Guru Nanak Saakhi । भक्त ध्रुव के सतगुरु नानक से 3 सवाल । निरंकार कैसा है ? उसकी निशानी क्या है ?

 

साध संगत जी आज की ये साखी सतगुरु नानक देव जी के समय की है जब सतगुरु नानक की मुलाकात भक्त ध्रुव से हुई तो सतगुरु ने करतार की व्याख्या करते हुए भक्त ध्रुव को क्या उपदेश दिया आइए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।

साध संगत जी जब भक्त ध्रुव की मुलाकात सतगुरु नानक से हुई उन्होंने सतगुरु नानक को प्रणाम किया और सतगुरु से पहला ही सवाल यह किया की हे गुरु जी मैंने आपकी प्रसिद्धि बहुत सुनी है आप परमात्मा के द्वार से होकर आए हो तो कृपया मुझे भी वहां की कोई निशानी दो कि सचखंड कैसा है वह आदि पुरख स्वामी परमात्मा कैसा है ? निर्वाण परमात्मा को आपने कैसे देखा ? उसका रूप रंग कैसा है जिनके आपने दर्शन किए हैं ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है कि कोई मनुष्य देह समेत उस परमात्मा से मिला हो तो यह सुनकर गुरु जी ने कहा हे ध्रुव ! आप उत्तम भक्त हो और सतगुरु ने कहा प्रभु का रूप रंग जाना नहीं जा सकता उसका सुंदर काला स्वरूप बहुत शोभा देता है जैसे कि करोड़ों चांद और सूरज का प्रकाश हो ब्रह्मा आदि भी उसका पार नहीं पा सके अनेक मंडल उनके शरीर के अंदर बने हैं जैसे कि एक वृक्ष फलों से भरा हो उसको कहने सुनने में बेअंत जानो ! जो स्वामी सभी जगह विचर रहा है हर जगह देह में जोत सम्मान है और सदा ही अलेप रहता है लेकिन सभी को दान करता है तो सतगुरु की ये बातें सुनकर ध्रुव भगत बहुत खुश हुआ और बोला कि आपने जो निराकार के बारे में बताया है उसे सुनकर मेरा निश्चय और दृढ़ हुआ है और परिपक्व हुआ है इसमें कोई शक नहीं है कि आप बड़े भागो वाले हो जिन्होंने वाहेगुरु को इतने करीब से देखा है आप दीनबंधु और दीनदयाल हो जो कि अपने सेवकों को विशाल नाम दे रहे हो तो यह सुनकर सतगुरु नानक ने भक्त ध्रुव को कहा कि अब हमें यहां से जाना है उस निरंकार का संदेश जगह-जगह पहुंचाना है हमें अब यहां से प्रस्थान करना है उसके बाद भाई मरदाना जी ने सतगुरु नानक को कहा कि जितने भी अकाश में चलने वाले मंडल है उनमें से ध्रुव मंडल सबसे ऊंचा है और भाई मरदाना ने कहा धरती से ऊपर जितने भी मंडल है हे गुरु जी ! मुझे उन सभी मंडलों के बारे में बताएं और भाई मरदाना जी कहने लगे कि आपके सिवा हमें और कौन ऐसी जगहों के दर्शन करवा सकता है यह तो आपकी कृपा है कि आप हमें भी उन मंडलों के बारे में बताए जो आसमान में विचर रहे है तो ये बात सुनकर सतगुरु नानक ने भाई मर्दाना को कहा की हे मरदाने अगर ध्रुव मंडल की बात की जाए तो ये मंडल 3900000 योजन ऊंचा है इसके बराबर और कोई नहीं है तो ये सुनकर भाई मरदाना जी ने कहा कि ध्रुव मंडल के आगे जो मंडल है वह कितनी दूर है तो गुरु जी कहने लगे इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता इसकी गिनती बयान नहीं की जा सकती और सतगुरु कहने लगे नाम अनंत लेखा रहित है और पारावार रहित हैं ब्रह्म आदि इस तरह बयान करते हैं वह करतार स्वामी अपने जीवों को जितना भी दिखाता है उसके जीव उतना ही देख पाते हैं इसकी सीमा किसी ने नहीं पाई है सभी उसको बेअंत कहते हैं तो ये सुनकर भाई मरदाना जी ने सतगुरु नानक को कहा कि धन धन धन हे गुरु जी ! आप जी ने जो भी कहा है सत्य कहा है आप में और करतार में कोई फर्क नहीं है साध संगत जी इस तरह चलते चलते गुरुजी जब सिलाघर पहाड़ पर चलकर आए तो भाई मरदाना जी सतगुरु नानक से कहने लगे की हे गुरु जी इस सुंदर पर्वत पर कोई संत क्यों नहीं रहता यहां पर कोई पशु पक्षी भी दिखाई नहीं देता सभी जगह सुनसान पड़ी हुई है तो सतगुरु नानक ने कहा हे मरदाने क्या तुझे भूख लगी है यह