" संत दीवाली नित करें सतलोक के माहिं " और मते सब काल के यूँ ही धूल उडाहिं " असल दीवाली तो अंदर है, बाहर तो सिर्फ प्रतीक मात्र है अगर इस इशारे को पकड़ कर अंदरूनी आत्मिक सफ़र का शौक जाग उठा,
तो धन्यभाग समझना, नहीं तो बाहर की रौशनी कितनी भी कर लेना लेकिन अंदर अधेरा ही रहेगा क्योंकि जब आंखों को बंद करोगे तो सिवा गहरे अंधकार के कुछ भी नहीं पाओगे, इस लिए जरूरी है कि बाहर के प्रतीक से प्रेरित होकर अंदर में उस अज्ञानता के अंधेरे में प्रभु के नूर का दिया जलाने का यत्न किया जाये ताकि हमारे अंदर का ये अंधेरा हमेशा के लिए दूर हो जाये ।
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