संतो की हर रोज़ दीवाली होती है क्योंकि जो अंदर की लज्जत, स्वाद मिठास प्रेम और खुशी है उसका नमूना दुनिया में नहीं है, जुबां में ताकत नहीं कि उसका बयान कर सके, जो अंदर जाता है वह स्वाद लेता है लेकिन बता नहीं सकता यह गूंगे की मिठाई है जिस तरह गूंगे को मिठाई खिला दो वह क्या बयान करेगा ? वह अचरज देश है उसका आनंद भी अचरज है सो परमात्मा अचरज है इसलिए वहां चुप रहना पड़ता है ।
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