साध संगत जी आज की साखी सतगुरु नानक देव जी की है आज की इस साखी में सतगुरु नानक पितरों को पूजने वाले लोगों को क्या उपदेश करते हैं आइए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी, जब सतगुरु नानक भाई मर्दाना और भाई बालाजी के साथ गया, बिहार पहुंचे तो वहां पर भाई बालाजी ने सतगुरु नानक से प्रश्न किया कि सतगुरु मेरी गया तीर्थ का वर्णन सुनने की तीव्र इच्छा है कृपया आप हमें इसके बारे में बताएं तो यह सुनकर सतगुरु नानक ने कहा इस धरती पर एक गयाशी नाम का एक दैत्य हुआ है उसने बहुत लंबे समय तक परमात्मा का तप किया और उसकी भक्ति चरम सीमा पर पहुंच गई थी तो आकाश से आकाशवाणी हुई और कहा गया कि गयाशी हम तुमसे बहुत प्रसन्न है वर मांगो तो गयाशी ने कहा कि अगर आप मुझसे इतने ही प्रसन्न हैं तो मुझे वर दे कि इस धरती का कोई भी प्राणी नर्क में ना जाए तो ये सुनकर फिर आकाशवाणी हुई कि यदि तुम्हारे इस वर को पूरा कर दिया गया तो ईश्वर के बनाए हुए नियम की मर्यादा भंग हो जाएगी यदि पाप करने वाले व्यक्ति को उसका फल नहीं दिया गया तो ईश्वर के यह बनाए हुए नियम समाप्त हो जाएंगे तो ये सुनकर गयाशी ने कहा कि हे ईश्वर ! आप सभी के पाप और पुण्य मुझे दे दे तो फिर से अकाशवानी हुई कि गयाशी तुम यहीं पर निवास करो और यहां पर जो कोई व्यक्ति स्नान करने आएगा उसका उद्धार हो जाएगा तो यह सुनकर भाई बालाजी ने सतगुरु को प्रणाम किया और वहां के पंडितों ने सतगुरु नानक से विनती की कि आप भी यहां पर अपने पितरों का पिंडदान करें आपके पितरों को स्वर्ग प्राप्त होगा तो यह सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि हमने अपने पितरों का कल्याण पहले ही कर दिया है इसके अलावा हमने अपने सिख सेवकों का और उनके पितरों का भी कल्याण कर दिया है, ज्ञान ज्योति से समस्त अंधेरा मिटा दिया है और उसके बाद एक शब्द के माध्यम से सतगुरु नानक ने वहां खड़े पंडितों को समझाया जिस शब्द का वर्णन श्री गुरु ग्रंथ साहिब में अंग 358 में दिया हुआ है जिसका अर्थ समझने से पहले हमें हिंदू मर्यादा में कैसे मोक्ष की प्राप्ति होती है वह समझना जरूरी है, साध संगत जी हिन्दू धर्म में जब कोई व्यक्ति मरने लगता है तो उसे चारपाई से नीचे उतार लेते हैं और उसके हाथ पर आटे का दिया जला देते हैं जिसका अर्थ है कि जिस अनदेखी और अंधेरी राह में उसकी आत्मा को जाना है यह दिया उसके उस मार्ग में रोशनी करें और उसका मार्गदर्शन करें और उसके इलावा जों और आटे के पेड़े बनाकर रख दिए जाते हैं जोकि मृतक प्राणी की खुराक होती है मृत्यु के 13 दिन बाद क्रिया की जाती है क्रिया करवाने वाला ब्राह्मण मंत्रों का उच्चारण करता है मृतक प्राणी के लिए एक लंबी मर्यादा की जाती है 360 दिए और इतनी ही बत्तियां और तेल रखा जाता है वह बतिया इकट्ठी ही तेल में भिगोकर जला दी जाती हैं श्रद्धा यही होती है कि मृतक प्राणी को 1 साल में पितर लोग पहुंचना है और 360 दीयों को जलाने का भी यही मकसद होता है कि एक दिया हर 1 दिन इस यात्रा में मृतक प्राणी का मार्गदर्शन करेगा, संस्कार के चौथे दिन हड्डियां अथवा फूल चुन लिए जाते