साध संगत जी आज की साखी सतगुरु नानक देव जी की है जब सतगुरु नानक की बहन बेबे नानकी उन्हें याद करती थी तो सतगुरु नानक कैसे उनके पास हाजिर हो जाते थे आइए बड़े ही प्यार से आज का ये प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी भाई और बहन का रिश्ता एक ऐसा रिश्ता है जो अमीरी, गरीबी और लालच से कोसों दूर है जब व्यक्ति को कहीं पर भी सहारा नहीं मिलता तो भाई के सिर पर बहन का हाथ और भाई के साथ बहन की दुआएं हमेशा रहती है जब भी इस दुनिया में भाई और बहन के सुंदर रिश्ते की बात होगी तो सतगुरु नानक और बेबे नानकी का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा, साध संगत जी बेबे नानकी सतगुरु नानक की पहली सिख थी जिन्होंने सतगुरु के दिव्य स्वरूप को पहचाना जिस रूप को उनके माता-पिता तक नहीं जान पाए थे, आज के समय में पत्र लिखकर या फिर फोन कर कर अपने भाई को याद किया जाता है लेकिन उस समय सतगुरु नानक के आशीर्वाद से जब भी बेबे नानकी ने सतगुरु नानक को याद किया तो सतगुरु नानक उसी समय अपनी बहन के पास उनके सुख-दुख में हाजिर हो जाते थे साध संगत जी एक बार सतगुरु नानक की बहन बेबे नानकी रोटी बना रही थी तो बेबे नानकी ने कहा कि काश मेरा भाई रोटी खाने आ जाता तो जैसे ही बेबे नानकी ने यह वचन कहे तो सतगुरु नानक उसी समय वहां पर प्रगट हो गए और बेबे नानकी से कहा की भूख लग रही है जल्दी से खाना लगा दो तो जो खाना बेबे नानकी ने बनाया था उसे खाकर सतगुरु नानक ने अपनी बहन की इच्छा पूरी की, साध संगत जी यहां पर ये सवाल पैदा होता है कि आखिर सतगुरु अपनी बहन की पुकार सुनकर कैसे उनके पास हाजिर हो जाते थे इसको विस्तार से जानने के लिए पहले हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि जो मानव शरीर है यह कितने प्रकार का होता है साध संगत जी आपको बता दें कि हमारे ग्रंथों के आधार पर जो बताया गया है उनके अनुसार मनुष्य के या फिर किसी भी व्यक्ति के तीन शरीर होते है एक तो यह बाहरी शरीर जिसको हम स्थूल शरीर कहते हैं जिसको हम आसानी से देख पाते है क्योंकि यह बाहरी है यह हमें धरती से मिला है ऐसे ही हमारे दो शरीर और है जो कि दिखाई नहीं पड़ते जब कोई अभ्यासी नाम जप करता है अभ्यास करता है तब जाकर उसे इस बात का ज्ञान होता है कि मैं कोई बाहरी शरीर ही नहीं हूं मैं तो कुछ और हूं जिसको कह पाना इस जुबान के लिए मुश्किल है साध संगत जी जो अंतिम शरीर है उसको हम शब्द स्वरूप कहते हैं रूहानियत की ये जात्रा देह से चलकर शब्द स्वरूप हो जाने की ही है क्योंकि मालिक शब्द स्वरूप ही है वह कोई देह नहीं है और हमें भी उस अवस्था में पहुंचकर उसके जैसा ही हो जाना है जो अभ्यासी इस अवस्था को प्राप्त कर लेता है देह से शब्द स्वरूप तक की यात्रा तय कर लेता है तो फिर उसका देह से नाता टूट जाता है देह से मोह घट जाता है वह जब चाहे कहीं भी आ जा सकता है कहीं भी प्रगट हो सकता है इतनी शक्ति शब्द रूप में है साध संगत जी यहां पर सतगुरु महाराज जी की एक साखी याद आ गई जो कि आपसे सांझा करने जा रहा हूं सतगुरु महाराज जी के समय एक सत्संगी परिवार हुआ करता था जिनका सतगुरु से बहुत प्रेम था और वह सतगुरु के दर्शन करने आ जाया करते थे और गुरु घर की सेवा भी किया करते थे और उनका एक बेटा था वह अपने उस बेटे