गुरु प्यारी साध संगत जी आज की साखी सतगुरु नानक देव जी के समय की है आज का यह प्रसंग गुरु नानक प्रकाश ग्रंथ के अध्याय आठवें में दर्ज है आज की साखी में हम सतगुरु नानक देव जी द्वारा गंगा विखे पश्चिम की तरफ पानी उछालने और देवी देवताओं से मिलाप करने का प्रसंग सरवन करेंगे आइए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी सतगुरु नानक भाई मरदाना जी के साथ कुरुक्षेत्र पहुंचे हुए थे वहां पर सतगुरु नानू पंडित के साथ चर्चा कर आगे चल पड़े और सद्गुरु गंगा के किनारे पहुंच गए वहां पर बहुत बड़ा मेला लगा हुआ था और बहुत भीड़ इकट्ठी हुई पड़ी थी पूर्व पश्चिम उत्तर और दक्षिण से बहुत बड़ी गिनती में लोग वहां पर आए हुए थे, महापर्व के कारण बहुत बड़ी गिनती में अपने पापों की मैल उतारने के लिए लोग वहां पर आए हुए थे वहां पर जाकर सतगुरु ने डेरा लगा लिया और सतगुरु सभी के हृदय को मलीन होता हुआ देख रहे थे वहां पर किसी ने भी अपने मन को काबू नहीं किया था तो जब सुबह हुई तो सतगुरु स्नान करने गए तो वहां पर बहुत लोग स्नान कर रहे थे और सभी ने अपने मन में प्रेम भक्ति को धारण किया हुआ था वह सूर्य को जल चढ़ा रहे थे मन उनके काबू में नहीं थे और सभी तरफ घूम रहे थे तो जब उनके बीच सतगुरु जा पहुंचे तो सतगुरु ने स्नान किया और सतगुरु पश्चिम की तरफ जल प्रवाह करने लगे सतगुरु बहुत देर तक ऐसे ही करते रहे और सतगुरु पानी में ऐसे ही खड़े रहे तो वहां पर मौजूद सभी लोग सतगुरु को देख हैरान हो रहे थे और एक दूसरे से पूछ रहे थे कि यह कौन है ? यह हिंदू है या मुसलमान है ? क्योंकि इसकी गति जानी नहीं जा सकती तो इस प्रकार ह्रदय में हैरानी धारण करके वचन धारण कर वह सतगुरु से पूछने लगे कि आप कौन हो ? आप हिंदू हो या मुसलमान हो ? कृपया हमें सच सच बताएं कोई भी बात गुप्त ना रखें अगर आप तुर्क हो तो आप हिंदुओं के बीच क्यों आए हो और गंगा में आप स्नान क्यों कर रहे हो अगर आप हिंदू हो तो पश्चिम की तरफ जल प्रवाह क्यों कर रहे हो ? इस दिशा में किस को जल चढ़ा रहे हो किसके कहने पर यह नई नीति अपनाई है यह सुनकर कृपा निधान सतगुरु बोले कि आप इस तरफ पानी क्यों चढ़ा रहे हो किस के आगे चढ़ा रहे हो ? क्या सोचकर चढ़ा रहे हो और कौन इस जल को प्राप्त कर रहा है ? तो ये सुनकर वह कहने लगे कि जो हमारे पितर हैं हम उनको जल चढ़ा रहे हैं उनको स्नान करा रहे हैं वह स्नान कर तृप्त हो रहे हैं इस तरह हमें भी सदा ही सुख प्राप्त होता है तो यह सुनकर सतगुरु नानक ने वचन किए कि आपके पितर यहां से कितनी दूर है जिनको आप सदा ही जल देते हो और जो जल प्राप्त करके तृप्त होते हैं तो उनके बीच जो समझदार लोग थे उन्होंने कहा कि वह कई योजन हमसे दूर हैं तो यह सुनकर सतगुरु पश्चिम की तरफ मुंह कर बड़े जोर से जल प्रवाह करने लगे तो वह लोग कहने लगे कि आपने हमें अपनी बात कोई नहीं बताई कि आप