हैं और इन्हें गंगा में परवाह कर दिया जाता है साध संगत जी आइए अब सतगुरु नानक ने शब्द के माध्यम से हमें क्या समझाया है उसे जानने की कोशिश करते हैं सतगुरु नानक कहते हैं कि मेरे लिए परमात्मा का नाम ही दिया है जो मेरी जिंदगी के रास्ते में आत्मिक रोशनी करता है उस दिए में मैंने दुनिया में व्यापने वाला दुख रूपी तेल डाला हुआ है उस आत्मिक प्रकाश से वह दुख रूपी तेल जलता है और जन्म से मेरा साथ भी समाप्त हो जाता है हे लोगो ! मेरी इन बातों का मजाक मत उड़ाओ, लाखों मण लकड़ियों के ढेर को एक छोटी सी चिंगारी लकड़ियों के पूरे ढेर को जलाकर राख कर देती हैं वैसे ही जन्म जन्मांतर के पापों को एक नाम खत्म कर देता है और सतगुरु नानक कहते हैं कि हे प्रभु ! तेरा नाम ही मेरे लिए गंगा और काशी का स्नान है तेरे नाम से ही मेरी आत्मा स्नान करती है और सच्चा स्नान वही है जो दिन रात प्रभु के चरणों में हो, ब्राह्मण जों और चावलों के आटे का पिंड देवता को देता है दूसरा पिंड पितरों को देता है हे नानक ! ब्राह्मणों के द्वारा दिया हुआ वह पिंड कब तक टिका रह सकता है परंतु जो परमात्मा के महल का पिंड है वह कभी समाप्त नहीं होता तो साध संगत जी सतगुरु नानक के ऐसे प्रवचन सुनकर वह ब्राह्मण सतगुरु के आगे झुक गए और सतगुरु नानक ने उन्हें बताया कि परमात्मा का जप ही मोक्ष प्राप्ति का एकमात्र साधन है और सतगुरु ब्राह्मणों को ये उपदेश देकर संसार का भला करने के लिए आगे चल पड़े, साध संगत जी सतगुरु नानक मस्तानों की तरह रहते थे वह किसी से ज्यादा बात नहीं करते थे और ध्यान में लीन रहते थे सतगुरु एक धुन में चलते थे तो सतगुरु को इस अवस्था में देख समस्त बेदी कुल दुखी रहने लगा कोई कुछ कहता तो कोई कुछ और साध संगत जी उस समय सतगुरु के नगर वाले सतगुरु के बारे में उल्टी सीधी बातें करने लगे थे और कहने लगे थे की मेहता कालू का बेटा तो पागलों जैसी हरकतें करता है पता नहीं दिन भर क्या सोचता रहता है और कहां खोया रहता है साध संगत जी जब भी सतगुरु नानक का कोई मित्र उनसे मिलने आता था तो सतगुरु नानक औपचारिकता के भाव से ही उससे मिलते थे और सतगुरु नानक एकांतवास में रहते थे उन्होंने भोजन किया या नहीं किया उन्हें इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता, साध संगत जी एक दिन सतगुरु नानक की मां उन्हें कहने लगी कि नानक फकीरों का संघ त्याग दो, खाओ, कमाओ और कुल का नाम रोशन करो, क्योंकि तुम्हारी और देखकर पूरा परिवार और कुल दुखी है पिता के काम में हाथ बटवाओ काम अच्छा करोगे तो विवाह भी अच्छी जगह होगा और सतगुरु नानक की मां उन्हें कहने लगी कि लोग जब तुम्हारे बारे में भला बुरा कहते हैं तो मैं सुनकर जलती हूं साध संगत जी, माताजी के इतना समझाने पर भी सतगुरु नानक ना मात्र ही भोजन करते थे कभी-कभी तो सतगुरु नानक पूरा पूरा दिन पानी तक नहीं पीते थे और उनका शरीर निर्बल हो गया था तो सतगुरु नानक की ऐसी दशा देख सतगुरु नानक की मां ने कहा कि हे भगवान मेरे पुत्र को इस बीमारी से मुक्त करो मैं आपको दंडवत प्रणाम करती हूं और आपसे विनती करती हूं और उनकी मां ने कहा कि मैं