दे अपने दिल का रोस खत्म करें और मेरे ऊपर कृपा का हाथ करें तो दीनदयाल गुरुजी ने जब राजा को निम्रता से भरा हुआ देखा तो विशाल उपकार करने के लिए कहा और सतगुरु ने राजा को कहा कि अगर तू लोगों को मारना छोड़ दे तो तू बख्शा जा सकता है अगर लोगों को मारने से नहीं रुकोगे तो नर्कों में बहुत सजा पाओगे तो ये सुनकर बादशाह दीन होकर बोला कि जब से आपके चरणों से जुड़ा हूं मेरे अंदर एक तीला तोड़ने की भी शक्ति नहीं रही मैंने अपने आप को आप के अधीन कर दिया है आप जो कहोगे मैं वैसा ही करूंगा तो ये सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि अगर तुमने हमारी बात मानी है तो सुख देने वाले सच्चे नाम का सिमरन करो और लोगों का भला करो और अपने इस नगर में सभी लोगों को भोजन करवाने के लिए लंगर लगाओ ताकि कोई भी भूखा ना रह जाए जो भी तेरे इस नगर में आए उसकी सेवा करो गरीबों को कपड़े दो और उनकी पालना करो और पाप कर्म करने छोड़ दो तो गुरुजी के वचन मानकर राजा ने सभी काम किए और सच्चे नाम का सिमरन भी राजा करने लगा उसने सतगुरु नानक को अपना पीर बना लिया और मुरीद होकर उनकी सेवा की, इस तरह सतगुरु उस नगर में कुछ दिन रहे और पूरे नगर में सतगुरु की चर्चा होने लगी उस नगर में आने वाले लोगों का सम्मान होने लगा और नगर वासी खुदा की बंदगी करने लगे तो साध संगत जी जहां पर गुरु नानक प्रकाश ग्रंथ के 17 अध्याय की समाप्ति होती है जी प्रसंग सुनाते हुई अनेक भूलों कि शमा बखशे जी ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box.