हिंदू हो या तुर्क और इस तरफ जल प्रवाह करने से किसकी तृप्ति होती है तो ये सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि जब मैं गंगा स्नान करने के लिए चला था तो मैं अपने नगर में खेत बीज कर आया था पीछे उनको कोई पानी देने वाला नहीं है इसलिए मैं उनको पानी दे रहा हूं कि कहीं वह सुख ना जाए ऐसे में पानी को अपने खेतों में पहुंचा देता हूं और ऊंची स्थल पर मैंने खेत बीजा है वह उचाई के कारण हड़ आने के कारण वह ढल जाता है तो गुरु जी की यह बात सुनकर वह लोग सतगुरु को बावरा समझने लगे और कहने लगे ये पानी तो यहीं पर गिर रहा है यह पानी वहां तक कैसे पहुंच सकता है क्योंकि तेरे खेत कहां पर है और आप कहां पर खड़े हो इस तरह वह कहने लगे आपके खेत हरे नहीं हो सकते आप बड़े अनजान हो तो बहुत लोग मिलकर वहां पर आए तो कृपा निधान गुरु जी ने कहा कि आप लोगों ने परमेश्वर भुलाया है प्रेम भक्ति के बगैर मन भरमाया है मेरे खेत यहां से बहुत नजदीक है मेरा किया हुआ जल प्रवाह वहां तक नहीं पहुंच सकता लेकिन आपके पितर तो आपसे बहुत दूर है तो आप का पानी वहां तक कैसे पहुंच सकता है आप मुझे अनजान कैसे समझते हो इस तरह तो आप सबसे बड़े मूर्ख हो इस तरह कहकर सतगुरु नानक चुप हो गए और वहीं पर गंगा के किनारे बैठे रहे बहुत भारी संख्या में लोग वहां पर स्नान कर रहे थे और सतगुरु नानक किनारे पर बैठकर प्रभु भक्ति में लीन उसका ध्यान कर रहे थे तो वहां पर कुछ लोग संध्या करने लगे और कुछ लोग अपने पितरों को पानी दे रहे थे तो कोई हाथ में माला पकड़ कर ध्यान कर रहे थे तो श्री गुरु जी सबके मनो की जानते थे तो उनको देखते हुए सतगुरु नानक ने वचन किए कि देखो हिंदू नर्कों में जाते हैं यम उन को पकड़कर बुरी मार मारते हैं तो ये सुनकर वहां पर मौजूद लोगों ने सतगुरु नानक से सवाल किया कि हिंदु हरि की भक्ति करते हैं तो फिर वह कैसे नर्कों में जा सकते हैं और कहने लगे कि पहले तुमने उल्टी बात कही थी हे निडर अब तू ऐसे कैसे बोल रहा है तो उनको सीधा मार्ग दिखाने के लिए सतगुरु नानक फिर बोले कि अगर आप नाम में लिव लगाओ फिर आप अंत में नीच गति को क्यों प्राप्त करते हो, हाथ में माला लेकर बैठे हो लेकिन फिर भी एक क्षण के लिए भी मन स्थिर नहीं होता लोक दिखावे के लिए दिन रात बैठे अपनी मर्जी अनुसार पाखंड करते हो और सतगुरु कहने लगे कि आप किस तरह नाम जप रहे हो और सतगुरु ने एक दो जन को इशारा कर कर कहा कि तुम्हारा मन तो मुल्तान में फिर रहा है और तुम्हारा काबुल में फिर रहा है और तुम्हारा दिल्ली में फिर रहा है मन में बड़ा प्रसन्न होकर लाभ देख रहा है वहां पर मौजूद लोग जो ध्यान कर रहे थे भक्ति कर रहे थे उनके मन जहां-जहां भटक रहे थे सतगुरु नानक वैसे-वैसे उनको बताते गए तो सभी मनुष्यों ने सतगुरु नानक के यह वचन सुनकर यह जाना यह मुक्तिदाता परमेश्वर है हाथ जोड़कर दीन होकर