प्रश्न तुम क्यों कर रहे हो और सतगुरु कहने लगे कि इस पर्वत पर कोई नहीं रहता है लेकिन इसके आगे जो धरती देखोगे वहां पर बहुत ऋषि मुनि रहते हैं और वहां पर सुंदर फलदार वृक्ष है जिस फल को खाने का मन हो वहां पर जाकर खा सकते हो तो ये सुनकर भाई मरदाना जी ने कहा कि गुरुजी मुझे भूख नहीं है तो सतगुरु नानक और भाई मरदाना जी उस जगह पर जा पहुंचे जहां पर फलों से भरे वृक्ष थे शीतल पानी का प्रवाह चल रहा था जहां पर बहुत गहरी छाया शोभ रही थी, सतगुरु नानक और भाई मरदाना जी उस गहरी छाया के नीचे बैठ गए तो भाई मरदाना जी ने वृक्ष से फल तोड़े और सद्गुरु के आगे लाकर रख दिए, सुंदर श्रेष्ठ फल देखकर सतगुरु ने वह फल अपने हाथों में ले लिए और उसमें से आधे फल भाई मरदाना जी को दे दिए और भाई मरदाना जी वे फल खूब मन से खा रहे थे तो भाई मरदाना जी को फल इतने अच्छे लगे कि उन्होंने कुछ फल तोड़ कर एक कपड़े में बांधकर रख लिए, फल खाकर प्रसन्न होकर भाई मरदाना जी सतगुरु नानक के पास आकर बैठ गए तो सतगुरु ने भाई मरदाना जी को कहा कि अगर अब भी पेट नहीं भरा तो और फल ले लो और इन्हें बड़े चाव से ग्रहण करो तो यह सुनकर भाई मरदाना जी ने सतगुरु को कहा कि हे प्रभु जी मै पूरी तरह से तृप्त हो गया हूं आपकी कृपा से मेरी भूख शांत हो गई है और भाई मरदाना जी ने सतगुरु नानक को कहा कि अगर आप की रूचि मुझे फल खिलाने की है तो आप जी के हाथों से मैं फल ग्रहण कर लूंगा तो सतगुरु नानक ने अपने हाथों से दो फल भाई मरदाना जी को दिए तो भाई मरदाना जी ने सद्गुरु के दिए फल खा लिए और भाई मरदाना जी सतगुरु नानक से कहने लगे कि यहां पर कितने अच्छे फल हैं लेकिन यहां पर कोई रहता नहीं है यह फल ऐसे ही बर्बाद होते रहते हैं तो ये सुनकर सतगुरु नानक ने भाई मरदाना जी को कहा कि अगर इन फलों का सेवन करने वाला कोई नहीं है तो ये फल पैदा क्यों हुए इस पर विचार करो ! इन फलों को निरंकार ने ही अपने भक्तों और प्यारों के लिए रखा है इनको ग्रहण कर उसके भक्त और प्यारे समाधि लगाते हैं जिसके कारण किसी तरह का मोह उनकी समाधि में रुकावट नहीं बनता इस तरह सतगुरु नानक भाई मरदाना जी से वार्तालाप कर रहे थे तो उस समय एक ऋषि चलकर उनके पास आया जो कि हरि के रंग में रंगा हुआ था और सतगुरु नानक को कहने लगा कि यहां पर आज तक कोई भी व्यक्ति नहीं पहुंच पाया है लेकिन आप यहां पर आ गए हो इसलिए कृपया आप हमें बताएं कि आप कौन हो जो जहां पर आए हो क्योंकि इस जगह पर पहुंचना बहुत मुश्किल है क्योंकि यह पहाड़ धरती से बहुत ऊंचाई पर है कृपया आप हमें अपना नाम बताएं तो यह सुनकर सतगुरु नानक ने कहा मेरा नाम नानक निरंकारी है संतो भक्तों के दर्शन करने के कारण से मैं सभी जगह विचर रहा हूं तो ये सुनकर वे ऋषि बहुत हैरान हुआ और सतगुरु को कहने लगा कि अगर आपका नाम श्री नानक है तो आपके चरणों में मेरा प्रणाम है और सतगुरु नानक कहने लगे कि आप मुझे कैसे जानते हैं और आपने मुझे कैसे पहचान लिया है तो वह ऋषि कहने लगे कि मेरे गुरु ने मुझे वचन किए थे कि कलयुग में नानक नाम से एक संत आएंगे जो नाम की चर्चा करेंगे लोगों से नाम जप करवाएंगे और पाखंडी लोगों का खात्मा करेंगे वह जगत में भक्ति को प्रकट करेंगे और जगह-जगह उत्तम धर्म का निर्वाह करेंगे मेरी भी आपके दर्शन करने की बहुत भावना थी श्री गुरु नानक जी वह आप ही हो जिनकी इतनी कीर्ति है यह कहकर गुरु जी की वंदना की और गुरु जी का बहुत आदर सम्मान किया और उसके बाद सतगुरु कहने लगे आपका क्या नाम है और अपने गुरु का सुंदर नाम बताएं तो यह सुनकर वे ऋषि ने कहा मेरा नाम कल्याण है और मेरे गुरु का नाम सीलसेन समझे आप के दर्शन करने से ही मेरे सभी दुख दूर हो गए हैं मेरे किए हुए