गुरु रामदास जी समझाते हैं कि प्रभु के दिए सुख और दुख एक समान हैं, हमें तो दोनों हालातों में मालिक का शुक्र करना है, सुखी रखा जाए तो भी , दुख भोगने पड़े तो भी, इस प्रकार मालिक का भाणा मानने , रजा में राजी रहने की अवस्था ही उनकी आत्मिक अवस्था होती है, इसे प्राप्त कर लेने वाला सहज ही परम पद का अधिकारी बन जाता है, अपनी ओर से इस अवस्था तक पहुंचने की पूरी कोशिश करनी चाहिए, वह दया करता है तो कोशिश सफल भी हो जाती है, इसके द्वारा सब क्लेश समाप्त हो जाते हैं, नाम सिमरन तथा शब्द अभ्यास का उद्देश्य प्रभु प्राप्ति होना चाहिए, उसकी रजा या मौज में परिवर्तन करना नहीं ।
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