सतगुरु के चरणों पर वंदना की और सतगुरु के चरणों पर अरदास विनती करने लगे कि हमसे भूल हो गई है हमें क्षमा बख्शें हमने आपकी पहले महिमा नहीं जानी अब हमें पता चल गया है कि आप तो मुक्ति दाते हो, तो दर्पण माला छोड़कर हिंदू मत अनुसार देवता और पितरों को तृप्त करने के लिए मंत्र पाठ करके जल देने के काम को दर्पण माला कहते हैं और वह ठाकुर पूजा छोड़कर गुरुजी के चरणों में आकर बैठ गए और कहने लगे अब आप हमें अपने सिख बना ले और अपने चरणों की धूल समझ कर हमारे सभी पाप दूर करें हम भूले भटके हैं आप हमें सच्चा मार्ग दिखा दो क्योंकि आप मुक्ति दाते परमेश्वर हो अब आप हमारे गुरु हो गए हो इस तरह कह कर सभी ने सतगुरु नानक के चरणों पर वंदना की तो ये सुनकर सतगुरु नानक ने कहा हे संतों ! सुनो मैं किस तरह आपको अपना शिष्य बना सकता हूं आपके मन मलीन है इसलिए आप किसी और को अपना गुरु बनाएं मुझे तो आप बावरा समझते हो तो यह सुनकर वह कहने लगे कि हम आपको नहीं छोड़ेंगे तो जब सभी सतगुरु के चरणों पर लेटे रहे तो सतगुरु ने कोमल वचन कहकर उनको संतोख दिया और गुणों की खान सतगुरु नानक वहां पर बैठ गए उन्होंने भोजन तैयार कर लिया था और सभी मिलकर सतगुरु नानक के पास आए और कहने लगे कि कृपा कर भोजन ग्रहण करें और हमारा जन्म सफल करें तो सतगुरु नानक ने कहा कि मैं भोजन ग्रहण नहीं करूंगा और ना ही मैं आपके साथ कहीं जाऊंगा तो वह सभी सतगुरु नानक को भोजन ग्रहण करने के लिए बार-बार कहने लगे तो सतगुरु नानक उनकी बात मान कर उनके साथ चल पड़े जहां पर उन्होंने रसोई बनाई हुई थी वहां पर उनके डेरे में जा पहुंचे तो ये देखकर उनके हृदय में श्रद्धा और बढ़ गई खत्री और ब्राह्मण कपड़े उतार कर चौंके में जा बैठे और गुरु जी को चौंके में बिठाकर लकीर खींची तो सतगुरु नानक ने उनको कहा कि आपका चौका अब भिट गया है अब सभी वस्तुएं उठा कर फेंक दो अब लकीर खींचने की क्या जरूरत है जब अंदर का चौका ही खराब हो गया है तो ये सुनकर ब्राह्मणों ने कहा कि हमने बड़ी निष्ठा से साफ सुथरा सुचा भोजन तैयार करवाया है और चौके के ऊपर गोबर का लेप किया है और किसी को इसके नजदीक नहीं आने दिया है लकड़ियों को पानी से साफ कर अन को चुनकर पास बैठकर सभी कुछ तैयार किया है तो आपने कहां देखा है कि रसोई भिट गई है हमने तो बहुत सुच संजम की है तो ये सुनकर सतगुरु नानक कहने लगे कि जब तक आप नहीं आए थे तब तक तो चौका सुचा था लेकिन अब आपने इसे भिट दिया है आपके साथ चार नीच इसमें आए हैं उन्होंने चौका भिट दिया है तो वह सतगुरु नानक से कहने लगे हे गुरु जी ! हमें तो वह चार नीच दिखाई नहीं दे रहे वह चार नीच कहां खड़े हैं सभी रसोई अभी तक सुची है हे कृपा निधान आप भोजन ग्रहण करें अगर आप भोजन ग्रहण नहीं करते हैं तो आप हमें बताएं कि वह चार नीच कौन है क्योंकि जब तक आप हमें नहीं बताओगे तो हम जान नहीं सकते क्योंकि हमारी