सतगुरु महाराज जी समझाया करते थे कि दुनिया के अंदर हमें इस तरह रहना चाहिए, जिस तरह एक 'विवाहता' लड़की, अपने माता-पिता के घर रहती है..!! वह माता-पिता की सेवा भी करती है, सखी-सहेलियों के साथ हंसती खेलती भी है,
चौके-चूल्हे का काम-काज भी करती है.....! लेकिन वह माता पिता के घर रहती हुई, अपने 'पति' को कभी नहीं भूलती....! उसका मन हमेशा अपने पति के चरणों में, पति की भक्ति में, पति के प्यार में ही लीन रहता है..!! अब सवाल ये है, कि हमारा 'पति' कौन है..? वह परमात्मा है, अकालपुरुष है, वाहेगुरु है, परमेश्वर है.... जिसके हजारों, अनेकों नाम हर-एक ने अपने-अपने प्यार में आकर रखे हुए हैं.!
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