जप तप सभी सफल हो गए हैं तो सतगुरु नानक से ये वचन कहकर वह ऋषि अपनी आश्रम की तरफ चले गए जहां पर बहुत बड़े ऋषि मुनि तप कर रहे थे उसने सतगुरु नानक से अपनी सारी वार्तालाप उनको बताई तो उस वार्तालाप को सुनकर सीलसेन और जितने भी ऋषि थे वह सतगुरु की ओर चल पड़े जब वह चलकर सतगुरु के पास पहुंच गए तो सतगुरु उनको देखकर खड़े हो गए और सतगुरु ने उन सभी को नमस्कार की वह सभी सतगुरु के दर्शन कर बड़े खुश होकर सतगुरु से मिले और अनेक तरह से सतगुरु नानक की उस्तती करने लगे और कहने लगे कि जो जप तप संजम हमने बड़े प्यार से किया था वह आज आपके दर्शन करने से सफल हो गया है तो ये सुनकर सतगुरु नानक ने कहा साध संगत ही है जिसे करने से मनुष्य नाम के रंग में रंगा जाता है जन्मों-जन्मों के जितने भी भारी दुख और कष्ट है वह सतगुरु का नाम लेने से दूर हो जाते हैं इस तरह सतगुरु उनसे वार्तालाप करते हुए आगे चल पड़े और उन सभी को प्रणाम किया तो सभी ऋषि-मुनियों ने वह घड़ी को सफल समझा जिस समय वह सतगुरु नानक से नाम के बारे में चर्चा कर रहे थे फिर सतगुरु वहां आ गए यहां पर बहुत सुंदर वृक्ष बहुत सुहावने लग रहे थे वहां पर एक सुंदर सरोवर भी शोभा पा रहा था जिसका शीतल जल मन को अच्छा लगता जब सतगुरु नानक और भाई मरदाना जी उस सरोवर के किनारे पर आ गए तो भाई मरदाना जी सतगुरु से कहने लगे कि इस स्थान पर भी ऋषि रहते हैं या नहीं ? अगर यहां पर भी ऋषि मुनि रहते हैं तो गुरुजी उनसे भी मुलाकात करें क्योंकि संतों के मिलन से अनेक पाप दूर हो जाते हैं उनके दर्शन करने से करोड़ों कष्ट दूर होते हैं तो सतगुरु नानक ने भाई मरदाना जी को कहा कि इस पहाड़ पर एक ऋषि रहता है जो खुद चलकर हमसे मिलेगा यह कहकर गुरुजी उस सरोवर पर स्नान करने लग गए उस समय एक ऋषि वहां पर चलकर आया और सतगुरु नानक को स्नान करता देख कहने लगा मन में सुमेर पर्वत की तरह स्थिर लिव लगी हुई है जल मछली की तरह प्रेम जैसा हुआ पड़ा है जिस प्रकार इनकी रीति लगी हुई है उनको स्नान की इच्छा नहीं होती है इससे ऊपर और कोई साधन नहीं है हे संत जी आपका जो नाम है आप हमें बताएं तो यह सुनकर कृपा निधान गुरु जी कहने लगे ऋषि जी आप धन्य हो आप परम चतुर हो एक ओंकार के चरणों का जो सरोवर है मेरा मन उस चरण सरोवर की मच्छी समझे उस सरोवर से बिछड़ कर नानका तड़प तड़प कर मरा समझो उस सरोवर की लहरों में दिन-रात खेल कर आनंदित होता रहता हूं ये 9 दरवाजे दो आंखें, दो कान, दो नासे, मुंह शिक्षण और गुदा इसमें से सदा ही बहुत मेल सिमती रहती है यह मेल नाम रूपी सरोवर में स्नान करने से ही शुद्ध होती है इसलिए स्नान करना उचित है तो जब ऋषि ने नानक नाम को सुना तो दोनों हाथ जोड़कर वंदना की और कहने लगा कि आप हरि का रूप हो आपने खुद चलकर मुझे दर्शन दिए हैं मैं अनजान था जो पहले आपको जान नहीं सका अब जाना है जब आपने अपना नाम बताया है आपकी कीर्ति बहुत सुनी हुई है अब आपने मुझे दर्शन देकर मालक बना दिया है वह मुनि प्रेम से भरकर गदगद हो गया और वह समझने लगा कि उसकी श्रेष्ठ देह सतगुरु के दर्शन करने से निहाल हो गई है मुनि का प्रेम देखकर सतगुरु नानक ने अपने कोमल मुख से मीठे वचन कहे कि अगर मनुष्य आपका संग करें तो उसको माया का मोह नहीं व्याखेगा साध संगत ही सबसे सुखी स्थान है और कोई भी स्थान उसके बराबर नहीं है इस तरह कह कर सुखों के घर कृपा निधान गुरु जी आगे चल पड़े तो साध संगत जी यहां पर गुरु नानक प्रकाश ग्रंथ के आखिरी भाग का पहला अध्याय समाप्त होता है जी प्रसंग सुनाते हुए अनेक भूलों कि शमा बक्शे जी ।

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By Sant Vachan


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