बुद्धि ऐसी नहीं जो उनको देख पाए उनकी यह बात सुनकर सतगुरु नानक ने एक श्लोक उच्चारण किया श्लोक महल्ला पहला " कबुध टूमनी को दया कसायान पर निंदा घट चुहड़ी मुठ्ठी क्रोध चडाल कारी कढ़ी क्या थिये या चारे बेठिया नाल " जिसका अर्थ है मंदी मत डूमणी है दया रहित मत बुचड़नी है पर निंदा भगन है धोखे बाज़ी और क्रोध चंडालनी है तो वहां पर खींची हुई लीक क्या करेगी अगर ये चार चीजें तुम्हारे साथ बैठी हुई है इन चार नीच के साथ चलने से चौका भिट गया है अपने मन के मुंसिफ होकर इंसाफ करो ! तो ये सुनकर वे कहने लगे हे गुरु जी यह चौका कैसे पवित्र हो सकता है कृपया हमें बताएं तो उनकी प्रीत देखकर, दया के सागर सतगुरु नानक बोले सच को अपना संजम बनाएं, पवित्र जीवन नीति को लकीर बनाएं और नाम के सिमरन को स्नान बनाओ और सतगुरु कहने लगे हे नानक ! परलोक में केवल वही उत्तम गिने जाएंगे जो पापों के राह पर नहीं चलते इस तरह जो चौका पवित्र होता है वह दोबारा भिटिया नहीं जा सकता, इस प्रकार आप हिरदे धारण करो और मन की सभी प्रकार की मलीनता को दूर करो तो सतगुरु नानक के ऐसे वचन सुनकर वह हिरदे में सतगुरु नानक के वचन को धारण करते हैं और अपने सभी कामों को विकार जानते हैं और सोचते हैं कि हम इनको कैसे छोड़े और सभी तरफ से मन को तोड़कर सतगुरु के चरणों में कैसे अर्पित करें तो वह सभी सतगुरु नानक के आगे अरदास करने लगते हैं कि आप हमें अपनी शरण बख़्शें और हमें अपना शिष्य बनाएं हमारा अब कोई और ठिकाना नहीं है आप परमेश्वर का रूप हो हम आपके नाम का जाप करेंगे, तो जब सतगुरु नानक ने उनको निमर हुआ देखा तो वचन किए कि आपके पास जितना भी धन है परमेश्वर की खातिर सब लुटा दो और फिर परम सुख पाओ उस समय जिन्होंने सतगुरु की बात मान ली उन सभी ने धन को लुटा दिया तो उन पर सतगुरु नानक ने मेहर की दृष्टि की और सतनाम का उपदेश दिया उन पर प्रेम नाम का रंग चढ़ा दिया उनके मन को शांति दी जिस कारण उन्होंने सुख पाया अंत काल समय उन्होंने ही शुभ गति पाई और जीवित रहते हुए नाम में लिव लाई इस प्रकार जब सभी सतगुरु के शिष्य बन गए तो उन्होंने सतगुरु को प्रणाम किया और उनके उपदेश पर चलने का उनसे वादा किया तो इस प्रकार जब रात हुई तो श्री गंगा शरीर धारण कर सतगुरु नानक के पास आई गंगा ने सोने का थाल हाथ में पकड़ा हुआ था और उस थाल में हीरे और जवाहरात थे उसने वह भेटा सतगुरु नानक के चरणों पर रख दी और वंदना कर बोली कलयुग में दुष्टता और पाप का बार बहुत बढ़ गया है हे कृपालु गुरु जी अब मुझसे और बर्दाश्त नहीं होता कृपा धारण कर कोई उपाय करें जिससे कि मुझे सदा सुख प्राप्त हो सके हे गुरु जी ! उपकार करने के उद्देश्य से आपने अवतार धारण किया है गंगा के यह वचन सुनकर सतगुरु नानक कृपा धारण कर बोले जो परमेश्वर के परम प्यारे हैं सुबह शाम उनका ध्यान करो जब वह अपने चरण तुम्हारे जल में डालेंगे