अभी वैध को बुलाती हूं और तुम्हारा इलाज करवाती हूं ताकि पता तो चले कि तुझे क्या रोग है तो अपनी मां की सभी बातें सुनकर सतगुरु नानक मोन रहे और दूसरी और सतगुरु नानक के पिता मेहता कालू से सभी लोग यही कह रहे थे कि आप अपने बेटे नानक का किसी अच्छे वैध से इलाज करवाएं क्योंकि धन तो बहुत मिल जाएगा लेकिन अगर पुत्र गया तो सब कुछ गया तो सतगुरु नानक के पिता अपने साथ एक वैध को लेकर आए जिनका नाम हरिदास था सतगुरु नानक मुंह पर कपड़ा लेकर लेटे रहे तो वेद जी ने सतगुरु नानक के हाथ की नाड़ी पर हाथ रख कर सतगुरु नानक के पिता मेहता कालू जी से पूछा कि बताओ क्या रोग है इसे ? तो उन्होंने कहा कि बस ऐसे ही दिन रात पड़ा रहता है खाना भी नहीं खाता और ना ही किसी से कोई बातचीत करता है दिन-ब-दिन इसका चेहरा पीला पड़ता जा रहा है ये सुनकर वैद्य ने सतगुरु नानक की नाड़ी देखी लेकिन सतगुरु नानक ने अपना हाथ खींच लिया और पूछा कि आप मेरा हाथ क्यों पकड़ रहे हैं तो वैध जी ने कहा कि मैं तुम्हारे रोग की पहचान कर रहा हूं रोग देखूंगा और फिर उपचार करूंगा तो फिर सतगुरु नानक ने शब्दों के माध्यम से वैध जी से कहा की पिता ने वेद को बुलाया ताकि पुत्र का इलाज हो सके वैध ने नाड़ी देखी परंतु ये भोला-भाला वेद नानक के रोग को नहीं जानता हे वैध ! तुम तो अपने आप में उत्तम हो लेकिन मैं तो तुम्हें तब मानूगा जब तुम मेरा रोग जान लोगे और मुझे वह दवाई दोगे जो मेरे रोग को खत्म कर देगी और मुझे सुख देगी अगर ऐसी दवाई तुम्हारे पास है तो तुम सच्चे वैद्य हो और फिर तुम उससे अपना भी रोग दूर करो फिर तुम सच्चे वैध कहलाओगे तो सतगुरु नानक के वचन सुनकर और उनकी वाणी सुनकर वैद्य ने विनम्र होकर सतगुरु से पूछा कि आप ही मेरा रोग बता दे तो ये सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि हे हरिदास ! ध्यान से सुनो कि इंसान में पहले से ही अहम भाव और घमंड का महा रोग है जिससे संसार दुखी है यह रोग जन्म और मृत्यु का कारण है जो इंसान इस रोग से खुद ग्रस्त है वह दूसरे का रोग कैसे ठीक कर सकता है जिस दवाई से यह रोग दूर हो मैं वह दवाई देखना चाहता हूं जो इस रोग को दूर कर सके जिसके पास इस रोग की दवाई है वही उत्तम वैध है क्योंकि जो जन्म मरण से रहित हो जाएगा उसे यह अहंकार का रोग नहीं होगा हे हरिदास ! हम तो अपने प्यारे परमेश्वर में समाए हुए हैं इस रोग का कोई उपचार नहीं है संसारी रोगों के इलाज तो अनेक हैं परंतु इस रोग का उपचार नहीं है यह रोग तो तभी खत्म होगा जब हम उस परमेश्वर में लीन हो जाएंगे और जन्मों-जन्मों से बनी यह दूरी खत्म हो जाएगी सभी में ईश्वर को देखें और ईर्ष्या ना करें तो सतगुरु नानक का यह उपदेश सुनकर वैद्य जी ने सतगुरु नानक के पिता कालू मेहता जी से कहा कि आपके पुत्र को कोई रोग नहीं है इस पर तो ईश्वर की भक्ति का रंग चढ़ा है यह तो संसार के समस्त रोगों को दूर करने का सामर्थ्य रखता है तो इतना कहकर वैध जी सतगुरु को प्रणाम कर वापस चले गए ।
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By Sant Vachan
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