को विदेश भेजना चाहते थे तो सद्गुरु की कृपा से उसका विदेश का काम बन गया और वह लड़का विदेश चला गया तो जब वह लड़का विदेश चला गया तो वहां जाकर उसका मन नहीं लगा वह बहुत परेशान हो गया क्योंकि वहां पर वह अकेला था तो वह अपने मन को नहीं संभाल पाया और वापस आने की बातें अपने घरवालों से करने लगा तो अपने लड़के की ऐसी बातें सुनकर जब वह सतगुरु के पास गए कि हमारा लड़का तो विदेश में वापस आने की बातें कर रहा है और कह रहा है कि मेरा यहां पर मन नहीं लगा मैं यहां पर बहुत अकेला हूं तो साध संगत जी जब उन्होंने यह बातें सतगुरु महाराज जी से की थी तो सतगुरु ने उनसे केवल 1 दिन का समय लिया था और उन्हें कहा था कि आपकी दुबारा से जब उससे बात होगी तो मुझे आ कर बताना कि उसने क्या कहा तो उस लड़के के परिवार वाले सतगुरु की यह बात मान कर घर चले गए तो साध संगत जी सतगुरु अंतर्ध्यान हुए और उस लड़के के पास पहुंच गए जब सतगुरु उस लड़के के पास गए तो सतगुरु ने उसे समझाया उसे हौसला दिया और उससे बातें भी की तो साध संगत जी कहते हैं कि जब उस लड़के ने फिर से अपने घरवालों से बात की तो उसने अपने घर वालों से कहा कि महाराज जी अभी मेरे पास हो कर गए है वह यहां आए हुए है और मुझे हौसला देकर गए है तो उस लड़के की यह बात सुनकर घर वाले बहुत हैरान हुए कि ये कैसे हो सकता है अभी तो हम उनसे मिल कर आए थे तो वह तुम्हारे पास कैसे पहुंच गए तो उस परिवार में से जो बुजुर्ग सत्संगी थे वह यह बात समझ गए थे कि सतगुरु ही यहां से वहां गए है क्योंकि उन्होंने हमसे एक दिन मांगा था और वह केवल इसलिए मांगा था ताकि वह हमारे लड़के के पास जाकर उसे समझा सकें उसे हौसला दे सके तो साध संगत जी ऐसे संत महात्मा कहीं भी आ जा सकते हैं उन्हें किसी वीजा या पासपोर्ट की जरूरत नहीं होती उनकी बंदगी ही इतनी होती है कि वह अपने स्थूल शरीर से निकलकर इस ब्रह्मांड में कहीं भी आ जा सकते है और साध संगत जी बहुत से लोग यह पूछते हैं कि भाई दूज और रक्षाबंधन सिखी में मनाया जाता है या नहीं ? तो हम आपको बता दें कि सतगुरु नानक ने जनेऊ प्रथा और इस तरह की किसी भी प्रथा में विश्वास नहीं किया और केवल एक ही उपदेश दिया कि जब दिल मिल जाएंगे वही सबसे बड़ा त्यौहार है अगर दिल ना मिले हो तो कोई भी धागा आप के रिश्ते को नहीं बांध सकता साध संगत जी सतगुरु नानक और बेबे नानकी के बीच ऐसा नाता था जिसे आज भी लोग सच्चे प्रेम और सच्ची भक्ति और विश्वास के रूप में देखते हैं, सतगुरु नानक की बहन बेबे नानकी का सतगुरु नानक से इतना प्रेम था कि जब कभी भी सतगुरु को अपने पिता से डांट पड़ती थी तो वह आगे हो जाया करती थी इतना प्रेम उनका सतगुरु नानक से था और जब भी उन्हें सतगुरु की याद आती तो सतगुरु तुरंत भाई मरदाना को कहते थे की हे मरदाने आंखें बंद कर लो बहन ने याद किया है हमें वहां जाना है तो भाई मरदाना जी आंखें बंद कर लिया करते थे और सतगुरु नानक अपनी बहन के पास, बेबे नानकी जी के पास हाजिर हो जाया करते थे साध संगत जी जिसका भाई रब हो, कुल मालिक हो, उसे किस चीज की कमी हो सकती है, सच में सतगुरु नानक करतार का रूप थे उस का संदेश देने इस धरती पर आए थे ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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