तो तुम्हारे सभी दुख दूर हो जाएंगे जब कतक का महीना आता है तो अकाश मेल रहित शुद्ध हो जाता है उसी तरह तू भी शुद्ध हो जाएगी और सतगुरु कहने लगे संतो के रसीले लक्षण सुने, सीपी में जैसे चांदी का भूलेखा होता है इस तरह वह जगत को नाशवान और एक भूलेखा समझते हैं खुशी और गमी में वह सदा ही एक समान रहते हैं उनका कोमल और परोपकारी हिरदा विशाल होता है विषय और वासनाओं को वह हृदय में साड़ देते हैं, प्राए दुख को देखकर वह हृदय में दुखी हो जाते हैं और प्राय सुख को देखकर वह हृदय में बहुत प्रसन्न होते हैं हर समय सिमरन के रंग में रंगे रहते हैं वेर, मोह और घम्मंड से दूर रहते हैं उनके चरण जब तेरे जल में पड़ेंगे तो तेरे सभी दुख और कष्ट उसी समय दूर हो जाएंगे तो श्री गंगा जी ने सतगुरु नानक से जब यह वचन सुने तो उन्होंने सतगुरु नानक के चरणों पर वंदना की और सतगुरु नानक के चरणों को स्पर्श किया जैसे ही सतगुरु नानक के चरणों को स्पर्श किया वह निर्मल हो गई जैसे कि साबुन को लगकर कपड़ा साफ हो जाता है और कहने लगी कि मेरी ये भेटा स्वीकार करें आप जगत के स्वामी हो तो यह सुनकर सतगुरु नानक ने वचन किए यह हमारे किसी काम नहीं इसको आप अपने भंडार में ही रखें और गरीबों को भोजन करवाएं तो ये सुनकर गंगा ने कहा कि हे गुरु जी आप भी वहां आकर भोजन ग्रहण करें इस तरह कहकर गंगा वहां से चली गई तो जब सुबह हुई गंगा ने भंडारा किया सभी प्रकार के भोजन बनाएं गए सभी देवताओं को बुलाया गया और सभी वहां पर उसी समय मौजूद हो गए नारद मुनि ब्रह्मा जी के साथ आया, श्री गौरी जी के साथ श्री शंभू जी शोभ रहे थे, चंद्रमा, सूरज, अग्नि, कुबेर, वायु और गणेश भी वहां पर आए, इंदर आदि जो सभी देवते हैं सभी गंगा के किनारे आ गए, ऋषि मुनि, जपी, तपी, सन्यासी और दिगंबर सभी वहां पर आ गए सभी देवी देवताओं ने दूसरा रूप धारण किया हुआ था तो सतगुरु नानक भी वहां पर पहुंच गए तो वहां पर मौजूद देवी देवताओं ने सतगुरु की चरण वंदना की, पापों का नाश करने वाले सतगुरु नानक की सभी महिमा जानते थे भोजन आदि तैयार करने की सेवा थी वह सभी सेवा देवताओं ने संभाल ली इस प्रकार सभी ने भोजन ग्रहण किया सभी सतगुरु नानक के दर्शन कर बहुत प्रसन्न हुए और भोजन ग्रहण कर चले गए श्री गंगा वंदना कर अपने जल के प्रवाह में समा गई जैसे बर्फ गर्मी के कारण जल बन जाती है तो वहां पर मौजूद मनुष्य आपस में मिलकर बातें कर रहे थे कि यह भंडारा किसने किया है सभी एक दूसरे से पूछ रहे थे, असल का किसी को पता नहीं था तो ऐसे सतगुरु नानक ने वहां पर उपदेश देकर अपनी भक्ति को दृढ़ किया और फिर सतगुरु संसार का भला करने के लिए आगे चल पड़े तो साध संगत जी यहां पर गुरु नानक प्रकाश ग्रंथ के आठवें अध्याय की समाप्ति होती है जी प्रसंग सुनाते हुई अनेक भूलों कि क्षमा बखशें जी ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box.